10-08-2012, 08:37 PM | #871 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
लंदन। येल विश्वविद्यालय के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने नए अध्ययन के तहत दावा किया है कि प्राकृतिक तरीके से जन्मे बच्चे आपरेशन के माध्यम से जन्म लेने वाले बच्चों की तुलना में ज्यादा बुद्धिमान होते हैं । महिलाएं जब बच्चे को प्राकृतिक तरीके से जन्म देती हैं तो उनमें एक विशेष प्रोटीन का स्तर बहुत उच्च पाया जाता है जो बच्चों के विकासक्रम में उनकी बुद्धिमत्ता को बढाता है । अध्ययन में दावा किया गया है कि प्राकृतिक तौर पर जन्मे बच्चों में ‘यूसीपी2’ प्रोटीन का उच्च स्तर उनके यादाश्त को बढाने में सहायक होता है और यह मनुष्य की ‘आईक्यू’ को बढाने का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है। इस अध्ययन के परिणाम जर्नल ‘पीएलओएस वन’ में प्रकाशित हुए हैं ।
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10-08-2012, 08:57 PM | #872 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
रेड मीट में मौजूद लौह तत्व से आंतों के कैंसर का खतरा
लंदन। एक अध्ययन में यह दावा किया गया है कि बकरे के मांस (रेड मीट) में मौजूद लौह तत्व की उच्च मात्रा से आंतों में कैंसर का खतरा बढ़ जाता है। डेली मेल की रिपोर्ट के अनुसार, ग्लास्गो स्थित कैंसर रिसर्च यूके इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने पाया है कि लौह तत्व पेट में मौजूद उसी दोषयुक्त जीन की मदद से आंतों में कैंसर की प्रक्रिया को शुरू कर सकता है, जो कि लौह तत्व की गैरमौजूदगी में इस बीमारी से बचाव करती है। मांस में लौह तत्व की बहुत अधिक मात्रा पाई जाती है। इस अध्ययन में पाया गया कि एपीसी नामक जीन जब काम नहीं करता है तो पेट में मौजूद कोशिकाओं में लौह तत्व का निर्माण होता है। इस खोज के बाद इस दोषयुक्त जीन वाले लोगों की आंतों में मौजूद लौह तत्व को नष्ट करने के लिए इलाज खोजे जा सकते हैं। यह अध्ययन चूहों पर किया गया। शोधकर्ताओं ने पाया कि आंतों का कैंसर होने की संभावना लौह तत्व और एपीसी नामक दोषयुक्त जीन से बहुत ज्यादा प्रभावित थी। जब एपीसी जीन दोषयुक्त था तो चूहों में लौह तत्व की अधिकता थी। ऐसे में उनमें बीमारी के विकसित होने की संभावना दो से तीन गुनस अधिक थी। चूहों को कम लौह तत्व वाला खाना दिए जाने पर दोषयुक्त जीन के बावजूद वे कैंसर से मुक्त रहे। अगर यह जीन सामान्य रूप से काम कर रहा था तब लौह तत्व के उंचे स्तर से भी कोई नुकसान नहीं था। यह अध्ययन करने वाले वैज्ञानिक और संस्थान के उप निदेशक प्रोफेसर ओवेन सैन्सम के अनुसार,‘आंत कैंसर के विकसित होने की प्रक्रिया समझने में हमने एक बड़ा कदम उठाया है। आंतों के कैंसर के दस में से आठ मामलों में एपीसी जीन दोषयुक्त होता है। लेकिन अब तक हम यह नहीं समझ पाए हैं कि इससे यह बीमारी होती कैसे है? ’ उन्होंने बताया कि इतना जरूर स्पष्ट है कि दोषयुक्त एपीसी जीन वाले लोगों में आंतों के कैंसर को बढने से रोकने में लौह तत्व की मात्रा महत्वपूर्ण किरदार निभाती है। उन्होंने बताया,‘हमारे अध्ययन में पाया गया है कि सिर्फ लौह तत्व की ज्यादा मात्रा होने से ही कैंसर नहीं हो जाता। कैंसर का होना एक एपीसी जीन पर निर्भर करता है।’ इस अध्ययन को ‘सैल’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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10-08-2012, 08:58 PM | #873 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
मानव की रचनात्मकता के लिए जिम्मेदार कोशिकाएं मिलीं
