28-08-2016, 12:34 AM | #1 |
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कालाहांडी का काला सच - उर्फ़ कंधे पर लाश
सरकारी अस्पताल में टी बी के रोग से मृत्यु को प्राप्त अपनी पत्नि अमांग को (कई किलोमीटर दूर स्थित) अपने घर ले जाने के लिये उसके पति दाना माझी ने अस्पताल के कर्मचारियों को गुहार लगाईं लेकिन अस्पताल ने उसे एम्बुलेंस मुहैया नहीं करवाई. गाड़ी के पैसे न होने के कारण मज़बूरी में उसे अपनी पत्नि की लाश को अपने कंधे पर उठा कर 10-12 किलोमीटर पैदल ही चल कर ले जाना पड़ा. लोगों को इस बात का पता तब चला जब इस घटना की चर्चा मीडिया में हुयी. आज़ादी के 70 वर्ष बाद भी कमज़ोर तबके के लोगों को किसी प्रकार की राहत उपलब्ध नहीं है. रेडक्रॉस एवम् सरकारी अस्पतालों के यहाँ खड़ी खड़ी एम्बुलेंस गाड़ियाँ जंग खाती रहती हैं, लेकिन जिन वंचित लोगों की सेवा के नाम पर इन्हें खरीदा जाता है, वे इन सेवाओं से वंचित ही रहते है. क्या विभिन्न सरकारी इदारों में दिखाई देने वाली उदासीनता को ही आज़ादी कहते हैं? क्या इसे ही कहते है व्यवस्था? यदि यही व्यवस्था की परिभाषा है तो लानत है ऐसी व्यवस्था पर.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
28-08-2016, 12:36 AM | #2 |
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Re: कालाहांडी का काला सच - उर्फ़ कंधे पर लाश
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 28-08-2016 at 12:44 AM. |
28-08-2016, 10:20 PM | #3 | |
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Re: कालाहांडी का काला सच - उर्फ़ कंधे पर लाश
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29-08-2016, 10:48 PM | #4 |
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Re: कालाहांडी का काला सच - उर्फ़ कंधे पर लाश
बहुत करुण व्यथा से भरी दास्तान और चित्र है भाई , बड़े शर्म की बात है की आज २१ सदी में अब भी भारत का गरीब इंसान खून के आंसू रो रहा है इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या हो सकती है हमारे नेताओं के लिए और अस्पताल के व्यवस्थापकों के लिए की एक लाश का सम्मान नहीं रख पाए वो लोग .एईसी तस्वीरें हमारे देश के नाम पर कलंक है शायद अब इंसानियत ही मर चुकी है इंसानों में से . Last edited by rajnish manga; 09-01-2017 at 05:25 PM. |
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