17-09-2014, 02:23 PM | #11 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
आपको याद होगी हिंदी फिल्म 3 Idiots , जिसने हमें एक बहुत ही अच्छी सीख दी थी , कि योग्य बनो सफलता तो झक मार के पीछे आएगी। परन्तु हमारे देश में योग्यता से ज़्यादा महत्व अंकों को दिया जाता है , डिग्री को दिया जाता है। |
17-09-2014, 02:29 PM | #12 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
स्कूल में पढ़ने वाले ज़्यादातर बच्चों को पता ही नहीं होता कि जो शिक्षा वो ग्रहण कर रहे हैं , उस शिक्षा से उन्हें जीवन में क्या लाभ होगा। आगे जाकर ये शिक्षा किस तरह उनके लिए उपयोगी होगी।
ज़्यादातर बच्चे सिर्फ पास होने के लिए पढाई कर रहे होते हैं , बिना किसी लक्ष्य के। कुछ बच्चे जो डॉक्टर , ias , इंजीनियर बनने के सपने देखते हैं उन्हें भी पता नहीं होता कि क्या करें, कैसे करें कि उनका वो सपना पूरा हो सके। |
17-09-2014, 02:32 PM | #13 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
समस्या का आधा समाधान तभी हो जाता है जब हमें ये पता चल जाये कि वास्तव में समस्या है क्या ?
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17-09-2014, 02:49 PM | #14 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
मुझे लगता है कि 8th class के बाद हमें हर स्कूल में career counselling की व्यवस्था करनी चाहिए। 8th class तक बच्चे में थोड़ी confusions होती है कि वो किस क्षेत्र में करियर बनाये , लेकिन अपने interests को लेकर वो confuse नहीं होता। उसे पता होता है कि उसको क्या करना सबसे अच्छा लगता है , और क्या करने में उसको satisfaction और आनंद मिलता है।
जैसे कुछ बच्चों का रुझान डांस में होता है , कुछ बच्चों को रंगों से प्यार होता है , तो कुछ बच्चे अंकों के जादूगर होते हैं , तो कुछ बच्चे खेल में आगे होते हैं । अगर उस age में उन्हें सही दिशा मिल जाये कि वो किस रास्ते पर आगे बढ़ें तो निश्चित ही हमें कई हुसैन , आर्यभट्ट , सचिन , और कलाम मिलेंगे। Last edited by Pavitra; 17-09-2014 at 02:52 PM. |
17-09-2014, 03:24 PM | #15 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
अगर ऐसी व्यवस्था हो सके की बच्चे का interest जिस क्षेत्र में हो वो सिर्फ उसी विषय की पढाई करे , तो ज़्यादा अच्छा होगा। यानि एक निश्चित विषय में उसका अच्छे अंक लाना अनिवार्य होगा ( ये वही विषय होगा जिसमे उसका इंटरेस्ट है , ऐसे में अच्छी अंक लाना उसके लिए बड़ी बात नहीं होगी क्यूंकि जिस चीज़ में हमें रूचि होती है , उस चीज़ में हम स्वाभाविक रूप से अच्छा ही प्रदर्शन करते हैं ).... शेष विषय भी पढ़ाये जाएं जिससे कि उसे knowledge मिल सके परन्तु उन विषयों में काम अंक आने पर उसका रिजल्ट ख़राब न माना जाये ऐसी व्यवस्था हो। ऐसा करने से बच्चे पर अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ेगा। बच्चा अपने मन- माफिक विषय में अच्छा प्रदर्शन करेगा। और साथ साथ शेष विषयों के बारे में भी जानकारी रहेगी उसको।
अभी क्या होता है कि बच्चे को सभी विषयों में सामान रूप से अच्छा प्रदर्शन करना होता है। जिससे बच्चे पर बोझ पड़ता है , और बच्चा अच्छे अंक लाने की होड़ में समझने के स्थान पर रटना शुरू कर देता है। |
17-09-2014, 03:37 PM | #16 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
एक और व्यवस्था जो कि हमें schools में करनी चाहिए वो ये कि हमें बच्चों को प्रैक्टिकल नॉलेज देनी चाहिए। private schools में ये व्यवस्था शुरू हो चुकी है। अब कंप्यूटर के माध्यम से बच्चों को सिखाया जाता है। कुछ समय पहले तक जो चीज़ हम किताब में पढ़कर imagination के through समझते थे , आज वही चीज़ बच्चे स्मार्ट क्लासेज में देख सकते हैं। ये प्रशंसनीय प्रयास है।
