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Old 05-01-2016, 04:54 PM   #1
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Default ओम प्रकाश वाल्मीकि

ओम प्रकाश वाल्मीकि
Om Prakash Valmiki
(हिंदी में दलित साहित्य के अग्रणी लेखक)







(30 जून1950 – 17 नवंबर 2013)


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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 05-01-2016, 05:07 PM   #2
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Default Re: ओम प्रकाश वाल्मीकि

ओम प्रकाश वाल्मीकि
Om Prakash Valmiki
(हिंदी में दलित साहित्य के अग्रणी लेखक)
साभार: कँवल भारती



हिंदी में दलित साहित्य आंदोलन के प्रतिष्ठापकों में अग्रणी कवि-कथाकारओमप्रकाश वाल्मीकि का जाना दलित साहित्य की बहुत बड़ी क्षति है, जिसकीपूर्ति संभव नहीं है। वह हमारे दलित आंदोलन के शुरुआती दौर के सक्रिय औरजुझारू साथी थे। हम दोनों ने लगभग एक ही समय 1970 के आसपास दलित साहित्यलिखना शुरू किया था। आर. कमल के निर्णायक भीममें हम दोनों ही छपते थे, इसलिए हम एक-दूसरे के नामों से तो परिचित थे, मुलाकात नहीं थी। हमारी पहलीमुलाकात एक नाटकीय घटनाक्रम में 1990 में दिल्ली में हुई थी। वह 6 दिसंबरका दिन था। संसद भवन के सामने दलित साहित्य के कुछ स्टाल लगे थे। स्टालक्या, जमीन पर कपड़ा बिछाकर उसपर किताबें सजाकर लोग बेच रहे थे। उन्हीं मेंएक स्टाल पर एक ही किताब की बहुत सारी प्रतियां रखी हुई थीं। वह किताबथीओमप्रकाश वाल्मीकि की कविताओं का संग्रह सदियों का संताप। किताब उठाकरदेखी, सात रुपए दाम था, मैंने खरीद ली। जो व्यक्ति किताब बेच रहे थे, मैंने उनसे पूछा- क्या वाल्मीकि जी भी आए हैं?’ उसने कहा- मैं हीओमप्रकाश वाल्मीकि हूं


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Last edited by rajnish manga; 05-01-2016 at 05:21 PM.
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Old 05-01-2016, 05:08 PM   #3
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Default Re: ओम प्रकाश वाल्मीकि

मुझे बिलकुल भी आश्चर्य नहीं हुआ, क्योंकि दलितसाहित्य का आंदोलन लेखकों ने खुद ही अपनी किताबें बेचकर चलाया है। मैंनेखुद भी बहुत से शहरों में आंबेडकर-जयंतियों और बामसेफ के कार्यक्रमों मेंजाकर इसी तरह जमीन पर किताबें रखकर बेची हैं। दलित आंदोलन इसी संकल्प औरसंघर्ष से आगे बढ़ा है। प्रसन्न होकर मैंने अपना नाम बताया। बड़े खुश हुए।यों अकस्मात हमारे मिलने का वह पल इतना आत्मीय था कि उसे हम दोनों ने गलेमिलकर व्यक्त किया। उन दिनों अगर निर्णायक भीममें फोटो छपते होते, तोएक-दूसरे को देखते ही पहचान लेते। फिर तो पता ही नहीं, कितनी बार हम मिले, कितने सेमिनारों में हम साथ-साथ रहे और कितनी ही आत्मीय मुलाकातें देहरादूनऔर जबलपुर में हुईं। सबसे यादगार संस्मरण जबलपुर का है, जिसका उल्लेखवाल्मीकि जी ने भी किसी जगह किया है। उस यात्रा में मेरी पत्नी विमला भीसाथ थीं और उनकी पत्नी चंदा भी। हमारी भेंड़ा घाट देखने और नौका विहार कीसारी व्यवस्थाएं उन्होंने बड़ी कुशलता से की थीं। खूब आनंद आया था। चंदा कोपानी से डर लगता है, इसलिए नौका में वह हमारे साथ नहीं थीं। खैर ऐसी बहुतसी यादें हैं, यहां उनका जिक्र संभव भी नहीं है। सबसे अहम काबिलेजिक्र तोउनका रचनाकर्म है, जिसके बगैर हिंदी दलित साहित्य कोई मायने नहीं रखता।
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Old 05-01-2016, 05:13 PM   #4
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Default Re: ओम प्रकाश वाल्मीकि

