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![]() नई दिल्ली। फिल्म ‘मासूम’ में प्यारे से बच्चे का किरदार निभा चुके जुगल हंसराज बेशक अभिनय से निर्देशन की दुनिया में आ गए हों, लेकिन उनके मन में रूपहले पर्दे पर अभिनय में वापसी की इच्छा पूरा जोर मार रही है। 39 वर्षीय जुगल भारत अपनी पहली कंप्यूटर निर्मित फीचर फिल्म ‘रोडसाइड रोमियो’ और प्रियंका चोपड़ा अभिनीत ‘प्यार इंपॉसिबल’ का निर्देशन कर चुके हैं, लेकिन उनकी दोनों ही फिल्में बॉक्स आफिस पर कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाईं। फिल्मी पर्दे पर वापसी के बारे में जुगल कहते हैं कि मैं कुछ समय तक अभिनय से दूर रहा। मैं कैमरे के पीछे काम करने में ज्यादा व्यस्त हो गया था। मुझे अभिनय की बहुत याद आती है और मैं जानता हूं कि फिल्मों में बतौर मुख्य किरदार मेरी वापसी बहुत मुश्किल होगी। इसलिए मैं निर्देशन और इसकी बारीकियों का आनंद लेता हूं। जुगल कहते हैं कि मैं अभिनय करना चाहता हूं लेकिन ऐसा नहीं है कि मैं मुख्य किरदार ही निभाना चाहता हूं। मैंने हमेशा से ऐसी फिल्में ही की हैं, जिनमें मेरे किरदार में कुछ गहराई हो। इसके अलावा मेरा झुकाव हमेशा से एनिमेशन और लेखन की ओर रहा है। ‘पापा कहते हैं’, ‘आ गले लग जा’ और ‘मोहब्बतें’ में काम कर चुके जुगल फिलहाल फिल्मों के लिए तीन कहानियों पर काम कर रहे हैं। 11 जून को मेलबर्न फिल्म फेस्टिवल में भी जुगल हिस्सा लेंगे और वहां पर वे भारत और आस्ट्रेलिया के एनिमेशन क्षेत्र में उपलब्ध संसाधनों के बारे में जानकारी साझा करेंगे। जुगल कहते हैं कि हॉलीवुड के विपरीत भारत में एनिमेशन अभी शुरुआती दौर में है। हमने अभी बस ‘अर्जुन’ और ‘हनुमान’ जैसी कुछ फिल्में ही बनाई हैं, लेकिन अगर हम इसमें ज्यादा बजट लगाएंगे, तो ये निश्चित तौर पर विकसित होगा।
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बाघ के शिकार के मामले में पांच गिरफ्तार
सीहोर। मध्य प्रदेश के सीहोर जिले के कठौतिया ग्राम के पास जंगल मे एक बाघ का करंट लगा कर शिकार करने का मामले मे वन विभाग ने पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया है। सीहोर के वन मडंल अधिकारी वी. के. नीमा ने आज बताया कि इस मामले के तीन आरोपियों को शीघ्र गिरफ्तार कर लिया जाएगा। सीहोर और भोपाल जिलों की सीमा मे स्थित कठौतिया गांव के पास रविवार को पानी में करंट प्रवाहित कर के इस बाघ का शिकार किया गया बाद में बाघ को एक गुफा मे छुपाने का प्रयास किया गया। नीमा के मुताबिक विभाग के गश्ती दल ने कल बाघ का शव जब्त किया, जिसे दो भागों में काट दिया गया था। संदेह के आधार पर गांव के कुछ लोगों से पूछताछ कि गई, जिसमें आठ आरोपियों के नाम सामने आए। कल ही पांच आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया और शेष तीन की तलाश जारी है। यह सभी आदिवासी समुदाय के हैं। पांच वर्षीय बाघ का कल ही पोस्टमार्टम किया गया। उसके बाद उसका अंतिम संस्कार हुआ। आरोपियों का कहना है कि उन्होंने किसी अन्य छोटे-मोटे वन जीव का शिकार करने के लिए पानी में करंट प्रवाहित किया था, लेकिन वहां बाघ पानी पीने आ गया और करंट लगने से उस की मौत हो गई।
