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Old 29-10-2014, 11:12 AM   #71
rafik
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Default Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!

भोजन दान की महिमा एक लकड़हारा रात-दिन लकड़ियां काटता, मगर
कठोर परिश्रम के बावजूद उसे आधा पेट भोजन ही मिल
पाता था।
एक दिन उसकी मुलाकात एक साधु से हुई। लकड़हारे ने
साधु से कहा कि जब भी आपकी प्रभु से मुलाकात
हो जाए, मेरी एक फरियाद उनके सामने रखना और मेरे कष्ट का कारण पूछना।
कुछ दिनों बाद उसे वह साधु फिर मिला।
लकड़हारे ने उसे अपनी फरियाद की याद दिलाई
तो साधु ने कहा कि प्रभु ने बताया हैं कि लकड़हारे
की आयु 60 वर्ष हैं और उसके भाग्य में पूरे जीवन के लिए
सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, इसलिए प्रभु उसे थोड़ा अनाज ही देते हैं ताकि वह 60 वर्ष तक जीवित
रह सके।
समय बीता।
साधु उस लकड़हारे को फिर मिला तो लकड़हारे ने
कहा, "ऋषिवर अब जब भी आपकी प्रभु से बात
हो तो मेरी यह फरियाद उन तक पहुँचा देना कि वह मेरे जीवन का सारा अनाज एक साथ दे दें, ताकि कम से
कम एक दिन तो मैं भरपेट भोजन कर सकूं।"
अगले दिन साधु ने कुछ ऐसा किया कि लकड़हारे के घर
ढ़ेर सारा अनाज पहुँच गया।
लकड़हारे ने समझा कि प्रभु ने उसकी फरियाद कबूल कर
उसे उसका सारा हिस्सा भेज दिया हैं। उसने बिना कल की चिंता किए, उसने सारे अनाज
का भोजन बनाकर फकीरों और
भूखों को खिला दिया और खुद भी भरपेट खाया।
लेकिन अगली सुबह उठने पर उसने
देखा कि उतना ही अनाज उसके घर फिर पहुंच गया हैं।
उसने फिर गरीबों को खिला दिया। फिर उसका भंडार भर गया। यह सिलसिला रोज-रोज चल
पड़ा और लकड़हारा लकड़ियां काटने की जगह
गरीबों को खाना खिलाने में व्यस्त रहने लगा।
कुछ दिन बाद वह साधु फिर लकड़हारे
को मिला तो लकड़हारे ने कहा, "ऋषिवर! आप
तो कहते थे कि मेरे जीवन में सिर्फ पाँच बोरी अनाज हैं, लेकिन अब तो हर दिन मेरे घर पाँच बोरी अनाज आ
जाता हैं।"
साधु ने समझाया, "तुमने अपने जीवन की परवाह
ना करते हुए अपने हिस्से का अनाज गरीब व
भुखों को खिला दिया, इसीलिए प्रभु अब उन
गरीबों के हिस्से का अनाज तुम्हें दे रहे हैं।
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Old 29-10-2014, 11:35 AM   #72
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Default Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!

