03-08-2014, 11:08 AM | #71 |
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Re: मुहावरों की कहानी
आंधी चलने लगी, जोर-से बादल गरजने लगे। उसे लगा कि तेज बारिश होगी और आंधी उसके तिरपाल को हवा में उड़ा ले जाएगी। यह सोचकर व ह चौक के कोनों पर मजबूत कीलें ठोक कर तिरपाल को बांधने लगा। कुछ ही देर में उसने चारों कोनों में कीलों से तिरपाल बांध दिया। लेकिन उसने देखा कि जो बादल जोर-जोर से गरज-गरज कर सबको डरा रहे थे, उनमें पानी की एक बूंद तक न थी और उस दिन बारिश की एक बूंद तक नहीं टपकी। मौसम का ऐसा मिजाज देखकर कुंभज हैरान होकर मुस्कुरा उठा और अपने काम में लग गया। एक दिन कुंभज के पास उसका दूर का भाई अंबुज आया। कुंभज चौक में अंबुज के साथ बातें करता हुआ बर्तन बना रहा था कि तभी जोर से हवाएं चलने लगीं और मौसम का रुख बदल गया। आसमान में बादलों की गजर्ना गूंज उठी। उनकी गूंज से अंबुज भी कांप उठा और बोला, ‘भइया, ऐसा लगता है कि आपके इलाके में मूसलाधार बारिश होगी। क्या आपने इनसे निपटने के लिए कोई इंतजाम किया है?’ अंबुज की बात सुनकर कुंभज बोला, ‘अरे अंबुज घबराने की कोई बात नहीं है। जो गरजते हैं वो बरसते नहीं। अभी कुछ ही देर में मौसम शांत हो जाएगा। हां, मैंने बारिश से बचने के लिए इंतजाम किए हैं। कुछ देर बाद ही अंबुज ने बादलों को देखा तो पाया कि सचमुच गरजने वाले बादलों में पानी की एक भी बूंद नहीं थी और सब कुछ शांत हो गया था। अंबुज कुंभज से बोला, ‘हां भाई, तुम सही कहते हो कि जो गरजते हैं वह बरसते नहीं।’ तभी से यह कहावत चली कि ‘जो गरजते हैं वह बरसते नहीं’। **
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04-08-2014, 02:28 PM | #72 |
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Re: मुहावरों की कहानी
कहानी के रूप में मुहावरे के अर्थ का प्रयोग करके बहुत अच्छी जानकारी दी !मेरा धन्यवाद स्वीकार करे !
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05-08-2014, 07:23 AM | #73 |
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Re: मुहावरों की कहानी
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
09-08-2014, 11:10 PM | #74 | |
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Re: मुहावरों की कहानी
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09-08-2014, 11:13 PM | #75 |
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Re: मुहावरों की कहानी
बिना विचारे जो करे, वो पाछे पछताए
किसी नगर में एक ब्राह्मण था जो भिक्षा मांग कर ही अपना गुजारा करता था. एक दिन शाम को जब वह घर वापिस लौट रहा था तो क्या देखता है कि राह में एक मादा नेवला मरा पड़ा है और साथ में ही उसका नवजात बच्चा नेवला अपनी बाल सुलभ चेष्टायें कर रहा था. ब्राहमण को नेवले के उस बच्चे पर दया आ गयी. उसने सोचा कि यदि मैं इसे यहाँ छोड़ जाऊँगा तो कोई जानवर इसे मार देगा. इस विचार से प्रेरित हो कर वह उस नेवले के अच्छे को अपने घर ले आया. जब उसकी पत्नी ने ब्राह्मण के मुंह से सारी घटना सुनी तो उसे क्रोध आ गया. उसने ब्राह्मण कहा कि जब तुम अपना और हमारा पेट भी भिक्षा से ही पालते हो तो इसे कहाँ से खिलाओगे? इस पर ब्राह्मण ने कहा कि यह छोटा सा नेवला शिशु कितना खा जाएगा. तुम चिंता मत करो. मैं जो भिक्षा में लाता हूँ उसी में से इसे भी कुछ खिला देंगे तो कुछ अंतर नहीं पड़ेगा. आखिर ब्राह्मण की जिद के सामने उसकी पत्नी की एक न चली. एक बार ब्राह्मण जब भिक्षाटन पर शहर गया हुआ था तो उसकी पत्नी को आवश्यक कार्य से उनके यजमान की पत्नी ने बुला भेजा. महीने पंद्रह दिनों में एक बार वह उसे बुलवा भेजती और लौटते हुये कुछ कपड़ा-लत्ता या अनाज दे दिया करती. उस समय घर में उनका छोटा बच्चा चारपाई पर सोया हुआ था. उसके पास ही जमीन पर नेवले का बच्चा भी लेटा था जो अब पहले से बड़ा हो चुका था और तंदरुस्त व फुर्तीला भी हो गया था. वह किवाड़ भिड़ा कर बुलावे पर चली गयी.
