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Old 20-11-2012, 04:01 PM   #11
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

कम योग्य व्यक्ति भी बन सकता है पथ प्रदर्शक

एक पंजाबी कहावत है, जिसका सार है- जहां तक दिखाई दे, वहां तक जाओ, वहां पहुंचने पर और आगे का रास्ता दिखायी देगा. ज्यादातर सीनियर अपने अधीनस्थों को दो भागों में बांट कर रखते हैं. एक जो काफ़ी योग्य होते हैं और दूसरा, जो कम योग्य हैं.

अकसर जब काम देने, इंक्रीमेंट या तारीफ़ की बात हो, तो वह ज्यादा योग्य के हिस्से ही आता है. कम योग्य के हिस्से कुछ नहीं आता. ऐसा जब बार-बार होता है, तो वही व्यक्ति कुंठित हो जाता है और अपनी जगह कहीं और तलाशता है. आपने भी देखा होगा कि कोई व्यक्ति जो आपके यहां काम नहीं कर पा रहा है (या उसे काम करने का मौका नहीं मिल पा रहा हो) वही दूसरी जगह बहुत बेहतर काम करके दिखा देता है.

यह अंतर क्यों हो जाता है? यह अंतर है माहौल का, यह अंतर है सोच का. अगर आप सीनियर हैं, तो आपको कम योग्य अधीनस्थों पर भी भरोसा करना चाहिए, ताकि वे हमेशा अपना बेस्ट देने की कोशिश करें. धीरे-धीरे यही कम योग्य व्यक्ति संस्थान के लिए एसेट्स बन जायेंगे. आप भरोसा करके तो देखिए. कम योग्य व्यक्ति पर भरोसा नहीं करेंगे, उसे मौका नहीं देंगे, तो उसके पास जितनी योग्यता है, वह उतना भी काम करने में खुद को असक्षम मानेगा.

एक गांव में एक अंधा रहता था. उसने अपने को साध लिया था. वह गांव की सड़कों पर, पगडंडियों पर, यहां तक कि घरों में भी बिना गिरे-लड़खड़ाए चल सकता था. उस अंधे ने एक लालटेन खरीदी. गांव के कुछ लोग आश्चर्य में पड़ गये और कुछ मजाक बनाने लग गये कि अंधे को लालटेन का क्या काम?

अंधे से जब यह सवाल पूछा गया तो उसने जवाब दिया कि मुझे अपनी कमजोरियां पता है, इसलिए मै बहुत सावधानी से चलता हूं, लेकिन जो आंखवाले हैं, वे अंधेरे में असावधान होकर मुझसे टकरा जाते हैं. यह लालटेन मैंने उनके लिए खरीदी है.

कितनी सही बात है यह. अकसर क्षमतावान व्यक्ति असावधान या आलसी हो जाता है. अधिक योग्य व्यक्ति बहुधा अपनी योग्यता के दंभ में सामान्य तैयारी करना भी उचित नहीं समझता है. यहां तक कि कई बार प्राकृतिक, नैतिक, सामाजिक नियमों का पालन करना भी अपनी शान के खिलाफ़ समझता है और उसे तगड़ा झटका लगता है.

खरगोश कछुए की दौड़ में खरगोश की असावधानी उसकी हार का कारण बनी. यदि आपके पास योग्यता है तो उसका पूरा उपयोग मेहनत, लगन व ईमानदारी से करें. जिंदगी की दौड़ में आप सबसे आगे निकल पड़ेंगे. यदि आपके अधीनस्थों के पास योग्यता नहीं है, तो उन्हें डेमोरलाइज न करें, उन्हें रास्ता दिखाएं और उनकी बातों को भी गंभीरता से लें. कभी वे भी आपको रास्ता दिखा सकते हैं.

- बात पते की
* अगर आपके अधीनस्थों के पास योग्यता नहीं है, तो उन्हें डेमोरलाइज न करें, उन्हें रास्ता दिखाएं.
* अगर किसी में कम योग्यता हो, तो आपका भरोसा ही उसे ज्यादा योग्य बना सकता है.
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Old 22-11-2012, 02:08 PM   #12
arvind
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ऑब्जर्वेशन सही हो, तो सीख सकते हैं बहुत कुछ

एक लड़के ने अपने पिता को कागज पर कुछ लिखते हुए देख कर पूछा, ‘‘क्या आप मेरे लिए कहानी लिख रहे हैं?’’ पिता ने कहा, ‘‘कहानी तो लिख रहा हूं, पर उससे महत्वपूर्ण यह पेंसिल है, जिससे मैं लिख रहा हूं और उम्मीद करता हूं कि तुम भी बड़े होकर पेंसिल कि तरह ही बनोगे.’’लड़के ने कहा, ‘‘इसमें क्या बात है.

