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Old 22-08-2014, 12:50 AM   #81
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

लाहौल बिला कूवत

एक सूफी यात्रा करते हुए रात हो जाने पर किसी मठ में ठहरा। अपना खच्चर तो उसने अस्तबल में बांध दिया और आप मठ के भीतर एक मुख्य स्थान पर जा बैठा। मठ के लोग मेहमान के लिए भोजन लाये तो सूफी को अपने खच्चर की याद आयी। उसने मठ के नौकरो को अज्ञा दी अस्तबल में जा और खच्चर को घास और जौ खिला।

नौकर ने निवेदन किया, "आपके फरमाने की जरुरत नहीं। मैं हमेशा यही काम किया करता हूं।"

सूफी बोला, "जौ पानी में भिगो कर देना, क्योंकि खच्चर बूढ़ा हो गया है और उसके दांत कमजोर हैं।"

"हरजत, आप मुझे सिखाते हैं लोग तो ऐसी-ऐसी युक्तियां मुझसे सीख कर जाते हैं।"

"पहले इसका तैरु उतारना। फिर इसकी पीठ के घाव पर मरहम लगा देना।"

"खुदा के लिए अपनी तदबीर किसी और मौके के लिए न रख लीजिए। मैं ऐसे सब काम जानता हूं। सारे मेहमान हमसे खुश होकर जाते है; क्योंकि हम अपने अतिथियों जान के बराबर प्यार समझते हैं।"
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Old 22-08-2014, 12:51 AM   #82
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

"और देख, इसको पानी भी पिलाना; परन्तु थोड़ा गर्म करके देना।"

"आपकी इन छोटी-छोटी बातों के समझाने से मुझे शर्म आती है।"

"जौ में जरा-सी घास भी मिला देना।"

"आप धीरज से बैठे रहिए। सबकुछ हो जायेगा।"

"उस जगह का कूड़ा-करकट साफ कर देना और अगर वहां सील हो तो सूखी घास बिछा देना।"

"ऐ बुजुर्गवार! एक योग्य सेवक से ऐसी बातें करने से क्या लाभ?"

"मियां, जरा खुरेरा भी फिर देना, और ठंड का मौसम है खच्चर की पीठ पर झूल भी डाल देना।"

"हजरत, आप चिन्ता न कीजिए। मेरा काम दूध की तरह स्वच्छ और बेलग होता है। मैं आपने काम में आपसे ज्यादा होशियार हो गया हूं। भले-बुरे मेहमानों से वास्ता पड़ा है। जिसे जैसा देखता हूं, वैसी ही उसकी सेवा करता हूं।"

नौकर ने इतना कहकर कम कसी और चला गया। खच्चर का इन्तजाम तो उसे क्या करना था। अपने गुट के मित्रों में बैठकर सूफ़ी की हंसी उड़ाने लगा। सूफी रास्ते का हारा-थका ही, लेट गया और अर्द्धनिद्रा की अवस्था में सपना देखने लगा।
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Old 22-08-2014, 12:53 AM   #83
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Default Re: मुहावरों की कहानी

उसने सपने में देखा, उसके खच्चर को एक भेड़िये ने मार दिया है और उसकी पीठ और जांघ के मांस के लोथड़े को नोच-नोचकर खा रहा है। उसकी आंख खुल गयी। मन-ही-मन कहने लगायह कैसा पागलपन का सपना है। भला वह दयालू सेवक खच्चर को छोड़कर कहां जा सकता है! फिर सपने में देखा कि वह खच्चर रास्ते में चलते समय कभी कुंए में गिर पड़ता है, कभी गड्ढे में। ऐसी भयानक दुर्घटना सपने में वह बार-बार चौंक पड़ता और आंख खूलने पर कुरानशरीफ की आयतें पढ़ लेता।

अन्त में व्याकुल हो कर कहने लगा, "अब हो ही क्या सकता है। मठ के सब लोग पड़े सोते हैं और नौकर दरवाजे बन्द करके चले गये।"

सूफी तो गफलत में पड़ा हुआ था और खच्चर पर वह मुसीबत आयी कि ईश्वर दुश्मन पर भी न डाले। उस बेचारे को तैरु वहां की धूल और पत्थरों में घिसटकर टेढ़ा हो गया और बागडोर टूट गयी। बेचारा दिन भर का हारा-थका, भूखा-प्यास मरणासन्न अवस्था में पड़ रहा। बार-बार अपने मन में कहता रहा कि ऐ धर्म-नेताओं! दया करो। मैं ऐसे कच्चे और विचारहीन सूफियों से बाज आया।

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Old 22-08-2014, 12:54 AM   #84
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Default Re: मुहावरों की कहानी

