08-12-2012, 03:38 PM | #21 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
नये के फ़ेर में पुराने को उपेक्षित न करें बात चाहे नये नियुक्त होनेवाले मैनपावर की हो या फ़िर नये सॉफ्टवेयर या सिस्टम की. अक्सर लोग नये के आने के बाद पुराने को उपेक्षित करना शुरू कर देते हैं. ऐसा करना सही नहीं है. सभी की अपनी उपयोगिता है. एक बेहतर प्रबंधक वही है, जो पुराने सिस्टम या मैनपावर की अच्छी चीजों के साथ नये के आइडियाज या फ़ीचर को मैच कराये और कार्यस्थल पर संतुलन बना कर चले. किसी भी व्यक्ति या आइडिया या सिस्टम को निरस्त करना दुनिया का सबसे आसान काम है, लेकिन एक अच्छे प्रबंधक को तब तक किसी भी व्यक्ति या सिस्टम को निरस्त करने का नैतिक हक नहीं है, जब तक कि वाकई वह बेहतर सिस्टम या व्यक्ति का उदाहरण न पेश कर सके.एक राजा को नये-नये वाद्य संगीत सुनने का शौक था. राजा ने संगीतज्ञों के लिए एक प्रतियोगिता की घोषणा करते हुए कहा, कि जिस संगीतज्ञ का वाद्य नवीन प्रकार का होगा और संगीत भी सर्वश्रेष्ठ होगा, उसे भारी राशि देकर पुरस्कृत किया जायेगा, अन्यथा वह कलाकार दंड का भागी होगा. एक से बढ़ कर एक बहुत से कलाकार अपना-अपना वाद्य लेकर राजदरबार में भाग्य आजमाने आये. सभी संगीतज्ञों ने अपने-अपने वाद्य से संगीत सुनाया. राजा को इन सब के संगीत में कुछ भी नया नहीं लगा. उसने सभी कलाकारों को दंड स्वरूप कारागार में डाल दिया.एक बुद्धिमान व्यक्ति को कलाकारों का यह अपमान बहुत बुरा लगा. उसने सभी कलाकारों को न्याय दिलाने की योजना बनायी. एक दिन वह व्यक्ति लकड़ी का एक लट्ठा लेकर राजसभा में पहुंचा और राजा के समक्ष अपना वाद्य बजाने की आज्ञा मांगी. राजा ने कहा,‘‘यह तो साधारण-सा लकड़ी का लट्ठा है, कोई वाद्य नहीं.’’ व्यक्ति ने कहा, ‘‘महाराज, यह एक नये प्रकार का अद्भुत वाद्य है. यह अकेला नहीं बजाया जा सकता, लेकिन यह सभी वाद्यों के साथ शामिल होकर बहुत मधुर धुनें देता है.’’ राजा ने नये वाद्य सुनने के शौक के कारण सभी कलाकारों को जेल से रिहा कर राज दरबार में आने के आदेश दिये.संगीत की महफ़िल सजी. वह व्यक्ति भी लकड़ी का लट्ठा लेकर सबके बीच में बैठ गया. जब सब कलाकार अपना वाद्य बजा रहे थे, तब वह भी एक छड़ी से लट्ठे पर ठक-ठक कर तान देने लगा. राजा को संगीत अच्छा लगा. राजा ने उस व्यक्ति से कहा, ‘‘तुम इस पुरस्कार के सच्चे पात्र हो.’’ व्यक्ति ने कहा, ‘‘महाराज, क्षमा करें. न मैं संगीतज्ञ हूं और न यह लट्ठा कोई वाद्य. आपके पुरस्कार पर मेरा नहीं, इन सभी कलाकारों का अघिकार है. इन सभी ने अपने वाद्य बहुत कुशलता से बजाये. मैं आपको केवल यह बताना चाहता था कि नये के फ़ेर में पुराने को उपेक्षित न करें. ये सभी कलाकार अपनी कला में पारंगत हैं और पुरस्कार के सच्चे अधिकारी हैं.’’ राजा ने अपनी भूल सुधारते हुए कलाकारों को पुरस्कृत किया. बात पते की किसी भी नये व्यक्ति के आने पर पुराने को उपेक्षित न करें. कार्यस्थल पर हर स्तर पर संतुलन और सामंजस्य बेहद जरूरी है. किसी भी व्यक्ति या सिस्टम को रिजेक्ट करना सबसे आसान काम है, लेकिन ऐसा तभी करें, जब आपके पास इससे बेहतर विकल्प मौजूद हो. |