यह बाकी पेंसिल जैसी ही तो है.’’पिता बोला -‘‘ये तो तुम्हारे नजरिये पर निर्भर करता है. तुम्हें पेंसिल में कुछ नजर नहीं आ रहा है, पर मुझे इसके पांच खास गुण नजर आ रहे हैं, जिसे अपना लो तो तुम महान बन जाओगे.’’

पहला : तुम महान कामों को अंजाम दे सकते हो, लेकिन पेंसिल की तरह यह न भूलो कि तुम्हारे भी पीछे एक हाथ होता है, जो तुम्हें मार्गदर्शन देता है.

दूसरा : शार्पनर पेंसिल को थोड़ी देर के लिए बहुत तकलीफ़ पहुंचाता है, पर इसके बाद वो नुकीली होकर और भी ज्यादा अच्छा लिखती है. इसलिए तुम्हें भी दुख और तकलीफ़ों को सहना सीखना चाहिए, क्योंकि वो तुम्हें अच्छा व्यक्तित्व प्रदान करती है.

तीसरा : पेंसिल इरेजर द्वारा गलतियों को मिटाने का मौका देती है यानी गलतियां हों, तो उसको सुधारना भी जरूरी है. यह हमें न्याय और सज्जनता के रास्ते पर चलने में मदद करती है.

चौथा : पेंसिल में उसकी लकड़ी से ज्यादा उसके अंदर कि ग्रैफ़ाइट महत्वपूर्ण है, जिसके कारण उसका वजूद है. इसलिए हमेशा ध्यान रखो कि तुम्हारे अंदर क्या भरा है?

पांचवां : पेंसिल हमेशा निशान छोड़ जाती है. तुम भी जीवन में जो कुछ करते हो, वह निशान छोड़ जाती है. इसलिए कोई भी काम चाहे वो कितना भी छोटा क्यों न हो बुद्धिमानी और एकाग्रता से करो. जिंदगी में कई ऐसी छोटी-छोटी चीजें हैं, जिनसे हम सीख सकते हैं. हां, सबसे पहले इसके लिए हमें खुद को तैयार रखना होगा. असल में हममें से ज्यादातर लोग खुद को इतना होशियार समझते हैं कि हमेशा यही सोचते हैं कि हमें सीखने की क्या जरूरत है.

हमें तो इतना कुछ आता है, कि हम दूसरों को सिखा सकते हैं. आप खुद सोच कर देखें कि क्या आपने कभी पेंसिल को इतनी गंभीरता से लिया था, क्या आपने कभी एक छोटी-सी चीज पेंसिल से सीखने के बारे में सोचा था.

आपमें से ज्यादातर का जवाब ‘नहीं’ होगा. सफ़लता के लिए यह बहुत जरूरी है कि किसी काम, व्यक्ति या अन्य वस्तु के प्रति आपका सटीक ऑब्जर्वेशन हो. यही ऑब्जर्वेशन आपको औरों से अलग करेगा और उनसे जो सीख मिलेगी, वह वास्तव में आपको कैरियर में सबसे आगे रखेगी.

बात पते की

- छोटी-छोटी घटनाओं से भी बहुत कुछ सीखने की कोशिश करें.
- खुद को इसके लिए तैयार करें कि आपको सीखने की जरूरत है.
- सफ़लता के लिए यह जरूरी है कि किसी भी वस्तु, घटना या व्यक्ति के
- प्रति आपका सटीक ऑब्जर्वेशन हो.
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Old 22-11-2012, 02:11 PM   #13
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

इतने सज्जन न बनें कि सारा बोझ आप पर आ जाये

अब इसका मतलब यह भी नहीं कि आप एग्रेसिव हो जायें. घर-परिवार की बात हो या कैरियर की, संतुलन हर जगह जरूरी है. रजनीश ने जब नया-नया ऑफ़िस ज्वाइन किया, तो उसके बॉस ने उसपर काम का इतना बोझ दे दिया कि उसे न चाहते हुए भी अपना ऑफ़ कैंसिल करना पड़ता, देर रात तक रुक कर काम करना पड़ता. बाकी सभी कर्मचारी समय पर घर चले जाते थे, लेकिन रजनीश को काम के कारण रुकना ही पड़ता था. घर में भी पत्नी उसे हमेशा ताने देती थी कि एक तुम ही हो ऑफ़िस में काम करनेवाले.

