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Old 25-11-2012, 07:14 AM   #71
Sameerchand
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इच्छा


एक विद्यार्थी था. उसे विविध विषयों पर ज्ञान की प्राप्ति का बड़ा शौक था. उसने प्रकाण्ड विद्वान सुकरात का नाम सुन रखा था. ज्ञान की लालसा में एक दिन अंततः वह सुकरात के पास पहुँच ही गया और सुकरात से पूछा कि वह भी किस तरह से सुकरात की तरह प्रकाण्ड पंडित बन सकता है.

सुकरात बहुत कम बात करते थे. विद्यार्थी को यह बात बोलकर बताने के बजाए उसे वे समुद्र तट पर ले गए. जब किसी बात को सिद्ध करना होता था तब सुकरात इसी तरह की विचित्र किस्म की विधियाँ अपनाते थे. समुद्र तट पर पहुँच कर वे बिना अपने कपड़े उतारे समुद्र के पानी में उतर गए.

विद्यार्थी ने समझा कि यह भी ज्ञान प्राप्ति का कोई तरीका है, अतः वह भी सुकरात के पीछे पीछे कपड़ों सहित समुद्र के गहरे पानी में उतर पड़ा. अब सुकरात पलटे और विद्यार्थी के सिर को पानी में बलपूर्वक डुबा दिया. विद्यार्थी को लगा कि यह कुछ बपतिस्मा जैसा करिश्मा हो जिसमें ज्ञान स्वयमेव प्राप्त हो जाता हो. उसने प्रसन्नता पूर्वक अपना सिर पानी में डाल लिया. परंतु एकाध मिनट बाद जब उस विद्यार्थी को सांस लेने में समस्या हुई तो उसने अपना पूरा जोर लगाकर सुकरात का हाथ हटाया और अपना सिर पानी से बाहर कर लिया.

हाँफते हुए और गुस्से से उसने सुकरात से कहा – ये क्या कर रहे थे आप? आपने तो मुझे मार ही डाला था!

जवाब में सुकरात ने विनम्रता पूर्वक विद्यार्थी से पूछा – जब तुम्हारा सिर पानी के भीतर था तो सबसे ज्यादा जरूरी वह क्या चीज थी जो तुम चाहते थे?

विद्यार्थी ने उसी गुस्से में कहा – सांस लेना चाहता था और क्या!

सुकरात ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया – जिस बदहवासी से तुम पानी के भीतर सांस लेने के लिए जीवटता दिखा रहे थे, वैसी ही जीवटता जिस दिन तुम ज्ञान प्राप्ति के लिए अपने भीतर पैदा कर लोगे, तो समझना कि तुम्हें ज्ञान की प्राप्ति हो गई है.


"इच्छा सभी करते हैं, सवाल जीवटता पैदा करने का है."
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Old 25-11-2012, 07:14 AM   #72
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ज्यूपिटर, नेप्च्यून, मिनर्वा और मोमस


एक कथा के अनुसार स्वर्ग में ज्यूपिटर(बृहस्पति) , नेप्च्यून(वरुण) और मिनर्वा(ग्रीक मान्यता के अनुसार कला और ज्ञान की देवी) में यह शर्त लग गयी कि उनमें से कौन इस संसार की सर्वश्रेष्ठ वस्तु बना सकता है। मोमस भी स्वर्ग में रहने वाले एक देवता थे। उन्हें इस प्रतियोगिता का निर्णायक बनाया गया।

ज्यूपिटर ने इंसान, मिनर्वा ने घर और नेप्च्यून ने सांड को बनाया। निर्णायक की सीट पर बैठे मोमस ने सभी रचनाओं में दोष निकालने शुरू कर दिये। सबसे पहले उसने सांड में यह दोष निकाला कि उसके सींग आँखों के नीचे नहीं हैं जिससे वह उन्हें देख नहीं पाता।

फिर उसने इंसान में यह दोष ढूंढा कि उसकी छाती में कोई खिड़की नहीं है जिससे उसके मन के विचार और भावनायें दिखायी नहीं देतीं है।