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नामांकन भरने नहीं पहुंच सका कन्नौज लोस उपचुनाव का प्रत्याशी
कन्नौज। भारतीय जनता पार्टी ने ऐन मौके पर अपना फैसला पलटते हुए उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट के उपचुनाव में अपना प्रत्याशी उतारने का निर्णय तो किया, मगर उसके उम्मीदवार जगदेव सिंह यादव नामांकन के लिए निर्धारित समय से पहले कचहरी पहुंचने से चूक गए। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई ने बताया कि हालांकि पार्टी ने मंगलवार को कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं करने का फैसला किया था, लेकिन कार्यकर्ताओं के भारी दबाव के कारण यादव को उम्मीदवार बनाए जाने का निर्णय बुधवार सुबह लिया गया। वह नामांकन दाखिल करने के लिए रवाना भी हुए, लेकिन सपा के कार्यकर्ताओं ने उन्हें रास्ते में दो जगह रोका, जिसके कारण वह समय से कचहरी नहीं पहुंच सके। इस बीच, जगदेव सिंह यादव ने बताया कि उन्हें आगामी 24 जून को होने वाले कन्नौज लोकसभा उपचुनाव के लिए भाजपा का प्रत्याशी बनाए जाने की सूचना बुधवार दोपहर करीब 12 बजे दी गई थी और उस वक्त वह लखनऊ के पास ही थे। उन्होंने कहा कि प्रत्याशी बनाए जाने की सूचना मिलने पर वह नामांकन दाखिल करने के लिए कन्नौज रवाना हुए, लेकिन सपा कार्यकर्ताओं ने उन्हें रास्ते में असीवन तथा बांगरमऊ में रोक लिया, जिससे उनका समय नष्ट हुआ और वह पर्चा दाखिल करने के लिए कन्नौज कचहरी नहीं पहुंच सके। 1998 में ब्लाक प्रमुख रह चुके यादव ने इस समूचे घटनाक्रम को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया और कहा कि मुख्यमंत्री की पत्नी के खिलाफ चुनाव लड़ाने के लिए जैसी मुस्तैदी दिखाई जानी चाहिए थी, वैसी नहीं हुई और वह इस बात को पार्टी के मंच से उठाएंगे। इधर, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष लक्ष्मीकांत वाजपेई ने लखनऊ में संवाददाताओं से कहा कि स्थानीय निकाय चुनाव हमारी प्राथमिकता थे, लेकिन मंगलवार रात कार्यकर्ताओं का काफी दबाव बन गया। कार्यकर्ताओं का कहना था कि कन्नौज लोकसभा उपचुनाव से पार्टी को उम्मीदवार खड़ा करना होगा, वरना हमें फिर से विचार करना पड़ेगा। मैं इसे पार्टी के लिए अच्छा लक्षण मानता हूं। उन्होंने कहा कि सपा कार्यकर्ताओं ने यादव को दो स्थानों पर घेरा, ताकि वह तीन बजे तक कचहरी ना पहुंच सकें। हम निर्वाचन आयोग से इसमें हस्तक्षेप करने की मांग करेंगे। इससे साफ पता चलता है कि भाजपा के उम्मीदवार की घोषणा होते ही समाजवादी पार्टी के पैर उखड़ गए। एकतरफा लड़ाई में निर्विरोध चुने जाने की हिम्मत रखने वाले लोग जनता की अदालत में चुनाव लड़ने का साहस नहीं जुटा पा रहे हैं। ज्ञातव्य है कि समाजवादी पार्टी ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिम्पल यादव को कन्नौज लोकसभा सीट के उपचुनाव के लिए अपना प्रत्याशी बनाया है। उनके खिलाफ अब तक सिर्फ एक नामांकन पत्र दाखिल हुआ है जो संयुक्त समाजवादी पार्टी के दशरथ सिंह ने भरा है। नामांकन वापसी की आखिरी तारीख आठ जून है।
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अक्टूबर के बाद मुश्किल हो जाएगा ब्राडबैंड कनेक्शन