असल में रजनीश को जब कोई काम दिया जाता, तो वह किसी भी काम के लिए ना नहीं कहता. भले ही उसके पास काम की अधिकता हो. वह सोचता कि अगर काम के लिए मना करेगा, तो खराब इंप्रेसन पड़ेगा. बाद में उसके एक कलीग ने उसे समझाया कि ‘‘देखो, बाकी लोग कैसे करते हैं. अगर उनके पास काम होता है, तो वे बॉस को बता देते हैं कि सर, अभी हमारे पास फ़लां काम है, इसलिए मैं इस काम को समय पर वहीं कर पाऊंगा. बॉस भी बात समझ जाते हैं.

चूंकि तुम काम के लिए मना नहीं करते, इसलिए बॉस को लगता है कि तुम्हारे पास ज्यादा काम नहीं है और वह काम तुम्हें मिल जाता है. बाद में जब तुम काम समय पर पूरा नहीं कर पाते हो, तो तुम्हें बॉस की डांट भी सुननी पड़ती है. बेहतर है कि अगर तुम्हारे पास काम है, तो बॉस को पहले ही बता दो कि तुम्हारे पास काम है.’’ रजनीश ने ऐसा ही किया. उसके बाद से आज तक उसे कभी काम के बोझ से दबा हुआ मैंने नहीं देखा.

किसी पेड़ के कोटर में एक सांप रहता था. वह बहुत जहरीला था और सबको काटता था. उसके डर से बच्चे वहां खेलते नहीं थे और बड़े-बूढ़े तक उस राह से नहीं गुजरते थे. एक बार एक बौद्ध संन्यासी उस गांव में आये. लोगों ने उनसे अपना दुखड़ा रोया. संन्यासी ने सांप से मिलने का निश्चय किया.

सांप के बिल के पास जाकर संन्यासी ने उसे आवाज लगायी और उसके दुष्ट आचरण के लिए उसे आगाह किया. संन्यासी की बातों का सांप के दिल पर बहुत प्रभाव पड़ा. उसने काटना और फुंफ़कारना छोड़ दिया. सांप अब पूरी तरह से बदल चुका था. धीरे-धीरे लोगों और बच्चों को जब पता चला कि सांप काटता नहीं है, तो वह उसे छेड़ने और पत्थर मारने लगे. कुछ दिनों बाद संन्यासी पुन: उस सांप से मिलने गये तो उसे घायल अवस्था में देखा. संन्यासी के पूछने पर सांप ने सारा हाल कह सुनाया.

संन्यासी बोले, ‘‘मैंने तुम्हें काटने के लिए मना किया था, फुंफ़कारने के लिए नहीं. इतने सज्जन भी मत बन जाओ कि लोग तुम्हारा दुरुपयोग करने लगें’’ बात सांप की समझ में आ गयी. उसके बाद से जब भी कोई उसके बिल के पास आता, वह फुंफ़कार कर उसे भगा देता. उसने काटा किसी को नहीं, लेकिन लोग फ़िर से उससे डरने लगे थे.

- बात पते की
* सज्जनता जरूरी है, लेकिन इतनी नहीं कि लोग आपका दुरुपयोग करने लगे.
* संतुलन जरूरी है. जितना बेहतर संतुलन रखेंगे, उतने ही सफ़ल होंगे.
* ऑफ़िस में अगर कोई कर्मचारी सीधा-सादा है, तो उस पर काम का बोझ न बढ़ाएं. इससे काम की गुणवत्ता पर तुरंत प्रभाव पड़ता है.
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Old 01-12-2012, 06:11 PM   #14
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

बार-बार देखें अपने सपनों के साकार होने का सपना

सपने तो हमारे बड़े ही होते हैं. कल्पनाएं तो हम अक्सर वास्तविकता के धरातल से ऊपर उठ कर भी करते हैं, लेकिन उन सपनों को, अपनी कल्पनाओं को जिंदा रखना उतना ही जरूरी है, जितना कि सपने देखना.

कोई भी काम करने के पहले या कुछ भी हासिल करने के पहले आप उसे लेकर प्लान जरूर करते होंगे, लेकिन थोड़ी-सी अड़चन आने पर ही आप उस प्लान को रिजेक्ट कर देते हैं. ऐसा करना गलत है. बार-बार देखें अपने सपनों के साकार होने का सपना. यह सपना ही आपको मेहनत करने की ताकत देगा और अंतत: आप हर वह चीज हासिल कर पायेंगे, जिसका आपने सपना देखा है.सैन फ्रांसिस्को के इलाके में एक विशेष पुनर्वास अस्पताल था, जहां ग्यारह साल की एंजेला भर्ती थी.