इस प्रकार इस खच्चर ने रात-भर जो कष्ट और जो यातनाएं झेलीं, वे ऐसी थीं, जैसे धरती के पक्षी को पानी में गिरने से झेलनी पड़ती हैं। वह एक ही करवट सुबह तक भूखा पड़ा रहा। घास और जौ की बाट में हिनहिनाते-हिनहिनाते सबेरा हो गया। जब अच्छी तरह उजाला हो गया, तो नौकर आया और तुरन्त तैरु को ठीक करके पीठ पर रखा और निर्दयी ने गधे बेचनेवालों की तरह दो-तीन आर लगायीं। खच्चर कील के चुभ से तरारे भरने लगा। उस गरीब के जीभ कहां थी, जो अपना हाल सुनाता।

लेकिन जब सूफी सवार होकर आगे बढ़ा तो खच्चर निर्बलता के कारण गिरने लगा। जहां। जहां कहीं गिरता था, लोगा उसे उठा देते थे और समझते थे कि खच्चर बीमार है। कोई खच्चर के कान मरोड़ता, कोई मुंह खोलकर देखता, कोई यह जांच करता कि खुर और नाल के बीच में कंकर तो नहीं आ गया है और लोग कहते कि ऐ शेख तुम्हारा खच्चर बार-बार गिर पड़ता है, इसका क्या कारण है?
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Old 22-08-2014, 12:55 AM   #85
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Default Re: मुहावरों की कहानी

शेख जवाब देता खुदा का शुक्र है खच्चर तो मजबूत है। मगर वह खच्चर जिसने रात भर लाहौल खाई हो (अर्थात् चारा न मिलने के कारण रातभर 'दूर ही शैतान' की रट लगाता रहा), सिवा इस ढंग के रास्ता तय नहीं कर सकता और उसकी यह हरकत मुनासिब मालूम होती है, क्योंकि जब उसका चारा लाहौल था तो रात-भर इसने तसबीह (माला) फेरी अब दिन-भर सिज्दे करेगा (अर्थात् गिर-गिर पड़ेगा)

[जब किसी को तुम्हारे काम से हमदर्दी नहीं है तो अपना काम स्वयं ही करना चाहिए। बहुत से लोग मनष्य-भक्षक हैं। तुम उनके अभिवादन करने से (अर्थात् उनकी नम्रता के भम्र में पड़कर) लाभ की आशा न रक्खो। जो मनुष्य शैतान के धोखे में फंसकर लाहौल खाता है, वह खच्चर की तरह मार्ग में सिर के बल गिरता है। किसी के धोखे में नहीं आना चाहिए। कुपात्रों की सेवा ऐसी होती है, जैसी इस सेवक ने की। ऐसे अनधिकारी लोगों के धोखे में आने से बिना नौकर के रहना ही अच्छा है।]

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Old 28-08-2014, 02:31 PM   #86
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Thumbs down Re: मुहावरों की कहानी

मेहनत करे मुर्गी अण्डा खाए फ़क़ीर!

एक बार एक किसान का घोडा बीमार हो गया। उसने उसके इलाज के लिए डॉक्टर को बुलाया। डॉक्टर ने घोड़े का अच्छे से मुआयना किया बोला, "आपके घोड़े को काफी गंभीर बीमारी है। हम तीन दिन तक इसे दवाई देकर देखते हैं, अगर यह ठीक हो गया तो ठीक नहीं तो हमें इसे मारना होगा। क्योंकि यह बीमारी दूसरे जानवरों में भी फ़ैल सकती है।"

यह सब बातें पास में खड़ा एक बकरा भी सुन रहा था।

अगले दिन डॉक्टर आया, उसने घोड़े को दवाई दी चला गया। उसके जाने के बाद बकरा घोड़े के पास गया और बोला, "उठो दोस्त, हिम्मत करो, नहीं तो यह तुम्हें मार देंगे।"

दूसरे दिन डॉक्टर फिर आया और दवाई देकर चला गया।

बकरा फिर घोड़े के पास आया और बोला, "दोस्त तुम्हें उठना ही होगा। हिम्मत करो नहीं तो तुम मारे जाओगे। मैं तुम्हारी मदद करता हूँ। चलो उठो"

तीसरे दिन जब डॉक्टर आया तो किसान से बोला, "मुझे अफ़सोस है कि हमें इसे मारना पड़ेगा क्योंकि कोई भी सुधार नज़र नहीं आ रहा।"

जब वो वहाँ से गए तो बकरा घोड़े के पास फिर आया और बोला, "देखो दोस्त, तुम्हारे लिए अब करो या मरो वाली स्थिति बन गयी है। अगर तुम आज भी नहीं उठे तो कल तुम मर जाओगे। इसलिए हिम्मत करो। हाँ, बहुत अच्छे। थोड़ा सा और, तुम कर सकते हो। शाबाश, अब भाग कर देखो, तेज़ और तेज़।"