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों का दावा है कि उन्होंने वे मूल कोशिकाएं खोज निकाली हैं, जो इंसानों में रचनात्मक सोच और याददाश्त के लिए जिम्मेदार होती हैं। द स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं ने मूल कोशिकाओं की कुल संख्या की पहचान की है। ये मूल कोशिकाएं न्यूरॉन्स को बनाती हैं जो कि बेहतर सोच और रचनात्मकता में एक खास भूमिका निभाते हैं। इस अध्ययन से इन न्यूरॉन्स को कृत्रिम रूप से बनाने का मार्ग भी खुल सकता है ताकि सिजोफ्रेनिया और आॅस्टिम जैसी मानसिक बीमारियों के अच्छे इलाज इनकी मदद से विकसित किए जा सकें। इन कोशिकाओं की खोज चूहों के भ्रूण में की गई। ये कोशिकाएं उनके मस्तिष्क की बाहरी त्वचा पर मिली थी। इंसानों में, मस्तिष्क का यही हिस्सा कल्पनाशील सोच, भविष्य की योजनाएं बनाने और समस्याओं का हल करने का काम करता है। इस अध्ययन के वरिष्ठ लेखक अल्रिच मुलेर ने कहा,‘मस्तिष्क के बेहतर काम करने में उसके बाहरी आवरण की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहां सारी सूचनाएं इकट्ठी होकर समग्र रूप लेती हैंं। यहीं पर हमारी याददाश्त और चेतना का निर्माण होता है।’ इस शोध को ‘साइंस’ नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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10-08-2012, 08:58 PM | #874 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
वैज्ञानिकों ने बनाया केंचुए जैसा रोबोट
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा रोबोट बनाया है जो केंचुए की तरह चलता है, बेहद छोटी और कड़ी जगह से गुजरने पर खुद को सिकोड़ लेता है और खराब भूभाग में आसानी से आगे बढ सकता है। मैसाचुसेट्स इन्स्टीट्यूट आॅफ टेक्नोलॉजी, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी और सोल नेशनल यूनिवर्सिटी के अनुसंधानकर्ताओं ने यह रोबोट तैयार किया है जो हर तरह की सतह पर अपने शरीर के हिस्सों को संकुचित कर चल सकता है। इस रोबोट का नाम ‘मेशवर्म’ रखा गया है। यह रोबोट बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने निकल और टाइटेनियम से बने तार से कृत्रिम मांसपेशियां तैयार कीं। यह मांसपेशियां गर्मी पा कर खिंच सकती हैं और सिकुड़ भी सकती हैं। उन्होंने इस वायर को ट्यूब में लपेट कर रोबोट के हिस्से तैयार किए जो बिल्कुल केंचुए की तरह हैं।
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10-08-2012, 08:59 PM | #875 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
फ्लू से बचाएगा एक ‘सुपर एंटीबॉडी’
वाशिंगटन। वैज्ञानिकों ने फ्लू से बचाव के लिए एक ‘सुपर एंटीबॉडी’ खोजने का दावा किया है और उनका कहना है कि इससे संक्रमण के इलाज में मदद मिल सकती है। नीदरलैंड के स्क्रिप रिसर्च इन्स्टीट्यूट एंड क्रूसेल वैक्सीन इन्स्टीट्यूट के वैज्ञानिकों ने मानव शरीर में तीन ऐसे एंटीबॉडी खोजे हैं जो इन्फ्लुएंजा बी के वायरस से बचाव कर सकते हंै। इनमें से एक एंटीबॉडी सीआर9114 तो इन्फ्लुएंजा ए वायरस से भी बचाव कर सकता है। इन्फ्लुएंजा ए वायरस फ्लू का बेहद आम लेकिन गंभीर वायरस है। इस सुपर एंटीबॉडी की मदद से, फ्लू के महामारी के तौर पर फैलने की स्थिति में अस्पताल के कर्मचारियों को भी संक्रमण से बचाया जा सकता है।
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11-08-2012, 08:19 PM | #876 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
दुनिया की पहली बिना आंख की मकड़ी
फ्रैंकफर्ट (जर्मनी)। जर्मनी के वैज्ञानिक पीटर जैगर ने दुनिया की पहली बिना आंख की मकड़ी (सिनोपाडा स्क्यूरियान) की खोज की है। यहां सेनकेनबर्ग शोध संस्थान के मकड़ी विज्ञान विभाग के अध्यक्ष जैगर ने कहा कि हम पहले से ही इस प्रजाति की मकड़ियों के बारे में जानते हैं लेकिन उन सब में विकसित आंखे हैं। सिनोपोडा स्क्यूरियान ही पहली ऐसी मकड़ी है जिसके आखें नहीं हैं। सिनोपाडा स्क्यूरियान के पैरो की लंबाई 6 सेमी है जबकि इसका धड़ मात्र 12 मिलीमीटर का है। इसकी 1100 से ज्यादा प्रजातियां है और यह आकार में उनमें से सबसे बड़ी नहीं है। सूर्य के प्रकाश से दूर गुफाओं के अंधकार में अपने जीवन का एक लंबा समय बिताने वाले जीवों में अकसर इस तरह के अनुकूलन हो जाते हैं। जैगर ने बताया कि सिनोपोडा प्रजाति ने गुफावास के लिए खुद में सभी जरूरी अनुकूलन कर लिए हैं और इसी के तहत इसकी आंख मे पाए जाने वाले छह लैंसों की कार्यक्षमता घटकर मात्र दो पर आ गई है जो लगभग आंखे नहीं होने के जैसा ही है।