उसे एक गंभीर बीमारी थी, जिससे उसका नर्वस सिस्टम प्रभावित था और इसकी वजह से वह चल नहीं सकती थी. चिकित्सकों का भी अनुमान था कि वो अब जीवन भर व्हीलचेयर पर ही रहेगी, लेकिन इसके बावजूद उस छोटी लड़की ने हिम्मत नहीं हारी. अस्पताल के पलंग पर लेट कर वह हर व्यक्ति से कहती थी कि वह एक दिन अपने पैरों पर चल कर दिखायेगी.डॉक्टर भी उसके हौसले से बहुत प्रभावित थे. उन्होंने उसे कल्पना की शक्ति के बारे में सिखाया. उन्होंने उसे सुझाव दिया कि वो खुद को चलता हुआ देखे. अगर इससे कुछ और नहीं होगा तो कम से कम उसे शक्ति मिलेगी और वह पलंग पर लेटे- लेटे कोई सकारात्मक काम करेगी. एंजला उनकी बातों को मान कर शारीरिक व्यायाम के साथ उतनी ही मेहनत कल्पना करने में करने लगी कि वह हिल रही थी. एक दिन जब वह पूरी ताकत से यह कल्पना कर रही थी कि उसके पैर हिल रहे हैं, तो उसे ऐसा लगा जैसे चमत्कार हो गया हो. पलंग हिलने लगा! वह खिसक कर कमरे के दूसरे कोने पर पहुंच गया. एंजला चीखी, ‘‘देखो मैंने क्या कर दिया. देखो ! देखो ! मैं यह कर सकती हूं. मैं हिली थी, मैं हिली थी ! ’’उस समय अस्पताल में मौजूद हर आदमी चीख रहा था और बचने के लिए भाग रहा था. समान गिर रहे थे, कांच टूट रहे थे. सैन फ्रांसिस्को में उस वक्त भूकंप आया था.

यह बात एंजला को नहीं बतायी गयी. उसे पूरा भरोसा था कि यह काम उसी ने किया था. इस घटना के कुछ साल बाद ही वह अपने पैरों से चल कर स्कूल भी जाने लगी. उसे इस भरोसे ने अपने पैरों पर खड़ा किया कि जो लड़की सैन फ्रांसिस्को और ऑकलैंड के बीच की पूरी धरती को हिला सकती है, क्या वह एक छोटी बीमारी को नहीं जीत सकती?आप जो भी करना चाहते है, जो भी बनना चाहते हैं, मेहनत के साथ-साथ उसके साकार होने का सपना भी बार-बार देखें. आपकी यही कल्पनाशक्ति एक दिन आपको सफ़लता के शिखर पर पहुंचायेगी.
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Old 01-12-2012, 06:14 PM   #15
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अपने वर्तमान काम से संतुष्ट रहना सीखें

लगभग डेढ़ दशक पुरानी बात है. मैं उस समय दिल्ली में नौकरी कर रहा था. हमारी कंपनी में एक लड़का रजनीश आया. उसकी बहाली जूनियर पोस्ट पर हुई थी. वह अपने काम से खुश नहीं रहता था और हमेशा यही कहता कि काश! अगर मेरा प्रमोशन हो जाता, तो लाइफ़ सेट हो जाती.

उसका प्रमोशन भी हुआ. मैंने पूछा कि खुश हो. उसने कहा, हां. लेकिन कुछ ही दिनों बाद फ़िर से वही पुराना राग. काश! मैं मैनेजर बन जाता.. तीन सालों बाद जब मैनेजर बन गया, तो फ़िर नया राग..काश! मैं जीएम होता.

कहने का मतलब यह कि वह किसी भी स्थिति में खुश नहीं था. हम जो भी काम कर रहे हों, हमें यह समझना चाहिए कि हम विशिष्ट हैं. अपने गुणों और संसाधन को पहचान कर उसका बेस्ट यूज करने की कोशिश करनी चाहिए.

बचपन में एक कहानी पढ़ी थी एक आदमी पत्थर काटने का काम करता था, लेकिन वह खुद से खुश नहीं था. उसने पत्थर काटने का काम बंद कर दिया और नौकरी खोजने के लिए निकल पड़ा. एक दिन वह नौकरी के सिलसिले में एक व्यापारी से मिलने गया. वहां उसने उस व्यापारी का घर देखा. घर देखते ही उसके मन में ख्याल आया की काश! वह भी एक अमीर व्यापारी बन पाता और उसके पास भी इतना ही आलीशान मकान होता.

भगवान ने उसकी सुन ली और उसे एक व्यापारी बना दिया. दिन बीतते गये और एक दिन राजा का मंत्री राज्य के दौरे पर निकला. उसने देखा कि राजा का एक मंत्री दूसरे व्यापारी के घर आ रहा है. डरा हुआ व्यापारी मंत्री के आगे घुटने के बल झुक गया. उसने सोचा की काश! भगवान मुझे भी मंत्री बना देता. भगवान ने एक बार फ़िर से सुन ली और उसे मंत्री बना दिया.

