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Old 23-09-2014, 11:26 AM   #11
Pavitra
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Default Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

हम अक्सर दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो हमें समझे , पर ये नहीं देखते कि हम भी तो उसको समझने का प्रयास नहीं कर रहे , जब हम उसे नहीं समझना चाहते तो उससे क्यों उम्मीद करें कि वो हमें समझे।

इसलिए अगर हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमें समझें तो हमें भी उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए।
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Old 23-09-2014, 05:36 PM   #12
soni pushpa
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Default Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

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Originally Posted by Pavitra View Post
हम अक्सर दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो हमें समझे , पर ये नहीं देखते कि हम भी तो उसको समझने का प्रयास नहीं कर रहे , जब हम उसे नहीं समझना चाहते तो उससे क्यों उम्मीद करें कि वो हमें समझे।

इसलिए अगर हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमें समझें तो हमें भी उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए।
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आपसे सहमत हूँ मैं, जो पाने की अभिलाषा हो वो देना शुरू करें तो अपने आप हमें वो ही चीज़ मिलना शुरू हो जाएगी।

पर इस स्वार्थी दुनिया में आज सभी पाने की ही अभिलाषा रखते हैं इसलिए मैंने लिखा था कि - ऐसा क्या करें जो ये सब हमें मिले।
पवित्रा जी आपने अपने नाम की तरह बहुत पवित्र बात कही है , और इन रिश्तों की वजह से जो हमे मिले , प्रेम शोहरत और संतुष्टि उसको रिश्तों से जोड़ा है आपने. कुछ हद तक सही है की रिश्तों की वजह से येसब मिलता है लोगो को, पर मेरा मानना है की , रिश्ते तो रिश्ते हैं जो निभाने पड़ते है कई बार, और कई बार हम जीते है इन रिश्तों को वो इतने गहरे हो जाते हैं .... और कई बार देखने के लिए हम अलग होते है किन्तु हमेशा जाने अनजाने भी वो रिश्ते हमसे जुड़े रहते हैं जीवन भर ...

आपने सबसे पहले रिश्तोको लेकर कुछ कहने को कहा है ना , तो मै कहूँगी की कई बार खून के रिश्ते , दिल के रिश्तो से छोटे हो जाते हैं क्यूंकि हम देखते हैं, सुनते हैं की समाज में मकान को लेकरऔर धन को लेकर bhai _bhai कोर्ट तक जाते हैं तब खून के रिश्तों का खून हो जाता है ,और कहीं--- एक अनजान परायो के लिए इतना कुछ करते देखे गए हैं जो की अपनो से बढ़कर बन जाते हैं . और दिल में बस जाते है और साथ ही लोग उसके लिए बहुत आदर सम्मान की भावना रखते है और अपनों से ज्यदा उन्हें मानते हैं क्यूंकि, दुःख के समय में एइसे भले इन्सान ने उनका साथ दिया होता है ...इसलिए ही कहीं रिश्ते लोहे की जंजीर जितने मजबूत होते है तो कही मोमबत्ती की तरह पिघल जाते हैं .
दूसरी वजह ये भी है की दिल के रिश्ते हम खुद बनाते हैं जबकि दुसरे रिश्ते हमे वंशानुगत मिलते हैं या फिर किसी के द्वारा हमे दिए जाते हैं ,जेइसे की वर कन्या----- वर कन्या का विवाह पहले के ज़माने में और आज भी कहीं कहीं माँ बाप की मरजी से होता है औरहोता था तब ये रिश्ता निभाया जाता था न की इसे दिल से अपनाया जाता था ये न कहूँगी की हरेक के लिए ये बात लागु होती है पर हर जगह हर दिल नही मिल पाते .
अब करें बात समाज की तो चूँकि हम एक सामाजिक प्राणी हैं इन्सान हैं समाज के बिना तो हमारा वजूद ही नही जन्म से लेकर मृत्यु तक हमें समाज का साथ चहिये होता है एकेले इन्सान खुद को तनहा पाकर जी नही सकता वो कही न कही से कोई तो रिश्ता बना ही लेता है भले वो दुनिया में अकेला ही क्यों न हो कोई दोस्त बना लिए कोई bhai या बहन बना लेते हैं एइसे रिश्तो के बिना जी नही सकते हम और रिश्तो से हम अपने आप बंधे चले जाते हैं ... सबसे बड़ा उदहारण हम सब ही हैं -- हैं की नही? अब हम सबके बिच एक अनोखा सा रिश्ता बन ही गया है न क्यूँ की सब इंतजार करते हैं की हैं कि हमारे ये दोस्त आये क्यों नही... फिर आये और लिखा तो उसके रिप्लाई में लिखना और बहस करना ये सब अब और कुछ नही तो वाचक और लेखक का रिश्ता बन ही गया न ? ये जस्ट मेने एक उदाहरण ही दिया बाकि इससे हम समझ सकते है की भले जो भी हो कच्चे या मजबूत पर बिन रिश्तों के इन्सान नही जी सकता फिर भले उन रिश्तो से हमे कुछ मिले या न मिले ...
अगला शब्द होगा " शोहरत " तब आगे और लिखूंगी पवित्रा जी . अब अगले वाचक की लेखनी का इंतज़ार रहेगा ...
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Old 23-09-2014, 07:55 PM   #13
Rajat Vynar
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Talking Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

