25-01-2011, 04:56 PM | #121 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते कुछ पल बसे रहते हैं आँखों में बरसों जीवन के बदलते मौसमों की मार सहकर भी अनजान नहीं होते कुछ यादें बन जाती हैं सहारा ज़िन्दगी का ले जाती हैं अपने साथ एक दूसरी दुनियां में छुपा लेती हैं अपने गर्म आलिंगन में ठहर जाते हैं,कुछ और पल, हम तमाम नहीं होते बिखरे रिश्ते जुड़ भी सकते हैं विमुख रास्ते मुड़ भी सकते हैं आशायें जीवन का पर्याय हैं हमें समझना है हर दिन एक से आसमान नहीं होते. जीवन से रिश्ता जोड़ना है थक कर बैठ, फिर उठना है दूसरे के रास्तों पर तो कोई भी चल सकता है अपने बनाये पथ आसान नहीं होते. विशद
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25-01-2011, 04:58 PM | #122 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
प्यार की परिभाषा
क्या है प्यार,क्या कभी सुनी है इसकी परिभाषा? क्या लेना और देना ही प्यार है? क्या जिस्मों की नजदीकी ही प्यार है? क्या हंसी और ख़ुशी ही प्यार है? क्या रंग और रूप ही प्यार है? क्या यौवन और श्रृंगार ही प्यार है? क्या सावन और झूले ही प्यार है? क्या चंदा और तारे ही प्यार है? कल देखा था एक वृद्ध दंपत्ति को किराने की दुकान से राशन खरीदते, और जगी थी प्यार की परिभाषा बनने की उम्मीद दो नो के बीच की गहरी ख़ामोशी पर ताल मेल ऐसा जैसे दोनों एक ही हों शायद उम्र के साथ प्यार की भी कई सरहदें पर कर चुके थे वो शायद उनकी परिभाषा ही सही हो शायद.......विशद
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26-01-2011, 04:56 PM | #123 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
@sikandar
दूसरे के रास्तों पर तो कोई भी चल सकता है अपने बनाये पथ आसान नहीं होते. सुंदर अति सुंदर । क्या गजब का टेस्ट है और क्या संकलन है । मजा आ जाता है यहाँ आकर ।
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दूसरोँ को ख़ुशी देकर अपने लिये ख़ुशी खरीद लो । |
13-02-2011, 12:04 PM | #124 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
वो कबूतरों की बात करता है
वो कबूतरों की बात करता है उसके कई कबूतरखाने हैं वो अमन की बात करता है उसकी छत पे भी कबूतर उड़ते है वो लगातार अमन की बात कर रहा है और चाहता है कि हर चीज़ अमन कि तरह सफ़ेद हो जाए हमारा खून भी घटना-स्थल पर फैला हुआ सफ़ेद खून पुलिस कि मार से मुँह से निकला सफ़ेद खून उसने खून को दूध भी कह दिया है वो लगातार अमन कि बात कर रहा है हाँ, उसका खून अमन कि तरह सफ़ेद है क्यूँकी वो सफ़ेद कबूतर खता है हमारा खून क्रांति कि तरह लाल क्यूँकी हम लाल गेंहू खाते हैं उसका अमन का सफ़ेद कबूतर अन्दर से लाल निकलता है हमारा क्रांति का लाल गेंहू अन्दर से सफ़ेद वो कबूतरों की बात करता है उसके कई कबूतरखाने हैं
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13-02-2011, 12:09 PM | #125 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
जयती-जयती
के नारो से धर्म पताकाएं लहराई ... भूख-लूट क्या लाती उनको मुद्दो की सड़को पर भला, जो धर्म पे लगी आंच ले आई .... वाह ! महान संस्था वाह ! महान बंधनो की रक्त मे लिपटी कथा .... हे महान शोध की प्रयोगशाला के जनो , हे निचुड़ जाने को तत्पर देवीरूपी स्तनो ..... तेरे देवालय के भीतर , हुआ है जो भी आज तलक वो , घटा है बाहर तो पाबंदी ? खुले आम अब सींग दिखाकर , नाच रहे है नंगे नंदी ... प्रेम था तेरे सदा सनातन , अनंतगामी , धर्म का खंभा , प्रेम मे ठहराव आता है ! अब ठहर गया वो उसके भीतर तो काहे का तुम्हे अचंभा .... सोच रहा हूं मै बस इतना पावन था वो पल भी कितना .. मां ने आंचल मे जब अपने लेकर के दम घोटा होगा ... मालूम हुआ होगा उसको ये , कि परिवारो के बरगद का तना खोखला सड़ा था कितना ... उसके गर्भ मे रखा था जो कुछ सबके दिल से बड़ा था कितना...