सूट केस...
एक आदमी मर गया. जब उसे महसूस हुआ तो उसने देखा कि भगवान उसके पास आ रहे हैं और उनके हाथ में एक सूट केस है.
भगवान ने कहा --पुत्र चलो अब समय हो गया.आश्चर्यचकित होकर आदमी ने जबाव दिया --अभी इतनी जल्दी? अभी तो मुझे बहुत काम करने हैं. मैं क्षमा चाहता हूँ किन्तु अभी चलने का समय नहीं है. आपके इस सूट
केस में क्या है?भगवान ने कहा -- तुम्हारा सामान.मेरा सामान? आपका मतलब है कि मेरी वस्तुएं,मेरे कपडे, मेरा धन?भगवान ने प्रत्युत्तर में कहा -- ये वस्तुएं
तुम्हारी नहीं हैं. ये तो पृथ्वी से सम्बंधित हैं.आदमी ने पूछा -- मेरी यादें?
भगवान ने जबाव दिया -- वे तो कभी भी तुम्हारी नहीं थीं. वे तो समय
की थीं. फिर तो ये मेरी बुद्धिमत्ता होंगी?भगवान ने फिर कहा -- वह
तो तुम्हारी कभी भी नहीं थीं. वे तो परिस्थिति जन्य
थीं. तो ये मेरा परिवार और मित्र हैं? भगवान ने जबाव दिया -- क्षमा करो वे
तो कभी भी तुम्हारे नहीं थे. वे तो राह में मिलने वाले पथिक थे. फिर तो निश्चित ही यह मेरा शरीर होगा? भगवान ने मुस्कुरा कर कहा -- वह तो कभी भी तुम्हारा नहीं हो सकता क्योंकि वह तो राख है.तो क्या यह मेरी आत्मा है?
नहीं वह तो मेरी है --- भगवान ने कहा. भयभीत होकर आदमी ने भगवान के हाथ से सूट केस ले लिया और उसे खोल दिया यह देखने के लिए कि सूट केस में
क्या है. वह सूट केस खाली था. आदमी की आँखों में आंसू आ गए और उसने
कहा -- मेरे पास कभी भी कुछ नहीं था. भगवान ने जबाव दिया -- यही सत्य है.
प्रत्येक क्षण जो तुमने जिया, वही तुम्हारा था. जिंदगी क्षणिक है और वे
ही क्षण तुम्हारे हैं. इस कारण जो भी समय आपके पास है, उसे भरपूर जियें. आज में जियें. अपनी जिंदगी जिए. खुश होना कभी न भूलें, यही एक बात महत्त्व
रखती है. भौतिक वस्तुएं और जिस भी चीज के लिए आप
यहाँ लड़ते हैं, मेहनत करते हैं...आप यहाँ से कुछ भी नहीं ले
जा सकते हैं...
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Old 26-01-2015, 07:15 PM   #73
rajnish manga
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Default Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!

हाजी अब्दुल अज़ीज़
कथाकार: रजनीश मंगा


जो मजदूर, कारीगर, राज, मिस्त्री, चेजे, बढ़ई आदि यहाँ से अरब देशों में काम धंधे के लिये जाते हैं, उनके पौ बारह हो गये हैं. बेशुमार पैसा आ रहा है. इनके पास मकान, गहने, कपडे बड़े-बड़ों से बढ़ चढ़ कर है. आर्थिक रूप से समृद्ध हैं – दुनिया भर की सारी मशीनी और इंसानी सुविधाएं इन्होंने जुटा ली हैं.

अब्दुल अज़ीज़ जवानी की दहलीज़ तक पहुँचते हुये गरीबी के साये तले खेला था. एक बार उसके कोई रिश्तेदार हज कर के आये थे तो उनके यहाँ एक हफ़्ते तक कव्वालियों का आयोजन होता रहा था. अब्दुल अज़ीज़ उस वक़्त छोटा था लेकिन उस घटना से वह बहुत प्रभावित हुआ था. उसे हज करने की बड़ी आकांक्षा थी – इसलिये नहीं कि उसका झुकाव धर्म की ओर बहुत था बल्कि वह अपने नाम के आगे हाजी लिखा हुआ देखना चाहता था – हाजी अब्दुल अज़ीज़.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Last edited by rajnish manga; 26-01-2015 at 07:50 PM.
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Old 26-01-2015, 07:42 PM   #74
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Default Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!

हाजी अब्दुल अज़ीज़

राजस्थान से जब रोजी रोटी के लिये कोई व्यक्ति अरब देशों को जाता था तो इस आवागमन को मुसाफ़िरी के नाम से वर्णित किया जाता था. अपनी पहली मुसाफिरी के बाद अब्दुल अज़ीज़ ने शानदार दो तल्ले का मकान बनवा लिया था. डेढ़ दो लाख से कम लागत न आयी होगी. मजदूरी तो अपनी ही थी. माँ-बाप बेटे को दुआ देते न थकते थे. जितना ज़िन्दगी भर बाप न कमा सका, उससे अधिक तो बेटे ने दो वर्षों में ही सारे खर्चे निकाल कर बचा लिया था. घर खर्च भी तो भेजता था.

अगली मुसाफिरी में एक वर्ष रुकना हुआ. इस बार वह बेहद बीमार हो गया था. ऐसी हालत में उसने भारत लौटना ही मुनासिब समझा. वीसा वह साथ ही लेता आया था. इस बार वह अपने साथ बहुत सी नई नई चीजें लाया था जैसे – स्टीरिओ टेप, रिकॉर्ड प्लेयर, टीवी, कैमरा, घड़ियाँ, कपड़े आदि. यह सभी कुछ फॉरेन का सामान था. उसके मुताबिक़ इन सारी वस्तुओं से उसकी समृद्धि और सुरुचि का परिचय मिलता था. देसी वस्तुओं से वो रुतबा नहीं बनता जो इन विदेशी चीजों से बनता है. अच्छी हैसियत वाले हर व्यक्ति के पास यह वस्तुएं होना लाज़मी समझा जाता था वरना बाहर जाने का क्या फायदा?