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पर जो चीज़ सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है किसी भी रिश्ते में वो होती है - रिश्ता बनाये रखने की इच्छा

अगर रिश्ता बनाये रखने की इच्छा है आपमें तो फिर परिस्थितियां चाहें कितनी भी विपरीत क्यों न हों , रिश्ता कायम रहता ही है। 100 खामियों के बावजूद रिश्ता बना ही रहता है।

और अगर ये इच्छा ख़त्म हो गयी तो चाहे 100 बहाने क्यों न हों साथ रहने के, रिश्ता निभ ही नहीं सकता।
रिश्तों के सम्बन्ध में पहले से एक विद्वान लेखिका ने बहुत अच्छी बात कही है. इसलिए उसका एक अंश यहाँ पर उद्घृत करना ही पर्याप्त होगा-
‘‘हम में से बहुत से लोग अपना पहला सम्बन्ध जो समुचित रूप से हमारे लिए ठीक प्रतीत होता है, उससे बँध जाते हैं और उसे सच्चा प्यार के ढाँचे में दबा-दबा कर बैठाने का प्रयत्न करते हैं. वस्तुतः यह एक गलत बात नहीं है- यह मानना कि रिश्ते का व्यापक उद्देश्य स्वीकार करना और अनुकूल बनाना हैं. लेकिन किसी भी चीज़ को जब आप बहुत अधिक दबाते हैं तो कुछ देर बार वह फट जाती है. विज्ञान का कुछ फण्डा होता है. इसलिए मुझसे मत पूछिए- क्यों?’’
क्या इसके आगे भी इस विषय पर कोई चर्चा आवश्यक है?
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Old 23-09-2014, 07:58 PM   #14
Rajat Vynar
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Talking Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

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आपसे सहमत हूँ मैं, जो पाने की अभिलाषा हो वो देना शुरू करें तो अपने आप हमें वो ही चीज़ मिलना शुरू हो जाएगी।

पर इस स्वार्थी दुनिया में आज सभी पाने की ही अभिलाषा रखते हैं इसलिए मैंने लिखा था कि - ऐसा क्या करें जो ये सब हमें मिले।
लावण्या जी, सबसे पहले आपके नए उपनाम पवित्रा जी के रूप में आपका स्वागत है. ध्वनि-ज्योतिष के अनुसार आपके नए नाम में पे, रे, अव् जैसे कई धनात्मक और सकारात्मक कंपन है. इस टिप्पणी के बारे में मेरा कथन यह है कि यह एक असम्भव नियम है. ‘कुछ पाने’ के बदले उसके समतुल्य ‘कुछ और’ देने का प्रस्ताव भी मान्य होना चाहिए. अतः अपवाद नियमों को भी साथ में लागू किया जाना चाहिए. हमें विस्मृत नहीं करना चाहिए कि देश में पहले से ही धारा 37 लागू है!
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Old 23-09-2014, 08:05 PM   #15
Rajat Vynar
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Talking Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

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हम अक्सर दूसरों से उम्मीद करते हैं कि वो हमें समझे , पर ये नहीं देखते कि हम भी तो उसको समझने का प्रयास नहीं कर रहे , जब हम उसे नहीं समझना चाहते तो उससे क्यों उम्मीद करें कि वो हमें समझे।

इसलिए अगर हम चाहते हैं कि दूसरे लोग हमें समझें तो हमें भी उन्हें समझने का प्रयास करना चाहिए।
मझें या न समझें कोई बात नहीं लेकिन इज्ज़त तो उसी तरह पूर्ववत ‘कायदे से’ करना चाहिए न?
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Old 23-09-2014, 10:33 PM   #16
Pavitra
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Default Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

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Originally Posted by soni pushpa View Post
पवित्रा जी आपने अपने नाम की तरह बहुत पवित्र बात कही है , और इन रिश्तों की वजह से जो हमे मिले , प्रेम शोहरत और संतुष्टि उसको रिश्तों से जोड़ा है आपने. कुछ हद तक सही है की रिश्तों की वजह से येसब मिलता है लोगो को, पर मेरा मानना है की , रिश्ते तो रिश्ते हैं जो निभाने पड़ते है कई बार, और कई बार हम जीते है इन रिश्तों को वो इतने गहरे हो जाते हैं .... और कई बार देखने के लिए हम अलग होते है किन्तु हमेशा जाने अनजाने भी वो रिश्ते हमसे जुड़े रहते हैं जीवन भर ...

