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![]() लंदन। अगर आप हमेशा अपने मोबाइल से चिपके रहते हैं तो संभल जाइये । शोधकर्ताओं ने पता लगाया है कि आमतौर पर मोबाइल फोन में शौचालय की सीट से ज्यादा जीवाणु होते हैं। डेली मेल की खबर के मुताबिक इस अध्ययन में पाया गया है कि मोबाइल फोन में शौचालय की अपेक्षा 10 गुना ज्यादा विषाणु पाये जाते हैं जिससे मिचली आना और पेट की समस्यायें हो सकती हैं। एरिजोना विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने कहा कि मोबाइल फोन अक्सर एक से दूसरे व्यक्ति को दिये जाते हैं जिससे चारों ओर विषाणु फैलते हैं लेकिन ये कभी साफ नहीं किये जाते हैं जिसका अर्थ है कि बीमारी लगातार बढती रहती है। विश्वविद्यालय में माइक्रो बायोलॉजिस्ट चार्ल्स गेर्बा ने कहा कि उनके इस बार के परीक्षणों से पता चला कि विषाणु फोन के अंदर चले जाते हैं क्योंकि यह हमारे हाथों और मुंह के करीब होता है।
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महिलाओं में फेसबुक की लत लगने की संभावना ज्यादा : अध्ययन
लंदन। एक नए अध्ययन में दावा किया गया है कि महिलाओं में फेसबुक की लत लगने की संभावना ज्यादा रहती है और इसके लिए उनके जीन जिम्मेदार होते हैं। डेली मेल में प्रकाशित खबर के अनुसार बान विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं द्वारा किये गये अध्ययन में इस बात के नये प्रमाण मिले हैं कि इंटरनेट लत लगने के पीछे एक खास किस्म के जीन होते हैं जो अक्सर महिलाओं में मिलते हैं। अध्ययन के मुख्य लेखक डा. क्रिश्चियन मोंटाग ने बताया कि इससे पता चलता है कि इंटरनेट की लत हमारे दिमाग की उपज नहीं हैं। अध्ययनकर्ताओं ने 843 लोगों से उनकी इंटरनेट आदतों के बारे में बातचीत की। बाद में इंटरनेट के लती 132 लोगों पर ही ध्यान केन्द्रित किया गया। इसके बाद इन लती लोगों की लोग नियंत्रित लोगों के दल से की गयी। इस तुलना में पाया गया कि जो 132 लोग इंटरनेट के मामले में विचित्र व्यवहार कर रहे थे उसके पीछे खास जीन का हाथ है। अध्ययन में यह भी पाया गया कि प्रभावित होने वालों में महिलाओं की संभावना ज्यादा होती है।
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डोल्ले शोल्ले बनाने के लिए अब आ गया है ‘हल्क’
मेलबर्न। यदि आप बॉडी बनाना चाहते हैं और जिम भी नहीं जाना चाहते तो चिंता की बात नहीं। अब ‘हल्क’ नामक एक प्रोटीन बाजार में आ गया है जो बिना कसरत के छरहरा और गठीला शरीर बनाने में मदद करेगा। वैज्ञानिकों ने आस्ट्रेलिया में दावा किया है कि उन्होंने एक प्रोटीन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने वाले मोलिक्यूल का पता लगाया है जो बिना कसरत के वजन और मांसपेशियों को बनाने में मदद करता है। शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि चूहों में ‘ग्रैब 10’ की क्रियाशीलता को बंद कर दिया गया जिससे जन्म के समय चूहों की मांसपेशियां अन्य सामान्य चूहों के मुकाबले अधिक मजबूत थीं। ग्रैब 10 को ‘हल्क’ का नाम दिया गया है। शोधकर्ताओं का कहना है कि ग्रैब 10 भोजन में किसी बदलाव के बिना और स्वास्थ्य पर बिना किसी बुरे प्रभाव के मांसपेशियों के विकास को प्रोत्साहित करता है। यह शोध रिपोर्ट ‘एफएएसईबी’ जर्नल में प्रकाशित हुई हैं।
