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Old 25-11-2012, 08:17 AM   #81
Sameerchand
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अंडे


मुल्ला नसरुद्दीन अंडे बेचकर गुजारा करते थे। एक दिन एक व्यक्ति उनकी दुकान पर आया और बोला - "बताओ मेरे हाथ में क्या है ?'

नसरुद्दीन बोला - "मुझे कोई सुराग दो।'

वह व्यक्ति बोला - "एक क्या, मैं तुम्हें कई सुराग दूँगा। यह अंडे के आकार का है। यह अंडे की तरह लगता है। इसका स्वाद और गंध भी अंडे की तरह है। अंदर से यह सफेद और पीला है। वैसे तो यह तरल रूप में होता है पर पकाने या गर्म करने पर ठोस जाता है। इसके अलावा, यह मुर्गी से प्राप्त होता है...........'

"हाँ में समझ गया। तुम शायद केक की बात कर रहे हो।' - मुल्ला नसरूद्दीन तपाक से बोला।

"कभी कभी ज्ञानीव्यक्ति को भी प्रत्यक्षदिखने वाली वस्तु दिखायीनहीं पड़ती और पादरीको मसीहा दिखायी नहींदेते।''
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Old 25-11-2012, 08:17 AM   #82
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मुर्गा और आभूषण


एक मुर्गा अपनी मुर्गियों व स्वयं का पेट भरने के लिए भोजन की तलाश में खेत की जमीन खोद रहा था। तभी उसे जमीन में दबा एक आभूषण मिला। वह समझ गया कि यह जरूर कोई बेशकीमती चीज़ है।

जब उसे समझ में नहीं आया कि उस आभूषण का क्या किया जाये, तो वह बोला- "ऐसे व्यक्तियों के लिये जो तुम्हारी कीमत समझते हैं, तुम निश्चय ही बेहतरीन हो। लेकिन मैं एक दाना अनाज के बदले संसार के सभी आभूषणों को कुर्बान कर सकता हूँ।'


"किसी वस्तु का मूल्य उसे देखने वाले की आँखों में होता है।'
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Old 25-11-2012, 08:17 AM   #83
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सुखी व्यक्ति की कमीज


खलीफा एक बार बीमार पड़ गया. उसे रेशमी वस्त्रों, नर्म गद्दों में भी आराम नहीं मिलता था, नींद नहीं आती थी और बेवजह दुःखी रहता था. दुनिया के तमाम वैद्यों हकीमों को बुलाया गया. परंतु किसी को भी बीमारी समझ नहीं आ रही थी और लिहाजा इलाज भी नहीं हो पा रहा था. अंत में एक ऐसे वैद्य को बुलाया गया जो अपने विचित्र परंतु प्रभावी इलाज हेतु प्रसिद्ध था. वैद्य ने देखते ही बताया कि खलीफा का इलाज बस यही है कि किसी सुखी व्यक्ति की कमीज खलीफा के सिर पर घंटे भर के लिए रखी जाए.

चहुँओर सुखी व्यक्ति को ढूंढा जाने लगा. जिसे भी पूछो, वो किसी न किसी कारण से दुःखी था. व्यक्तियों को दुःखी बनाने के सैकड़ों हजारों अनगिनत कारण थे. इस बीच सुखी व्यक्ति ढूंढने वाले खलीफा के सिपाहियों को एक गरीब चरवाहा अपने ढोरों के साथ जाते हुए मिला. उनमें से एक ने चरवाहे से मजाक में पूछा – क्यों रे तू सुखी है या दुखी?

चरवाहे ने जवाब दिया – मैं दुःखी क्यों होऊं? मैं तो दुनिया का सबसे सुखी इंसान हूं.

तो चल निकाल अपनी कमीज उतार हमें अपने खलीफा के लिए यह चाहिए – एक सिपाही ने कहा.

पर, मेरे पास न तो कमीज है और न ही मैं कमीज पहनता हूं – चरवाहे ने कहा.

जब यह बात खलीफ़ा तक पहुँची तो उन्होंने मंथन किया और पाया कि उनकी बीमारी की जड़ रेशमी वस्त्र, नर्म गद्दे और हीरे-जवाहरात हैं. खलीफा ने वे सब सामाजिक कार्य में वितरित कर दिए. खलीफा अब स्वस्थ और सुखी हो गया था.
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Old 25-11-2012, 08:18 AM   #84
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विद्या ददाति विनयम्


एक स्टेशन पर एक युवक छोटा सा सूटकेस हाथ में लेकर ट्रेन से उतरा. उतर कर वह कुली ढूंढने लगा. कुली-कुली उसने कई आवाजें लगाई, परंतु कोई कुली नहीं आया. उस युवक के साथ एक अन्य व्यक्ति भी ट्रेन से उतरा. उसने जब देखा कि युवक एक बहुत ही छोटे से सूटकेस को उठाने के लिए कुली ढूंढ रहा है तो उसकी मदद के लिए गया कि शायद युवक को कुछ स्वास्थ्य संबंधी परेशानी होगी, जिसके कारण वह छोटे से सूटकेस को ढोने के लिए भी कुली ढूंढ रहा है.