नई दिल्ली। इंटरनेट इस्तेमाल करने वाले नए लोगों को जल्दी ही यह बोर्ड देखने को मिल सकता है कि जगह खाली नहीं है, कतार में रहें। देश में वर्चुअल वर्ल्ड (इंटरनेट) का तिलिस्म अभी ठीक से अपना पांव भी नहीं पसार पाया है कि जगह की कमी होनी शुरू हो गई है। इससे इसके सिमटने का खतरा मंडराने लगा है। अगर समय रहते कोई इंतजाम नहीं हुआ तो आने वाले दिनों में यह संकट बढ़ता जाएगा और नए इंटरनेट कनेक्शन लेने के लाले पड़ जाएंगे। भारत का साइबर स्पेस महज 18.5 करोड़ इंटरनेट कनेक्शनों के बोझ से ही कराह उठा है। अगर स्थिति पर काबू नहीं पाया जा सका तो यह भी संभव है कि हाईटेक और कीमती मल्डीमीडिया मोबाइल महज गेम खेलने का साधन बनकर रह जाएं। उपभोक्ता इसपर फेसबुक अपडेट करना भूल जाएं। दरअसल, भारत का साइबर स्पेस ट्रैफिक जाम की ओर बढ़ रहा है। भारत के पास इंटरनेट कनेक्शन एड्रेस (नंबर) को लेकर जितना स्पेस रहा है, वह अक्टूबर के अंत तक पूरा भर जाएगा। अभी देश में इंटरनेट प्रोटोकाल वर्जन (आईपीवी)-4 का इस्तेमाल हो रहा है। इसमें 18.5 करोड़ विशेष नंबर रखने की व्यवस्था है। इंटरनेट उपभोक्ताओं की बढ़ती तादाद को देखते हुए दूरसंचार मंत्रालय ने भविष्य में 60 करोड़ आईपीवी एड्रेस स्पेस की जरूरत बताई है। आईपीवी वह व्यवस्था है जिसके जरिए इंटरनेट कनेक्शन को सिम कार्ड की तरह एक पहचान नंबर दिया जाता है। इसके जरिए हमें पता चलता है कि कौन सा ई-मेल किस कंप्यूटर से भेजा गया। इसी नंबर के सहारे पुलिस इंटरनेट से जुड़े सायबर अपराधों की तह तक पहुंचती है। वैसे, कई संस्थान आईपीवी एड्रेस के आवंटन को नियंत्रित करते हैं। इनमें इंटरनेट इंजीनियरिंग टास्क फोर्स (आईईटीएफ) सबसे बड़ा निकाय समझा जाता है। फिलहाल, देश में करीब ढाई करोड़ ब्रॉडबैंड कनेक्शन धारक हैं। बाकी मोबाइल फोन के जरिए इंटरनेट का इस्तेमाल करते हैं। आज कंप्यूटर पर आम आदमी पूरी तरह से निर्भर होता जा रहा है। अधिकांश सरकारी व गैरसरकारी कामकाज इंटरनेट के सहारे ही चलते हैं। मीडिया तो पूरी तरह से इसी पर निर्भर है। आवश्यक कामकाज कंप्यूटर के माध्यम से निपटाए जा रहे हैं। ऐसे में इंटरनेट एक बड़े आसन्न संकट की तरफ इशारा कर रहा है। ऐसा नहीं, कि सरकार इस खतरे से अन्जान है। उसने इस खतरे के खिलाफ मोर्चेबंदी शुरू कर दी है। मालूम हो कि सरकार इन तरंगों का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल शुरू करने के लिए आईपीवी-4 को आईपीवी-6 में तब्दील करने जा रही है। आईपीवी-6 का प्रयोग कई विकसित देशों में होने लगा है। ऐसे में उम्मीद की जा सकती है कि सरकार इस मिशन में कामयाब हो जाएगी। उल्लेखनीय है कि आईपीवी-6 में कोई स्पेस सीमा नहीं है। आईपीवी-6 के इस्तेमाल से सरकारी वेबसाइटों को चीन व पाकिस्तान के साइबर हमलों से भी बचाया जा सकेगा। साथ ही इंटरनेट व्यवस्था और दुरुस्त हो जाएगी। लेकिन यह बता पाना मुश्किल है कि नई व्यवस्था कब तक लागू हो पाएगी। पहले यह मार्च तक शुरू होने का दावा सरकार कर रही थी, लेकिन अब इसकी समय सीमा बढ़ा दी गई है। फिलहाल इसकी नई समय सीमा जून मध्य तक तय है।
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महंगे टॉयलेट को लेकर योजना आयोग ने दी सफाई
