14-11-2014, 08:37 PM | #281 |
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Re: इधर-उधर से
इस प्रकार बालक फ्लेमिंग की पढ़ाई विधिवत अच्छे स्कूल में शुरू हुई. उसने लन्दन के सेंट मेरी मेडिकल कॉलेज से चिकित्सा में स्नातक की उपाधि प्राप्त की. आगे चलकर उसने विश्व की पहली एंटी-बायोटिक पेनीसिलीन की खोज की. उसकी इस खोज के लिए उसे नोबल पुरस्कार दिया गया. हम सब उसे सर अलेग्ज़ेंडर फ्लेमिंग के नाम से जानते हैं. सालों बाद उस कुलीन सज्जन के उसी पुत्र को निमोनिया हो गया जिसकी जान पिता फ्लेमिंग ने बचाई थी. उसकी चिकित्सा अलेग्ज़ेंडर फ्लेमिंग की देखरेख में पेनीसिलीन की सहायता से की गई. उस कुलीन सज्जन का नाम था लॉर्ड रैन्डोल्फ चर्चिल और उसके बेटे को दुनिया सर विंस्टन चर्चिल कहकर याद करती है. **
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) Last edited by rajnish manga; 14-11-2014 at 08:42 PM. |
30-11-2014, 08:40 PM | #282 |
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Re: इधर-उधर से
दिल्ली में ट्राम सेवा
सुनने में आया है कि दिल्ली सरकार पुरानी दिल्ली के भीड़ भाड़ वाले इलाकों में ट्राम चलाने की योजना बना रही है. समाचारों के अनुसार यह ट्राम पुरानी दिल्ली के प्रमुख व्यापारिक क्षेत्र सदर बाजार और उसके आसपास के इलाकों में चलाई जायेगी. इसका मुख्य उद्देश्य इस व्यापारिक क्षेत्र में आने वाले खरीदारों तथा व्यापारियों को सदर बाजार रेलवे स्टेशन से सदर तथा निकटवर्ती बाजारों को जोड़ना तथा लोगों को प्रदूषण मुक्त यातायात उपलब्ध कराना है. इस सारे इलाके में कारें इत्यादि का आना जाना न तो संभव है और न ही इन्हें चलाने की अनुमति है. दिल्ली मेट्रो रेल ने इस विषय में एक अध्ययन किया है जिसे विचार के लिए दिल्ली सरकार के पास भेजा गया है. यह परियोजना पास होने के बाद कब तक पूरी होगी इस बारे में अभी कुछ नहीं कहा जा सकता.
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30-11-2014, 08:42 PM | #283 |
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Re: इधर-उधर से
दिल्ली में ट्राम सेवा
आपको यह जान कर हैरानी होगी कि अब से लगभग पचास साल पहले तक पुरानी दिल्ली के इसी इलाके में ट्राम चला करती थी. इस पृष्ठभूमि में मुझे अपने जीवन की एक घटना याद आ गयी. बात सन 1961 या 62 की है. होली के दिन थे जिसका हुड़दंग कई दिन पहले ही शुरू हो जाता था. उन दिनों होली में गुब्बारों का प्रचलन नया नया शुरू हुआ था. मैं और मेरे बड़े भाई दोनों ने गुब्बारे लाने के लिए सदर बाजार जाने का निश्चय किया. हम पटेल नगर में रहते थे. पटेल नगर से हम किसी प्रकार बाड़ा हिंदू राव पहुंचे. वहां से सदर तक के लिए या तो तांगे चलते थे या ट्राम. हमने ट्राम से ही जाने का निश्चय किया. वैसे भी ट्राम से यात्रा करने की हमारी बड़ी इच्छा थी. उस दिन हम ट्राम से ही सदर बाजार गए और गुब्बारे खरीदने के बाद ट्राम से ही वापिस बाड़ा हिंदू राव वापिस आ गए. तो मित्रो, यही मेरी ज़िन्दगी की पहली और आखिरी ट्राम यात्रा थी. उम्मीद करते हैं कि कुछ वर्ष बाद जब सदर बाजार इलाके में ट्राम फिर से चलना शुरू हो जायेगी, हम पुनः उसका लुत्फ़ ले सकते हैं.
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30-11-2014, 08:59 PM | #284 |
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Re: इधर-उधर से
दिल्ली में ट्राम सेवा
^ Tram service in Old Mumbai & Kolkota विकीपीडिया के अनुसार 19 वीं शताब्दी में ट्राम सेवायें भारत के कई नगरों में शुरू की गयीं थीं जिनमे मुंबई (बम्बई), कोलकाता (कलकत्ता), चेन्नै (मद्रास), त्रिशूर, कानपुर, कानपुर और पटना इत्यादि शामिल हैं. बिजली के आने से पहले ट्रामों को घोड़ों द्वारा खींचा जाता था जैसे मुंबई में घोड़ों से चलने वाली ट्राम सेवा 1874 में शुरू की गई थी. इस ट्राम को छः या आठ घोड़े खींचते थे. बिजली से चलने वाली ट्राम मद्रास में सन 1895 में शुरू की गई थी जो 1953 तक चली. कलकत्ता में पहले घोड़ों द्वारा खींची जाने वाली ट्राम 1873 में चलाई गयी जो सवारियों के न होने के कारण उसी साल बैंड कर दी गई. बिजली से चलने वाली ट्राम सन 1900 के आसपास शुरू हुई और यह ट्राम सेवा आज तक जारी है.