उस व्यक्ति ने युवक से पूछा – आप इस जरा से सूटकेस को उठाने के लिए कुली को क्यों ढूंढ रहे हैं?

मैं पढ़ा लिखा व्यक्ति हूँ, और सूटकेस छोटा हो या बड़ा इसे तो कुली ही उठाते हैं – युवक ने जवाब दिया.

कुली तो हैं नहीं, यदि तुम्हें कोई समस्या न हो तो मैं इसे उठा कर आप जहाँ कहें पहुँचा देता हूं – उस व्यक्ति ने प्रस्ताव दिया.

युवक सहर्ष राज़ी हो गया. गंतव्य पर पहुँचने पर युवक उस व्यक्ति को मेहनताना देने लगा. मगर उस व्यक्ति ने मना कर दिया.

शाम को वहीं स्टेशन के पास एक सभागार में प्रसिद्ध विद्वान ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण था. सभागार में वह युवक भी पहुँचा. दरअसल वह खासतौर पर ईश्वरचंद्र विद्यासागर का भाषण सुनने ही इस शहर में आया था.

उसने देखा कि वह व्यक्ति जिसने उसका बैग उठाया था, और कोई नहीं, ईश्वरचंद्र विद्यासागर थे!
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Old 25-11-2012, 08:18 AM   #85
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वर्तमान में जियो


एक कंजूस व्यक्ति ने जीवन भर कंजूसी करके पांच लाख दीनार एकत्रित कर लिये। इस एकत्रित धन की बदौलत वह एक साल तक बिना कोई काम किए चैन की बंशी बजाने के स्वप्न देखने लगा। इसके पहले कि वह उस धन को निवेश करने का इरादा कर पाता, यमदूत ने उसके दरवाज़े पर दस्तक दे दी।

उस व्यक्ति ने यमदूत से कुछ समय देने की प्रार्थना की परंतु यमदूत टस से मस नहीं हुआ। उसने याचना की - "मुझे तीन दिन की ज़िंदगी दे दो, मैं तुम्हें अपना आधा धन दे दूँगा।" पर यमदूत ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया।

उस व्यक्ति ने फिर प्रार्थना की - "मैं आपसे एक दिन की ज़िंदगी की भीख मांगता हूं। इसके बदले तुम मेरी वर्षों की मेहनत से जोड़ा गया पूरा धन ले लो।" पर यमदूत फिर भी अडिग रहा।

अपनी तमाम अनुनय-विनय के बाद उसे यमदूत से सिर्फ इतनी मोहलत मिली कि वह एक संदेश लिख सके। उस व्यक्ति ने अपने संदेश में लिखा - "जिस किसी को भी यह संदेश मिले, उससे मैं सिर्फ इतना कहूँगा कि वह जीवनभर सिर्फ संपत्ति जोड़ने की फिराक में न रहे। ज़िंदगी का एक - एक पल पूरी तरह से जियो। मेरे पांच लाख दीनार भी मेरे लिए एक घंटे का समय नहीं खरीद सके।"
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Old 25-11-2012, 08:18 AM   #86
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सतत जागरूकता



ज़ैन विद्या सीखने वाले छात्र को तब तक इसके अध्यापन की अनुमति नहीं है जब तक कि वह कम से कम 10 वर्ष तक अपने गुरू के सानिध्य में न रहे।

टैनो नामक एक छात्र 10 वर्ष का कठिन परिश्रम करके 'गुरू' का दर्ज़ा प्राप्त करने में सफल हो गया। एक दिन वह अपने गुरू नैनिन से मिलने गया। उस दिन तेज बारिश हो रही थी, इसलिये टैनो ने लकड़ी की खड़ाऊँ पहनी तथा अपने साथ छाता लेकर गया।

जैसे ही उसने गुरू जी के कक्ष में प्रवेश किया, उन्होंने उससे पूछा -"लगता है तुमने अपनी खड़ाऊँ और छाता बाहर दालान में ही छोड़ दिया है। तुम मुझे यह बताओ कि तुमने अपना छाता बांयी ओर रखा है या खड़ाऊँ?"

टैनो को इस बारे में कुछ याद नहीं था अतः वह उत्तर न दे पाने के कारण शर्मिंदा हो गया। उसे यह एहसास भी हो गया कि वह लगातार जागरूक नहीं रह सका। वह पुनः नैनिन का शिष्य बन गया और सतत जागरूकता के अभ्यास के लिए पुनः 10 वर्षों तक श्रम किया।


"ऐसा व्यक्ति जो लगातार जागरूक रहता है तथा हर पल में पूरी तरह

शरीक होता है, वही गुरू कहलाने के योग्य है।"
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Old 25-11-2012, 08:18 AM   #87
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दुनिया मेरी नजर में


गांव के बाहर बने चौपाल पर उस गांव का एक निवासी रस्सियाँ बुनता हुआ बैठा था.

