10-05-2012, 05:08 AM | #41 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
ओलिंपिक की मजेबानी का दावा कितना खर्चीला है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 2016 ओलिंपिक के लिए दावेदारी पेश करने वाले हर पक्ष को करीब 200 से 250 करोड़ रुपए खर्च करने पड़े। इतने पैसे खर्च करने के बावजूद मेजबानी मिलने की कोई गारंटी नहीं होती है। यहां दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले शहरों को कोई मेडल नहीं मिलता। सारी मलाई जीतने वाला शहर झटक लेता है। वर्ष 2000 में ओलिंपिक खेल सिडनी में आयोजित हुए, लेकिन जब इससे सात साल पहले इसके लिए दावेदारी पेश हुई थी, तो बीजिंग होड़ में सबसे आगे था। बावजूद इसके सिडनी ने बाजी पलट दी। 1896 में पहले ओलिंपिक गेम्स की मेजबानी करने वाले एथेंस ने इसके बाद चार बार और दावा पेश किया, लेकिन उसे दोबारा मेजबानी 108 साल बाद 2004 में मिली।
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10-05-2012, 05:09 AM | #42 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
उठते रहे हैं विवाद
अमेरिकी शहर अटलांटा ने जब 1996 ओलिंपिक की मेजबानी हासिल की, तब यह आरोप लगा कि वहां की मशहूर शीतल पेय कम्पनी कोकाकोला ने इस मामले में हस्तक्षेप किया था। हालांकि इस आरोप की कभी पुष्टि नहीं हुई। ओलिंपिक समिति के सदस्यों पर 2002 विंटर गेम्स की मेजबानी के दावेदार साल्ट लेक सिटी की ओर से उपहार लेने के आरोप लगे। साल्ट लेक ने मेजबानी हासिल भी कर ली। बाद में सभी आरोपी सदस्यों को ओलिंपिक समिति से बाहर कर दिया गया।
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10-05-2012, 05:11 AM | #43 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
क्या मिलता है मेजबानी पाने से?
- दुनियाभर की नजरों में आने का मौका। - अर्थव्यवस्था को बल। - पर्यटन को बढ़ावा। - बेहतरीन आधारभूत संरचना का निर्माण। - राष्ट्रीय सम्मान में इजाफा। - ज्यादा पदक की उम्मीद।
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10-05-2012, 05:13 AM | #44 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
नम्बर गेम
03 बार लंदन ने ओलिंपिक की मेजबानी का दावा किया और तीनों बार उसे सफलता मिली। 06 बार स्वीडन ने शीत ओलिंपिक की मेजबानी का दावा किया, लेकिन हाथ अब तक खाली। 05 बार तुर्की और हंगरी ने ग्रीष्म ओलिंपिक का दावा किया, लेकिन मेजबानी नहीं मिली। 36 बार किसी अमेरिकी शहर ने सबसे अधिक ग्रीष्म ओलिंपिक की मेजबानी का दावा किया है।
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10-05-2012, 07:29 AM | #45 | |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
Quote:
काश भारत को भी कभी मेजबानी का मौका मिले! लेकिन डर यह रहेगा की commonwealth गेम जैसे हाल ना हो जाए.
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10-05-2012, 10:26 PM | #46 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
सही कहा आपने, लेकिन यह सब अभी सपना ही रहने वाला है ! आपकी इसी बात को आगे बढाएंगी मेरी आगे की कुछ प्रविष्ठियां !