नई दिल्ली। तीस लाख रुपए की लागत से बने टॉयलेट के इस्तेमाल होने की खबरों ने बुधवार को योजना आयोग के होश उड़ा दिए। इस पर योजना आयोग को आनन-फानन में सफाई देनी पड़ी। आयोग के मुताबिक तीस लाख रुपए दो शौचालयों पर खर्च नहीं किए गए हैं। यह राशि कई शौचालयों की मरम्मत पर खर्च की गई है। कांग्रेस ने भी आयोग को नसीहत देते हुए कहा कि आम आदमी के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। सनद रहे कि सूचना के अधिकार के तहत हासिल की गई जानकारी के अनुसार योजना आयोग की ओर से दो टॉयलेटों पर 30 लाख रुपए खर्च करने की खबरें सामने आर्इं। इस खबर के मुताबिक योजना आयोग भवन में यह शौचालय कुछ खास वीआईपी लोगों के इस्तेमाल के लिए बनाया गया है, जिसे स्मार्ट कार्ड धारक ही इस्तेमाल कर सकते हैं। इस खबर से आयोग की जगहंसाई होनी शुरू हो गई। आयोग पर यह आरोप लगने लगा कि गरीबों को जीने के लिए 32 रुपए निर्धारित करने वाला यह संस्थान अपने टॉयलेट पर 30 लाख रुपए खर्च करने से नहीं हिचकता है। सभी राजनीतिक दलों ने योजना आयोग को इस मुद्दे पर कटघरे में खड़ा कर दिया। कांग्रेस ने भी इस मुद्दे पर आयोग को नसीहत दी। कांग्रेस प्रवक्ता राशिद अल्वी ने कहा कि इसकी सच्चाई तो मालूम नहीं, लेकिन जनता के पैसे का दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। इसका सोच समझकर इस्तेमाल होना चाहिए। चारों तरफ से घिरा देख योजना आयोग ने तुरंत इस पर अपनी सफाई दी। योजना आयोग के मुताबिक यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि रोजमर्रा के रखरखाव और नवीनीकरण के खर्च को दो शौचालयों के निर्माण खर्च के रूप में दिखाया जा रहा है। आयोग ने कहा है कि मरम्मत या नवीनीकरण किए जा रहे शौचालय सार्वजनिक हैं न कि वरिष्ठ अधिकारियों अथवा सदस्यों के लिए निजी शौचालय। योजना आयोग ने माना कि खर्च दिखाई गई राशि 30 लाख रुपए सही है लेकिन यह केवल दो शौचालयों के निर्माण पर खर्च नहीं की गई है। योजना आयोग ने सफाई देते हुए कहा कि नवीनीकरण हुए शौचालय ब्लॉकों में कई सीट होने के साथ-साथ विकलांगों के लिए अलग से सुविधा है। इन ब्लॉकों में से प्रत्येक को एक साथ लगभग 10 लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। आयोग के अनुसार योजना भवन में हर रोज बड़ी संख्या में लोग आते और काम करते हैं। हर वर्ष डेढ़ हजार से अधिक बैठकें आयोजित की जाती हैं और हजारों लोग इन सार्वजनिक शौचालयों का प्रयोग करते हैं। भवन के इन शौचालयों की खस्ता हालत के बारे में कई वर्षों से आम शिकायत थी। यह शिकायत योजना भवन में आने वाले मंत्रियों और विदेशी आगंतुकों द्वारा ही नहीं की गई थी बल्कि वहां काम करने वाले कर्मचारियों और आने वाले पत्रकारों ने भी की थी। योजना भवन 50 वर्ष से अधिक पुराना है। वहां प्लंबर और सीवरेज व्यवस्था खराब हो गई है जिसके कारण पानी रिसता रहता है और इमारत को भी हानि पहुंचाता है। सीपीडब्ल्यूडी भी यह कह चुका है कि प्रत्येक तल पर कम से कम एक शौचालय ब्लॉक जरूरी है। सीपीडब्ल्यूडी ने इस वर्ष पहले प्रथम, द्वितीय और पंचम तल पर तीन शौचालय ब्लॉकों का काम पूरा किया था। बाकी तीन शौचालय ब्लॉकों का काम इस वर्ष बाद में पूरा होने की आशा है। शौचालयों की मरम्मत के दौरान यह देखा गया कि प्लंबर और सीवरेज का पुराना काम खराब हो चुका है और उसे पूरी तरह नया बनाने की आवश्यकता महसूस की गई। साथ ही, उसमें नियामक आवश्यकताओं के अनुसार अग्निशमन व्यवस्था भी की जानी थी। इसी के तहत शौचालय का नवीनीकरण किया गया। आयोग का कहना है कि सूचना के अधिकार के तहत सीमित जानकारी के आधार पर इस खबर को गलत ढंग से प्रसारित किया गया है।
