29-03-2014, 07:52 PM | #9 |
Diligent Member
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Re: ग़ज़ल - है ग़रीबी . . .
ग़ज़ल- दुख हुआ है जानकर (संशोधित)
. . . . . . . . . . . . . . . . . . . . है ग़रीबी साथ पर ये दुख हुआ है जान कर मुँह छिपाये जा रहा था वो मुझे पहचान कर ... नाव थी मजधार मेरी वो किनारा कर गया जी रहा था मैँ जिसे पतवार अपनी मान कर ... बात आई थी हवा से पाप धुलता है कहीँ मैल है दिल मेँ अगर तो क्या करेँगे स्नान कर ... ये धरा भी एक दिन मिट कर रहेगी तय सुनेँ है ज़मीँ ये कह रही मत बैठना अभिमान कर ... कह रहा "आकाश" मुझको वो कबूतर आजकल देखता जैसे शिकारी तीर कोई तान कर ग़ज़ल - आकाश महेशपुरी Aakash maheshpuri . . . . . . . . . . . . . . . . . . . पता- वकील कुशवाहा उर्फ आकाश महेशपुरी ग्राम- महेशपुर पोस्ट- कुबेरस्थान जनपद- कुशीनगर उत्तर प्रदेश 09919080399 |
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