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डेढ़ सौ साल बाद सामने आया चार्ल्स डिकन्स का खत
लंदन। डेढ़ सौ साल बाद सामने आए चार्ल्स डिकन्स के एक पत्र से पता चला है कि विक्टोरिया युग का यह जाना माना लेखक एक किशोर उम्र की अभिनेत्री के प्यार में पागल था और इस कारण हर हाल में अपनी पत्नी से तलाक लेना चाहता था। कोस्टवोल्ड्स में एक मकान मालिकन को यह पत्र उस समय मिला जब वह अपने घर की सफाई कर रही थी। इस दौरान यह पत्र एक बाइबल से निकल कर नीचे गिर पड़ा। यह बाइबल इस महिला को उसके एक बुजुर्ग पड़ोसी ने दिया था। डेली टेलीग्राफ के अनुसार मई 1858 में जब डिकन्स ने यह पत्र अपने वकील को भेजा तो उस समय वह अपने 10 बच्चों की मां कैथरीन से अलग होने की प्रक्रिया में थे। उन्होंने कैथरीन के लिए तिरस्कारपूर्ण अंदाज में बात की और तलाक के बदले उन्हें हर साल 600 पाउंड देने की पेशकश की। लेखक ने व्यंग्यात्मक रूप से कहा कि यह राशि पर्याप्त है और इससे उनकी परित्यक्त पत्नी की शाही बग्घी का खर्चा निकलता रहेगा। डिकन्स ने अपने वकील फे्रडरिक ओवरी को 23 मई 1858 को लिखा, प्रिय ओवरी मैंने हमारे बीच हुई बातचीत के बिन्दुओं पर विचार-पुनर्विचार किया है और हमें हर चीज सहित हर साल 600 पाउंड का भुगतान करना चाहिए। मुझे यकीन है कि इससे कैथरीन अपनी आलीशान बग्घी का खर्चा उठा सकेगी और वे सभी काम कर सकेगी जो वह चाहती है। कैथरीन को तब कुछ समय पहले ही पता चला था कि उनके अधेड़ उम्र के पति 18 वर्षीय अदाकारा एलेन टेरनन के प्यार में अंधे हैं। डिकन्स के पत्र लिखने के चंद दिन के भीतर ही दंपती का तलाक हो गया। इसके बाद डिकन्स अपनी मौत तक टेरनन के साथ ही रहे। लंदन स्थित फे्रजर्स आटोग्राफ 27 सितंबर को इस पत्र की नीलामी करेगा। उम्मीद है कि यह एक हजार से 1500 पाउंड के बीच बिकेगा।
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हमारा सबसे करीबी मित्र होता हैं कुत्ता
वाशिंगटन। अनुसंधानकर्ताओं को ऐसे नए आधार मिले हैं जिससे साबित होता है कि अन्य किसी भी जानवर की अपेक्षा कुत्ते इंसानों के ज्यादा करीब होते हैं। ‘डिस्कवरी न्यूज’ की खबर में कहा गया है कि लंदन विश्वविद्यालय के गोल्डस्मिथ कालेज के अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि संकट और दुख के वक्त में पालतू कुत्ते इंसानों के सबसे अच्छे मित्र साबित होते हैं। इस अध्ययन के सह लेखक देबोरा कसटांस ने कहा कि अन्य किसी भी प्रजाति की अपेक्षा कुत्ते मानवीय भावनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। अध्ययन के परिणामों को ‘एनिमल कागनिशन’ नाम की पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।
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नीम की गुठलियों के भी मिलेंगे बढ़िया दाम