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11-08-2012, 09:05 PM | #877 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
डार्क मैटर से घिरा हुआ है सूरज : वैज्ञानिक
लंदन। वैज्ञानिकों ने दावा किया है सूरज ‘डार्क मैटर’ से घिरा हुआ है। एक स्विस खगोल वैज्ञानिक ने 1930 में पहली बार इस बारे में दावा किया था। डेली मेल में प्रकाशित खबर के मुताबिक ज्यूरिख विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक नया सिद्धांत तैयार किया और उन्होंने आकाश गंगा का प्रारूप तैयार किया, ताकि उसके द्रव्यमान को मापा जा सके। गौरतलब है कि डार्क मैटर ऐसा पदार्थ है जो ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान का एक बड़ा हिस्सा माना जाता है। मुख्य शोधकर्ता सिलविया गारबारी के हवाले से बताया गया है कि हम 99 फीसदी आश्वस्त हैं कि सूरज के पास ‘डार्क मैटर’ है। अध्ययन में दावा किया गया है कि पिछले 20 साल से उपयोग में लाई जा रही तकनीक पक्षपातपूर्ण है। इसके तहत हमेशा ही ब्रह्मांड में मौजूद डार्क मैटर की मात्रा को नजरअंदाज करने की कोशिश की गई। गारबारी ने बताया कि हमारी आकाश गंगा में डार्क मैटर की एक ‘डिस्क’ होने का यह पहला साक्ष्य हो सकता है, जैसा कि ताजा सिद्धांत में अनुमान लगाया गया है।
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11-08-2012, 09:06 PM | #878 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
माइग्रेन सिर्फ आपके सिर को तकलीफ देता है, न कि मस्तिष्क को
वाशिंगटन। महिलाओं के स्वास्थ्य पर किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक माइग्रेन से सिर्फ बर्दाश्त न करने लायक सिरदर्द होता है और यह हमारी बोध क्षमता से जुड़ा हुआ नहीं है। ब्रीघम एंड वूमेंस हास्पिटल द्वारा किए गए एक नए अध्ययन के मुताबिक माइग्रेन बोध क्षमता में कमी से जुड़ा हुआ नहीं है। गौरतलब है कि माइग्रेन से करीब 20 फीसदी महिला आबादी प्रभावित है। मुख्य अध्ययनकर्ता पामेला रीस्ट ने बताया कि माइग्रेन और बोध क्षमता में कमी पर किए गए पूर्व के अध्ययनों में इन दोनों के बीच संबंध होने की पुष्टि क्षीण मात्रा में ही हो सकी। उन्होंने बताया कि उनका अध्ययन यह निष्कर्ष निकालने के लिए अहम है कि माइग्रेन तकलीफदेह तो होता है, लेकिन इसका बोध क्षमता में कमी से कोई संबंध नहीं है।
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12-08-2012, 02:53 PM | #879 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
बिना माउस और की-बोर्ड कंप्यूटर नाचेगा उंगलियों के इशारों पर
नई दिल्ली। अब वह दिन दूर नहीं जब आपको अपने कंप्यूटर को कोई भी निर्देश देने के लिए किसी माउस या की-बोर्ड का सहारा नहीं लेना पड़ेगा। सॉफ्टवेयर डेवलपर्स द्वारा तैयार की जा रही लीप मोशन तकनीक से आपका कंप्यूटर आपकी उंगलियों के इशारों पर नाचेगा। दरअसल लीप मोशन वह तकनीक है जिसके जरिए कंप्यूटर का इस्तेमाल करते वक्त किसी की बोर्ड और माउस के बिना ही कंप्यूटर के साथ संपर्क स्थापित किया जा सकता है। भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान, चेन्नई में ‘जेस्चर रिकग्नेशन’ पर शोध कर रहे अचिंत सेतिया ने बताया कि इसके लिए यूएसबी के जरिए ‘क्यूब’ को कंप्यूटर से जोड़ा जाता है। क्यूब के आसपास एक थ्रीडी