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16-10-2017, 11:45 PM | #1 |
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Re: साहित्यकारों के विनोद प्रसंग
शरद जोशी और कन्हैयालाल नंदन
नन्दनजीकी दशा देखते ही बनती थी। वे अपना पेट दबा कर हँसे जा रहे थे। इसी दशा में उठे और शरद भाई को गले लगा लिया। देर तक दोनों इसी दशा में, लिपटे खड़े रहे और लोग तालियाँ बजाते रहे। उनके कौशल और भाषा की शक्ति ने ‘मौका भी है और दस्तूर भी’ मुहावरे को साकार कर दिया। सैंकड़ों स्त्री-पुरुषों केजमावड़े में उन्होंने गाली भी दी और क्षण भर को अशिष्टता नहीं बरती। भाषा तो वही की वही थी। बस! उसे वापरनेवाले की सूझ-समझ, क्षमता और कौशल का ही चमत्कार था कि दोस्ती भी निभ गई और रस्म भी पूरी हो गई। आज जब लोगों को घटिया शब्दावली और अशालीन भाषा प्रयुक्त करते देखता हूँ तो दुखी होते हुए, बरबस ही यह प्रसंग याद आ जाता है। (श्री विष्णु बैरागी के ब्लॉग से साभार)
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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