अंत में उसने घर में दोष निकाला कि इसमें पहिए नहीं लगे हैं। पहिए न होने के कारण उसके निवासी उसे बुरे पड़ोसियों से दूर नहीं ले जा सकते।

जैसे ही मोमस ने अपना निर्णय समाप्त किया, ज्यूपिटर ने उसे स्वर्ग से बाहर का रास्ता दिखा दिया और कहा कि किसी भी रचना में दोष निकालना बहुत आसान है। उसे दूसरों की रचना में तब तक दोष निकालने का हक़ नहीं है, जब तक वह स्वयं कोई अनूठी रचना न करे।


"किसी दूसरे की रचना में दोष निकाना सबसे आसान काम है।"
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Old 25-11-2012, 07:14 AM   #73
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हवा और सूरज


एक दिन हवा और सूरज में इस बात को लेकर नोकझोक हो गयी कि उनमें से कौन ज्यादा ताकतवर है। उन्होंने इस बात का फैसला एक प्रतियोगिता के जरिए करने का निर्णय लिया। उन्होंने यह तय किया कि जो भी उस यात्री को अपना कोट उतारने को विवश कर देगा, वही ज्यादा ताकतवर कहलायेगा।

हवा ने कहा कि पहले वह प्रयास करेगी। इसके बाद हवा अपनी पूरी रफ्तार से बहने लगी। बादल उमड़ने लगे और यात्री को ऐसा प्रतीत हुआ जैसे बर्फ का तूफान आ गया हो। हवा जितनी तेज बहती जाती, वह यात्री अपना कोट उतनी ही मजबूती से अपने शरीर से जकड़े रहता।

इसके बाद सूरज की बारी आयी। अपनी पहली किरण से ही उसने घने बादलों और ठंड को दूर भगा दिया। यात्री को अचानक गर्मी महसूस हुयी। जैसे - जैसे सूरज गर्म होता गया, यात्री को गर्मी का अहसास होता गया और अंततः उसने गर्मी से छटपटाते हुए अपना कोट उतारकर जमीन पर फेंक दिया।

सूरज को इस प्रतियोगिता का विजेता घोषित कर दिया गया। वास्तविकता यह है कि प्रकृति की भयावह शक्तियों और खतरों की तुलना में सूरज की गुनगुनी धूप किसी भी व्यक्ति की बांछे खिला सकती है।


"शक्ति की तुलना में विनय का दर्ज़ा हमेशा ऊपर होता है।"
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Old 25-11-2012, 07:15 AM   #74
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छोटा सा अंतर


छोटा सा अंतरएक बुद्धिमान व्यक्ति ,जो लिखने का शौकीन था ,लिखने के लिए समुद्र के किनारे जा कर बैठ जाता था और फिर उसे प्रेरणायें प्राप्त होती थीं और उसकी लेखनी चल निकलती थी । लेकिन ,लिखने के लिए बैठने से पहले वह समुद्र के तट पर कुछ क्षण टहलता अवश्य था । एक दिन वह समुद्र के तट पर टहल रहा था कि तभी उसे एक व्यक्ति तट से उठा कर कुछ समुद्र में फेंकता हुआ दिखा ।

जब उसने निकट जाकर देखा तो पाया कि वह व्यक्ति समुद्र के तट से छोटी -छोटी मछलियाँ एक-एक करके उठा रहा था और समुद्र में फेंक रहा था । और ध्यान से अवलोकन करने पर उसने पाया कि समुद्र तट पर तो लाखों कि तादात में छोटी -छोटी मछलियाँ पडी थीं जो कि थोडी ही देर में दम तोड़ने वाली थीं ।अंततः उससे न रहा गया और उस बुद्धिमान मनुष्य ने उस व्यक्ति से पूछ ही लिया ,"नमस्ते भाई ! तट पर तो लाखों मछलियाँ हैं । इस प्रकार तुम चंद मछलियाँ पानी में फ़ेंक कर मरने वाली मछलियों का अंतर कितना कम कर पाओगे ?इस पर वह व्यक्ति जो छोटी -छोटी मछलियों को एक -एक करके समुद्र में फेंक रहा था ,बोला,"देखिए !सूर्य निकल चुका है और समुद्र की लहरें अब शांत होकर वापस होने की तैयारी में हैं । ऐसे में ,मैं तट पर बची सारी मछलियों को तो जीवन दान नहीं दे पाऊँगा । "