मंत्री बनाने के बाद उसे लगातार राज्य के दौरे करने पड़ते. एक दिन भरी दोपहरी में जब सूरज अपनी पूरी गरमी के साथ चमक रहा था. मंत्री बने आदमी को लगा कि सूरज ही सबसे ज्यादा शक्तिशाली है और उसने सूरज बनाने की इच्छा की. भगवान ने उसे सूरज भी बना दिया. सूरज बनने के बाद उसने महसूस किया कि बादल सूरज की किरणों को रोक देते हैं.

उसे लगा कि बादल बन कर वह ज्यादा खुश होगा और भगवान ने उसे बादल बना दिया. तब उसने सोचा कि हवा सबसे ज्यादा शक्तिशाली है. बादलों को उड़ाकर ले जाती है, लेकिन चट्टान को नहीं हिला सकती. उसने सोचा काश ! मैं चट्टान होता ! जो सबसे ज्यादा मजबूत है. भगवान ने उसे चट्टान बना दिया.

फ़िर एक दिन चट्टान ने देखा, हथौड़ा और छेनी लिए एक पत्थर काटनेवाला चट्टान की तरफ़ चला आ रहा था. अब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ. कोई भी संपूर्ण नहीं होता. अपने गुण और संसाधन पहचान कर उनका बेहतरीन उपयोग ही किसी को संतुष्ट बना सकता है.

* बात पते की
* कोई भी संपूर्ण नहीं होता, यह बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए.
* आप जो भी काम कर रहे हों, आपको उस काम से संतुष्ट होना चाहिए.
* अपने गुण और संसाधन पहचान कर उनका बेहतरीन उपयोग ही किसी को संतुष्ट बना सकता है.
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Old 03-12-2012, 02:30 PM   #16
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

सफ़लता के लिए न घबराएं न हड़बड़ाएं

आजकल के ज्यादातर युवा जिंदगी में हर कुछ बहुत जल्दी पा लेना चाहते हैं और इसके लिए वह अतिरिक्त मेहनत भी करते हैं. वहीं कुछ युवा ऐसे भी हैं, जो पाना तो हर कुछ चाहते हैं और वह भी समय से पहले, लेकिन मेहनत करने के नाम से दूर भागते हैं.

वह बस सफ़लता और उपलब्धियों का इंतजार करते हैं. इस उम्मीद में रहते हैं कि अवसर उनका दरवाजा बार-बार खटखटायेगी, बिना काम किये उपलब्धियों का खाता उनके नाम जुड़ेगा. यह सोच गलत है. सफ़लता के लिए लगातार मेहनत करनी पड़ती है. कभी असफ़ल भी हों, तो निराश न होते हुए आगे बढ़ते रहना होता है, तब तक, जब तक कि मंजिल न मिल जाये.

महज 12 साल का एक लड़का था और उसे उसके पिता ने एक आठ एमएम का कैमरा बतौर उपहार दिया, पर इस बच्चे ने अपनी कल्पनाशक्ति के बदौलत मात्र 16 साल की उम्र में ही 15 लघु फ़िल्में बना डाली थीं. इसी आठ एमएम के कैमरे से मात्र 500 डॉलर की बजटवाली अपनी पहली विज्ञान फ़िल्म बनायी -‘‘फ़ायर लाइट’’. इस महान निर्देशक का नाम है स्टीवन स्पीलबर्ग.

स्पीलबर्ग का जीवन इस बात का संदेश है कि प्रतिभा उम्र की न तो मोहताज होती है और न ही किसी बात का इंतजार करती है. अगर सही दिशा में मेहनत की जाये, तो हर व्यक्ति अपने मकसद में कामयाब हो सकता है. सिर्फ़ सत्रह साल की उम्र में ही स्पीलबर्ग ने स्टूडियो के चक्कर लगाने शुरू कर दिये. उनके सामने बहुत लंबा और संघर्षपूर्ण रास्ता था.

उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें कहां जाना है और इसके लिए किन रास्तों से होकर गुजरना है.इस दौरान वे लगातार वैसी चीजें सीखने में व्यस्त रहे, जो उनके काम को और बारीकी दे सकती थी. जो भी काम मिला उसमें उन्होंने अपना बेस्ट देने की कोशिश की. कई बार असफ़लता का मुंह देखना पड़ा. उनकी इन्हीं खासियतों ने उन्हें एक बेहतर फ़िल्मकार बनाया. लंबे संघर्ष के बाद वह घड़ी भी आयी, जिसका स्पीलबर्ग को इंतजार था.

