14-09-2014, 04:49 PM | #81 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
किशोर कुमार साल 1950 से लेकर 60 के दशक की शुरुआत तक हिंदी सिनेमा के संगीतकारों की लिस्ट में नौशाद का नाम पहले नंबर पर लिया जाता था। नौशाद ने अपनी फिल्मों में शास्त्रीय संगीत पर आधारित धुनों का बखूबी इस्तेमाल किया और उन्हें क्लासिकल संगीत की समझ ना रखने वाले आम दर्शकों तक भी पनी धुनों को पहुंचाया। नौशाद ऐसे पहले संगीतकार थे जो 50 के दशक में एक फिल्म में संगीत देने के लिए एक लाख रुपए लेते थे। जाहिर सी बात है जब 60 के दशक में नौशाद राज कर रहे थे तो ऐसे में उनसे जुड़े करीबी लोगों को ज्यादा महत्व दिया जाता था। नौशाद के मनपसंद गायक लता मंगेशकर और मोहम्मद रफी थे। मोहम्मद रफी, नौशाद के बेहद करीबी थे जिस कारण नौशाद ज्यादातर गायिकी के मौके मोहम्मद रफी को ही दिया करते थे। उन दिनों किशोर कुमार भी गायक बनने का सपना लेकर सिनेमा में आए।
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14-09-2014, 04:56 PM | #82 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
किशोर कुमार के लिए बहुत मुश्किल था हिन्दी सिनेमा में अपना मुकाम बनाना क्योंकि उन दिनों लोग मोहम्मद रफी को ही सुनना चाहते थे पर साल 1969 में रिलीज हुई फिल्म “आराधना” ने किशोर कुमार की किस्मत को बदल दिया। मोहम्मद रफी को चाहने वाले लोग धीरे-धीरे किशोर कुमार की गायिकी के दीवाने हो गए। सच तो यह था कि दोनों की गायक अपनी गायिकी के अंदाज में बेहतर थे।
नौशाद भी समय परिवर्तन के साथ-साथ किशोर कुमार की गायिकी को पसंद करने लगे। नौशाद ने किशोर कुमार को फिल्म ‘सुनहरा संसार’ में गाने का मौका दिया। साल 1975 में जब फिल्म सुनहरा संसार रिलीज हुई तो उसमें किशोर कुमार का गाया गाना नहीं था। जब नौशाद से पूछा गया कि फिल्म से वो गाना कट क्यों कर दिया गया तो नौशाद ने जवाब दिया कि फिल्म के निर्देशक ने उस गाने की शूटिंग ही नहीं की थी। ऐसे में कहीं ना कहीं किशोर कुमार का नौशाद से विश्वास उठ गया और फिर कभी भी दोनों ने एक साथ काम नहीं किया। इस बीच दोनों का ही कुछ भी नुकसान नहीं हुआ बल्कि नुकसान उन लोगों का हुआ जो किशोर और नौशाद को एक साथ सुनना चाहते थे। **
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19-09-2014, 12:13 AM | #83 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
दर्द हमारा कोई न जाना
(किशोर कुमार के इंटरव्यूज़ पर आधारित) कुछ महीने पहले काम से फुरसत मिली तो कश्मीर गया था. बहुत पहले मैंने अपनी पत्नी और खुद से भी वादा किया था कि मैं कश्मीर जाऊँगा. मुझे ख़ुशी है कि आखिरकार मैंने वह वादा निभाया. ख़ुशी इस लिये भी थी कि बर्फ से ढकी घाटी और इस जगह की शांति ने मुझे बहुत प्रभावित किया. अचानक ही मुझे इस ख़याल ने घेर लिया कि मैं कौन था और मैं क्या बन गया हूँ? मैं इस ओर चला जा रहा हूँ. मैंने इस प्रकार की कई बातें अनुभव की जिन्होंने मुझे हिला कर रख दिया.
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19-09-2014, 12:15 AM | #84 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
इससे पहले कि मैं आगे बढूँ, मैं अतीत की चंद बातों पर चर्चा करना चाहता हूँ. और मैं अपनी पृष्ठभूमि पर नज़र डालना चाहता हूँ जिसमे मैं पला-बढ़ा हूँ.