और फिर वह झुका और एक और मछली को समुद्र में फेंकते हुए बोला ,"किन्तु , इस मछली के जीवन में तो मैंने अंतर ला ही दिया ,और यही मुझे बहुत संतोष प्रदान कर रहा है । "इसी प्रकार ईश्वर ने आप सब में भी यह योग्यता दी है कि आप एक छोटे से प्रयास से रोज़ किसी न किसी के जीवन में 'छोटा सा अंतर' ला सकते हैं । जैसे ,किसी भूखे पशु या मनुष्य को भोजन देना , किसी ज़रूरतमंद की निःस्वार्थ सहायता करना इत्यादि ।

आप अपनी किस योग्यता से इस समाज को , इस संसार को क्या दे रहे हैं ,क्या दे सकते हैं ,आपको यही आत्मनिरीक्षण करना है और फिर अपनी उस योग्यता को पहचान कर रोज़ किसी न किसी के मुख पर मुस्कान लाने का प्रयास करना है ।और विश्वास जानिए ,ऐसा करने से अंततः सबसे अधिक लाभान्वित आप ही होंगे । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपको अपने भीतर महसूस होगा । ऐसा करने से सबसे अधिक अंतर आपके ही जीवन में पड़ेगा ।
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Old 25-11-2012, 07:15 AM   #75
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असली चमत्कार


एक स्वामी जी थे जिनके भक्तों की संख्या लाखों में थी. वे अपने प्रवचनों में मनुष्यों में मनुष्यत्व बचाए रखने की बातें अकसर किया करते थे.

एक बार एक अन्य स्वामी के भक्त उन्हें सुनने आए. प्रवचन के बीच में उन भक्त ने स्वामी जी का उपहास उड़ाते हुए कहा कि हमारे स्वामी तो नदी के एक किनारे खड़े होकर हाथों में ब्रश लेकर हवा में चित्र बनाते हैं तो वह नदी के दूसरे किनारे पर रखे कैनवस पर उतर आता है. क्या आप ऐसा कोई चमत्कार कर सकते हैं?

स्वामी जी ने कहा हाँ, क्यों नहीं! मैं इससे भी ज्यादा चमत्कार करता हूँ. आपके तथाकथित गुरु जादू की छड़ी से ऐसा ट्रिक कर दिखाते हैं, पर मेरा यह तरीका नहीं है. मेरा चमत्कार तो यह है जब मुझे खूब भूख लगती है तभी मैं खाता हूँ, और जब मुझे जोर की प्यास लगती है, तभी मैं खाता हूं. और यही बात मैं अपने भक्तों को सिखाता हूँ.
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Old 25-11-2012, 07:15 AM   #76
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चरमराते हुए पहिये


एक ऊबड़खाबड़ रोड पर दो बैल एक बैलगाड़ी को खींचते ले जा रहे थे। तभी बैलगाड़ी के पहियों से चरमराने की आवाज़ आने लगी। गाड़ीवान ने पहियों को कोसते हुए कहा - "अरे निर्दयी! जब कठोर परिश्रम करके गाड़ी खींचने वाले ये जानवर नहीं कराह रहे हैं तो तुम क्यों शोर मचा रहे हो?"
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Old 25-11-2012, 07:16 AM   #77
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भेड़िया ओर मेमना


नदी के किनारे एक भेड़िये को कुछ दूरी पर एक भटकता हुआ मेमना दिखायी देता है। वह उस पर हमला करके अपना शिकार बनाने का निश्चय करता है। निरीह मेमने के शिकार के लिए वह बहाना ढूंढने लगता है।

वह मेमने पर चिल्लाता है - "अरे दुष्ट! जिस नदी का मैं पानी पी रहा हूँ उसे गंदा करने की तेरी हिम्मत कैसे हुयी?"