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10-05-2012, 10:27 PM | #47 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
महाशक्तियों को मापने का पैमाना है ओलिंपिक
भारत इसका अपवाद, विश्व के अग्रणी देशों में शामिल होने के बावजूद फीका रहा है प्रदर्शन बीजिंग ओलिंपिक में जब चीन ने अमेरिका को पीछे छोड़ पदक तालिका में पहला स्थान हासिल किया तो इसे अंतर्राष्ट्रीय जगत में शक्तियों के बदलाव के तौर पर देखा गया। विशेषज्ञ मानते हैं कि आने वाले समय में चीन दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश बन जाएगा और यह पदक तालिका इसी का प्रतिविंब है। अगर हम 1896 में एथेंस में आयोजित पहले ओलिंपिक से लेकर अब तक के इसके सफर पर गौर करें, यह मानना सच के काफी करीब है कि ओलिंपिक का प्रदर्शन दुनिया की महाशक्तियों की झलक प्रदान करता है। हालांकि इस नियम का एक अपवाद भी है। वह है अपना देश भारत। आज की तारीख में अर्थव्यवस्था से लेकर सामरिक ताकत के तौर पर भारत की गिनती विश्व के अग्रणी देशों में होती है, लेकिन इसके बावजूद ओलिंपिक में हमारा प्रदर्शन कहीं नहीं ठहरता है।
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10-05-2012, 10:36 PM | #48 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
तब हिटलर की जर्मनी सबसे आगे
दुनिया को दूसरे विश्व युद्ध की आग में झोंकने वाला हिटलर जर्मनी का महत्वाकांक्षी तानाशाह था। उसने जर्मनी को विश्व का राजा बनाने का सपना देखा। उसके इस सपने में खेल भी शामिल था। तभी तो 1936 में बर्लिन में आयोजित ओलिंपिक खेलों में जर्मनी पदक तालिका में अमेरिका से आगे निकलकर पहले स्थान पर पहुंच गया। उस ओलिंपिक में जर्मनी ने 33 स्वर्ण के साथ कुल 89 पदक जीते। अमेरिका 24 स्वर्ण के साथ 56 पदक लेकर दूसरे स्थान पर रहा। उस समय हंगरी की गिनती भी दुनिया के मजबूत देश के तौर पर होती थी। हंगरी ने 1936 ओलिंपिक में 10 स्वर्ण के साथ 16 पदक जीतकर तीसरा स्थान हासिल किया।
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10-05-2012, 10:42 PM | #49 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
अमेरिका बनाम सोवियत संघ
दूसरे विश्व युद्ध ने अमेरिका के साथ सोवियत संघ के रूप में एक और महाशक्ति को जन्म दिया। दोनों देश दुनिया की सबसे प्रभावशाली शक्ति बनने में जुट गए और शीत युद्ध का दौर शुरू हो गया। ओलिंपिक खेलों में अगले चार दशक भी इन्हीं महाशक्तियों के बीच प्रतिद्वंद्विता के नाम रहा। हालांकि सोवियत संघ ने 1948 लंदन ओलिंपिक में हिस्सा नहीं लिया, तो अमेरिका ने इसमें आसानी से पहला स्थान हासिल किया। 1952 हेलसिंकी गेम्स में सोवियत टीम शामिल हुई। इसमें अमेरिका ने 40 तो सोवियत संघ ने 22 स्वर्ण जीते। हालांकि कुल पदकों के मामले में दोनो देश (अमेरिका 76, सोवियत संघ 71) एक-दूसरे के काफी करीब रहे। इसके बाद 1956 और 1960 मे सोवियत संघ अंक तालिका में पहले स्थान पर रहा। 1964 टोक्यो ओलिंपिक में अमेरिका ने वापसी करते हुए पहला स्थान फिर हासिल कर लिया। 1968 मैक्सिको ओलिंपिक में भी अमेरिका सबसे आगे रहा। 1972 म्यूनिख ओलिंपिक में सोवियत संघ ने फिर जोरदार वापसी की और 50 स्वर्ण सहित 99 पदक हासिल तक तालिका में शीर्ष स्थान पर कब्जा जमाया। 1976 मोंट्रियल ओलिंपिक में भी सोवियत संघ का ही राज रहा। इसमें अमेरिका को दूसरा स्थान भी नसीब नहीं हुआ। दूसरे स्थान पर सोवियत संघ के प्रभाव वाला पूर्वी जर्मनी रहा। 1980 में ओलिंपिक गेम्स मास्को में आयोजित हुए और सोवियत सेना के अफगानिस्तान में प्रवेश के विरोध स्वरूप अमेरिका और उसके साथी देशों ने इसमें हिस्सा नहीं लिया। इसका बदला सोवियत संघ ने 1984 ओलिंपिक खेलों का बहिष्कार कर लिया। 1988 में सियोल में आयोजित खेलों में एक बार फिर सोवियत संघ पहले और पूर्वी जर्मनी दूसरे स्थान पर रहा। 90 के दशक के शुरुआत में सोवियत संघ का विघटन हो गया। हालांकि इसके बावजूद सोवियत संघ के देशों ने यूनिफाइड टीम के नाम पर 1992 बार्सिलोना ओलिंपिक में भाग लिया और पहला स्थान हासिल किया।
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10-05-2012, 10:45 PM | #50 |
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Re: यादें ओलिम्पिक की
अमेरिकी राज को फिर चीन की चुनौती
सोवियत संघ के विघटन के बाद दुनिया में अमेरिका एकमात्र सुपरपॉवर रह गया और इसकी झलक आने वाले ओलिंपिक खेलों में भी दिखी। 1996 और 2000 ओलिंपिक में अमेरिका आसानी से पहले स्थान पर रहा। 2004 से चीन ने अमेरिका को चुनौती देना शुरू किया। एथेंस में आयोजित उस ओलिंपिक में अमेरिका ने 35 व चीन ने 32 स्वर्ण पदक जीते। बीजिंग में तो बाजी पलट ही गई। चीन ने 51 स्वर्ण जीते, वहीं अमेरिका 36 स्वर्ण ही जीत पाया। हालांकि अमेरिका ने 110 तो चीन ने 100 पदक जीते।
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