आपने सबसे पहले रिश्तोको लेकर कुछ कहने को कहा है ना , तो मै कहूँगी की कई बार खून के रिश्ते , दिल के रिश्तो से छोटे हो जाते हैं क्यूंकि हम देखते हैं, सुनते हैं की समाज में मकान को लेकरऔर धन को लेकर bhai _bhai कोर्ट तक जाते हैं तब खून के रिश्तों का खून हो जाता है ,और कहीं--- एक अनजान परायो के लिए इतना कुछ करते देखे गए हैं जो की अपनो से बढ़कर बन जाते हैं . और दिल में बस जाते है और साथ ही लोग उसके लिए बहुत आदर सम्मान की भावना रखते है और अपनों से ज्यदा उन्हें मानते हैं क्यूंकि, दुःख के समय में एइसे भले इन्सान ने उनका साथ दिया होता है ...इसलिए ही कहीं रिश्ते लोहे की जंजीर जितने मजबूत होते है तो कही मोमबत्ती की तरह पिघल जाते हैं .
दूसरी वजह ये भी है की दिल के रिश्ते हम खुद बनाते हैं जबकि दुसरे रिश्ते हमे वंशानुगत मिलते हैं या फिर किसी के द्वारा हमे दिए जाते हैं ,जेइसे की वर कन्या----- वर कन्या का विवाह पहले के ज़माने में और आज भी कहीं कहीं माँ बाप की मरजी से होता है औरहोता था तब ये रिश्ता निभाया जाता था न की इसे दिल से अपनाया जाता था ये न कहूँगी की हरेक के लिए ये बात लागु होती है पर हर जगह हर दिल नही मिल पाते .
अब करें बात समाज की तो चूँकि हम एक सामाजिक प्राणी हैं इन्सान हैं समाज के बिना तो हमारा वजूद ही नही जन्म से लेकर मृत्यु तक हमें समाज का साथ चहिये होता है एकेले इन्सान खुद को तनहा पाकर जी नही सकता वो कही न कही से कोई तो रिश्ता बना ही लेता है भले वो दुनिया में अकेला ही क्यों न हो कोई दोस्त बना लिए कोई bhai या बहन बना लेते हैं एइसे रिश्तो के बिना जी नही सकते हम और रिश्तो से हम अपने आप बंधे चले जाते हैं ... सबसे बड़ा उदहारण हम सब ही हैं -- हैं की नही? अब हम सबके बिच एक अनोखा सा रिश्ता बन ही गया है न क्यूँ की सब इंतजार करते हैं की हैं कि हमारे ये दोस्त आये क्यों नही... फिर आये और लिखा तो उसके रिप्लाई में लिखना और बहस करना ये सब अब और कुछ नही तो वाचक और लेखक का रिश्ता बन ही गया न ? ये जस्ट मेने एक उदाहरण ही दिया बाकि इससे हम समझ सकते है की भले जो भी हो कच्चे या मजबूत पर बिन रिश्तों के इन्सान नही जी सकता फिर भले उन रिश्तो से हमे कुछ मिले या न मिले ...
अगला शब्द होगा " शोहरत " तब आगे और लिखूंगी पवित्रा जी . अब अगले वाचक की लेखनी का इंतज़ार रहेगा ...

soni pushpa जी , आपने बिलकुल वही बातें लिखी हैं जो मैं सोचती हूँ , और जिनके विषय में मैं आगे के पोस्ट्स में लिखने वाली थी। मैं भी यही मानती हूँ कि रिश्ते खून के ही नहीं होते , अपितु जो कुछ रिश्ते जो हम स्वयं बनाते हैं वो हमारे लिए कभी कभी रक्त-संबंधों से बढ़कर हो जाते हैं।
असल में रिश्तों में जो चीज़ सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होती है , वो है "प्रेम" ……जहां हमें प्रेम मिलता है , हम वहीँ चले जाते हैं , जिससे प्रेम मिलता है उसके ही हो जाते हैं।
बहुत बार हमारे सगे भाई-बहनों से ज़्यादा प्रिय हमें हमारे दोस्त हो जाते हैं।

तो रिश्तों में प्रेम ही सबसे महत्वपूर्ण है। बिना प्रेम के रिश्ते निभाए तो जा सकते हैं परन्तु रिश्तों को जीया नहीं जा सकता।
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Old 23-09-2014, 10:46 PM   #17
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Originally Posted by Rajat Vynar View Post
लावण्या जी, सबसे पहले आपके नए उपनाम पवित्रा जी के रूप में आपका स्वागत है. ध्वनि-ज्योतिष के अनुसार आपके नए नाम में पे, रे, अव् जैसे कई धनात्मक और सकारात्मक कंपन है. इस टिप्पणी के बारे में मेरा कथन यह है कि यह एक असम्भव नियम है. ‘कुछ पाने’ के बदले उसके समतुल्य ‘कुछ और’ देने का प्रस्ताव भी मान्य होना चाहिए. अतः अपवाद नियमों को भी साथ में लागू किया जाना चाहिए. हमें विस्मृत नहीं करना चाहिए कि देश में पहले से ही धारा 37 लागू है!