भोपाल। आम के आम गुठलियों के दाम कहावत अब पुरानी हो गई है। समय के साथ दौड़ में नीम की गुठलियों ने बाजी मार ली है। वन विभाग के खरगोन कार्यालय ने आदिवासियों से 21 लाख रुपए की 107 टन निम्बोली (नीम गुठली) खरीदने का निर्णय लिया है। यह गुठली खरगोन में स्थापित किए जा रहे नीम तेल धानी संयंत्र में उपयोग की जाएगी। सरताज सिंह ने नीम तेल धानी संयंत्र की जानकारी देते हुए बताया कि पहले चरण में आदिवासियों से 5 लाख 62 हजार रुपए मूल्य की 1000 क्विंटल निम्बोली खरीदी जा चुकी है। संयंत्र से क्षेत्र में आर्थिक सामाजिक और पर्यावरणीय लाभ होगा। संयंत्र से 13 हजार 775 मानव दिवस रोजगार निर्मित होने का अनुमान है। उन्होंने बताया कि आमतौर पर मई-जून में निम्बोली का मौसम होता है। निम्बोली पेड़ों से गिरकर नष्ट हो जाती है। नीम तेल धानी संयंत्र की स्थापना से ऐसा नहीं होगा। ग्राम वन समितियों के माध्यम से वन विभाग आदिवासियों से निम्बोली खरीदेगा। निम्बोली से तेल निकालने के बाद खली खाद के रूप में उपयोग की जाएगी। कीटनाशक होने के कारण नीम खली की जैविक खाद के रूप में काफी मांग है। नीम तेल की भी औषधीय उपयोगिता है। दवा और सौंदर्य प्रसाधन बनाने वाली कंपनियों में नीम के तेल की लगातार मांग बढ़ रही है। निम्बोली के संग्रहण उपचारण भण्डारण और परिवहन से स्थानीय लोगों की आर्थिक उन्नति होगी। खरगोन में नीम तेल धानी संयंत्र की स्थापना 17 लाख रुपए की लागत से की जा रही है। संयंत्र की स्थापना मध्यप्रदेश वन विभाग द्वारा भारत सरकार आदिवासी मामले मंत्रालय की स्वीकृत योजना में की जा रही है।
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अपने मृतकों के लिए शोक जताने जुटते हैं पक्षी
लंदन। वैज्ञानिकों ने उत्तरी अमेरिका में एक ऐसे पक्षी की प्रजाति का पता लगाया है जो किसी मृत पक्षी से सामना होने पर उसके चारों ओर चक्कर काटने लगता है और यहां तक कि कुछ समय के लिए दाना पानी भी खाना छोड़ देता है। कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के अध्ययनकर्ताओं ने पाया है कि पश्चिमोत्तर अमेरिका में पाए जाने वाली स्क्रब जे (नीलकंठ जैसा पक्षी) की एक प्रजाति (एफीलोकोमा कैलिफोर्नियां) किसी मृत पक्षी को देखकर नीचे आकर उसके इर्द गिर्द जमा हो जाती है। बीबीसी नेचर रिपोर्ट के मुताबिक शोधकर्ताओं की धारणा है कि इस तरह का व्यवहार आसपास के अन्य पक्षियों को खतरे की सूचना देने के लिए होता होगा। टेरेसा इगलेसियास और उनके सहयोगियों ने विभिन्न तरह की वस्तुओं और मृत पक्षी को रखकर इस पक्षी के व्यवहार का अध्ययन किया। लकड़ी के पट्टों के प्रति जे का रवैया बिल्कुल अलग तरह का रहा, लेकिन जब उसकी नजर मृत चिड़िया पर पड़ी तो उसने शोर मचाना शुरू कर दिया। इसके बाद यह जे पक्षी मृत पक्षी के आसपास घेरा बनाकर अलग कर्कश किस्म की ध्वनियां निकालने लगा। इससे उसके और साथियों को भी वहां आने में सहायता मिली। यहां तक की जे ने दाना पाना भी खोजना बंद कर दिया और एक दिन तक उसके व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं हुआ। यह पक्षी मृत पक्षी से थोड़ी दूर ही रही और उसका व्यवहार काफी संयत रहा। आम तौर पर पक्षी कभी कभार ही एकजुट होकर खतरों का सामना करने के लिए निकलते हैं। अध्ययनकर्ताओं का कहना है कि मृत पक्षी के बारे में ज्यादा से ज्यादा संदेश पहुंचाना अन्य पक्षियों की सुरक्षा का काम करता है। इससे उन्हें किसी संभावित खतरे का भी पता चल जाता है। कुछ अन्य जानवर भी अपने मृतकों की सुधी लेते हैं। मसलन जिराफ और हाथी अपने किसी साथी के शव को देखकर उसके आसपास ही चक्कर काटने लगते हैं। इससे यह पता चलता है कि जानवरों को भी मृत प्राणियों का पता चलता है और वह दुखी भी होते हैं।