उनकी फ़िल्म‘जॉ ’ की सफ़लता ने पूरी दुनिया को स्पीलबर्ग की प्रतिभा से परिचित करा दिया. टाइम मैगजीन ने स्पीलबर्ग को शताब्दी के सौ सबसे महत्वपूर्ण व्यक्तियों में शामिल किया.कोई भी काम एक दिन में सफ़ल नहीं होता. दरअसल, यह तो एक पेड़ जैसा होता है. पहले इसके बीज आपको आत्मा में बोने पड़ते हैं, हिम्मत की खाद से इसे पोषित करना पड़ता है और मेहनत के पानी से इसे सींचना पड़ता है, तब जाकर वह सालों बाद फ़ल देने लायक होता है. सफ़लता के लिए इंतजार करना आना चाहिए और वह भी अपने प्रयास में कोई कटौती किये बगैर. सोच कर देखें कि 12 साल के स्पीलबर्ग उस कैमरे का कैसा यूज कर सकते थे और उन्होंने उसका इस्तेमाल किस तरह किया. बात छोटी है,पर है काम की.

बात पते की
-अपने प्रयासों में बगैर कटौती के सफ़लता का इंतजार करना सीखें.
-असफ़लता से निराश न हों, मंजिल की तरफ़ बढ़ते रहें.
-हर वह काम सीखने की कोशिश करें, जो आपके काम को बारीकी दे सकने की क्षमता रखता हो.
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Old 03-12-2012, 02:32 PM   #17
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निराशा के समय भी प्रयास नहीं छोड़ें

कई बार ऐसा होता है कि चीजें हमारे वश में नहीं होतीं. हम चाह कर भी उसे टाल नहीं सकते. ऐसा भी नहीं है कि कुछ नहीं कर सकते, लेकिन समस्या यह है कि जो करना चाहिए, वह करते नहीं और जो नहीं करना चाहिए, वही कर देते हैं.

सीधे शब्दों में कहें, तो विपरीत परिस्थितियों के आने पर ज्यादातर लोग परिस्थितियों को कैसे अपने अनुकूल किया जाये, इस पर सोचने के बजाय परिस्थितियों को खुद पर हावी होने देते हैं और निराश हो कर किस्मत को कोसना शुरू कर देते हैं. नतीजा जो चीजें खराब हो गयी हैं, वह संभलती तो नहीं ही हैं और भी खराब हो जाती हैं. इसलिए परिस्थितियां कितनी भी खराब क्यों न हो, असफ़लता कितनी भी करीब क्यों न दिख रही हो, प्रयास करना कभी न छोड़ें. हो सकता है आपको रास्ता दिख जाये, लेकिन अगर प्रयास ही नहीं करेंगे, तो असफ़लता तो निश्चित है.

सर थॉमस जोस्टन लिप्टन को अपने चाय के धंधे में बहुत जोखिम और हानि उठानी पड़ी थी, लेकिन वे हताश नहीं हुए. एक बार वे बड़े जहाज में समुद्री यात्रा पर निकले थे. रास्ते में जहाज दुर्घटना का शिकार हो गया. जहाज के कैप्टन ने जहाज का भार कम करने के लिए यात्रियों से कहा कि वे अपना भारी सामान समुद्र में फ़ेंक दें. लिप्टन के पास चाय के बड़े भारी बक्से थे, जिन्हें समुद्र में फ़ेंकना जरूरी था. जब दूसरे यात्री अपने सामान को पानी में फ़ेंकने की तैयारी कर रहे थे, तब लिप्टन अपने चाय के बक्सों पर पेंट से लिखने लगे ‘लिप्टन की चाय पियें.’ यह संदेश लिखे सारे बक्से समुद्र में फ़ेंक दिये गये.जहाज सकुशल विपदा से निकल गया. लिप्टन को विश्वास था कि उनकी चाय के बक्से दूर देशों के समुद्र तटों पर जा लगेंगे और उनकी चाय का विज्ञापन हो जायेगा.

लंदन पहुंचने पर लिप्टन ने दुर्घटना का सारा आंखों देखा हाल विस्तार से लिखा और उसे समाचार पत्र में छपवा दिया. रिपोर्ट में यात्रियों की व्याकुलता और भय का सजीव चित्रण किया गया था. लाखों लोगों ने उसे पढ़ा. रिपोर्ट में लेखक के नाम की जगह पर लिखा था लिप्टन की चाय अपनी धुन के पक्के लिप्टन ने एक दुर्घटना का लाभ भी किस भली प्रकार से उठा लिया. लिप्टन की चाय दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गयी और लिप्टन का व्यापार चमक उठा. 1898 में लिप्टन लिमिटेड बना, जिसके चाय की दीवानी आज पूरी दुनिया है.

