28-07-2012, 11:19 PM | #791 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
लंदन। नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोग सावधान हो जाएं, क्योंकि एक नए अध्ययन के अनुसार रात में काम करने वाले लोगों को हृदयघात और दौरे पड़ने का सबसे ज्यादा खतरा होता है। अध्ययन के अनुसार ऐसा आलतू फालतू खानपान और सोने की बिगड़ी आदतों की वजह से होता है। डेली मेल की खबर के अनुसार लंदन और ओंटारियो में स्थित स्ट्रोक प्रिवेंशन एंड एथेरोस्लेरोसिस रिसर्च सेंटर (एसपीएआरसी) के शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया कि शिफ्टों में काम करने वालों को हृदयाघात का 25 प्रतिशत ज्यादा खतरा होता है और रात्रि पाली में काम करने वालों में यह खतरा सर्वाधिक 41 प्रतिशत होता है। यह अध्ययन ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की वेबसाइट पर प्रकाशित किया गया है। शिफ्टों में काम करने वाले लोगों में भी जंक फूड खाने, गलत समय पर सोने, कसरत न करने जैसी अस्वास्थ्यकर आदतों की वजह से हृदय रोग का खतरा होता है। शोधकर्ता दल ने 2,011,935 लोगों पर यह अध्ययन किया और 34 अध्ययनों के परिणामों का विश्लेषण किया। इसका उद्देश्य यह पता करना था कि शिफ्टों में काम करने से क्या स्वास्थ्य पर प्रभावित होता है। इसमें अलग-अलग जैसे रात्रि, मिली-जुली, अनियमित, शाम और बदलते रहने वाली पालियों में काम करने वालों लोगों को शामिल किया गया था। इनकी तुलना दिन में काम करने वाले लोगों या आम लोगों से की गयी। पालियों में काम करने वाले लोगों में हृदय रोगों और दौरे जैसी बीमारियां ज्यादा पायी गयीं। उनमें हृदयाघात का खतरा 23 प्रतिशत ज्यादा, धमनियों में अवरोध का खतरा 24 प्रतिशत ज्यादा और दौरे की आशंका पांच प्रतिशत ज्यादा पाई गई।
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29-07-2012, 12:25 AM | #792 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
रमजान में मधुमेह और दिल के मरीज बिना डॉक्टर की सलाह के न रखें रोजा, जबान पर रखें काबू
कानपुर। मुसलमानों के पवित्र माह रमजान में दिल के रोगी और मधुमेह के शिकार मरीज खास सतर्क रहें, क्योंकि इस दौरान रमजान के खास पकवानों (कुल्चा, नहारी, शीरमाल, कबाब और बिरयानी आदि) के प्रति उनकी दीवानगी और उनकी दवाओं के प्रति जरा भी लापरवाही उनके रोग को बढ़ा सकती है और उन्हें अस्पताल में भर्ती होने पर मजबूर कर सकती है। डॉक्टरों का कहना है कि यंू तो ऐसे मरीज रोजा रख सकते हैं, लेकिन इस दौरान वे अपने डॉक्टर से लगातार सलाह मशविरा करते रहें और खाने-पीने के प्रति थोड़ी सावधानी बरतें। लखनऊ के संजय गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान (एसजीपीजीआई) के वरिष्ठ हृदय रोग विशेषज्ञ प्रो. सुदीप कुमार ने बताया कि रमजान में अक्सर दिल के मरीज और मधुमेह पीड़ित लोग यह सवाल करते हैं कि क्या उन्हें रोजा रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो रोगी पहले दिल के हल्के दौरे के शिकार हो चुके हैं, वह रोजा रख सकते हैं क्योंकि तमाम शोध में देखा गया है कि रमजान में रोजा रखने के दौरान भी ऐसे रोगियों को उतना ही जोखिम रहता है जितना आम दिनों में। बस उन्हें अपने डॉक्टर से सलाह लेकर अपनी दवा की मात्रा में थोड़ा सामंजस्य बिठा लेना चाहिए और खाने-पीने में सावधानी बरतनी चाहिए। वह कहते हैं कि लेकिन जिन रोगियों को दिल का भारी दौरा पड़ चुका है और उनकी बाइपास सर्जरी हो चुकी है, उन्हें रमजान के दौरान रोजे से परहेज रखना चाहिए क्योंकि ऐसे रोगियों को दिन में कई बार दवा लेनी पड़ती है, साथ ही उनके शरीर में पानी का स्तर भी सामान्य बना रहना जरूरी है, लेकिन फिर भी