शुरुआत उनके उसी पहले कविता-संग्रह से करता हूं, जो हमारी पहली मुलाकातका कारण बना। इस संग्रह की पहली कविता है- ठाकुर का कुंआ। इस कविता नेहिंदी साहित्य के भद्रलोक को, जो हिंदुत्व के तहत शीर्षासन कर रहा था, पैरों के बल खड़ा कर दिया था। इस कविता में ठाकुर का कुंआजातिव्यवस्थाका प्रतीक नहीं है, बल्कि सामंतवादी और पूंजीवादी व्यवस्था का प्रतीक है।कुंआ का अर्थ है पानी, जिसके बिना जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। और जीवनके ये सारे संसाधन इसी सामंती और पूंजीवादी व्यवस्था के हाथों में हैं।उत्पादन करने वाली जातियां और मेहनतकश लोग सब-के सब इसी व्यवस्था के गुलामहैं। इसी यथार्थ को ओमप्रकाश वाल्मीकि ने इस कविता में व्यक्त कियाहै—’चूल्हा मिट्टी का/ मिट्टी तालाब की/ तालाब ठाकुर का। भूख रोटी की/ रोटीबाजरे की/ बाजरा खेत का/ खेत ठाकुर का/ बैल ठाकुर का/ हल ठाकुर का/ हल कीमूठ पर हथेली अपनी/ फसल ठाकुर की/ कुंआ ठाकुर का/ पानी ठाकुर का/खेत-खलिहान ठाकुर के/ गली-मुहल्ले ठाकुर के/ फिर अपना क्या? गांव? शहर? देश?’ इस कविता में सबसे विचारोत्तेजक पंक्ति यही है- फिर अपना क्या?’ यहसवाल उस जन का है, जो इस तंत्र में धर्मतंत्र और जातितंत्र के नाम पर सबसेज्यादा शोषित है, और उसकी पीड़ा का कोई अंत नहीं है। यही जन जब मुट्ठीतानकर सड़क पर उतरता है, व्यवस्था को ललकारता है—’किंतु इतना याद रखो/ जिसरोज इंकार कर दिया/ दीया बनने से मेरे जिस्म ने/ अंधेरे में खो जाओगे/हमेशा-हमेशा के लिए। ‘(दीया) तो यह तंत्र उसे कुचलने के लिए नृशंसता की हरहद से गुजर जाता है। लेकिन सदियों का संतापकविता में वाल्मीकि कहते हैंकि दुश्मन के खिलाफ इस चीख को जिंदा रखना है, क्योंकि भयानक त्रासदी के युगका खात्मा होने के इंतजार में हमने हजारों वर्ष बिता दिए, अब औरनहीं—’दोस्तों, इस चीख को जगाकर पूछो/ कि अभी और कितने दिन/ इसी तरह गुमसुमरहकर/ सदियों का संताप सहना है?’
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Default Re: ओम प्रकाश वाल्मीकि

तब तुम क्या करोगे?’ इस संग्रह की सबसे चर्चित कविता है, जिसमे कवि नेदर्द और आक्रोश को व्यक्त करने की अपनी अलग ही प्रश्नात्मक शैली ईजाद कीहै। यह शैली इतनी लोकप्रिय हुई कि इससे प्रभावित होकर कितनी ही दलितकविताएं लिखी गईं। मेरी कविता तब तुम्हारी निष्ठा क्या होती?’ की शैली भीइसी कविता से ली गई है। वाल्मीकि ने इस कविता में उन लोगों की चेतना कोझकझोरा है, जो दलितों के प्रति पूरी तरह संवेदना-विहीन हैं। ऐसे ही लोगोंसे वे सवाल करते हैं—’यदि तुम्हें, मरे जानवर को खींचकर/ ले जाने के लिएकहा जाए/ और, कहा जाय ढोने को/ पूरे परिवार का मैला/ पहनने को दी जाय उतरन/तब तुम क्या करोगे?/ यदि तुम्हें/ रहने को दिया जाय/ फूस का कच्चा घर/वक्त-बे-वक्त फूंककर जिसे/ स्वाहा कर दिया जाय/ बरसात की रातों में/घुटने-घुटने पानी में/ सोने को कहा जाय, / तब तुम क्या करोगे?/’ यह लंबीकविता है, जिसमे दलित जीवन का वह यथार्थ भद्र वर्ग के सामने रखा गया है, जिसे वह देखना तक पसंद नहीं करता। इसलिए अंत में कवि कहता है—’साफ-सुथरारंग तुम्हारा/ झुलसकर सांवला पड़ जाएगा/ खो जाएगा आंखों का सलोनापन/ तब तुमकागज पर/ नहीं लिख पाओगे/ सत्यम, शिवम, सुंदरम/