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क्रय-विक्रय के तीन कर्मचारियों ने किया लाखों का घपला
सहकारिता विभाग ने भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो को भेजा मामला जयपुर। चौमूं क्रय-विक्रय सहकारी समिति के 3 कर्मचारियों के खिलाफ गंभीर वित्तीय अनियमितताओं के मामले सामने आने पर भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में प्रकरण दर्ज कराया जा रहा है। सहकारिता विभाग ने इस संबंध में निर्णय ले लिया है। तीनों कर्मचारियों पर लाखों रुपए की गड़बड़ी के आरोप हैं। सहकारिता विभाग के प्रमुख शासन सचिव विपिन चन्द्र शर्मा ने बताया कि चौमूं क्रय-विक्रय सहकारी समिति की सहकारिता अधिनियम की धारा 55 के तहत कराई गई जांच में दो कर्मचारियों दामोदर प्रसाद शर्मा और अर्जुनलाल जाट को वित्तीय अनियमितताओं के लिए प्रथम दृष्टया दोषी पाया गया है। चौमंू क्रय-विक्रय सहकारी समिति के संतुलन चित्र वर्ष 31 मार्च 2009 में विविध देनदारियों (अमानत सहित) तथा समिति के खातों में अमानतदारों को देय राशि में करीब 32 लाख 97 हजार रुपए का अंतर है, जिससे समिति में अमानत राशि में गंभीर वित्तीय अनियमितताएं सामने आई हैं। समिति का कुछ रिकार्ड भी गायब है, जिसकी बरामदगी किया जाना है। शर्मा ने बताया कि इसी तरह से समिति के मुख्य व्यवस्थापक की ओर से करवाई गई आतंरिक जांच रिपोर्ट में भी एक कर्मचारी मालीराम यादव द्वारा वर्ष 2008-09 एवं 2009-10 तथा वर्तमान भौतिक सत्यापन रिपोर्ट 21 मई 2012 के अनुसार 17 लाख 2 हजार रुपए का गबन, वित्तीय अनियमितता का प्रकरण प्रकाश में आया है। इस कर्मचारी की ओर से पहले के अन्य वर्षों में भी गबन किए जाने की आशंका है। प्रमुख शासन सचिव विपिन चन्द्र शर्मा ने बताया कि इन तीनों कर्मचारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार निरोधक विभाग में प्रकरण दर्ज करने के लिए पत्र लिखा गया है। उन्होंने कहा कि चौमूं क्रय-विक्रय सहकारी समिति में राज्य सरकार की 6 लाख 19 हजार 500 रुपए की हिस्सा राशि नियोजित है और क्षेत्र के काश्तकारों का भी हित जुड़ा होने से कर्मचारियों खिलाफ प्रकरण दर्ज कर विस्तृत जांच कराए जाने का आग्रह किया गया है।
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बीमा अधिकारी के ठिकानों पर सीबीआई के छापे
जयपुर। सीबीआई ने ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी के अघिकारी बी.एल. दायमा के विभिन्न ठिकानों पर बुधवार को छापे मारे। इनमें सीबीआई ने दायमा के कार्यालय और आवास पर भी छापा मारा। छापे की कार्रवाई जयपुर के मानसरोवर और शांतिनगर में हुई। सीबीआई अधिकारियों का कहना है कि जब्त दस्तावेजों को खंगालने के बाद आरोपियों को गिरफ्तार किया जाएगा। सीबीआई की जयपुर इकाई के प्रवक्ता ने बताया कि दुर्घटना के मामले में बैक डेट में इंश्योरेंस कर फर्जी तरीके से करीब साढ़े चार लाख रुपए का क्लेम उठा लेने की शिकायत सीबीआई को मिली थी। इस पर सीबीआई के उप अधीक्षक संजय शर्मा की अगुवाई में विशेष दल का गठन कर जांच शुरू की गई। जांच में ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी के प्रशासनिक अघिकारी बी.