हमें ये व्यवस्था प्रत्येक स्कूल के लिए अनिवार्य करनी चाहिए। एक और व्यवस्था होनी चाहिए। बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ-साथ , किसी विशिष्ट हुनर में भी एक्सपर्ट बनाना चाहिए। प्रत्येक व्यक्ति में कुछ god gifted कलाएं होती हैं। अगर उन्हें तराशा जाये तो बच्चों के लिए और भी अवसर उपलब्ध हो सकेंगे। और अच्छे अंक न लाने की स्थिति में , या किसी भी कारण से आगे न पढ़ सकने की स्थिति में वो उस हुनर के माध्यम से जीवनयापन कर सकेंगे। |
17-09-2014, 03:56 PM | #17 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
देश की शिक्षा प्रणाली में सबसे पहले ये सुधार करने की ज़रूरत है की विद्यार्थियों को वो शिक्षा दी जाये ,जो व्यावहारिक जीवन में ज़्यादा काम आती हैं. इतिहास के लम्बे लेखों के बजाय गणित और विज्ञानं जैसे विषयों को ज़्यादा महत्व देना चाहिए। ऐसी शिक्षा भी दी जानी चाहिए जिससे बच्चे कोई हुनर सीख सकें ,जैसे -संगीत,अभिनय,कोई भी हस्तकला।
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17-09-2014, 04:47 PM | #18 | |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
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मेरा भी यही मत है की व्यवहारिक जीवन में काम आने वाली शिक्षा ही प्रदान करनी चाहिए। लेकिन यह भी ध्यान में रखना होगा कि हर विद्यार्थी गणित या विज्ञानं में अच्छा नहीं हो सकता , क्यूंकि यह विषय थोड़े कठिन होते हैं। वहीँ दूसरी ओर कुछ विद्यार्थियों की दिलचस्पी इतिहास जैसे विषयों में भी होती है , उन्हें अच्छा लगता है जानना के हमारे इतिहास में क्या हुआ है। और यह भी ध्यान में रखना होगा की हमें हर विषय में दक्ष लोगों की आवश्यकता होती है विकास के लिए। ऐसे में किसी भी विषय को काम नहीं आंका जा सकता। इस स्थिति में सबसे अच्छा यही होगा कि हम ये choice विद्यार्थियों को ही प्रदान करें की वो क्या पढ़ना चाहते हैं ? अगर वो गणित या विज्ञानं पढ़ना चाहें तो वे इन विषयों का चुनाव करें अन्यथा इतिहास जैसे विषयों का। |
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17-09-2014, 05:41 PM | #19 |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
आपकी बात से मै सहमत हु परन्तु एक सत्य ये भी है कि अधिकतर बच्चो के आगे स्कुलो की मोठी फीस भी आगे आ जाती है जिसके कारण उनको अन्य सब्जेक्ट की और जाना पड़ता है जो उनकी रूचि से अलग है
हमे होम लोन तो आसानी से मिल जाता है परन्तु शिक्षा लोन आसानी से नहीं मिलता है स्कुलो की मोठी फीस शिक्षा को कमजोर कर रही है !
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17-09-2014, 10:59 PM | #20 | |
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Re: ऐसा देस हो मेरा
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रफीक जी यही तो वो खामियां हैं जिन्हे हमें दूर करना है , और देश की शिक्षा प्रणाली को सुधारना है। इस सूत्र का मकसद सिर्फ समस्याएं गिनना नहीं है , अपितु मैं चाहती हूँ कि हम सभी मिलकर ऐसी योजनाओं ,ideas के बारे में सोचें जिससे ये देश आगे जा सके। आपने सही कहा कि देश में education loan आसानी से नहीं मिलता , और मोटी फीस होने की वजह से विद्यार्थोयों को न चाहते हुए भी दूसरे विषयों की ओर जाना पड़ता है। अब समस्या हमारे सामने है , हमें ये सोचना होगा अब कि ऐसा क्या किया जाये जिससे ऐसी समस्या खड़ी न हो। इसका एक उपाय तो ये हो सकता है कि ज़्यादा स्कूल , कॉलेज खुलवाये जाएं (परन्तु गुणवत्ता का ख्याल रखा जाये )……अर्थशास्त्र का नियम है कि जब किसी प्रोडक्ट की सप्लाई बढ़ती है तो उसके दाम में कमी आती है। तो अगर ज़्यादा स्कूल, कॉलेज होंगे तो मार्किट में बने रहने की होड़ में कोर्सेज कम फीस पर उपलब्ध होंगे। लेकिन हमें स्कूल व कॉलेज की और courses की गुणवत्ता का ख्याल रखना होगा। और भी उपाय हो सकते हैं मैं चाहूंगी कि हम सब मिलकर और भी उपायों पर विचार करें जिससे देश की प्रगति में सहायक हो सकें। |
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