यह एक नौजवान की कहानी है जो एक ऐसा संजीदा व्यक्ति था जिसे एक जोकर बना दिया गया. यह पुरानी बात है जिसे सही परिप्रेक्ष्य में समझने का वक़्त आ गया है क्योंकि अब वह नौजवान उस पड़ाव पर आ पहुंचा है जहां उसकी मसखरी खत्म होनी चाहिये. यह किशोर कुमार की कहानी है, मेरी कहानी. कई बरस पहले जब मैंने फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा तो मैं एक दुबला पतला सा एक गंभीर तबीयत नौजवान था. मुझमे अच्छा काम करने का जूनून था. मैं गाता था. मेरे आदर्श थे – के.एल. सहगल और खेमचंद प्रकाश. ये ऐसे नाम हैं जिनकी गूँज तब तक रहेगी जब तक फिल्म इंडस्ट्री कायम है. मैं इन दोनों हस्तियों को मिसाल के तौर पर देखता था. एक प्लेबैक सिंगर के तौर पर मेरी शुरूआती कोशिशें खासी कामयाब रही थी. खेमचंद प्रकाश के साथ मैंने जो गाने गाये वो गंभीर और सहज थे. यानी इनमें कोई जटिलता नहीं थी. खेमचंद प्रकार की नज़र में मैं एक ऐसा नौजवान था जो आगे चल कर बहुत अच्छा सिंगर बनने वाला था. उनकी सोच गलत भी नहीं थी.
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22-09-2014, 12:02 AM | #85 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
किशोर कुमार की अदाकारी हमें हंसाती थी। उनके मजेदार गीत कदमों में थिरकन भी लाते थे और चेहरे पर हंसी भी। लेकिन वो जोकर नहीं थे। मसखरे भी नहीं थे। पर्दे पर वो हंसाते गए, अपनी आवाज के जादू से गुदगुदाते गए तो हम यही समझ बैठे की किशोर कुमार की असल जिंदगी भी ऐसी ही मजेदार होगी और थी भी। कम से कम दूर से देखकर तो ऐसी ही लगती थी। उनका चुटिला अंदाज, मस्ती, उनकी अजीबोगरीब हरकतों के किस्से सुनकर यही लगा कि किशोर दा जैसे पर्दे पर वैसे ही हकीकत में। लेकिन क्या आप जानते हैं कि सुरीले किशोर की अंदर गम के साज़ भी बजा करते थे। उनकी हंसी की खनक के पीछे दर्द भरी आह भी थी। जिस मायानगरी ने उन्हें सबकुछ दिया वही उन्हें काटने दौड़ती थी और उनके अंदर हमेशा मुंबई से भागने की तड़प बनी रहती थी। वो भागकर फिर से अपने शहर खंडवा जाना चाहते थे। ये शहर तो उन्हें कभी रास आया ही नहीं था।
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22-09-2014, 12:04 AM | #86 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
लोगों ने क्या-क्या नहीं कहा किशोर दा को। मसखरा, जोकर, बंदर, पागल। लेकिन दर्द किसी ने नहीं समझा। हाल ही में किशोर दा के दो अलग-अलग इंटरव्यू मुझे पढ़ने को मिले। एक साल 1960 में छपा तो दूसरा उनकी मौत से दो साल पहले 1985 में। यानि दोनों इंटरव्यू में करीब 25 साल का फासला था लेकिन दर्द एक ही था, “मैं मसखरा नहीं बनना चाहता था। मैं अपनी जमीन के साथ जीना चाहता था”। आभास कुमार गांगुली तो सिर्फ गाना चाहता था, संगीत की दुनिया में खो जाना चाहता था लेकिन उसे खुद भी पता नहीं चला कि वो कब आभास से एक ‘तमाशा’ बन गया जिसे लोगों ने नाम दिया किशोर कुमार।
किशोर तो अपने भाई अशोक कुमार से मिलने बंबई आए थे। सोचा था कि वो उन्हें के.एल सहगल से मिलवा सकते हैं क्योंकि किशोर उन्हें अपना आदर्श मानते थे। लेकिन बंबई आकर जैसे वो फंस गए। वो सिर्फ गाना चाहते थे लेकिन परिस्थितियों ने उन्हें ऐसा उलझाया कि किशोर एक्टिंग करने लगे लेकिन सुकून उन्हें गायकी में ही मिलता था। फिर भी वो फिल्मी दुनिया में रम गए। गायक भी बने अभिनेता भी।
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22-09-2014, 12:20 AM | #87 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
Kishore Kumar: A Family Photo सलाहें आती गईं किशोर दा उनपर अमल करते गए और फिर जो किशोर सबके सामने आया वो वह मासूम लेकिन जुनूनी आभास नहीं था जो खंडवा से गाने का शौक लिए आया था। ये लोगों का बनाया किशोर था जो मगरुर और दूसरों की खामियां देखने वाला बन गया था। इंटरव्यू में किशोर बताते हैं कि उन्हें एक जाने माने निर्देशक ने सिगरेट का धुंआ उड़ाते हुए कहा था कि वो जो कर रहे हैं वो 25 साल पुरानी चीज है।
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22-09-2014, 01:30 PM | #88 |
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Re: क्विज़ टाइम / किशोर कुमार
nice knowledge..
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