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Old 26-01-2015, 07:44 PM   #75
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Default Re: !! मेरी कहानियाँ > रजनीश मंगा !!

हाजी अब्दुल अज़ीज़
खैर माँ - बाप, पत्नी, छोटे भाई सब ने उसकी अच्छी सेवा सुश्रुषा की जिसके परिणामस्वरूप वह जल्द स्वस्थ हो गया. कुछ ही दिन में हवाई जहाज का टिकट बुक हो गया. जाने की तैयारी पूरी हुई.

दो वर्ष का समय कटते देर न लगी. अब्दुल अज़ीज़ के जीवन की एक बड़ी साध पूर्ण होने का योग बन गया. हज की अभिलाषा मन में लिये वह ओमान से सऊदी अरब के लिये रवाना हो गया. हज पूर्ण हुआ. वहाँ से वापिस आते समय उसकी खुशी का कोई ठिकाना न था. अब वो साधारण अब्दुल अज़ीज़ नहीं बल्कि हाजी अब्दुल अज़ीज़ था – हाजी अब्दुल अज़ीज़.

वह प्रसन्न था. पर फिर भी उसे एक बात का अफ़सोस था. अबकी बार उसका वीसा रिन्यू नहीं हुआ था. सोने का अंडा देने वाली मुर्गी उसके हाथ से जैसे निकल गई थी. एक भले आदमी की तरह रहने का अधिकार ही उससे छीन लिया गया था जैसे. हाजी अब्दुल अज़ीज़ को अपने बचपन के वो मुफ़लिसी भरे दिन याद आ जाते तो वह बुरा सा मुंह बना लेता. उसके मन में एक उम्मीद की किरण जरूर कौंध जाती थी कि शायद डाक से उसकी वापसी के कागजात आ जाएं मगर दो माह बीतते न बीतते उसके भीतर जगी यह उम्मीद की किरण भी धूमिल हो कर मिट गई.

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Old 28-01-2015, 08:21 PM   #76
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उसका मन खिन्न हो गया. अब न तो स्टीरिओ उसे तसल्ली दे पाता था और न रिकॉर्ड चेंजर उसके दिल को बहला पाते. फिल्मों के साउंड ट्रेक भी अब उसकी हंसी उड़ाते लगते. पैसा धीरे धीरे चुकता जा रहा था. इन्हीं हालात में उसके मन की ऊब भी बढ़ती जा रही थी. इस बीच आमदनी के लिये उसने कई छोटे मोटे काम शुरू किये लेकिन उनसे सीमित आय ही हो पाती थी. असंतोष का घेरा उसे चारों ओर से जकड़े जा रहा था.

जब तक कोई वस्तु हासिल नहीं हो पाती, उसकी उम्मीद होती है, उसको हासिल करने के प्रयत्न मनुष्य करता है. और जब उसे प्राप्त कर लेता हैतो उसे बेपनाह ख़ुशी और संतोष हासिल होता है. इसके पश्चात इस ख़ुशी और संतोष की तीव्रता कम होती जाती है. यहाँ तक कि उसकी कुरेद तक नहीं रहती. लेकिन जब हासिल की हुई वस्तु हाथ से निकल जाती है अथवा उसके साथ जुड़ा हुआ हमारा सुख भंग हो जाता है तो जो चोट दिल पर पड़ती है, उसका प्रभाव देर तक रहता है.


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Old 28-01-2015, 08:22 PM   #77
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आमदनी और खर्च में संतुलन बिगड़ता गया तो प्रतिष्ठा के प्रतीक बिकने लगे. गुब्बारे में बैठ कर साहसिक यात्रा अभियानों के बारे में यदि आपने पढ़ा हो तो आपने देखा होगा कि गैस कम हो जाने पर गुब्बारे के गेदोले पर रक्खे हुये रेत के बोरे नीचे गिराए जाते हैं ताकि गुब्बारे की उंचाई बढ़ाई जा सके या बरकरार रखी जा सके. हाजी अब्दुल अज़ीज़ ने भी अपने कीमती सामान यथा पैनासोनिक टू-इन-वन स्टीरियो, रिकॉर्ड चेंजर, कैमरा, घड़ियाँ, टेलीविज़न और अन्य प्रकार के इलेक्ट्रोनिक यंत्रों को धीरे धीरे औने-पौने दामों पर बेचना आरंभ कर दिया.