इतने में एक यात्री वहाँ आया और उस निवासी से जानना चाहा कि इस गांव में किस किस्म के व्यक्ति रहते हैं. यात्री ने आगे बताया कि वो अपने वर्तमान गांव को छोड़ कर नई जगह बसना चाहता है.

गांव के निवासी ने पूछा – तुम्हारे वर्तमान गांव में किस किस्म के लोग रहते हैं?

वे सभी लालची, कूढ़ मगज, निष्ठुर और असभ्य हैं – यात्री ने बताया.

इस गांव के निवासी भी ठीक ऐसे ही हैं – गांव के उस निवासी ने खुलासा किया.

संयोगवश थोड़ी देर के बाद एक अन्य यात्री वहाँ पहुँचा और उसने भी उस निवासी से ठीक यही बात पूछी. क्योंकि वह भी अपना गांव छोड़कर नए गांव में बसना चाहता था.

गांव के उस निवासी ने यात्री से वही प्रश्न पूछा कि उसके वर्तमान गांव में किस किस्म के लोग रहते हैं.

यात्री ने बताया – हमारे गांव के निवासी दयालु, बुद्धिमान, सभ्य, भद्र अच्छे हैं.

उस निवासी ने कहा – हमारे गांव में भी सभी ऐसे ही हैं.
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Old 25-11-2012, 08:18 AM   #88
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फल खाने की अधीरता


आम के मौसम में बग़ीचे में बंदरों का खूब उत्पात रहता था. बहुत सारा फल बंदर खा जाते थे. इस बार मालिक ने बंदरों को दूर रखने के लिए कुछ चौकीदार रख लिए सुरक्षा के कड़े उपाय अपना लिए.

बंदरों को मीठे आम का स्वाद मिलना मुश्किल हो गया. वे अपने सरदार के पास गए और उनसे अपनी समस्या के बारे में बताया.

बंदरों के सरदार ने कहा कि हम भी इनसानों की तरह आम के बगीचे लगाएंगे, और अपनी मेहनत का फल बिना किसी रोकटोक के खाएंगे.

बंदरों ने एक बढ़िया जगह तलाशा और खूब सारे अलग अलग किस्मों के आम की गुठलियाँ एकत्र किया और बड़े जतन से उन्हें बो दिया.

एक दिन बीता, दो दिन बीते बंदर सुबह शाम उस स्थान पर जा कर देखते. तीसरे दिन भी जब उन्हें जमीन में कोई हलचल दिखाई नहीं दी तो उन्होंने पूरी जमीन फिर से खोद डाली और गुठलियों को देखा कि उनमें से पेड़ क्यों निकल नहीं रहे हैं. इससे गुठलियों में हो रहे अंकुरण खराब हो गए.


"कुछ पाने के लिए कुछ समय तो देना पड़ता है!"
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Old 25-11-2012, 08:19 AM   #89
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उत्कृष्टता को साझा करना



एक किसान को हमेशा राज्य स्तरीय मेले में सर्वश्रेष्ठ मक्का उत्पादन के लिए पुरस्कार मिलता था। उसकी यह आदत थी कि वह अपने आसपास के किसानों को मक्के के सबसे अच्छे बीज बांट देता था।

जब उससे इसका कारण पूछा गया तो उसने कहा - "यह मेरे ही हित की बात है। हवा अपने साथ पराग कणों को उड़ा कर लाती है। यदि मेरे आसपास के किसान घटिया दर्जे के बीज का प्रयोग करेंगे तो इससे मेरी फसल को भी नुक्सान पहुँचेगा। इसीलिए मैं चाहता हूँ कि वे बेहतरीन गुणवत्ता के बीजों का प्रयोग करें।"


"जो कुछ भी आप दूसरों को देते हैं, अंततः वही आपको वापस मिलता है।
अतः यह आपके ही स्वार्थ की बात है कि आप स्वार्थरहित बनें।"
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Old 25-11-2012, 08:19 AM   #90
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ब्रह्मज्ञान

एक बार एक भिखारीनुमा व्यक्ति अरस्तू के पास गया और उनसे ब्रह्मज्ञान मांगने लगा.

अरस्तू ने उसे सिर से लेकर पैर तक देखा और कहा – “अपने कपड़े साफ करो, और रोज नहाओ-धोओ. अपने बालों को कटवाओ और कंघी करो...गलतियाँ करो, मगर उन्हें दोहराओ नहीं...अपनी गलतियों से सीखो. वास्तविक तपस्या तो अपने आप में झांकना और अपनी गलतियों से सीखना ही है.”
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