25-04-2013, 11:51 PM | #31 |
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Re: मोती और माणिक्य
बोली फिर पुत्र को निहार वह नारी यों – “सोमनाथ जाना क्यों न होगा लाल, विभु तो विश्व भर में हैं व्याप्त, किन्तु किसी क्षेत्र का उनके प्रभाव से प्रताप बढ़ जाता है ; जाते हैं उसे ही हम मस्तक झुकाने को i सबमे रमे हैं राम, तदपि अयोध्या में, चित्रकूट, पंचवटी और रामेश्वरम में, उनके चरित्र हमें करते पवित्र हैं i ऐसे शुभ स्थानों का मिला है भर जिनको, वे भी पूजनीय हैं हमारे धन्य सुकृति i कर कहो, शुल्क कहो, भेंट कहो उनको यदि हम दे सकें, तो देंगे नम्र भाव से i शिव के लिए ही सोमनाथ नहीं जाती में, वे तो विराजे मेरे ही शिवाले में i उनके उपासकों के भावों की विभूति को भेंटने मैं जा रही हूँ, मेटने को लालसा ; आते खाजुराहे यथा आर्य, बौद्ध, जैन हैं i तर्क-बुद्धि से ही सब काम किये जाते हैं, किन्तु भगवान में तो श्रद्धाभक्ति ही भली i नास्तिकों के हेतु लोष्ट मात्र जो है, उसमे पाती भगवान को है भावुकों की भावना ; मानिए तो शंकर हैं, कंकर हैं अन्यथा i” ***** Last edited by rajnish manga; 20-06-2013 at 01:11 PM. |
25-04-2013, 11:54 PM | #32 |
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Re: मोती और माणिक्य
भारत भारती का एक अंश:
आर्यमंगलाचरण हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे. ****** Last edited by rajnish manga; 26-04-2013 at 10:51 AM. |
26-04-2013, 12:00 AM | #33 |
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Re: मोती और माणिक्य
नर हो न निराश करो मन को
नर हो न निराश करो मन को कुछ काम करो कुछ काम करो जग में रहके निज नाम करो यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो कुछ तो उपयुक्त करो तन को नर हो न निराश करो मन को । संभलो कि सुयोग न जाए चला कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला समझो जग को न निरा सपना पथ आप प्रशस्त करो अपना अखिलेश्वर है अवलम्बन को नर हो न निराश करो मन को । जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो उठके अमरत्व विधान करो दवरूप रहो भव कानन को नर हो न निराश करो मन को । निज गौरव का नित ज्ञान रहे हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे सब जाय अभी पर मान रहे मरणोत्तर गुंजित गान रहे कुछ हो न तजो निज साधन को नर हो न निराश करो मन को । ** |
26-04-2013, 12:01 AM | #34 |
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Re: मोती और माणिक्य
नहुष का पतन
मत्त-सा नहुष चला बैठ ऋषियान में व्याकुल से देवचले साथ में, विमान में... दिखता है मुझे तो कठिन मार्ग कटना अगर ये बढ़ना है तो कहूँमैं किसे हटना?... कठिन कठोर सत्य तो भी शिरोधार्य है शांत हो महर्षि मुझे, सांपअंगीकार्य है"... फिर भी ऊठूँगा और बढ़के रहुँगा मैं नर हूँ, पुरुष हूँ, चढ़ के रहुँगामैं चाहे जहाँ मेरे उठने के लिये ठौर है किन्तु लिया भार आज मैंने कुछ औरहै उठना मुझे ही नहीं बस एक मात्र रीते हाथ मेरा देवता भी और ऊंचा उठे मेरेसाथ ** |
26-04-2013, 12:03 AM | #35 |
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Re: मोती और माणिक्य
‘पंचवटी’ से - |
26-04-2013, 12:05 AM | #36 |
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Re: मोती और माणिक्य