इतने में किसान वापस आया तो उसने देखा कि उसका घोडा भाग रहा है। वो ख़ुशी से झूम उठा और सब घर वालों को इकट्ठा कर के चिल्लाने लगा, "चमत्कार हो गया। मेरा घोडा ठीक हो गया। हमें जश्न मनाना चाहिए। आज बकरे का गोश्त खायेंगे।"

शिक्षा: मैनेजमेंट को भी कभी पता नहीं चलता कि कौन सा कर्मचारी कितना योग्य है।
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Disclaimer......!
"The Forum has given me all the entries are not my personal opinion .....! Copy and paste all of the amazing ..."
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Old 29-09-2014, 08:41 PM   #87
rajnish manga
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Default Re: मुहावरों की कहानी

मित्रो, इस सूत्र में हम कुछ ऐसे प्रसंग, आलेख अथवा विचार आपके साथ शेयर करेंगे जो कहीं न कहीं मुहावरों से जुड़े हुए हैं या जो मुहावरों से ही विकसित हुए हैं. बीच बीच में हम पहले की तरह कतिपय मुहावरों की कहानियाँ भी आपके सामने लाते रहेंगे. आशा है आपको यह प्रस्तुति पसंद आएगी.
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Old 29-09-2014, 09:28 PM   #88
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Default Re: मुहावरों की कहानी

“घर का भेदी” विभीषण > सज्जन या दुर्जन ??





'घर का भेदी लंका ढाए' मुहावरा बोलचाल में बहुत प्रयोग में लाया जाता है। और, हमारी भाषा में 'घर का भेदी' पद किसी व्यक्ति के नाम के आगे सम्मानजनक विशेषण के रूप में प्रयोग में नहीं लाया जाता है।

अब यह एक विरोधाभास है कि इसी घर के भेदी की सहायता से भगवान राम ने बुराईयों के प्रतीक रावण पर विजय पाई थी। यदि लंका में घर के भेदी विभीषण ने पहले हनुमान से संबंध न बनाए होते और बाद में श्रीराम की शरण में जाकर रावण के अमरत्व के रहस्य को न बतलाया होता तो रावण की मृत्यु ही नहीं होती, न रावण के चंगुल से सीता की मुक्ति होती और न लंका से रावण राज्य का अंत होता।
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Old 29-09-2014, 09:31 PM   #89
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Default Re: मुहावरों की कहानी

इतना सब होते हुए भी 'विभीषण' केवल व्यक्तिवाचक संज्ञा नहीं रह गया बल्कि व्यक्तिगत हित के लिए परिवार या समाज को धोखा देकर विरोधी का साथ देने वाले व्यक्ति के लिए प्रयुक्त किया जाने वाला विशेषण बन गया। कभी भूलवश भी विभीषण शब्द का प्रयोग किसी अच्छे संदर्भ में नहीं किया जाता है। इसी तरह विभीषण नाम का कोई व्यक्ति आपको न नागर समाज, न ग्राम्य समाज और न जनजातीय समाज में मिलेगा, जबकि रामायण और महाभारत के अन्य कुछ खलनायकों जैसे-दुर्योधन, कौरव, मेघनाथ आदि नाम के प्रयोग में किए गए मिलते हैं। इसका एक अर्थ यह है कि पौराणिक साहित्य का विभीषण नाम परवर्ती साहित्य और समाज में सर्वथा वर्जित हो गया है।
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Old 29-09-2014, 10:07 PM   #90
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Default Re: मुहावरों की कहानी

बहरहाल, हनुमान ने विभीषण को बहुत सम्मान दिया था और श्रीराम ने तो उन्हें लंका का राज ही सौंप दिया था जिससे वहां धर्म और मर्यादापूर्ण राज्य की स्थापना हो सकी। अब समझ में यह नहीं आता कि आखिर रावण राज्य में राम की भक्ति करने वाले, रावण को सद्मार्ग पर चलने के लिए सलाह देने वाले और बुराई के विरुध्द अच्छाई के संग्राम में अच्छाई का साथ देने वाले नायक विभीषण के प्रति ऐसी भर्त्सनात्मक धारणा क्यों बनी है। क्या यह वह बात है जो हर स्थिति में, परम्परागत परिवार में संबंधों के निर्वाह को अनिवार्य मानती है, भले ही वह पूरे परिवार के लिए हितकारी न हो। लेकिन बिना शुचिता और अशुचिता का ध्यान किए हर स्थिति में पारिवारिक संबंधों को निभाने पर समग्रत: तो अहित ही होता है ?

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