01-12-2012, 03:58 PM | #861 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
01-12-2012, 03:58 PM | #862 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
जैसे सुन्दर स्त्री को देखकर कामी पुरुष उन्मत्त हो जाता है और संसार की सुरति भूल जाती है, तैसे ही ज्ञानी आत्मपद को पाकर उन्मत्त होता है और संसार की सुरति उसे भूल जाती है और परमैश्वर्यवान होता है उसका साधन केवल शास्त्र का विचार है | वन के सेवने से चिन्तामणि पाने का जो दृष्टान्त कहा है सो जान लेना |
इति श्रीयोगवाशिष्ठे निर्वाणप्रकरणे गुरुशास्त्रोंपमावर्णनं नाम द्विशताधिकाष्टसप्ततितमस्सर्गः ||278||
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बेहतर सोच ही सफलता की बुनियाद होती है। सही सोच ही इंसान के काम व व्यवहार को भी नियत करती है। |
01-12-2012, 03:59 PM | #863 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
वशिष्ठजी बोले, हे रामजी! जो कुछ सिद्धान्त सम्पूर्ण है सो मैंने तुमसे विस्तार पूर्वक कहा है उसके सुनने और बारम्बार विचारने से मूढ़ भी निवारण होंगे तो उत्तम पुरुष को निवारण होने में क्या आश्चर्य है? हे रामजी! यह मैं भी जानता हूँ कि तुम विदितवेद हुए हो प्रथम मैंने उत्पत्तिप्रकरण तुमसे कहा है कि जगत् की उत्पत्ति चित्तसंवेदन से हुई है फिर स्थितप्रकरण कहा है कि जगत् की स्थिति इस प्रकार हुई है | उत्पत्ति यह कि चित्तसंवेदन के फुरने से जगत् उपजा है और संवेदन फुरने की दृढ़ता से ही उसकी स्थिति हुई है |
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01-12-2012, 03:59 PM | #864 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
उसके उपरान्त उपशमप्रकरण कहा है कि मन इस प्रकार अफुर होता है | जब चित्त उपशम हुआ तब परम कल्याण हुआ | मन के फुरने का नाम संसार है | जब मन उपशम हो जाता है तब संसार की कल्पना मिट जाती है | यह सम्पूर्ण विस्तारपूर्वक कहा है परन्तु अब जानता हूँ कि तुम बोधवान् हुए हो | हे रामजी! मैंने तुमको प्रथम भी आत्मज्ञान का उपाय कहा है और जिनको ज्ञान प्राप्त हुआ है उनके लक्षण भी कहे हैं और अब भी संक्षेप से कहता हूँ | प्रथम बाल अवस्था में सन्तजनों का संग करना चाहिये और सत्शास्त्रों को विचारना चाहिये |
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01-12-2012, 04:00 PM | #865 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
इस शुभ आचार से अभ्यास द्वारा जब आत्मपद की प्राप्ति होती है तब समता प्राप्त होती है और सबको सुहृद हो जाती है | सुहृदता परमानन्द की जननी है जो सदा संग रहती है | जैसे सुन्दर पुरुष को देखकर उसकी स्त्री प्रसन्न होती है और प्राणका त्यागना भी अंगीकार करती है परन्तु उस पुरुष को नहीं त्यागती, तैसे ही जिस ज्ञानवान् पुरुष की ब्रह्मलक्ष्मी से सुन्दर कान्ति है उसको समता, मुदिता और सुह्दतारूपी स्त्री नहीं त्यागती, सदा उसके हृदय रूपी कण्ठ में लगी रहती है और वह पुरुष सदा प्रसन्न रहता है |
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01-12-2012, 04:01 PM | #866 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
हे रामजी! जिसको देवताओं का राज्य प्राप्त होता है वह भी ऐसा प्रसन्न नहीं होता ओर जिसको सुन्दर स्त्रियाँ प्राप्त होती हैं वह भी ऐसा प्रसन्न नहीं होता जैसा ज्ञानवान् प्रसन्न होता है | हे रामजी! समता तो द्विधारूपी अन्धकार का नाशकर्ता सूर्य है और तीनों तापरूपी उष्णता के नाश करने को पूर्णमाशी का चन्द्रमा है सुहृदता और समता सौभाग्य रूपी जल का नीचा स्थान है | जैसे जल नीचे स्थान में स्वाभाविक ही चला जाता है, तैसे ही सुहृदता में सौभाग्यता स्वाभाविक होती है | जैसे चन्द्रमा की किरणों के अमृत से चकोर तृप्तवान् होता है, तैसे ही आत्मरूपी चन्द्रमा की समता और सुहृदतारूपी किरणों को पाकर ब्रह्मादिक चकोर तृप्त होकर आनन्दवान् होते हैं और जीते हैं |