“साकेत” से – Last edited by rajnish manga; 26-04-2013 at 10:49 AM. |
20-06-2013, 01:12 PM | #37 |
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Re: मोती और माणिक्य
हिंदी के मूर्धन्य साहित्यकार
पं. बाल कृष्ण शर्मा “नवीन” पं. बाल कृष्ण शर्मा “नवीन” का जन्म 8 दिसंबर 1897 को गाँव भयाना, जिला शाजापुर, मध्य प्रदेश में हुआ था. उनके पिता का नाम पं. जमनादास और माता का नाम राधा बाई था. बचपन से ही बालकृष्ण बड़े प्रतिभा-संपन्न थे किन्तु 11 वर्ष की वय तक विद्यालय नहीं जा पाए. उनकी माता उन्हें शाजापुर लेकर आ गईं जहाँ से उन्होंने मिडिल का इम्तिहान पास किया. 1917 में उन्होंने उज्जैन से दसवीं पास की. इस बीच उनकी मुलाक़ात पं. माखनलाल चतुर्वेदी से हुयी जिन्होंने उन्हें पं. गणेश शंकर विद्यार्थी के पास कानपुर भेज दिया. इस प्रकार कानपुर ही उनकी कर्मभूमि बन गई थी. अभी वे कानपुर के क्राइस्ट चर्च कॉलेज में बी.ए. फाइनल वर्ष में ही थे कि उन्होंने अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की. 1921 में महात्मा गाँधी के आह्वान और कांग्रेस के एक प्रस्ताव का अनुपालन करते हुये उन्होंने समान विचारधारा वाले अपने कई साथियों के साथ कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रिय रूप से शामिल हो गये. 1921 से 1944 तक उन्हें छह बार जेल की सजा हुयी. उन्हें अत्यंत खतरनाक कैदियों में शुमार किया जाता था. आज़ादी के बाद नवीन जी ने राजनैतिक और साहित्यिक योगदान जारी रखा. उन्हें संविधान सभा के सदस्य के तौर पर भी मनोनीत किया गया. देश के पहले आम चुनावों में वह कानपुर लोक सभा निर्वाचन-क्षेत्र से चुनाव जीतकर संसद में पहुंचे थे. 1957 से मृत्यु-पर्यंत वे राज्य सभा के सदस्य के रूप में राजनीति से जुड़े रहे. उनकी श्रेष्ठ वक्तृता शक्ति के कारण उन्हें ‘कानपुर का शेर कहा जाता था. वह राजभाषा आयोग और सांस्कृतिक शिष्टमंडल के सदस्य रहे और कई योरोपीय देशों के दौरे पर गए जिनमे इंगलैंड भी शामिल था. पं. गणेश शंकर विद्यार्थी के स्वर्गवास हो जाने पर, नवीन जी ने ही ‘प्रताप’ का सम्पादन कार्य सम्हाला इसे जिसमे उन्होंने पूरी निष्ठा और लगन का परिचय दिया. एक देशभक्त होने के साथ साथ उन्होंने हिंदी काव्य साहित्य में भी अपूर्व योगदान दिया. उनकी प्रमुख काव्य कृतियों में ‘कुमकुम’, ‘रश्मिरेखा’, ‘अपलक’, ‘क्वासी’, ‘विनोबा स्तवन’, ‘उर्मिला’ आदि शामिल हैं. भारतीय ज्ञानपीठ ने उनकी मृत्यु उपरान्त “हम विषपायी जनम के” नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया. उनकी साहित्यिक सेवाओं के लिए उनको राष्ट्रपति द्वारा ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से अलंकृत किया गया. 29 अप्रेल 1960 को भारत माता के इस सपूत का स्वर्गवास हो गया. |
20-06-2013, 01:15 PM | #38 |
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Re: मोती और माणिक्य
‘हम विषपायी जनम के’ संग्रह से एक कविता |
20-06-2013, 01:18 PM | #39 |
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Re: मोती और माणिक्य
अब यह रोना धोना क्या? |
20-06-2013, 01:20 PM | #40 |
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Re: मोती और माणिक्य
विप्लव गायन / बालकृष्ण शर्मा 'नवीन' Last edited by rajnish manga; 20-06-2013 at 01:24 PM. |
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