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13-02-2011, 12:10 PM | #126 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
हाथ फेर दें और सभी कुछ मिट जाए साधो अपना दिल है रेत का टीला थोडे़ है साधो इस पगडंडी पे निकले है मुड़ कैसे जाएँ हमने कितने सारे रस्ते छोडे़ है साधो पहले अल्हड़ और मिजाजी हाथी जैसे थे अब राजाजी की परेड के घोडे़ है साधो सोच रहे है कैसे वापस चिपका के आएं उसके लिए जो इतने तारे तोडे़ है साधो (nm)
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13-02-2011, 12:17 PM | #127 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
फागुन के पागल महीने में
हम चाह ही रहे थे गाना बसन्ती गीतकी आ गया नए सांस्कृतिक रथ पर सवार वैलेंटाइन डे अकेले नही आया है प्रेम का ये त्यौहार इसके ऑफर पैक में मिले हैं रोज डे ,फ्रेंडशिप डे और जाने क्या क्या ?? अब तो लगता है की जैसे इसके आने से पहले बिना प्रेम के रह लिए हम हजारों साल वसंतोत्सव ? जैसे वैलेंटाइन डे का कोई उपनिवेश पीले वस्त्रों में लिपटा सौंदर्य मानुस प्रेम सरसों के खेत जैसे बीते युग की कोई बात इन्हे तो भुलाना ही था हमें क्यूंकि वसंतोत्सव को सेलिब्रेट नही कर सकते कोक और पिज्जा के साथ ठीक नही लगता ना सुना तुमने वैलेंटाइन डे आ रहा है टीवी चॅनल पढेंगे उसकी शान में कसीदे और कहेंगे देश के लोगों खरीदो मंहगे उपहार क्यूंकि वही होंगे तुम्हारे प्रेम के यकीन भावनाएं तो शुरुआत भर होती हैं ओछी और सारहीन १४ फरवरी को अचानक याद आयेगा प्रेम और हम नोच डालेंगे बगिया के सारे फूल घूमेंगे सडकों, बाजारों, परिसरों में जहाँ भी दिखें प्रेमिकाएँ जो थीं १३ तारिख तक महज लडकियां मुर्दा संगठनों में नयी जान फून्केगा वैलेंटाइन डे निकल पड़ेंगे सडकों पर उनके लोग लाठी डंडों और राखियों से लैस जब उन्हें दिखाई देंगे अपने ही भाई -बहन दूसरों की गाड़ियों पर चिपके हुए तो वे निपोरेंगे खीस और दिल ही दिल में स्वीकारेंगे परिवर्तन की बात सोचता हूँ की अगर ये है प्रेम का प्रतीक तो क्यों लाता है आँगन में बाजार जीना सिखाता है सामानों के साथ डरता हूँ इस अंधी दौड़ में बसंतोत्सव की तरह हम मांग ना लायें होली और दीवाली के भी विकल्प इस कठिन समय में जब प्रेम आत्महंता तेजी से उतर रहा है भावना से शरीर पर आइये करें थोडी सी प्रार्थना ताकि प्रेम बचा रहे हमारे भीतर की गहराइयों में ताकि हमें रखना न पड़े प्रेम के लिए दो मिनट का मौन (nm)
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13-02-2011, 12:26 PM | #128 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
जानलेवा खेल