स्पेस बन जाता है। दरअसल ‘क्यूब’ आई पॉड के आकार की एक डिवाइस है जो माउस की तरह कंप्यूटर के सामने रखी जाती है। इससे आठ क्यूबिक फीट के इसी काल्पनिक स्पेस में उंगलियों और हाथों की गतिविधियों को कंप्यूटर समझने लगता है। उन्होंने बताया कि लीप मोशन ‘इंफ्रा रेड मोशन सेंसर’ पर आधारित तकनीक है जिसमें उंगलियों की मुद्रा को पहचानने के लिए खास बिंदुओं को कंप्यूटर चिन्हित कर लेता है। इन बिंदुओं की स्थिति के आधार पर विशेष प्रतिक्रिया करने के लिए कंप्यूटर को पहले से प्रोग्राम किया जाता है। खास बात यह है कि इस तकनीक में इस्तेमाल होने वाले इस क्यूब का आकार एक आम माउस से भी छोटा है। इसे तैयार करने वाली कपंनी द्वारा उंगलियों की खास मुद्राओं को निश्चित किया गया है। यदि आप आगे बढ़ना चाहते हैं तो पहली उंगली ऊपर करें और पीछे जाने के लिए उंगली नीचे करें। यहां तक कि यदि आप किसी तस्वीर को जूम कर देखना चाहते हैं तो आप को उसे बड़े आकार में देखने के लिए उंगलियों को खास मुद्रा में घुमाइए और सामने की तस्वीर बड़ी होकर दिखने लगेगी। सॉॅफ्टवेयर डेवलपर अर्ष जोसन ने विशेष बातचीत में भाषा को बताया कि यह तकनीक इंफ्रारेड किरणों और सूक्ष्म कैमरों द्वारा उंगलियों की मुद्रा पहचानने के सिद्धांत पर आधारित है। इसमें इंफ्रारेड किरणें जब उंगलियों या उनके रास्ते में आने वाली वस्तुओं की पहचान करती हैं और उनकी हरकतों, कोण, झुकाव के आधार पर कंप्यूूटर को संदेश भेजा जाता है। वह बताते हैं कि अभी तक इस्तेमाल होने वाली ‘ग्राफिक यूजर इंटरफेस’ की जगह अब ‘नेचुरल यूजर इंटरफेस’ ले लेगा। गेमिंग, डिजिटल चित्रकारी, इंटरनेट प्रयोग और नक्शों को देखने में अहम भूमिका निभाते हुए यह तकनीक काम को बहुत ही आसान कर देगी। यूजर इंटरफेस (मानव का कंप्यूटर से होने वाला संवाद) को आसान और सहज बनाने के लिए क्रांतिकारी तकनीकें सामने आकर लोकप्रिय हुई हैं। टचस्क्रीन ने भी बटनों के इस्तेमाल को खत्म करने हुए अहम भूमिका निभाई है। वहीं अचित कहते हंै कि ऐसी तकनीकें मानव को ज्यादा आलसी बना रही हैं क्योंकि वर्चुअल स्पेस मानव के काम को बहुत हद तक सुलभ कर रही हैं। इस तकनीक का डेमो कंपनी की वेबसाइट ‘लीपमोशन डॉट कॉम’ पर जारी किया गया है। इस वेबसाइट पर जाकर आप इसके वीडियो समेत अन्य जानकारियों से रूबरू हो सकते हैं और अपनी प्रतिक्रियाएं दें सकते हैं।
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14-08-2012, 03:34 PM | #880 |
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Re: स्वास्थ्यवर्द्धक समाचार : नए शोध और खोजें
आदमी को रोबोटिक क्लोन बनाने के लिए वैज्ञानिकों ने तैयार की सिंथेटिक त्वचा
लंदन। वैज्ञानिकों ने मनुष्य के रोबोटिक क्लोन के लिए सिंथेटिक त्वचा विकसित करने का दावा किया है जो आदमी की वास्तविक त्वचा से काफी हद तक मिलती है। डिजनी रिसर्च, ज्यूरिक और वाल्ट डिजनी इमेजिनियरिंग अनुसंधान एवं विकास ने मानव चेहरों का क्लोन बनाने के लिए एक नयी कंप्यूटेशनल डिजाइन प्रक्रिया तैयार की है। इससे एनिमेट्रोनिक चरित्रों के लिए सिंथेटिक त्वचा विकसित करना बहुत सरल हो जायेगा। एनिमेटोनिक ऐसी मशीन होते हैं जो रोबोट की बजाय एनिमेटेड होते हैं। इसके तहत जीवित प्राणी के वास्तविक आयाम और अनुपात जैसी आकृृति तैयार की जाती है। इसका इस्तेमाल मुख्यत: फिल्म बनने, थीम पार्क बनाने और मनोरंजन के अन्य स्वरूप में किया जाता है। ज्यूरिक के अनुसंधानकर्ताओं ने एक कंप्यूटेशनल तरीका खोजा है जिससे वास्तविक व्यक्ति से मिलती जुलती सिंथेटिक त्वचा की स्वत: डिजाइन तैयार की जा सकेगी। डिजनी रिसर्च के अनुसंधानकर्ता डा. बर्नाड बिकेल ने कहा, ‘‘हमारे तरीके से वास्तविक व्यक्ति का रोबोटिक क्लोन आसानी से तैयार किया जा सकता है।’’
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