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01-12-2012, 04:01 PM | #867 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
हे रामजी! वह ज्ञानवान् ऐसी कान्ति से पूर्ण है जो कदाचित् क्षीण नहीं होती | जैसे पूर्णमासी के चन्द्रमा में भी उपाधि दृष्टि आती है परन्तु ज्ञानवान् के मुख में तैसी ही उपाधि नहीं | जैसे उत्तम चिन्तामणि की कान्ति होती है, तैसे ही ज्ञानवान् की कान्ति होती है जो रागद्वेष से कदाचित् क्षीण नहीं होती | वह सदा प्रसन्न रहता है | हे रामजी! समता ही मानो सौभाग्यरूपी कमल की खानि है समदृष्टि पुरुष ऐसे आनन्द के लिये जगत् में विचरता है और प्राकृत आचार को करता है | वह भोजन करता है, ग्रहण करता है, वा कुछ लेता-देता है सब लोग उसके कर्तृत्व की स्तुति करते हैं |
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01-12-2012, 04:01 PM | #868 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
हे रामजी! ऐसा पुरुष ब्रह्मादिक से भी पूजने योग्य है, सबही उसका मान करते हैं और सब उसके दर्शन की इच्छा करते हैं और दर्शन करके प्रसन्न होते हैं | जैसे सूर्य के उदय हुए सूर्य मुखी कमल खिल आते हैं और सर्वहुलास को प्राप्त होते है, तैसे ही उसका दर्शन करके सब हुलास को प्राप्त होते हैं | वह जो करता हे सो शुभ आचार ही करता है और जो कुछ और भी कर बैठता है तो भी उसकी निन्दा लोग नहीं करते क्योंकि जानते हैं कि यह समदर्शी है | समता से वह सबका सुहृद होता है और शत्रु भी उसके मित्र हो जाते हैं | जिनको समताभाव उदय हुआ है उनको अग्नि जला नहीं सकता, जल डुबा नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकता | वह जैसी इच्छा करे तैसे ही सिद्धि होती है |
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01-12-2012, 04:01 PM | #869 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
हे रामजी! जिसको समता प्राप्त हुई वह पुरुष अतोल हो जाता है और संसार की उपमा उसको कोई दे नहीं सकता जिसको समता नहीं प्राप्त हुई वह सबके संग सुहृदता का अभ्यास करे तो जो उसका शत्रु हो वह भी मित्र हो जाता है, क्योंकि अभ्यास की दृढ़ता से शत्रु भी मित्र भासने लगते हैं | जो सर्व में समता का अभ्यास करता है वही दृढ़ होता है और समता से चलायमान न हुआ ज्यों का त्यों रहा | एक पुरुष को उसकी पुत्री अति प्यारी थी और उसने किसी को दिया जिसने शत्रु को दी परन्तु वह ज्यों का त्यों रहा | एक और राजा था जिसको स्त्री अति प्यारी थी पर उसने उसका कुछ व्यभिचार सुना और मार डाला परन्तु समतारूप धर्म को न त्यागा | हे रामजी! जब राजा के गृह में मंगल होता है तब वह अपने नगर को भूषणों और वस्त्रों से सुन्दर करता है और प्रसन्न होता है सो अवस्था राजा जनक की देखी थी |
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01-12-2012, 04:01 PM | #870 |
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Re: जीवन्मुक्तलक्षण वर्णन
एक समय उसने सर्वस्थान अति प्रज्वलित अग्नि से जलते देखे पर अपने समताभाव से चलायमान न हुआ | एक और राजा था उसने राज्य भी और को दे दिया और आप राज्य बिना विचरता रहा परन्तु समताभाव से चलायमान न हुआ | हे रामजी! एक दैत्य था उसको देवताओं का राज्य मिला और फिर राज्य नष्ट हो गया परन्तु दोनों भावों में वह सम ही रहा | एक बालक था उसने चन्द्रमा को लड्डू जानकर फूँक मारी परन्तु वह ज्यों का त्यों रहा | हे रामजी! इसी प्रकार मैंने अनेक देखे हैं जिनको सम्यक् आत्मज्ञान प्राप्त हुआ है और वे सुख दुःख से चलायमान नहीं हुए |
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