अगर ऐसे रोगी रोजा रखना चाहते हंै तो वह बिना अपने डॉक्टर की सलाह के कतई रोजा न रखें। प्रो. सुदीप कुमार कहते हैं कि दिल के रोगियों को उनका डॉक्टर उनकी पूरी जांच करने के बाद अगर रोजा रखने की इजाजत दे तो ही वह रोजा रखें। बिना डॉक्टर की सलाह के रोजा रखना उन मरीजों के लिए खतरनाक हो सकता है जिनकी बाइपास सर्जरी हो चुकी है। वह कहते हैं कि जो जन्म से मधुमेह (टाइप वन) के रोगी हैं और इंसुलिन लेते हैं, उन्हें रोजा रखने से बचना चाहिए, क्योंकि अगर वह इंसुलिन नहीं लेंगे तो उनके रक्त में शर्करा का स्तर (ब्लड शुगर लेवल) बढ़ जाएगा और उनकी हालत खराब हो सकती है। प्रो. कुमार ने कहा कि इसी तरह जिन लोगों को उनके रहन-सहन के कारण मधुमेह (टाइप टू) हुआ है वे रोजा रख सकते हैं, लेकिन इसके लिए उन्हें काफी सावधानी बरतनी होगी। उन्हें अपने खाने-पीने का तरीका बदलना होगा। ऐसे लोगों को सुबह सहरी में पर्याप्त खाना खा लेना चाहिए और उसके साथ अपनी दवाएं ले लेनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इस बात का भी खयाल रखा जाना चाहिए कि ऐसे रोगी जो भी खाना खाएं, वह ज्यादा तला-भुना न हो और अगर मांसाहार लेते हैं तो वह बहुत कम मात्रा में लेना चाहिए तथा काफी कम तेल मसाले में बना हुआ होना चाहिए। प्रो. कुमार कहते हैं कि इफ्तार के समय भी ऐसे रोगियों को एकसाथ पूरा खाना नहीं खा लेना चाहिए बल्कि थोड़े बहुत फल और फलों का जूस लेना चाहिए और कुछ और हल्की-फुल्की खाने की चीजें ले कर तुरंत दवा ले लेनी चाहिए। इसके एक घंटे बाद ही ऐसे रोगी पूरा खाना खाए,ं लेकिन वह भी ज्यादा तला-भुना न हो, जहां तक हो सके वे सादा खाना ही खाएं। लखनऊ पीजीआई के हृदय रोग विभाग के प्रो. सुदीप कुमार कहते हैं कि रमजान के दौरान दिल की बीमारी और मधुमेह से पीड़ित रोगियों को अपने खान-पान पर थोड़ा नियंत्रण रखना चाहिए। रमजान के दिनों में चूंकि कुल्चा नहारी से लेकर कबाब पराठा, शीरमाल और बिरयानी जैसे अनेक पकवान बनते हैं इसलिए खास तौर पर ध्यान रखना चाहिए। उन्होंने कहा कि लोग रमजान में दिन भर रोजा रखते हैं और शाम को ये पकवान खाते हैं जिससे उनका कोलेस्ट्रोल और रक्तचाप के साथ-साथ खून में शर्करा का स्तर बढ़ने की आशंका बनी रहती है जो उनके दिल के लिए फायदेमंद नहीं है। वह कहते हैं कि अगर दिन में रोजा रखने के दौरान कमजोरी महसूस हो तो तुरंत लेट कर आराम कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि जिन लोगों को दिल के रोगों के साथ मधुमेह भी है, उन्हें इस तरह के तेल और रोगन वाले कुल्चा नहारी, कबाब, बिरयानी और चिकन करी जैसे खाद्य पदार्थों से बिलकुल बचना चाहिए क्योंकि ये रक्त में शर्करा का स्तर तो बढ़ा ही देते हैं, साथ ही कोलेस्ट्रोल का स्तर भी बढ़ा देते हैं। प्रो. कुमार कहते हैं कि शाम को रोजा खोलने के बाद एकसाथ खाने के बजाय स्वादिष्ट और तेल से बने पकवानों का मजा धीरे-धीरे लेना चाहिए और जहां तक हो सके रोजा के बाद फल और अन्य हल्के पदार्थ खाने चाहिए।
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29-07-2012, 01:56 AM | #793 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
हड्डियों को कमजोर बनाता है धूम्रपान : अध्ययन
वाशिंगटन। अमेरिकन केमिकल सोसाइटी ने दावा किया है कि सिगरेट पीने वालों की हड्डियां कमजोर हो जाती हैं । सोसाइटी ने अपने अध्ययन में पाया कि सिगरेट पीने से शरीर में दो प्रोटिनों का निर्माण ज्यादा होने लगता है जिससे अस्थि उतकों को हटाने वाली अस्थि कोशिकाओं ‘ओस्टेओक्लास्टस’ के निर्माण में वृद्धि हो जाती है । अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि सिगरेट में मौजूद जहरीला तत्व हड्डियों को कमजोर नहीं बनाता बल्कि उससे शरीर में बनने वाले दो प्रोटीन इसके लिए जिम्मेदार होते हैं जो अस्थि को कमजोर करने वाली कोशिका ‘ओस्टेओक्लास्टस’ के निर्माण की गति को काफी तेज कर देते हैं । इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने धूम्रपान करने वालों और नहीं करने वालों की अस्थि मज्जा कोशिकाओं के अनुवांशिक गुणों का विश्लेषण किया । इस अध्ययन के परिणाम ‘एसीएस जर्नल आॅफ प्रोटेओम रिसर्च’ में प्रकाशित हुए हैं।