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09-08-2014, 11:21 PM | #76 |
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Re: मुहावरों की कहानी
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जब वह उस चारपाई की तरफ बढ़ी जिस पर वह अपने बच्चे को सोता छोड़ गयी थी, तो उसे फर्श पर खून से लथपथ एक मरा हुआ सांप दिखाई दिया. चारपाई पर उसका बच्चा इस घटनाक्रम से बेखबर किलकारियां मार रहा था. ब्राह्मण की पत्नी को समझते देर नहीं लगी कि नेवले ने सांप से उसके बच्चे की रक्षा करने के निमित्त ही सांप को मार डाला था और इसी कारण उसके मुंह पर खून लगा हुआ था. अब उसे इस बात का बड़ा अफ़सोस हो रहा था कि उसने बिना वास्तविकता जाने ही नेवले को मार दिया था. तभी कहते हैं कि “बिना विचारे जो करे, वो पाछे पछताए”. **
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21-08-2014, 08:13 PM | #77 |
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Re: मुहावरों की कहानी
दो और दो पाँच
एक दिन चिड़ा व चिड़िया उड़े जा रहे थे। दूर-दूर तक फेले खंडर देखकर चिड़े ने पूछा, ‘चिड़िया, ये दूर-दूर तक फैले खंडर कैसे है?’ इस पर चिड़िया ने कहा, ‘चिड़े, मैं तुम्हें इन खंडरों की कहानी सुनाती हूँ, ध्यान पूर्वक सुनो।’ एक बार की बात है कि एक सन्यासी ने होटल वाले को दस रुपये देते हुए कहा, ‘लो, चार रुपये काटकर छ: रुपया मुझे लौटा दो।’ इस पर होटल वाला बहुत हंसा और बोला, ‘स्वामी जी, किस लोक में रहते हो, छ: नहीं पांच रुपया लौटाना है।’ सन्यासी ने पूछा-‘कैसे?’ होटल वाले ने कहा, ‘दो रुपये की दो रोटी, और दो रुपये की एक कटोरी दाल। दो और दो पांच हुए।’ इस पर स्वामी जी ने कहा, ‘दो और दो चार होते हैं।’ होटल वाला दो और दो पांच बतला रहा था, और स्वामी जी दो और दो चार। इसी बहसम-बहसा के बीच वहाँ आस-पास के दुकानदारों व राहगिरों की भीड़ इकट्ठी हो गयी। सन्यासी ने जबपास-पड़ोसियों से पूछा कि दो और दो कितने होते हैं तो किसी ने पांच बताया तो किन्ही ने छ:, सात और इससे भी अधिक। लोगों के इस आचरण को देख सन्यासी विस्मितथा। भीड़ में से किसी ने बोला, ‘सन्यासी जी, लगता है, तीर्थ पर नये-नये आये हो।’ ‘हाँ भैया, बीस वर्ष से बियाबान में तपस्या कर रहा था।’ ‘तभी तो, इस बीच देश में हुई तरक्की से अनभिज्ञ हो।’ और फिर बोला, ‘स्वामी जी, इन बीस वर्षों में देश बहुत तरक्की कर गया है। वह जमाना गया जब दो और दो चार हुआ करतेथे। अब तो दो और दो पांच ही नहीं छ:, सात, आठ.....दस तक भी हो जाते हैं।’ >>>
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21-08-2014, 08:14 PM | #78 |
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Re: मुहावरों की कहानी
सन्यासी ने पांच रुपये देने में ही भलाई समझी। उन्होनें होटल वाले को पांच रुपये दिये और गंगा मैया की ओर बढ़ चले। जो थोड़ी बहुत जमा पूंजी थी वह रास्ते में बैठे भिखारियों में बांट दी। वेंगंगा मैया की धारा में उतरते चले गये। बीच धारा में जाकर बोले, ‘मैया, यह देश बहुत तरक्की कर गया है। मैं अब यहाँ रहने योग्य नहीं हूँ। मुझे अपने आंचल में छुपा लो।’ और जलसमाधि ले ली।