एल. दायमा की भूमिका संदिग्ध पाई गई, जिस पर यह कार्रवाई की गई। मामला अक्टूबर 2007 का है, उस समय एक ट्रैक्टर की टक्कर से एक युवक की मौत हो गई थी। बताया जाता है कि दुर्घटना के एक दिन पहले ही ट्रैक्टर के इंश्योरेंस की अवधि समाप्त हो गई थी लेकिन आरोपी ट्रैक्टर मालिक ने ओरियंटल इंश्योरेंस कंपनी के प्रशासनिक अधिकारी बी.एल. दायमा से सांठगांठ कर बैकडेट में इंश्योरेंस करवा लिया था।
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डिंपल यादव की जीत का रास्ता साफ
लखनऊ। कांग्रेस और भाजपा के बाद अब बसपा ने भी उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट के लिए हो रहे उपचुनाव में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी तथा सपा उम्मीदवार डिंपल यादव के विरुद्ध उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला कर लिया है और इस तरह डिंपल की जीत का रास्ता लगभग साफ कर दिया है। बसपा प्रवक्ता ने बुधवार को यहां जारी बयान में कहा कि बसपा ने सपा सरकार के विकास के खोखले दावे का पर्दाफाश करने के लिए कन्नौज लोकसभा उपचुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है। उन्होंने कन्नौज सीट से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की पत्नी डिंपल यादव को मैदान में उतारने को समाजवादी पार्टी की ‘परिवारवाद’ की परम्परा का प्रमाण बताते हुए कहा है कि सपा अपने परिवार की सम्पन्नता को ही विकास मान कर चलती है। बसपा प्रवक्ता ने कहा कि उसने कन्नौज उपचुनाव में अपना उम्मीदवार खड़ा नहीं करने का फैसला इसलिए किया, ताकि वहां के लोग भी नेहरू गांधी परिवार के परम्परागत क्षेत्रों ‘अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर’ के लोगों की ही तरह समाजवादी पार्टी के नेताओं की हकीकत समझ लें, जिनके लिए विकास का मतलब सिर्फ परिवार की सम्पन्नता है। उल्लेखनीय है कि कांग्रेस पार्टी वर्ष 2009 की ही तरह इस उपचुनाव में भी कन्नौज सीट पर उम्मीदवार नहीं उतारने की घोषणा कर चुकी है, जबकि भाजपा ने प्रदेश में चल रहे नगरीय निकाय चुनाव को अपनी प्राथमिकता बताते हुए कन्नौज चुनाव से विरत रहने का फैसला किया है और इस तरह अब तक चुनाव मैदान में उतरी एक मात्र प्रमुख उम्मीदवार डिंपल यादव की जीत पक्की हो गई है।
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देरी के आधार पर कांग्रेस ने की चौरासी के दंगा मामले को खारिज करने की मांग