रजत जी , एक बार फिर से मुझे आपकी बात समझने में परेशानी हो रही है। कुछ पाने के बदले में कुछ और देना ??? धारा 37 ???
मेरा IQ level अभी average के आंकड़े को भी नहीं छू पाया है और आप above average level की बातें लिख रहे हैं। थोड़ा detail में लिखा कीजिये जिससे मेरे छोटे से दिमाग पर ज़्यादा ज़ोर न पड़े। :P
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Old 23-09-2014, 11:08 PM   #18
Pavitra
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Originally Posted by rajat vynar View Post
रिश्तों के सम्बन्ध में पहले से एक विद्वान लेखिका ने बहुत अच्छी बात कही है. इसलिए उसका एक अंश यहाँ पर उद्घृत करना ही पर्याप्त होगा-
‘‘हम में से बहुत से लोग अपना पहला सम्बन्ध जो समुचित रूप से हमारे लिए ठीक प्रतीत होता है, उससे बँध जाते हैं और उसे सच्चा प्यार के ढाँचे में दबा-दबा कर बैठाने का प्रयत्न करते हैं. वस्तुतः यह एक गलत बात नहीं है- यह मानना कि रिश्ते का व्यापक उद्देश्य स्वीकार करना और अनुकूल बनाना हैं. लेकिन किसी भी चीज़ को जब आप बहुत अधिक दबाते हैं तो कुछ देर बार वह फट जाती है. विज्ञान का कुछ फण्डा होता है. इसलिए मुझसे मत पूछिए- क्यों?’’
क्या इसके आगे भी इस विषय पर कोई चर्चा आवश्यक है?
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Originally Posted by rajat vynar View Post
मझें या न समझें कोई बात नहीं लेकिन इज्ज़त तो उसी तरह पूर्ववत ‘कायदे से’ करना चाहिए न?


1- बहुत ही अच्छी बात कही है उन लेखिका ने , हम अक्सर ऐसे लोगों के साथ रिश्ते निभाने का प्रयास करते हैं जो असल में हमारे लिए बने ही नहीं होते। हमें जो भी मिलता है उसे ही भाग्य समझकर अपना लेते हैं , स्वीकार कर लेते हैं , उसके अनुरूप खुद को और अपने अनुरूप उसको बदलने का प्रयास करते हैं , ज़बरदस्ती उस रिश्ते को सच्चा प्यार का टैग भी लगा देते हैं। एक अभिनय सा करने लगते हैं , उसके सामने , दुनिया के सामने और अपने सामने भी कि हम बहुत खुश हैं। पर झूठ की नींव पर टिकी इमारत ज़्यादा समय तक नहीं टिक सकती। तो ज़बरदस्ती झूठी सांत्वना पर चलने वाला रिश्ता कैसे लम्बे समय तक टिक सकता है ? ज़बरदस्ती के रिश्ते एक दिन ताश के पत्तों के महल की भाँती बिखर जाते हैं।


2- इज़्ज़त एक ऐसी चीज़ है जिसे कमाना पड़ता है। इस काबिल बनना पड़ता है कि लोग आपकी इज़्ज़त करें। इज़्ज़त मांगी नहीं जा सकती , ज़बरदस्ती हासिल भी नहीं की जा सकती। इज़्ज़त पाने के लिए तो वास्तव में इज़्ज़त पाने के काबिल बनना पड़ता है।
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Old 23-09-2014, 11:26 PM   #19
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Default Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

ये सूत्र सिर्फ ज़िन्दगी के विषय में बात करने के लिए ही नहीं अपितु ज़िन्दगी से जुडी हमारी समस्याओं और जिज्ञासाओं के निदान के लिए भी शुरू किया गया है।

तो इसलिए मैं ही अपनी एक जिज्ञासा के साथ इसे प्रारम्भ करती हूँ। आशा है कि आप सभी इस सूत्र में हिस्सा लेंगे और अपने विचारों के माध्यम से समस्याओं - जिज्ञासाओं का समाधान करेंगे।
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Old 23-09-2014, 11:26 PM   #20
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Default Re: ज़िन्दगी गुलज़ार है

हम सभी जीवन जी रहे हैं , पर वास्तव में इस जीवन का उद्देश्य क्या है ?
हम क्या प्राप्त करना चाहते हैं ?
जीवन में सबसे आवश्यक क्या है ?
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