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Old 03-09-2014, 10:47 PM   #71
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

ओह, नजारा करेजा चीड़ देने वाली थी पर किसी ने उस शिशु को बचाने की कोशिश नहीं की। सबके मुंह से केवल आह निकल रही थी और सब ऐसा करने वाली मां को कोस रहे थे पर मुझसे नहीं रहा गया और मैं एक डंडे के सहारे शिशु से लिपटे खोंटों को हटाने की लिए बढ़ा ही था की सभी ने हल्ला करना शुरू कर दिया और तब तक मेरी फुआ भी आ गई थी।

‘‘हे रे छौंरा पगला गेलहीं की रे। छुआ जयमहीं ने रे। नहाबे पड़तउ और पंडित से पूजा करा के पाक होबे पड़तै।’’

पर मैने ने अनसुनी करके डंडे के सहारे खोंटा को उससे अलग करने का प्रयास प्रारंभ कर दिया। मेरा मन भर गया था। आंख में आंसू डबडबा डबा गए थे। वह चित्कार कर रहा था और उसकी चित्कार से मुझे लगा जैसे भगवान चित्कार रहे हो। दुत्कार रहे हों।

हाय हाय हाय हाय ... बड़की चाची छाती पीटती आई थी।

जब मैं सट गया तो सब ने बच्चे से लिपटा कपड़ा हटाने के लिए कहा ताकि इस बात का पता चल सके कि बच्चा बेटा है की बेटी?

ओह अब भी यह बाकी है।

मैंने डंडे के सहारे ही कपड़े को बहुत ही सावधानी से हटाया।

धत्त तेरी के इ त बेटी है।’’

बच्चे के बेटी होने पर अब चर्चाओं का स्वर बदल गये।

‘‘हो सको हो कि बेटिये गुना ऐकरा फेकल गेलो हे।’’ सनोजबा के माय ने जब यह कहा तो वहां पहूंच चुकी रीना ने इसका तीखा प्रतिरोध करते हुए बोली-

बेटिया रहो हई त ओकरा मार दे हई सब, ऐसनो होबो हई। भगवान हखीन की नै इ दुनिया में। उहे इंसाफ करथीन।’’
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 03-09-2014, 10:51 PM   #72
rajnish manga
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

कुछ लोगों ने फूआ को उस बच्ची को रख लेने की बात कही तो कुछ ने इसका विरोध किया। फूफा के बड़े भाई ने विरोध करते हुए कहा-

‘‘पता नै कौन ने कौन जात के जलमल है औ ओकरा तों पोसमहीं त तोरा समजबा से बाड़ नै देतउ। उपर से बेटी! लाख पच्चास खर्चा के घर। औ फेर वियाह महीं केकरा हीं। के वियाह करतै।’’

बहस चल रही थी और वह बच्ची तिल तिल कर मौत के करीब जा रही थी। किसी ने उसे छुआ तक नहीं। फूआ ने मुझे डांट कर नहाने कें लिए भेज दिया। मैं जाने लगा तभी देखा वहीं खड़़ी रीना के आंखों से अविरल आंसू निकलतें, आंसू पर मेरी नजर गई-झर झर लोर गिर रहे है। वह कपस कपस कर रो रही है। मेरी भी नम आंखों की तरफ उसने देखा जैसे कह रही हो कि यह कैसा समाज है। कैसे लोग। आंख के सामने एक आदमजात मर रहा है और कोई उसे छूने तक को तैयारी नहीं, हे भगवान।

रीना ने मुझे सुनाते हुए कहा-

‘‘देख रहलहीं हे ने कैसन जालीम समाज है। एकरे से लड़े पड़तउ।’’ तभी मैं फूआ के पास जाकर बोल दिया-

‘‘ काहे नै इकरा घारा ले चलो हीं, की खरबी है।’’ तभी सभी लोग मुझ पर झंझुआ कर दौड़ पड़े।

मैं चुपचाप नहाने के लिए पोखर के दूसरे किनारे शिवाला की ओर चला गया और डुब्बा पानी में कूद कर नहा कर लौट रहा था की तभी रास्ते में ही इस बात की खबर मिल गई की बच्ची की प्राण पखेरू उड़ गए।
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Old 03-09-2014, 10:54 PM   #73
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

मैं फिर लौट के वही आ गया। बच्ची स्पंदनहीन हो गई थी और रोना बंद कर दिया। यही उसके मर जाने का प्रमाण था। धीरे धीरे लोग छंटते गए और सभी अपने अपने काम मे लग गए, शेष रह गया तो कई दिनों तक चौराहे और चौपाल में इस पाप के दोषी को खोजने की बहस।

और फिर दोपहर में दूर से ही देखा तो उस जगह पर कुछ गिद्ध के झंुड मंडराने लगे थे और एक दो कुत्ते में भाग भाग कर गिद्ध पर झपट रहे थे पर मै सोंच रहा था समाज के गिद्ध और कुत्तों का क्या
?