मेमना नम्रतापूर्वक बोला - "माफ कीजिए श्रीमान! लेकिन मुझे यह समझ में नहीं आया कि मैं किस तरह पानी गंदा कर रहा हूँ, जबकि पानी तो आपकी ओर से बहता हुआ मेरे पास आ रहा है।"

"हो सकता है! पर सिर्फ एक वर्ष पहले मैंने सुना था कि तुम मेरी पीठ पीछे बहुत बुराई कर रहे थे।" - भेड़िये ने बात बनाते हुये कहा।

"लेकिन श्रीमान, एक वर्ष पहले तो मैं पैदा ही नहीं हुआ था" - मेमने ने कहा।

"हो सकता है कि तुम न हो। वो तुम्हारी माँ भी हो सकती है। पर इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं है। अब तुम मेरे भोजन में और व्यवधान नहीं डालो।" - भेड़िये ने गुर्राते हुए कहा और बिना पल गवाये उस निरीह मेमने पर टूट पड़ा।

"एक तानाशाह अपनी तानाशीही के लिए हमेशा कोई न कोई बहाना तलाश लेता है।"
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Old 25-11-2012, 07:16 AM   #78
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हीरे की असली कीमत


एक मुर्गे को दाना खोजते समय मैदान में दाने के आकार में तराशा हुआ एक हीरा मिल गया. मुर्गे ने तुरंत उस पर चोंच मारी, मुंह में लिया और जब उसे उसका स्वाद नहीं जमा और जीभ को कड़ा-कड़ा महसूस हुआ तो उसने तत्काल ही उसे वापस थूक दिया.

यह देख हीरा मुर्गे से बोला – ओ मूर्ख मुर्गे, तुम्हें मालूम नहीं मेरी असली कीमत क्या है? मैं एक नवलखा हार में लगा हुआ था, पर यहाँ उसमें से गिर गया हूँ. मैं असली नायाब हीरा हूँ. फुर्सत में तराशा गया और कई राजकुमारियों के गले की शोभा रह चुका हूँ. मैं बेशकीमती हूँ, और तुम मुझे यूं ही फेंक कर चले जा रहे हो?

मुर्गे ने उसकी ओर निस्पृह सी दृष्टि डाली और गर्व से बोला – तुम्हारी कीमत और खासियत तुम अपने पास रखो, मेरी नजर में तो तुम्हारी कीमत गेंहू के एक दाने के बराबर भी नहीं है!
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Old 25-11-2012, 07:16 AM   #79
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समर्पण और खुशहाली


एक बार एक राजा ज्ञान प्राप्ति के लिए एक प्रसिद्ध मठ पर गया. मठ में गुरु के अलावा बाकी सभी राजा को देख कर अति उत्साहित थे.

राजा ने मठाधीश से अपने आने का मंतव्य बताया और कहा – गुरूदेव, मैं आपके ज्ञान व प्रसिद्ध मठ से बेहद प्रभावित हूँ, और मैं अपने राज्य में अपने शासन से खुशहाली लाना चाहता हूँ. कृपया कुछ दिशा दर्शन करें.

गुरुदेव ने कहा –अच्छी बात है, मगर खुशहाली शासन व नियंत्रण से नहीं आती है, बल्कि सभी के अपने कार्यों के प्रति समर्पण से प्राप्त होती है.

"अपने कार्य के प्रति समर्पण का भाव पैदा करें, खुशहाली, प्रगति स्वयमेव प्राप्त होगी"
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Old 25-11-2012, 07:16 AM   #80
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संसदीय हास परिहास


बाबू जगजीवन राम रेल बजट पेश कर रहे थे. अपने बजट भाषण में उन्होंने सांसद की पत्नियों के लिए निशुल्क रेल यात्रा की घोषणा की. एक अविवाहित सांसद ने पूछा – अविवाहित सांसद क्या यह सुविधा अपने मित्र के लिए ले सकते हैं? बाबूजी ने कहा – यह सुविधा स्पाउस (spouse) के लिए है, स्पाइस(spice) के लिए नहीं!
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