ये जिन्दगी है लव आज कल नहीं वह कहती है मैं कहना चाहता हूँ की जिन्दगी राजश्री बैनर का सिनेमा भी तो नहीं प्यार चाहे मुख़्तसर सा हो या लम्बा उससे अपरिचित हो पाना बस का नहीं चाहे वो शाहिद करीना हों या मैं और वो तुम शादी कर लो उसने प्रक्टिकल सलाह दी थी उंहू... पहले तुम मैंने कहा था हमारा क्या होगा ये सवाल हमारे प्यार करने की ताकत छीन रहा था हमने अपनी आंखों में आशंकाओं के कांटे उगा लिए थे आकाश में उड़ती चील की तरह कोई हम पर निगाहें गडाए था मेरे लिए अब उसे प्यार करने से ज्यादा जरूरी उस चील के पंख नोच देना हो गया था लेकिन मैं कुछ भी साबित नहीं करना चाहता था न अपने लिए न उसके लिए मुझे अब इंतज़ार था शायद किसी दिन वो वह सब कह देगी मैं शीशे के सामने खड़ा होकर अभिनय करता की कैसे चौकना होगा उस क्षण ताकि उसे ये न लगे की अप्रत्याशित नहीं ये सब मेरे लिए हर रोज जब वो मुझसे मिलती मेरी आँखों में एक उम्मीद होती लेकिन वह चुप रही जैसे की उसे पता चल गया था सारा खेल ये जानलेवा खेल बर्दाश्त के बाहर हो रहा है उम्मीद भी अँधा कर सकती है ये जान लेने के बाद मेरी घबराहट बढ़ गयी है...
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13-02-2011, 12:28 PM | #129 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
मुझे पता था तुम्हारा जवाब
उन दिनों जब मैं तुम्हें टूटकर प्यार करना चाहता था लिखता रहा प्रेम कविताएं ऐसे में चूंकि मुझे पता था तुम्हारा जवाब, मुझे कवितायेँ तुमसे संवाद का बेहतर जरिया लगीं मैं बेहद खुश होता तुम्हारे जवाबों से वह मेरी आजाद दुनिया थी जहां किसी का दखल नहीं था किसी का भी नहीं मेरा दिल एक कमरा था उस कमरे में एक ही खिड़की थी खिड़की के बाहर तुम थीं यूं तो कमरे में हमेशा दो लोगों के लिए पर्याप्त जगह मौजूद थी लेकिन तुमने खिड़की पर खड़े होकर उस पार से बतियाना ही ठीक समझा किसी का होकर भी उसका न हो पाना ये दर्द कोई मुझसे पूछे ठीक अभी अभी इस उदास रात में आसमान में कोई तारा चमका है शायद तुम खिड़की के बाहर खिलखिलाकर हंसी हो (nm)
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13-02-2011, 12:54 PM | #130 |
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Re: !!मेरी प्रिय कविताएँ !!
हम लड़ेंगे साथी,
उदास मौसम के लिए हम लड़ेंगे साथी, गुलाम इच्छाओं के लिए हम चुनेंगे साथी, ज़िंदगी के टुकड़े। हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर हल अब भी चलता है, चीखती धरती पर यह काम हमारा नहीं बनता, प्रश्न नाचता है। प्रश्न के कन्धों पर चढ़कर हम लड़ेंगे साथी। कत्ल हुए जज्बों की कसम खाकर बुझी हुई नज़रों की कसम खाकर हाथ पर पड़े गड्ढों की कसम खाकर। हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगे साथी तब तक खिले हुए सरसों के फूल को जब तक बोने वाले ख़ुद नहीं सूंघते कि सूजी आँखों वाली गाँव की अध्यापिका का पति जब तक युद्ध से लौट नहीं आता जब तक पुलिस के सिपाही अपने भाइयों का गला घोंटने को मजबूर हैं कि दफ्तर के बाबू जब तक लिखते हैं लहू से अक्षर हम लड़ेंगे जब तक दुनिया में लड़ने की जरूरत है। जब तक बंदूक न हुई, तब तलवार होगी जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की जरूरत होगी और हम लड़ेंगे साथी हम लड़ेंगेकि अब तक लड़ क्यों नहीं हम लड़ेंगेअपनी सज़ा कबूलने के लिए लड़ते हुए जो मर गए उनकी याद जिंदा रखने के लिए हम लड़ेंगे साथी। पाश
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