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29-07-2012, 10:24 AM | #794 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
अब मधुमेह में नहीं होगा रेटिना खराब
वाशिंगटन। लंबे समय तक मधुमेह की बीमारी के कारण आंखों की रक्त नलिकाओं में होने वाले स्राव से अब राहत मिल सकती है। वैज्ञानिकों का दावा है कि इस समस्या से निपटने के लिए उन्होंने ऐसा तरीका निकाल लिया है जो आंखों की रक्त नलिकाओं को नियंत्रित कर सकता है। मिशिगन विश्वविद्यालय के कैलोग नेत्र केंद्र के शोधकर्ताओं ने उस यौगिक की पहचान कर ली है जो रेटिना को नुकसान पहुंचाने वाली क्रियाओं को बाधित कर सकता है। इस खोज से इस बीमारी की जड़ पहचानने वाली नई थैरेपी को मदद मिल सकती है। इनमें एक तो आंखों में होने वाली जलन है और दूसरी रक्त को रोकने वाले उस बाधक का कमजोर होना है जो रेटिना की सुरक्षा करता है। अमेरिकी लोगों में डाइबेटिक रेटिनोपैथी अंधेपन का मुख्य कारण है। इस यौगिक की मदद से रक्त नलिकाओं के स्राव को नियंत्रित किया जा सकता है।
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29-07-2012, 10:25 AM | #795 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
स्नैक्स से दूर रहने के लिए दिमाग को दें ट्रेनिंग
लंदन। अगर आप भी हर वक्त स्नैक्स खाते रहने की अपनी आदत से परेशान हैं, तो वैज्ञानिकों का नया दावा आपके लिए मददगार हो सकता है। उनका कहना है कि आप अपने दिमाग को ट्रेनिंग देकर खुद को स्नैक्स से दूर रख सकते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि हाथ से चलने वाले कंप्यूटर खेलों की मदद से आपकी सेहत में सुधार हो सकता है। उनका मानना है कि खुद को स्नैक्स खाने से रोकना दिमाग की ट्रेनिंग के साथ-साथ खुद पर नियंत्रण पर भी निर्भर करता है। डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, एक्सेटर, कार्डिफ, ब्रिस्टोल और बैंगोर विश्वविद्यालयों के शोधकर्ताओं के दल ने पाया कि लोगों के मस्तिष्क पर भूख लगने से ज्यादा प्रभाव खाने की मात्रा का पड़ता है। विशेषज्ञों के अनुसार, इस अध्ययन से पता चलता है कि ज्यादा खाना और ज्यादा वजन आपस में संबंधित हैं और इनका संबंध दिमाग के उस हिस्से से है जो हमें प्रोत्साहन देने के लिए जिम्मेदार होता है। एक्सेटर और कार्डिफ में दिमाग की ट्रेनिंग की उन तकनीकों का परीक्षण शुरू हो चुका है जो खाने के प्रति हमारे प्रलोभन को कम करते हैं। ऐसे ही परीक्षण जुए और शराब के आदियों के लिए भी किए जा रहे हैं।
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30-07-2012, 02:46 PM | #796 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
यूके में सात साल के बच्चे भी ले रहे हैं नशीले पदार्थ : सर्वेक्षण
