15-09-2017, 03:48 PM | #1 |
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asli baba nakli baba
*सुनिए श्री प्रवीण उपाध्याय जी की ज़ुबानी* हमें असली बाबा नहीं चाहिए... मेरी माँ गलती से असली बाबा के पास चली गई। मेरी बीवी की शिकायत करने लगी। कहा कि बहू ने बेटे को बस में कर रखा है, कुछ खिला-पिला दिया है, इल्म जानती है, उसकी काट चाहिए। असली बाबा ने कहा कि माताजी आप बूढ़ी हो गई हैं। भगवान के भजन कीजिए। बेटा जिंदगी भर आपके पल्लू से बँधा रहा। अब उसे जो चाहिए, वो कुदरतन उसकी बीवी के पास है। आपकी बहू कोई इल्म नहीं जानती। अगर आपको बेटे से वाकई मुहब्बत है, तो जो औरत घर की बहू के रूप में उसे खुश रख रही है, उससे आप भी खुश रहिए। मेरी माँ तभी से उस असली बाबा को कोस रही है क्योंकि उसने हकीकत बयान कर दी। मेरी माँ चाहती थी कि बाबा कहे- "हाँ तुम्हारी बहू टोना टोटका जानती है।" फिर बाबा उसे टोना तोड़ने का उपाय बताते और पैसा लेते। मेरी माँ पैसा लेकर गई थी, मगर बाबा ने पैसा नहीं लिया। कहा कि "तुम्हारी बहू को कुछ बनवा दो इससे।" मेरी माँ और जल-भुन गई। मेरी माँ को नकली बाबा चाहिए, असली नहीं। मेरी बीवी भी असली बाबा के पास चली गई। कहने लगी कि "सास ने ऐसा कुछ कर रखा है कि मेरा पति मुझसे ज्यादा अपनी माँ की सुनता है।" असली बाबा ने कहा कि "बेटी तुम तो कल की आई हुई हो, अगर तुम्हारा पति माँ की इज्जत करता है, माँ की बात मानता है, तो फख्र करो कि तुम श्रेष्ठ पुरुष की बीवी हो। तुम पतिदेव से ज्यादा सेवा अपनी सास की किया करो, तुमसे भी भगवान खुश होगा।" मेरी बीवी भी उस असली बाबा को कोस रही है। वो चाहती थी कि बाबा उसे कोई ताबीज दें, या कोई मन्त्र लिख कर दे दें, जिसे वो मुझे घोलकर पिला दे। मगर असली बाबा ने उसे ही नसीहत दे डाली। उसे भी असली नहीं, नकली बाबा चाहिए। मेरे एक रिश्तेदार बहुत कँजूस हैं। उन्हें कैंसर हुआ और वे भी असली बाबा के पास पहुँच गए। असली बाबा से कैंसर का इलाज पूछने लगे। बाबा ने उसे डाँट कर कहा कि "भाई इलाज कराओ, 'भभूत' से भी कहीं कोई बीमारी अच्छी होती है? हम रूहानी बीमारियों का इलाज करते हैं, 'कँजूसी' भी एक रूहानी बीमारी है। जाओ अस्पताल जाओ, यहाँ मत आना।" उन्हें भी उस असली सन्त से चिढ़ हुई। कहने लगे नकली है साला, कुछ जानता-वानता नहीं। एक और रिश्तेदार चले गए असल सन्त के पास, पूछने लगे कि "धंधे में घाटा जा रहा है, कुछ दुआ कर दो।" सन्त ने कहा "दुआ से क्या होगा धंधे पर ध्यान दो। बाबा, फकीरों के पास बैठने की बजाय दूकान पर बैठो, बाजार का जायजा लो कि क्या चल रहा है।" वे भी आकर खूब चिढ़े। वे चाह रहे थे कि बाबा कोई दुआ पढ़ दें। मगर असली सन्त इस तरह लोगों को झूठे दिलासे नहीं देते। इसीलिए लोगों को असली बाबा, असली संत, ईश्वर के असल बंदे नहीं चाहिए। कबीर को, नानक को, रैदास को इसीलिए तकलीफें उठानी पड़ीं कि ये लोग सच बात कहते थे। किसी का लिहाज नहीं करते थे। नकली फकीरों और नकली साधु संतों की हल-चल संसार में ज्यादा होने का कारण ही यही है , कि लोग झूठ सुनना चाहते हैं, झूठ पर यकीन करना चाहते हैं, झूठे दिलासों में जीना चाहते हैं। सो लाख कह दिया जाए कि फलाँ संत फर्जी है, मगर लोगों को फर्जी संत चाहिए। चाहे जो कह दो लोग फ़र्जी संतों के पास ही जाएँगे। इस कठोर दुनिया में झूठ और झूठे दिलासे ही उनका सहारा हैं, सो जैसी डिमांड वैसी सप्लाय है। ~(योगिअंश रमेश चन्द्र भार्गव) |
15-09-2017, 11:30 PM | #2 | |
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Re: asli baba nakli baba
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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03-10-2017, 04:31 PM | #3 | |
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Re: asli baba nakli baba
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जी हाँ भाई न जाने क्यों पढ़ेलिखे लोग भी ऐसे बाबाओं के चंगुल में फंस जाते हैं। अन्धविश्वास की जड़ों को उखाड़ फेकने के साथ साथ अपने स्वार्थ को परे रखकर पहले इन बाबाओं की बातों समझने के बाद ही कोई फैसला लेना चाहिए न की आँख बंद करके उनपर विश्वास करना चाहिए |
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03-10-2017, 04:32 PM | #4 |
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Re: asli baba nakli baba
बहुत बहुत धन्यवाद भाई इस आलेख पर टिपण्णी देने के लिए
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