हवा का रुख तो नहीं बदला जा सकता, लेकिन अपने विवेक के अनुसार अपनी नौका के पाल की दिशा जरूर बदली जा सकती है. असफ़ल होने पर आपको निराशा का सामना करना पड़ सकता है, लेकिन प्रयास छोड़ देने पर आप की असफ़लता सुनिश्चित है. इसलिए जब परिस्थितियां अनुकूल न हों, तो यह समझ लें अब आपको धैर्य के साथ इनोवेशन की जरूरत है.

बात पते की
-असफ़ल होने पर निराश न हों, धैर्य के साथ परिस्थितियों का सामना करें
-असफ़लता कितना भी करीब क्यों न हो, प्रयास में कोई कमी न करें.
-अगर परिस्थितियां अनुकूल न हो, तो इनोवेशन सबसे जरूरी है. इनोवेशन ही परिस्थितियों को आपके पक्ष में कर सकता है.
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Old 03-12-2012, 02:53 PM   #18
rajnish manga
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

अरविन्द जी, आपने इस सूत्र के माध्यम से जीवन में आगे बढ़ाने के लिये और अपनी कमियों पर विजय प्राप्त करने के लिये जितने प्रेक्टिकल टिप्स दिए हैं, वे सभी अपनाए जाने पर संबल बनने की सामर्थ्य रखते हैं. इन सूत्रों की यत्र तत्र खोज करने में तथा उनको समझाने के लिये रोचक प्रकरणों को ढूँढने में आपने जो परिश्रम किया है उसके लिये आपको बधाई और धन्यवाद. आगामी प्रसंगों की प्रतीक्षा रहेगी.
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Old 04-12-2012, 02:40 PM   #19
arvind
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Default Re: सफलता की सीढ़ी।

दुनिया में हर नयी चीज दो बार बनती है

सपने दो तरह के होते हैं. एक सपना जो हमें बंद आंखो में दिखाई देता है और दूसरा जो हम खुली आंखों से देखते हैं. जो सपने हकीकत में या कहें खुली आंखों में बसाये जाते हैं, उनको पूरा कर पाने के लिए योजनाबद्ध तरीके से काम करना बहुत जरूरी है.

कई बार बच्चों से पूछा जाता है कि उनका सपना क्या है, तो वह कुछ भी बोल देते हैं और उनको उसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. उनके सपने और उनकी रुचियों में भी पर्याप्त अंतर होता है, जबकि हकीकत यही है कि वही सपने पूरे होते हैं, जिस सपने में रुचियां भी शामिल हों. सपने कहने भर से पूरे नहीं होते. उसे पूरा करने के लिए हमें कई स्तरों पर योजना बनानी पड़ती है और उसे पूरा करने के लिए जुनून के साथ लगना पड़ता है. यदि आपके पास अपने सपनों पर रंग भरने के लिए समुचित जानकारी है और उस सपने को पूरा करने का जुनून है, तो आपको सपनों को साकार होने से कोई नहीं रोक सकता.

याद रखें सफ़ल होने के लिए सफ़लता का जुनून और प्रतिबद्धता दोनों बहुत जरूरी है. आपने ध्यान दिया होगा कि ज्यादातर लोग कुछ नया करने से घबराते हैं. उन्हें लगता है कि जब सब कुछ ठीक चल रहा है, तो क्यों नया प्रयोग करना. हालांकि कुछ ऐसे भी लोग होते हैं, जो हमेशा नयी चीजों के बारे में सोचते रहते हैं, कल्पनाएं करते हैं, सपने देखते हैं और फ़िर उसे पूरा करने की योजना बनाते हैं. जिंदगी में ऐसे ही लोग सफ़ल होते हैं. इसलिए सपने जरूर देखें.

तारीख 6 मई, 1954. स्थान : इफ्ले रोड ट्रैक, ऑक्सफ़ोर्ड, इंग्लैंड.एक 25 साल का मेडिकल स्टूडेंट लगभग 3000 दर्शकों के बीच कुछ ऐसा करने जा रहा था, जो मानव इतिहास में इससे पहले कभी हुआ ही नहीं था. उसने एक सपना देखा था, उस सपने को पूरा करने की योजना बनायी थी और आज उसे अपने सपने को साकार होते देखना था. मनुष्य के लिए चार मिनट से भी कम समय में एक मील की दूरी तय कर पाना एक असंभव काम था, पर रोजर बैनिस्टर के लिए नहीं, जिसे एक जूनून था इस बाधा को पार करने का.