लंदन। एक आधिकारिक सर्वेक्षण में सामने आया है कि ब्रितानी बच्चों में सात साल के छोटे बच्चे भी भांग और अन्य मादक पदार्थों का सेवन कर रहे हैं। सरकार के वार्षिक अपराध सर्वेक्षण में पाया गया है कि नौ साल के बच्चे कोकेन पर भी अपना हाथ आजमा रहे हैं। ऐसा वे इसलिए कर पा रहे हैं क्योंकि उनके मां बाप का उनपर नियंत्रण नहीं है। डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, इस सर्वेक्षण में पहली बार ब्रिटेन के इतनी छोटी उम्र के लोगों में भांग, कोकेन जैसे प्रचलित ड्रग्स का सेवन देखने को मिला है। सर्वेक्षण में पाया गया कि लगभग हर तीन में से एक बच्चे ने 16 वर्ष से भी कम उम्र में कम से कम एक बार भांग का सेवन कर लिया था। इनमें से लगभग छह प्रतिशत बच्चों ने स्कूल में ही श्रेणी ‘अ’ का कोकेन ले लिया था। फैमिली लाइव्स नामक धर्मार्थ संस्था के मुख्य कार्यकारी अधिकारी जेरेमी टॉड ने कहा, ‘हम हर साल हजारों परिवारों से बात करते हैं। सबूत दर्शाते हैं कि ड्रग्स और एल्कोहल अपनाने वाले बच्चों पर मुख्य प्रभाव उनके मां बाप का होता है। अगर माता पिता अपने बच्चों से सही ढंग से इस मसले पर बात करें तो उन्हें इतनी छोटी उम्र में ड्रग्स अपनाने से रोक सकते हैं, ताकि आगे चलकर उन्हें समस्याओं का सामना न करना पड़े।’ हालांकि इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि हाईस्कूल में ड्रग्स लेने वाले बच्चों की संख्या में 12 प्रतिशत की कमी आई है। और 16 की उम्र से पहले सिगरेट अपनाने वालों की संख्या पिछले 30 सालों में न्यूनतम है।
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30-07-2012, 02:46 PM | #797 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
दिल का रखना है ख्याल, तो एक नही रोज खायें दो सेब
वाशिंगटन। स्वस्थ रहने के लिए बड़े लोग पहले से ही रोजाना एक सेब खाने की हिदायत देते रहे हैं, हाल ही अमेरिका में किए गए एक शोध ने भी इस सदियों पुरानी हिदायत को पूरी तरह सही बताते हुए इस बात का भी खुलासा किया है कि अगर दिल को स्वस्थ रखना है, तो दो सेब रोज खाना जरूरी है। अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित यूनीवर्सिटी द्वारा कराये गये अध्ययन में वैज्ञानिकों ने यह निष्कर्ष निकाला है कि रोजाना दो सेब खाने से दिल की बीमारियों से बहुत हद तक बचा जा सकता है, विशेषकर महिलाओं में सेब कोलेस्ट्राल के स्तर को कम करने में मदद करता है, जिससे दिल की बीमारियों का खतरा कम होता है। अध्ययन से पता चला कि रजोनिवृत हो चुकी महिलाओं के खून में वसा का स्तर बढ़ने लगता है और ऐसे में इन महिलाओं में दिल का दौरा पड़ने का खतरा बढ़ जाता है। महिलाएं यदि रोजाना दो सेब खाएं तो उनके खून में वसा का स्तर कम हो जाता है। लगातार छह माह तक ऐसा करने से खून में कोलेस्ट्राल की मात्रा तीन चौथाई तक क ी कमी आती है। अध्ययन से पता चला की सेब खाने से एक सबसे बड़ी कमी कम घनत्व वाले लाइपोप्रोटीन में दर्ज की गई यही तत्व साधाारणत: बुरे कोलेस्ट्राल के रूप में जाना जाता है जो आग ेचलकर दिल के दौरे या दिमाग की बडी बीमारियों की वजह बनता है। हाल ही किए गए इस अध्ययन से यह भी स्पष्ट हुआ है कि जिन लोगों क ो दिल का दौरा पड़ने का बहुत ज्यादा खतरा है, उन लोगों को भी सेब खाने से फायदा होता है।
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30-07-2012, 02:47 PM | #798 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
सदमे के तुरंत बाद सोने से बना रहेगा तनाव
येरूशलम। अक्सर लोगों को जब कोई मानसिक आघात लगता है तो उसे भूलने के लिए वे सो जाते हैं। उन्हें लगता है कि सो जाने से उन्हें उस बुरी घटना को भूलने में मदद मिलेगी लेकिन एक अध्ययन में इससे बिल्कुल उलट बात सामने आई है। अध्ययन में पाया गया है कि अगर आप कोई मानसिक आघात लगने के फौरन बाद के कुछ घंटे सोने से बचते हैं तो इससे सदमे के बाद के तनाव का खतरा कम करने में मदद मिलती है। नेगेव के बेन गुरिओं विश्वविद्यालय और तेल अवीव विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन न्यूरोसाइकोफार्मेसोलॉजी नामक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका में छपा है। अध्ययनकर्ता प्रोफेसर हैगिट कोहेन ने कहा कि अक्सर किसी बुरी घटना से हुआ तनाव भुलाने के लिए लोग नींद का सहारा लेते हैं। उन्हें लगता है कि इससे उन्हें आराम मिल सकेगा। सदमे के बाद नींद का सहारा लेने से पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन करने के लिए यह प्रयोग किया गया। प्रयोगों में पाया गया कि जो चूहे किसी घातक घटना (शिकारी को देखकर उपजा तनाव) के तुरंत बाद सोए नहीं, उनके व्यवहार में बाद में उस घटना से उपजा तनाव देखने को नहीं मिला। जबकि जिन चूहों को ऐसी किसी घटना के तुरंत बाद सुला दिया गया उनके व्यवहार में उस घटना से उपजा तनाव साफ तौर पर देखने को मिल रहा था। कोहेन का कहना है कि इंसान को अपनी जिंदगी में कई तनावों से गुजरना पड़ता है और उनमें से लगभग 15 से 20 प्रतिशत ऐसे होते हैं जो इस तनाव को अपने व्यवहार में लंबे समय तक शामिल कर लेते हैं।
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30-07-2012, 02:47 PM | #799 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
उपचार के बाद तनाव से हड्डियों तक पहुंच सकता है कैंसर
वाशिंगटन। स्तन कैंसर के प्राथमिक उपचार के बाद रोगी में आया तनाव अथवा अवसाद इस रोग को उसकी हड्डियों तक फैला सकता है। पीएलओएस बायोलाजी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार स्तन कैंसर के बाद तनाव अथवा अवसाद तंत्रिका तंत्र को प्रभावित कर सकता है। इससे आरएएनकेएल कहे जाने वाले अणु के संकेत के रूप में हड्डियों का स्तर बढ़ सकता है। वैंडरबिल्ट सेंटर फॉर बोन बायलोजी के अनुसंधानकर्ताओं ने पाया कि स्तन कैंसर कोशिकाओं का हड्डियों तक पहुंचना आरएएनकेएल पर निर्भर करता है। यह ओस्टियोक्लास्ट के गठन को बढ़ावा देता है, जो उतकों को नष्ट कर देता है। संस्थान के हड्डी विज्ञान केन्द्र के निदेशक फ्लोरेंट इलेफ्टेरियू ने कहा कि हमने पाया है कि अवसाद अथवा तनाव के बढ़ने से हड्डियों की कोशिकाएं प्रभावित होती हैं, जिससे कैंसर की आशंका बढ़ती है।
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30-07-2012, 02:48 PM | #800 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
प्यारे कुत्तों की मदद से स्वस्थ होंगे बच्चे
लंदन। अमेरिका में अस्पताल में भर्ती बच्चों को जल्दी स्वस्थ करने के लिए एक ‘पैट थैरेपी’ शुरू की गई है। इस थैरेपी के तहत सुनहरे रंग का एक खूबसूरत कुत्ता जेक (आठ वर्षीय) आईसीयू में भर्ती बच्चों के पास जाएगा ताकि वे खुश हो जाएं। टैनेस्सी में स्थित ले बोनहेओर चिल्ड्रन हॉस्पीटल में जेक यहां पर भर्ती छह वर्षीय बच्चे एलेक्स गोसा से मिलने गया। एक दुर्घटना में इस बच्चे का अंगूठा कट गया था। जब इस बच्चे को बताया गया कि यह कुत्ता उससे दो साल बड़ा है तो उसका जवाब था कि जल्द ही मैं भी उतना बड़ा हो जाऊंगा। डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, इस थैरेपी को ‘ऐनीमल असिस्टेड थैरेपी’ (पशुओं की मदद से की जाने वाली थैरेपी) भी कहते हैं। इसका इस्तेमाल 18वीं शताब्दी के अंत से मानसिक और शारीरिक समस्याओं वाले रोगियों के साथ किया जाता रहा है। अमेरिकी पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में यह बताया गया था कि इस थैरेपी से बच्चों को खासतौर पर फायदा पहुंचता है। साथ ही अस्पताल के कर्मचारियों का भी कहना है कि ‘पैट थैरेपी’ की वजह से मरीजों में अच्छे परिणाम देखने को मिल रहे हैं। इस पूरी थैरेपी के पीछे की भावना यह है कि बच्चे जानवरों के साथ एक सामाजिक और भावनात्मक सम्बंध विकसित कर लेते हैं, इसलिए यह थैरेपी फायदेमंद है।
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