जो भी सन्यासी द्वारा जल समाधि लेने की बात सुनता, तरह-तरह की बातें करता। समूचा तीर्थ सन्यासी के जल समाधि लेने पर करुण रुदन सा करता प्रतीत हो रहा था। उसी रात्रि का एक बजा होगा। एकाएक भयंकर बादल गर्जना हुई। आसमान टूट पड़ा। साढ़े आठ का भयंकर भूचाल आया। रिचर स्केल पर इसकी तीव्रता साढ़े आठ मापी गई । पहाड़ फट गये। और जो जहाँ, जिस अवस्था में था, वहींदफन हो गया। इस तीर्थ के पचास कोस में एक भी जन-मानस जीवित नहीं बचा था।’ चिड़ा बहुत देर तक अफसोस करता रहा। तब चिड़िया ने कहा, ‘चिड़े, काहे का अफसोस करता है? जनमानस आज फिर उसी आचरण की पुनरावृति कर रहा है। आज जनमानस अवसरवादीहो गया है, भौतिकता में डूबा हैं। अपने को अमर समझकर सम्पत्ति संचय में लगा हुआ है, जैसे कि वह सब साथ बांध कर ले जायेगा। अपने को खुदा मान रहा है। इसका विनाश अवश्यम्भावी है। पुन: सृष्टि को अपनी जल, थल, नभ, वायु, अग्नि शक्ति को रौद्र रूप धारण करने को कहना होगा। चिड़े, आज के जनमानस का तो अन्न-जल भी ग्रहण नहीं करनाचाहिये। हमने कोई खोटे कर्म किये होगें जो इस काल में पैदा हुए हैं।’ इस पर चिड़ा बोला, ‘भगवान इस देश के जनमानस को सदबुद्वि दें।’ और फिर बहुत देर तक चिंता में डूबा रहा। **
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21-08-2014, 08:18 PM | #79 |
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Re: मुहावरों की कहानी
दो जमा दो पाँच जब होने लगे
आभार: दिगंबर नस्वा जी दो जमा दो पाँच जब होने लगे
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21-08-2014, 11:43 PM | #80 |
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Re: मुहावरों की कहानी
बगल में बच्चा शहर में ढिंढोरा
दिल्ली में किसी अफ़ीमची के छः लड़के थे. एक दिन तीन लड़कों को साथ ले हज़रत कुतुब के मेले को गया. वह भीड़ भड़क्का देख यह डर कर एक लड़के को कंधे पर चढ़ा दूसरे को गोद में ले, तीसरे का हाथ पकड़ अलग हो जो एक ओर खड़ा हुआ तो पीनक (अफीम का नशा) में आया. पहर एक पीछे मेले में कुछ हुल्लड़ जो हुआ तो वह पीनक से चौंक कांधे के लड़को को न देख बहुत घबराया. निदान यों कहता कहता कोतवाल के पास आया कि हाय हाय! मेरा लड़का खोय गया. कोतवाल ने पूछा,‘‘तुम्हारे कै लड़के हैं?’’ बोला,‘‘छः उनमें से एक खोया है.’’ कोतवाल ने सुनके ढंढोरिए को उसके साथ कर दिया. वह सारा दिन उसे सारे नगर में लिए फिरा. निदान रो झींक सांझ के समय जो घर में घुसा तो पौर की चौखट लड़के के सिर में लगी तो वह रो पड़ा. तब अफ़ीमची बोला,‘‘ये अभागा अनहोनहार सारे नगर में ख़राब कर मुझे रूला कर जो तू अब रोया पहले ही क्यों न बोला, तो मैं इतना खराब न होता.’’ इस बात को सुन उसे किसी चिनहारी ने कहा,‘‘भाई जो कहावत है सुनते थे सो तुमने कर दिखाई कि बग़ल में लड़का और शहर में ढंढोरा.’’
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