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30-11-2014, 09:16 PM | #285 |
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Re: इधर-उधर से
दिल्ली में डबल डेकर बस
जैसा कि इसके नाम से ही ज्ञात होता है ये दो-मंजिला बसें थीं और दिल्ली में शायद 1961 या 1962 में चलाई गयी थीं. मुंबई (उस समय का बम्बई या बाम्बे महानगर) में तो इस प्रकार की बसें पहले से ही चल रही थीं लेकिन दिल्ली में ये बसें पहली बार ही सड़क पर उतारी गयीं थी. मुझे इनके शुरू करने के समय का या वर्ष का इसलिए पता है क्योंकि उन दिनों दिल्ली में दिल्ली नगर निगम के चुनाव होने वाले थे सड़कों पर अलग अलग पार्टियों द्वारा प्रचार के लिए झंडियाँ लगायी गयीं थीं. कुछ झंडिया तो मोहल्लों में और कुछ सड़क के इस ओर से दूसरी ओर तक (आर-पार) लगाई गयी थीं (जो डबल डेकर बसों के गुजरने से टूट जाती थीं).
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30-11-2014, 09:18 PM | #286 |
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Re: इधर-उधर से
दिल्ली में डबल डेकर बस
दिल्ली में डबल डेकर बस चले कुछ ही समय हुआ था. बालसुलभ जिज्ञासा के चलते मेरे मन में भी इस बस में यात्रा करने की इच्छा थी. सो छुट्टी वाले दिन अपने राम घर से इस अभियान को पूरा करने के लिए निकले. शादीपुर डिपो से मैं एक डबल डेकर बस पर सवार हुआ. यह बस शादीपुर से ओखला जाती थी. इन दोनों जगहों के बीच की दूरी लगभग 15 किलोमीटर की थी. इसका किराया 25 पैसे था. टिकट ले कर मैं ऊपर की मंजिल पर चला गया और ड्राईवर के सर के ऊपर वाली सीट पर जा कर बैठ गया. हर उस व्यक्ति के लिए (ख़ास तौर पर बच्चों के लिए) जो पहली बार इस नयी बस में यात्रा कर रहा होता है, बस ड्राईवर के ठीक ऊपर वाली सीट पर बैठना एक सपना पूरा होने के समान था. तो हम भी उसी खास सीट पर बैठ कर खरामा खरामा करते ओखला जा पहुंचे. बस वहां पर 15 मिनट के लगभग खड़ी हुई और उसके बाद अपनी वापसी की यात्रा पर रवाना हो गयी. मैं पुनः उस पर सवार हो गया और वापिस शादीपुर और पटेल नगर के अपने स्टॉप पर आ गया. इस प्रकार 50 पैसे में मैंने तकरीबन 30 किलोमीटर की यात्रा की और डबल डेकर बस पर सैर करने का अपना अरमान पूरा किया.
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30-11-2014, 09:55 PM | #287 |
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Re: इधर-उधर से
दिल्ली में फटफटिया की सवारी
सन 1970 के आसपास तक TSR ऑटो रिक्शा के साथ दिल्ली की सड़कों पर फटफटिया भी खूब चलती थी
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01-12-2014, 01:46 PM | #288 | |
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Re: इधर-उधर से
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जहाज डालडा और फिर पूछा करते थे दस अक्षर का मेरा नाम उल्टा सीधा एक samaan एइसे ... सेबक राम मरा कबसे .. |
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01-12-2014, 06:49 PM | #289 | |
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Re: इधर-उधर से
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वाह वाह पुष्पा सोनी जी, इस पुरानी पोस्ट को जागृत कर के आपने यह सिद्ध कर दिया है कि खेल खेल में शब्दों के मजेदार प्रयोग हर भाषा और संस्कृति की पृष्ठभूमि के बच्चों का प्रिय शुगल रहा है और भविष्य में भी चलता रहेगा. आपके द्वारा इस सूत्र में बहुमूल्य योगदान के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद.
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01-12-2014, 09:36 PM | #290 |
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Re: इधर-उधर से
दिल्ली में फटफटिया की सवारी
यह गाड़ियाँ किस प्रकार वजूद में आयीं यह जानना भी दिलचस्प होगा. हुआ यूँ कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद ‘हार्ली डेविडसन’ की बहुत सी मोटर साइकिलें जो सैनिकों द्वारा इस्तेमाल की गयी थीं, डिस्पोजल के लिए भारत में लाई गयी थीं. युद्ध के बाद इनका बड़ा ज़खीरा इकठ्ठा हो गया था. अधिकतर मोटरसाइकिलें नीलामी द्वारा बेच दी गईं. कुछ लोगों ने दिमाग लगाया कि इनका व्यावसायिक रूप से उपयोग करना चाहिए. सो तीन पहियों वाली मोटर साइकिल का डिज़ाइन बना दिया गया जिस पर अलग अलग साइड में छः सीट बना दी गई व ऊपर छत डाल दी गई. तो इस प्रकार दिल्ली में फटफटिया तैयार हुई और सड़कों पर किराये पर चलाई गई. मैंने स्वयं इस फटफटिया की सवारी की हुई है. उन दिनों यह फटफटिया पुरानी दिल्ली में चांदनी चौक के फ़व्वारा नामक स्थान से चल कर कनाट प्लेस में पालिका बाजार तक आते थे. 1972-73 के आसपास इनके चलाने को प्रतिबंधित कर दिया गया था. **
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