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लकवाग्रस्त लोगों को फिर से चलने में मदद करने वाले उपकरण का सफल परीक्षण
लंदन । वैज्ञानिकों ने एक ऐसा इलेक्ट्रॉनिक उपकरण बनाया है जिसे शरीर में लगाए जाने के बाद लकवाग्रस्त लोगों को फिर से चलने में मदद मिलेगी। ‘डेली एक्सप्रेस’ की खबर में कहा गया है कि बिटेन के शल्य चिकित्सकों के दल ने चार लोगों पर इस उपकरण का परीक्षण किया जिसके बाद वे लोग फिर से चलने लगे। ‘एक्टिगेट’ नाम के इस उपकरण को जर्मनी की एक कंपनी ने बनाया है और यह पक्षाघात के मरीजों को ध्यान में रख कर बनाया गया है। जुलाई में एक मरीज में इस उपकरण को लगाए जाने के बाद वह महिला लंदन में एक मशाल दौड़ में भी शामिल हुईं। इस कार्यक्रम के अगुवा डॉ. माइकल जौच ने कहा कि इस उपकरण को लगाए जाने के बाद मरीज को फिर से चलते हुए देखना बहुत सुखद है।
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अब सोच से नियंत्रित होगा ड्रोन
लंदन। वैज्ञानिकों ने एक ऐसा सिस्टम विकसित करने का दावा किया है जिसके जरिए ड्रोन अथवा किसी हेलीकॉप्टर पर नियंत्रण महज सोचने भर से हो जाएगा। चीन में हेंगझोउ के झेजियांग विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने एक ऐसा सिस्टम विकसित किया है जो हेडसेट के जरिए सक्रिय रूप से दिमाग की गतिविधि से जुड़ा होगा। ‘न्यू साइंटिस्ट’ के अनुसार हेडसेट में ब्लूटूथ होगा, जो एक लैपटॉप से जुड़ा होगा और वह ड्रोन को दिशा-निर्देशित करेगा। इस सिस्टम का इस्तेमाल करके कोई भी व्यक्ति उड़ते हुए ड्रोन अथवा किसी अन्य दूसरे सम्बंधित विमान या हेलीकॉप्टर पर नियंत्रण कर सकेगा। इस सिस्टम को अगले महीने पिट्सबर्ग में आयोजित एक सम्मेलन में प्रदर्शित किया जाएगा।
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गिद्ध की लुप्तप्राय प्रजातियों का प्रजनन सफल
गुवाहाटी। असम के एक संरक्षण केंद्र में गिद्ध की दो सबसे लुप्तप्राय प्रजातियों का सफल प्रजनन कराया गया है। अधिकारियों ने आज गिद्धों की इन लुप्तप्राय प्रजातियों का प्रजजन कराने में मिली सफलता की जानकारी दी और कहाकि इससे इन प्रजातियों को विलुप्त होने से बचाने में मदद मिलेगी। असम के प्रधान वन संरक्षक (वन्यजीव) सुरेश चंद ने कहा कि यहां से 40 किलोमीटर दूर रानी नाम की एक जगह में स्थित संरक्षण केंद्र में गिद्ध की दो प्रजातियों- ‘व्हाइट बैक्ड’ और ‘स्लेंडर बिल्ड’ का बंदी प्रजनन कराया गया। चार महीने पहले पैदा हुए गिद्ध के बच्चे अब स्वस्थ हैं। सुरेश चंद ने कहा कि ‘स्लेंडर बिल्ड’ प्रजाति की अपनी अहमियत है, क्योंकि यह अब असम में ही पाई जाती है। पहले यह हिमाचल प्रदेश से असम तक पाई जाती थी, लेकिन अब यह प्रजाति लगभग विलुप्त हो चुकी है।
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