हे भगवान इतना जालीम
, निर्दय और कठोर हैं हम, सारी धर्म और शास्त्रों यही सिखाया? अभी कुछ दिन पहले ही तो यज्ञ हुआ था गांव में। जिसमें भागवत कथा भी हुई थी और सारा गांव उमड़ पड़ा था। लगा जैसे लोगों के अंदर एकाएक धर्म की अगाध प्रेम उमड़ गई हो। हवन करने को लेकर मारा मारी, क्या बड़का क्या छोटका सबने हवन के लिए घंटों इंतजार किया। रात रात भर जाग कर प्रवचन सुना। सबने चंदा देकर सहयोग किया। इतना ही संत श्री मनोहर जी महराज कें लिए खाना किसके घर से आएगा उसके लिए जंग। और मुझे याद है कैसे कंश के प्रसंग पर चल रहे नाटक को देख रहे श्रद्धालू भक्तों के आंखों में आंसू झलक गए थे जब वह बच्चों को पटक पटक कर मार रहा था। ओह बेचारा देखो तो। और कर्ण की मौत के प्रसंग की रात और दूसरे दिन शाम तक गांव में शोक का माहौल था। कई घरों में खाना नहीं बना और इस बात का ऐलान करते लोग चौराहे पर गला फाड़ फाड़ कर चिल्ला रहे थे। और आज.....
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Old 03-09-2014, 10:55 PM   #74
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

इसी दिन घर में कोहराम मच गया। महामार हुआ और फूआ ने बच्चा घर में नहीं लाने को लेकर फूफा से महाभारत की। तभी फूआ के मुंह से निकली बोली ने मेरा कलेजा चीर दिया-
‘‘ ले आइथो हल तब र्निबंश तो नै कहैथो हल।’’

मुझे एहसास हुआ कि कोई मुझे अपना बेटा नहीं मानता और इस परायेपन के एहसास ने मुझे हिला दिया। मेरे आंख में आंसू आ गए और मैं डबडबाई आंख से घर से निकल कर उसी बुढ़े बरगद की आगोश मंे जा कर सो गया। शाम ढली और फिर रात भी हो गई पर मैंने किसी बात की परवाह नहीं की।


सिलसिला प्यार का चल रहा था कभी रूक कर, तो तेज-तेज पर रास्ते से भटकने की बात नहीं थी। किशोर मन हिचकोले ले रहा था और आग दोनों तरफ बराबर लगी हुई थी। बुढ़े बरगद के पास मिलना क्या हुआ कि जैसे एक आसरा मिल गया। दशहरे के दिन वह हर साल सपरिवार मेला देखने के लिए जाती थी इस साल मैं भी साथ हो लिया,चुपके से। मेला में वह जिधर जाती मैं फासले से उसके पीछे पीछे हो लेता। मुझपे उसकी नजर थी और वह इठला रही थी, तितली की तरह। मेला, जैसे महिलाओं का जन सैलाब उमड़ सा पड़ता हो। देह से देह रगड़ कर लोग चलते और जलेवी प्रमुख मिठाई रहती। अमीर से लेकर गरीब के घर तक इसकी पहूंच थी। इसमें एक बड़ी विकृति भी थी वह इस रूप मंे कि कुछ नौजवान लड़कियों के छेड़ने या और उनके साथ हथरस करने में लगे रहते। मेरे कुछ दोस्तों ने भी कहा -

‘‘कि चल न याद बड़की देवी जी भीर, कतना के मैंज देलिए हें।’’

पर मेरी दुनिया तो सपाट थी... रमजा जोगी की तरह।
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Old 03-09-2014, 10:57 PM   #75
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

खैर चलते चलते दो बज गए, थके हारे घर की ओर चला जा रहा था कि तभी रीना सबसे पिछड़ने लगी और फिर पगदंडी से होकर गुजरते हुए मैं उसके करीब जैसे ही पहूंचा उसने मुझे चुम लिया और फिर एक मिठाई मेरे मुंह में डालते हुए बोली-

‘‘तोरा ले कखने से ई रसगुल्ला अपन हिस्सा से बचा के रखले हिऔ, तोरा नियर डरपोक, की दस बांस पीछे ही रहो हइ।’’

हां कहमीं नै, तों सब दुर्गा जी देखो हलीं और हम अपना दुर्गा के पीछे पीछे पगलाल।’’
फिर पीछे से किसी के आने की आहट और वह छटक कर आगे निकल गई। इस समय रात के दो बज रहे थे और जाते जाते उसने कहा-

‘‘अडडा पर मिलो हिऔ तनी देर में।’’

