15-04-2016, 01:01 AM | #1 |
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जी चाहता है
कुछ लिखूं लिखते जाने को जी चाहता है कुछ कहूँ कहते जाने को जी चाहता है बाँध न पाये अब मुझको सीमा कोई आसमां लांघ जाने को जी चाहता है उड़ती जाऊं हवाओं में दिन रात मैं बिन रुके उड़ते जाने को जी चाहता है ऐसा करने का साहस नहीं था मगर झील में पैठ जाने को जी चाहता है संग ले कर चलूँ अपने खुशियाँ हज़ार इस कदर मुस्कुराने को जी चाहता है फूल खिल जायें जज़्बात के बेपनाह सपने अपने सजाने को जी चाहता है खयालों की गलियों में भटकन लिये खुद को ही भूल जाने को जी चाहता है दिले नादां खुशी तुझको इतनी है क्यों ये समझने न समझाने को जी चाहता है. image Last edited by rajnish manga; 15-04-2016 at 08:39 AM. |
15-04-2016, 08:53 AM | #2 | |
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Re: जी चाहता है
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15-04-2016, 11:44 PM | #3 |
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Re: जी चाहता है
[QUOTE=rajnish manga;558042][SIZE=3]आज आपने एक नए लेकिन आकर्षक अंदाज़ की ग़ज़ल फोरम पर प्रस्तुत की है, बहन पुष्पा जी. इसमें कविमन की उमंग, उल्लास व कल्पनाशीलता का विस्तार नज़र आता है. इसे पढ़ते हुये तो आनंद की अनुभूति होती ही है, इसकी पंक्तियों को 'गुनगुनाने को जी चाहता है'. कविता के साथ image नहीं आई है. कृपया बतायें कि यह क्या image है.
प्रसंशात्मक टिपण्णी के लिए बहुत आभार सह धन्यवाद आदरणीय भाई जी , बस मन मे आ गया लिखते चली गई और अभी अभी "हम तो" शीर्षक पर जो ग़ज़ल डाली भाई वो बिलकुल विपरीत है उदासी से भरी .. क्यूंकि इंसानी जीवन में हरेक तरह के पल आते हैं तो हरेक भावों को लेकर ग़ज़ल या कविता बन ही जाती है बस कोई खासियत नहीं मुझमे जस्ट ये छोटा सा शौक है मेरा लिखने का जिसे आप इतने अछे शब्दों से नवाजते हो हमेशा ही भाई .. thank youuuuuuuu भाई सॉरी आपने तस्वीर के बारे में पूछ था भाई वो खुशियों को दर्शाते हुई तस्वीर थी एक बच्ची की बलूंस के साथ Last edited by soni pushpa; 16-04-2016 at 03:51 PM. |
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