दौड़ शुरू हुई और लगभग 45 धावकों को रोजर ने पीछे छोड़ते हुए मात्र 3 मिनट 59.4 सेकेंड में उस बाधा को पार कर मानव जाति के मिथ्या भ्रम को तोड़ डाला. कमाल की बात यह कि ठीक उसके 6 हफ्तों बाद ही जॉल लैंडी ने इस रिकॉर्ड को तोड़ डाला. इसके बाद एक साल के अंतराल में ही इस रिकॉर्ड को दर्जनों लोगों ने तोड़ा. आज के दौर में चार मिनट में एक मील तय करना हर धावक एक आदर्श के रूप में स्वीकार करता है. इस दुनिया में हर नयी चीज और नयी रिकॉर्ड दो बार बनती है. पहला आपके दिमाग में और दूसरी बार वास्तविकता में. कल्पना को हकीकत में बदलने के पीछे लगने वाली असली ताकत आपका जुनून है.

-बात पते की-
*हर नयी चीज दो बार बनती है. पहले, आपके दिमाग में और दूसरी बार वास्तविकता में.
*कल्पना को हकीकत में बदलने के पीछे लगनेवाली असली ताकत आपका जुनून है.
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Old 04-12-2012, 02:43 PM   #20
arvind
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समस्या का हल ढूंढ़ें हथियार न डालें

जिंदगी में कई बार ऐसा महसूस होता है कि सारे रास्ते बंद हो गये हैं. लोग खुद को हालात के भरोसे छोड़ देते हैं. तनाव का बोझ प्रयास करने से रोकता है, नतीजा चीजें जो हमारे पक्ष में आ सकती थीं, वह और भी खराब हो जाती हैं.

ध्यान रखें कि लगातार विचार करनेवालों के लिए रास्ता हमेशा खुला रहता है, विकल्प हमेशा उनके सामने रहता है. कोई समस्या इनसान से बड़ा नही होता, बशर्ते की हम उसके आगे हथियार न डालें.

एक गरीब किसान था. उसने साहूकार से कर्ज लिया हुआ था. किसान की फ़सल खराब हो गयी. वायदे के अनुसार साहूकार का उधार चुकाने का समय हो गया था. किसान असमंजस में था की क्या किया जाये.

उसकी एक बेटी थी. वह काफ़ी समझदार थी. उसकी समझदारी से पूरा गांव प्रभावित था. साहूकार ने किसान के सामने शर्त रखी कि या तो वह सारा उधार चुका दे या फ़िर अपनी बेटी की शादी उसके साथ कर दे. लोगों ने इसे अन्यायपूर्ण शर्त बताया. यह देख कर साहूकार ने एक नये तरीके से अपनी बात किसान के सामने रखी. इसके अनुसार वह एक थैले में दो पत्थर रखेगा - एक काला और दूसरा सफ़ेद. अगर काला पत्थर निकला तो साहूकार की शादी लड़की के साथ करानी होगी और किसान का उधार भी माफ़ हो जायेगा. सफ़ेद पत्थर निकला तो लड़की को साहूकार से शादी नहीं करनी होगी और न ही उसके पिता को उधार चुकाना होगा. यदि लड़की ने शर्त मानने से मना किया तो किसान को उधार चुकाना होगा और जेल भी जाना होगा.

किसान और उसकी लड़की ने शर्त मान ली. सब लोग जमा हुए. साहूकार ने थैले में पत्थर डालते वक्त चालाकी दिखायी और दोनों थैले में काले रंग के पत्थर डाल दिये. लड़की ने साहूकार को यह करते हुए देख लिया. अब उसके सामने तीन रास्ते थे. पहला, वह चुपचाप पत्थर निकाल कर उससे विवाह कर ले और अपनी जिंदगी अपने पिता के लिये बलिदान कर दे.

दूसरा, वह पत्थर निकालने से मना कर दे और उसके पिता उधार चुकाए और जेल भी जाये. तीसरा, वह लोगों को बता दे कि साहूकार बेईमानी कर रहा है. ऐसे में भी उधार तो चुकाना ही पड़ेगा.

लड़की ने थोड़ी देर सोचा और पत्थर निकालने का फ़ैसला किया. उसने थैले में हाथ डाल कर पत्थर निकाला और अपनी मुट्ठी में बंद उस पत्थर को उछाल दिया. पत्थर दूर कहीं जाकर दूसरे पत्थरों में मिल गया. लोगों ने पत्थर पहचानने को कहा, तो उसने पत्थर पहचानपाने में असमर्थता जताने के बाद माफ़ी मांगते हुए कहा कि दूसरे थैले के अंदर बचे पत्थर को देख कर अभी भी फ़ैसला लिया जा सकता है. थैले के काले पत्थर को देख कर फ़ैसला किसान और लड़की के हक में सुनाया गया. किसान उस संकट से उबर गया.

- बात पते की
* कभी भी यह न सोचें कि सारे रास्ते बंद हो गये हैं.
* लगातार विचार करनेवालों के लिए रास्ता हमेशा खुला रहता है.
* कोई समस्या इंसान से बड़ा नहीं होता, बशर्ते कि उसके आगे हम हथियार न डालें.
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