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#6 |
Exclusive Member
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बहुत अच्छे संतोष भाई और पोस्ट करे
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दोस्ती करना तो ऐसे करना जैसे इबादत करना वर्ना बेकार हैँ रिश्तोँ का तिजारत करना |
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#7 |
Special Member
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और भी मजा आता अगर जो भी लिखा होता हिंदी में लिखा होता
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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#9 |
Diligent Member
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बहुत ही प्यारे चित्र ! मज़ा आया !
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( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
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#10 |
Special Member
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अब आपकी फरमाइश हम भला कैसे टाल सकते हैं
ये लीजिये
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
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