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Default Re: ओम प्रकाश वाल्मीकि

सदियों का संतापओमप्रकाश वाल्मीकि का पहला कविता संग्रह है, जिसेउन्होंने 1989 में अपने पैसों से छपवाया था। इस संग्रह की सभी कविताएंपीड़ा, विद्रोह और आंदोलन को विचारोत्तेजक शब्द देती हैं, जिनके अर्थ चेतनामें उतरते चले जाते हैं। इसके बाद भी उनके कई कविता संग्रह प्रकाशित हुए, पर उनमें अभिव्यक्ति की जटिलता है, जो मुख्यधारा की आधुनिक कविता सेप्रभावित जान पड़ती है। इसलिए मैं उनके सदियों का संतापकविता संग्रह कोही दलित आंदोलन का घोषणापत्र मानता हूं।

हालांकि ओमप्रकाश वाल्मीकि को सबसे ज्यादा सफलता उनकी आत्मकथा जूठनसेमिली, पर सच यह है कि उनकी अनुभूतियों का सर्वाधिक विस्तार उनकी कहानियोंमें हुआ है। उन्होंने नई कहानी के दौर में दलित कहानी की रचना करके नईकहानी के अलमबरदारों को यह बताया कि नई कहानी में व्यक्ति की अपेक्षा समाजतो अस्तित्व में है, पर दलित समाज उसमें भी मौजूद नहीं है। सलाम, पच्चीसचौका डेढ़ सौ, रिहाई, सपना, बैल की खाल, गो-हत्या, ग्रहण, जिनावर, अम्मा, खानाबदोश, कुचक्र, घुसपैठिये, प्रोमोशन, हत्यारे, मैं ब्राह्मण नहीं हूं औरकूड़ाघर जैसी कहानियों ने यह बताया कि यथार्थ में नई कहानी वह नहीं है, जिसे राजेंद्र यादव और कमलेश्वर लिख रहे थे, बल्कि वह है जिसमें हाशिये कासमाज अपने सवालों के साथ मौजूद है।
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Default Re: ओम प्रकाश वाल्मीकि

वाल्मीकि की जिस एक कहानी पर सबसे ज्यादा विवाद हुआ, वह शवयात्राहै।यह विवाद वाल्मीकि-जाटव विवाद बन गया था। पर यह विवाद जिन्होंने भी खड़ाकिया, उन्होंने वाल्मीकि को ही सही साबित किया।


वाल्मीकि जी पिछले कई महीनों से लीवर के कैंसर से पीडि़त थे। दो महीनेदिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में उनका इलाज चला वहां से थोड़ा ठीक होकरउन्होंने शिमला के एडवांस्ड स्टडीज में जाकर अपना अधूरा प्रोजेक्ट पूराकिया, जहां वे फैलो थे। उस काम को वे सबमिट ही करने वाले थे कि अचानक एकनवंबर को उनकी हालत फिर से खराब हो गई। दिल्ली जाने की स्थिति में वे पैसेऔर शरीर दोनों से असमर्थ थे, तब देहरादून में ही मैक्स अस्पताल में उन्हेंभर्ती कराया गया, जहां जिंदगी और मौत से जूझते हुए 17 नवंबर की सुबह 8 बजकर 30 मिनट पर वे मौत से हार गए।


हिंदी साहित्य के इतिहास में ओमप्रकाश वाल्मीकि दलित कहानी के प्रतिष्ठापकों के रूप में सदैव याद किए जाएंगे।
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ओ.पी.वाल्मीकि, om prakash valmiki


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