रीना आज कुछ ज्यादा ही प्रसन्न थी। मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था पर फिर भी बूढ़ा बरगद की गोद में जाकर बैठ गया। करीब एक घंटे कें बाद धंधरेदार फ्रॉक पहने वह चली आ रही थी। आज उसकी चाल में कुछ अजीब सी मादकता सी थी। मटक मटक कर चलती हुई जैसे वह कुछ बताना चाहती हो। जैसे ही वह करीब आई मैं हाथ पकड़ना चाहा और छटक कर वह परे हट गई। आज वह हिरणी की तरह मटक रही थी मचल रही थी।

‘‘ की बात है हो आज खूब मटक रहलीं है।’’

‘‘तोरा काहे जलन लगो है, हमरा से कुछ डाह हौ की।’’

‘‘ डाह कौची पर जलन तो होबे करतै पर आज कबुतरा नियर फुदूक काहे रहलीं हे।’’

‘‘आज बाबू जी से बोल देलिऔ की हम ब्याह तोरे से करबौ नै त अपन जान दे देबौ।’’

‘‘तब बाबू जी कहलखुन।’’

‘‘कहथिन की, इहे की कहां से खिलैतउ और कहां रखतै, तब हमहूं कह देलिए की जब भगवाने के इ मर्जी है तब तों कहे ले चिंता करो हो।’’

यानि की उसकी खुशी का राज यही था।
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Last edited by rajnish manga; 03-09-2014 at 10:59 PM.
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Old 05-09-2014, 11:17 AM   #76
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Thumbs down Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

एक लम्बी प्रेम कहानी


लगातार 4दिन से कहानी पड रहा हूँ कहानी पड़कर मजा आ गया !
कहानी में जो तत्व होने चाहिए ,वो सब मौजूद थे कहानी ग्रामीण में होने के नाते और भी रोचक हो जाती !


बोरियत नाम मात्र भी नहीं था हास्य से भी परिपूर्ण थी
जेसे =>विषहीन सर्फ़ जानकर विषेले सर्फ़ को पकड़ना ,कहानी में कविता का भी उपयोग हूआ है जो मनोभाव को दर्शाती है



कहानी के पात्र का अभिनव बेखूबी से प्रयोग किया गया बबलू ,कमलेश ,राजीव दा ,फूफा,फ़ूआ रीना, राधा !


कहानी को पड़ते वक्त तस्वीरे उभर आती ,जो वास्तविकता लगती है !


एक रोचक कहानी के लिए धन्यवाद !मित्र
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Disclaimer......!
"The Forum has given me all the entries are not my personal opinion .....! Copy and paste all of the amazing ..."
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Old 05-09-2014, 11:11 PM   #77
rajnish manga
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

एक सार्थक टिप्पणी के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, रफ़ीक जी. उक्त कथा में प्रणय प्रसंग के अतिरिक्त एक अंचल विशेष का रहन सहन, भाषा व वेशभूषा आदि का भी सुन्दर समावेश हुआ है. कहानी में कृत्रिमता न होना इसका एक सबल पक्ष है.
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Old 05-09-2014, 11:12 PM   #78
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

मैं भी कुछ ज्यादा ही खुश होकर एक बार फिर उसके बगल होकर उसे बांहों में जकड़ना चाहा पर वह फिर छिटक गई। पता नहीं क्यों पर आज मेरा मन उसे बांहों में लेने के लिए छटपटा रहा था और वह पहले से विपरीत छटक रही थी। कुछ नियोजित नहीं था पर कुछ कुछ हो रहा था। परसों दहशहरे की छुटटी के बाद मुझे जाना था और कुछ हासील करने की ललक सी पता नहीं क्यों पर जाग गई थी। इस लुकाछुपी के बीच कुछ ही देर में रीना आत्मसमर्पण करते हुए मेरे बांहों में थी।

‘‘ की ईरादा है हो, आज लगो है मन मिजाज हाथ में नै है की।’’ रीना ने व्यंग वाण मारा।

‘‘ईरादा तो सच में आज ठीक नै है, साला के अलग होला के बाद हाथ मले परो है।’’

‘‘ इ हाथा अभी मलैइए पड़तै।’’

उसने इतना कहा ही था कि मैं और अधिक जोर से उसे सीने से सटा लिया। छोड़-छोड़ की आवाज बढ़ने लगी। मैं अब अपने आपे में नहीं था और मेरा हाथ उसकी कमर की ओर सरकने ही लगा था कि वह पूरी ताकत लगा मेरी बांहों से आजाद होने की कोशिश करने लगी, इसी बीच वह मेरी बांहों से तो आजाद थी पर उसकी नथुनी मेरे हाथ में थी और वह रोने लगी। इस खिंचा-तानी में मैंने उसकी नथुनी खींच लिया था और फिर उसके नाक से खून निकलने लगा। वह रोने लगी और मैं ग्लानी से भर गया।
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Old 05-09-2014, 11:15 PM   #79
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

