01-11-2014, 10:28 AM | #961 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तू छोड़ रहा है ,तो ख़ता इसमें मेरी क्या हर शख्स मेरा साथ निभा भी नहीं सकता प्रोफ़ेसर वसीम बरेलवी
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
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01-11-2014, 01:33 PM | #962 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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में , सौ आईने तोड़े हैं तब जाके उतारी है , मैं तुम को ज़फ़ाओं का इल्ज़ाम नहीं दूँगा , तुमने मेरी आँखों में इक उम्र गुज़ारी है...!" (तसनीम फ़ारूक़ी) |
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01-11-2014, 05:00 PM | #963 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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मन के रावण को भी इक बार जलाया जाये (सर्वत परवेज़ सहसवानी)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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01-11-2014, 06:21 PM | #964 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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01-11-2014, 07:04 PM | #965 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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लोग हर मंजिल को मुश्किल समझते है, हम हर मुश्किल को मंजिल समझते है. बड़ा फर्क है लोगों और हमारे नज़रिए में, लोग दिल को दर्द और हम दर्द को दिल समझते है .......
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01-11-2014, 07:54 PM | #966 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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यहाँ नज़ारे की खातिर नज़र ज़रूरी नहीं ये तीर उसके बदन में कहीं भी लग जाये हमें तो ज़ख्म से मतलब है सर ज़रूरी नहीं (शकील आज़मी)
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01-11-2014, 08:13 PM | #967 |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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01-11-2014, 08:28 PM | #968 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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तुम्हें भी लग गयी शायद ज़माने की हवा, साहब (स्व. मुंशी देवी प्रसाद 'प्रीतम')
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01-11-2014, 09:48 PM | #969 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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बलन्दियों पे नज़र आ रहे हैं कुछ बौने अजब नहीं कि ये दुनिया तबाह हो जाये मेराज फैज़ाबादी
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01-11-2014, 10:15 PM | #970 | |
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Re: अन्ताक्षरी खेले याददास्त बढायें...........
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ये मुनक्कश दर-ओ-दीवार, महेराब, ये ताक इक शहंशाह ने दौलत का सहारा ले कर हम ग़रीबों की मुहब्बत का उड़ाया है मज़ाक मेरी महबूब कहीं और मिला कर मुझसे (साहिर लुधियानवी - उनकी नज़्म 'ताजमहल' से)
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