05-04-2011, 04:33 PM | #101 |
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Re: " कबीर के दोहे "
कहत कबीरा सुन भाई साधु फुकदिया जैसी फागकी होरीरे ॥
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05-04-2011, 04:39 PM | #108 |
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Re: " कबीर के दोहे "
कर गुजरान गरिबोंमें मगरूरी किसपर करतारे ॥
मट्टी चुन चुन मेहल बनायो लोक कहे घर मेरारे । ना घर तेरा ना घर मेरा चुरिया रहे बसेलरे ॥
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05-04-2011, 04:41 PM | #109 |
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Re: " कबीर के दोहे "
ये दुनियामें कोई नहीं आपना । आपना कहेतारे ।
कची मटीका बना तूं पुतला घडी पलकमें ढलतारे ॥
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05-04-2011, 04:42 PM | #110 |
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Re: " कबीर के दोहे "
ये दुनियामें नाटक चेटक भुला भटकता फिरतारे ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु एक सच्चा एक झूटारे ॥
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