कोई मुझे धिक्कारने लगा। मैंने नथुनी को उसकी हथेली पर रख दिया और शर्मिन्दगी से मेरा सर झुका हुआ था। और फिर वह रोती हुई वहां से चली गई। वह अपने घर की ओर जा ही रही थी की तभी उसके घर के आस पास दो तीन टार्च जलने लगे। सुबह होने वाली थी और गांव मंे जानवरों के खिलाने के लिए एक आध लोग जगने लगे थे। रीना के घर वालों को उसके बाहर होने का पता चल चुका था....हे भगवान... कल फिर हंगामा होगा। यह सब भांपने और यह जानने की कहीं रीना के साथ मारपीट नहीं हो रही हो, मैं चुपके से रीना के घर के पास जाने की कोशीश कर रहा था कि तभी धमाक से मेरी पीठ पर एक इंट का अध्धा आ कर लगा और मैं मुर्छित हो वहीं गिर गया......

मेरी मुर्छा कुछ ही क्षणों के लिए थी और फिर मैं वहां से उठा और घर आ गया। ऐसा पहली बार हुआ था और मुझे इसकी आशंका नहीं थी। आमने सामने से किसी को हाथ लगाने की हिम्मत नहीं थी और वह इसलिए मैं शरीर से सुडॉल था और गाहे बिगाहे जब भी किसी से लड़ता तो उसकी पिटाई कर देता।

खैर
, अगली रोज वह कहीं नहीं दिखी, शाम में आकर रामू ने बताया कि उसकी पिटाई हुई है। अगले दिन मैं पटना के लिए रवाना हो गया और फिर से अपनी दिनचर्या में लग गया। वहीं कोंचिग से डेरा और डेरा से कोचिंग। क्योंकि पटना पहूंचते ही राजीव दा ने जो पटना में रहने के लिए एक दिया- देख पटना में रहना है तो दो चीज समेट के रखना , जी और .................।
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Default Re: एक लम्बी प्रेम कहानी

मैं दोनों बातों पर अमल कर रहा था। शाम में बस सब्जी लाने के लिए डेरा से बाहर जाता था। जिंदगी अपने रफतार से चली जा रही थी पर रीना की याद मुझे सता रही थी। एक तरफ पढ़ाई की बात सोंचता तो दुसरी तरफ प्रेम की। जी नहीं लग रहा था। उसके सपने रोज रोज आ जाते फिर भी कलेजा पर पत्थर रख कर कई माह गुजार दिया और फिर फागून भी आ गया। इस बार कोचिंग से महज तीन दिन की छुटटी मिली थी और मैं घर आ गया था। जैसे ही घर पहूंचा रीना को नजर तलाशने लगी थी। कई माहिनों से उसे देखा तक नहीं था। मेरी बेचैन नजर हर उस संभावित जगहों पर किसी न किसी बहाने से उसकी तलाश कर ली पर वह नहीं मिली और फिर शाम में जब टहलने के लिए जा रहा था तभी साथ हुए एक मित्र ने सहानुभूति के तौर पर बताया कि रीना को उसके नानी के घर भेज दिया गया है, शायद उसके शादी की बात चल रही थी।

रीना का ननिहाल सुदूर गांव में था जो शेखपुरा शहर से दस किलोमीटर दूर कुरौनी गांव में था। जब यह बात मेरे कान में पड़ी तो मुझे तो जैसे लकवा मार गया। काटो तो खून नही। बेचैन मन से मैं घर लौट आया। दुविधा दो बातों के लिए गंभीर थी। पहली यह कि पढ़ाई के साथ भविष्य संवारना है और दूसरी यह की रीना इतने दिनों तक कैसी होगी? या फिर कहीं उसकी शादी तो नहीं कर दी गई? क्या वह सोंच रही होगी की मैंने उसे धोखा दे दिया? और इसी बेचैनी के बीच इस साल की होली मैंने घर में सो कर कट दिया और फिर दूसरे दिन पटना रवाना हो गया। पटना में रहे हुए अभी एक सप्ताह ही हुआ होगा कि गांव से आए नरेश मास्टर साहव ने बताया कि रीना के मां को ब्रेन हेमरेज हुआ है और वह बहुत सीरियस है उनको यहीं डा. सहजानन्द के पास भर्ती कराया गया है। मैं फिर से बचैन हो गया और सुबह मास्टर साहब को साईकिल पर पीछे बैठा कर डाक्टर के यहां चल पडा। वहां से क्लिनिक करीब छः-आठ किलोमिटर होगी पर उस समय जोश ही कुछ और थी।
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