एक और जीवन में घटते साधनों का दबाव और दूसरी और बेहद शौक से खरीदी हुई वस्तुओं से वियोग का ग़म, इन दोनों बातों ने उसके दिलो-दिमाग को बुरी तरह झकझोर कर रख दिया था. दिमाग ने तो जैसे काम करना ही बंद कर दिया था और कभी कभी उसे यूँ लगता जैसे वह नदी की तेज धार की विपरीत दिशा में तैरने की कोशिश कर रहा है. जितना ही हाथ-पैर मारता उतना ही शैथिल्य उसमे व्याप्त होता जाता. उसका अंतस सुलगने लगता.

अब उसके सामने प्रमुख विचार यही था कि पैसा कहाँ से आये ? रोजी रोटी कैसे चलेगी ? बाकी सब कुछ गौण हो गया था. इसी उधेड़-बुन में अपने बाप को भी खरी खोटी सुनानी शुरू कर दी थी कि वह नकारा क्यों बैठा रहता है ?
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Old 28-01-2015, 08:23 PM   #78
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कई बार माँ उसे समझाने का प्रयत्न करती तो उन्हें भी वह जली कटी सुना बैठता. माँ उससे फिर क्या बहस करती ? उसे कुछ न सूझता, अतः अधिकतर समय अपनी कोठरी में ही बैठी रहती.

बेचारी सुगरां का तो सबसे बुरा हाल था. ऐसी कठिन परिस्थितियों से उसे जीवन में कभी न गुज़ारना पड़ा था. इसलिये उसके मन पर अपने पति के रूखे व कठोर व्यवहार का गहरा आघात लगा. सबसे अधिक ज्यादती भी उसी के साथ होती थी. उसकी उम्र कोई ख़ास नहीं थी. अभी तो उसने गृहस्थ जीवन के सलोने सपने देखने ही शुरू किये थे, उनकी ताबीर के बारे में अभी कुछ सोच ही न पायी थी. ऐसे में पति का प्यार उसका बहुत बड़ा सहारा था, उसका संबल था. किन्तु अब ..... वक़्त ने ऐसी करवट ली कि उसके नीचे उसके सारे कोमल और सुनहरे सपने दब कर रह गये थे. पति की उपेक्षा, प्रताड़ना और उसके बाद होने वाली मारपीट ने उसे बुरी तरह तोड़ डाला था. इस टूटन के कारण उम्र से पहले ही वह जैसे बूढी हो गयी थी. मन मार कर जितना बन पड़ता काम करती, पर जल्द ही थक जाती और हांफने लगती. इस दशा में वह छत की कड़ियों पर दृष्टि अटकाते हुये अपने मौला से दुआ मांगती कि ‘ऐ मौला, तूने हमें जैसा भी रखा, हम रहे. अब और सहन नहीं होता. इसलिये मुझ अभागन को तू इस दुनिया-ए-फ़ानी से उठा ले.’

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Old 29-01-2015, 12:08 PM   #79
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सच यहाँ कुछ नही आपना न जाने क्यूँ इंसान मेरा तेरा करके पापो के भागिदार बनते हैं bhai छोटी किन्तु बड़ी रोचक कहानी ... धन्यवाद bhai ...हम सबसे के साथ शेयर करने के लिए
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Old 29-01-2015, 12:12 PM   #80
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[QUOTE=rajnish manga;547657][size=3][font=&qu संबल था. किन्तु अब ..... वक़्त ने ऐसी करवट ली कि उसके नीचे उसके सारे कोमल और सुनहरे सपने दब कर रह गये थे. पति की उपेक्षा, प्रताड़ना और उसके बाद होने वाली मारपीट ने उसे बुरी तरह तोड़ डाला था. इस टूटन के कारण उम्र से पहले ही वह जैसे बूढी हो गयी थी. मन मार कर जितना बन पड़ता काम करती, पर जल्द ही थक जाती और हांफने लगती.

इंसानी दुखों का कही अंत नही इसलिए ही जीवन को एक संग्राम कहा गया है ,, इम्तिहान कहा गया है क्यूंकि मानव जीवन में कठिनाइयाँ अधिक और खुशिया कम होतीं है .
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