25-01-2015, 12:29 PM | #1 |
Junior Member
Join Date: Jan 2015
Posts: 2
Rep Power: 0 |
नुमाइश धन की होती है तो तो निर्धन हार जाता ह&a
उसी की आह से लेकिन सिंहासन हार जाता है चढ़ाकर भाव फिर देके समर्थन हार जाता है मिले पैसा तो अब नेता इलेक्शन हार जाता है रहेगी साथ मन्दिर में कभी तो माँ से पूछूँगा तेरे दर्शन से क्यों देवी का दर्शन हार जाता है किसी भी हास्पीटल में नज्जारा देख लो जाकर दवा का पैसा जो न हो तो जीवन हार जाता है जहाँ है बिरहनों का गॉंव वाँ आँखे बरसती हैं वहाँ जाता है तो हर बार सावन हार जाता है अगर हो गुनगुनाते रहना तो फिर जीत जाता है मगर खामोश रहना हो तो कंगन हार जाता है किसी सुरत ज़माना जीतना लिखवा नहीं सकता लिखूंगा मैं तो लिखूंगा मैं कि रावन ह़ार जाता है यहाँ आना कभी तो ताज अपना छोडकर आना कलन्दर का ये डेरा है यहाँ धन हार जाता है नमाज़ें रुक नहीं सकती हैं बम मस्जिद में रखने से कहीं तलवारों के डर से भी कीर्तन हार जाता है चुकानी पडती है हर बार ही इंसाफ की कीमत मुकदमा जितने के बाद भी ‘दीप’ मन हार जाता है अशोक कुमार ‘दीप’ edit note outside link is not allowed. Last edited by rajnish manga; 25-01-2015 at 06:57 PM. |
25-01-2015, 07:44 PM | #2 |
Moderator
Join Date: Aug 2012
Posts: 1,810
Rep Power: 39 |
Re: नुमाइश धन की होती है तो तो निर्धन हार जाता ì
बहुत खुब!
__________________
|
25-01-2015, 07:47 PM | #3 |
Super Moderator
Join Date: Aug 2012
Location: Faridabad, Haryana, India
Posts: 13,293
Rep Power: 242 |
Re: नुमाइश धन की होती है तो तो निर्धन हार जाता ì
इतनी उत्कृष्ट ग़ज़ल फोरम पर प्रस्तुत करने के लिए धन्यवाद, मित्र.
__________________
आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
Bookmarks |
Tags |
poem, poem in hindi |
|
|