न्यूयॉर्क। कांग्रेस पार्टी ने अमेरिका की अदालत में उसके खिलाफ चल रहे वर्ष 1984 के सिख विरोधी दंगों के मुकदमे को देरी के आधार पर खारिज करने की मांग की है। अमेरिका की अदालत में यह मुकदमा दंगों के करीब 25 वर्ष बाद दायर किया गया था। अमेरिकी न्यायाधीश इस अपील पर 27 जून को सुनवाई करेंगे। कांग्रेस पार्टी ने 29 मई को संघीय अदालत में अपील दायर कर मामले को खारिज करने की अपील करते हुए कहा है कि दंगे नवंबर 1984 में हुए थे जबकि पीड़ितों ने मुकदमा मार्च 2011 में दायर किया है। कांग्रेस पार्टी के खिलाफ यह मुकदमा मानवाधिकार समूह ‘सिख फॉर जस्टिस (एसजेएफ)’ ने दायर किया है। एसएफजे ने कहा कि कांग्रेस सदस्य और सांसद मोतीलाल वोरा ने अमेरिकी अदालत में एक अपील दायर कर दंगा पीड़ितों की ओर से दायर याचिका को खारिज करने की अपील की है। कांग्रेस के वकीलों का कहना है कि दंगे के 25 वर्ष गुजरने के कारण मुकदमा करने की जो अवधि थी, वह पहले ही समाप्त हो चुकी है। कांग्रेस की ओर से इस केस को देख रहे लॉ फर्म ‘जोन्स डे’ के वकील जिओफ्री स्टेवार्ट का कहना है कि अभियोक्ता का दावा समय गुजरने के बाद किया गया है, क्योंकि उन्होंने एक ऐसी गतिविधि के बारे में शिकायत की है, जो 25 वर्ष पहले हुई थी और इसकी समय सीमा बहुत पहले ही समाप्त हो चुकी है। वादी का आरोप है कि कांग्रेस ने नवंबर 1984 में हुए सिख-विरोधी दंगों की साजिश की, उन्हें सहायता दी, उन्हें भड़काया और समुदाय पर हमले किए। यह दंगे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों द्वारा उनकी हत्या करने के बाद भड़के थे। न्यायाधीश रॉबर्ट स्वीट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई 27 जून को होगी।
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प्रीमियम अदा करने लिए एक महीने अतिरिक्त समय में 31 दिन हो सकते हैं: आयोग
नई दिल्ली। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीडीआरसी) का कहना है कि बीमा का प्रीमियम अदा करने के लिए एक महीने का अतिरिक्त समय 31 दिन का भी हो सकता है। इसके साथ ही आयोग ने जीवन बीमा निगम (एलआईसी) को आदेश दिया कि उस विधवा को चार लाख रुपए अदा किए जाएं, जिसे पति की मौत के बाद बीमा की रकम देने से मना कर दिया गया था। यह मामला पश्चिम बंगाल के वीरभूमि जिले से ताल्लुक रखने वाली रूपाली से जुड़ा था। एलआईसी ने इस विधवा के बीमा की रकम पर दावे को इस आधार पर खारिज कर दिया कि प्रीमियम नहीं देने के कारण पॉलिसी खत्म हो गई है। यह प्रीमियम उसके पति की मौत से एक महीने पहले तक बकाया था। आयोग ने एलआईसी की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें प्रीमियम की राशि 3,108 रुपए देने के लिए 30 दिन का अतिरिक्त समय दिया गया था। इसी तरह के एक मामले में अपने एक अन्य फैसले का हवाला देते हुए आयोग ने कहा, ‘इस मामले में प्रीमियम अदा करने का समय 31 दिन का था और यह 23 दिसंबर, 2008 को पूरा हो रहा था। ऐसे में स्पष्ट है कि व्यक्ति की मौत के समय और उस तिथि को यह बीमा पॉलिसी वजूद में थी।’ आयोग के सदस्य अनुपम दासगुप्ता की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा, ‘इसके परिणाम स्वरूप यह याचिका खारिज की जाती है। याचिकाकर्ता (एलआईसी) को आदेश दिया जाता है कि छह सप्ताह के भीतर 3,96,892 रुपए का भुगतान और शिकायतकर्ता के खर्च के तौर पर 10 हजार रुपए का अतिरिक्त भुगतान किया जाए।’ जिला उपभोक्ता मंच ने एलआईसी को 3,96,892 रुपए देने का आदेश दिया था। इस फैसले को एलआईसी की ओर से आयोग में चुनौती दी गई थी।
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
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