08-12-2012, 03:41 PM | #22 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
असफ़लता की निराशा में भी अवसरों पर नजर रखें सुबह ऑफ़िस में कदम रखते ही रजनीश को बॉस की डांट का सामना करना पड़ा. उसके चेहरे को देख कर साफ़ लग रहा था कि आज डांट ज्यादा पड़ी है. बगल में आकर बैठा तो मैंने पूछ लिया कि आज डांट ज्यादा पड़ी है क्या? उसने कहा- आते ही बॉस ने लेक्चर पिला दिया. अब तो सारा दिन ऐसे ही जाना है. आज तो कुछ भी अच्छा नहीं होनेवाला है. उसने सुबह ही यह तय कर लिया कि आज उसका दिन खराब रहनेवाला है. लंच वह लेकर आया था, लेकिन लंच किया नहीं. कलीग्स उससे बात भी करना चाह रहे थे, तो उसने सीधे मुंह जवाब नहीं दिया. काम की रफ्तार भी आज अन्य दिनों की अपेक्षा कम थी. दिन वैसा ही बीता, जैसा उसने सोचा था. अगले दिन जब ऑफ़िस आया, तो बिल्कुल सामान्य था. हंसी-मजाक भी हुआ और काम भी. मैंने उसे कुछ सामान्य देखा, तो कहा, रजनीश कल सुबह तुम्हारा मूड खराब हुआ, लेकिन उसके बाद का पूरा समय तुमने खुद से खराब किया. अगर तुम चाहते, तो उस समय को भी अच्छा बना सकते थे, आज की तरह. एक परेशानी आने पर यह जरूरी नहीं कि हमें आगे परेशान ही रहना होगा. हमें हमेंशा सामान्य रहने की कोशिश करनी चाहिए. एक मछुआरा था. एक दिन सुबह से शाम तक नदी में जाल डाल कर वह मछलियां पकड़ने की कोशिश करता रहा, लेकिन एक भी मछली जाल में न फ़ंसी. जैसे-जैसे सूरज डूबने लगा, उसकी निराशा गहरी होती गयी. भगवान का नाम लेकर उसने एक बार और जाल डाला, पर इस बार भी वह असफ़ल रहा, पर एक वजनी पोटली उसके जाल में अटकी. मछुआरे ने पोटली निकाली और टटोला तो झुंझला गया और बोला, यह तो पत्थर है! फ़िर मन मार कर वह नाव में चढ़ा. बहुत निराशा के साथ कुछ सोचते हुए वह अपनी नाव को आगे बढ़ाता जा रहा था और मन में आगे की योजनाओं के बारे में सोचता चला जा रहा था. सोच रहा था, कल दूसरे किनारे पर जाल डालूंगा. सबसे छिप कर. उधर कोई नही जाता. वहां बहुत सारी मछलियां पकड़ी जा सकती हैं. मन चंचल था तो फ़िर हाथ कैसे स्थिर रहता? वह एक हाथ से उस पोटली के पत्थर को एक -एक करके नदी में फ़ेंकता जा रहा था. पोटली खाली हो गयी. जब एक पत्थर बचा था तो अनायास ही उसकी नजर उसपर गयी और वह स्तब्ध रह गया. उसे अपनी आंखों पर यकीन नही हो रहा था. यह क्या! यह तो नीलम था. मछुआरे के पास अब पछताने के अलावा कुछ नहीं बचा था. नदी के बीचोबीच अपनी नाव में बैठा वह सिर्फ़ अब अपने को कोस रहा था. इसलिए कहा गया है कि एक असफ़लता की निराशा में दूसरे अवसर की अनदेखी करना अपने ही हाथों एक ऐसा नुकसान कर लेना है, जिसके लिए आप अकेले ही जिम्मेवार होते हैं. - बात पते की * हर हाल में खुद को सामान्य रखने की कोशिश करें. * एक बार असफ़ल होने का मतलब यह नहीं कि अब असफ़ल ही होंगे. * निराशा में अवसरों की अनदेखी करना अपने ही हाथों एक ऐसा नुकसान कर लेना है, जिसके लिए आप अकेले जिम्मेवार होते हैं. |
26-12-2012, 01:01 PM | #23 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
अभी तो कुछ बीता नहीं है
जीवन अमृत रीता नहीं है छूने को हो तुम आसमान फिर इतने निराश क्यूं होते तुम उदास क्यूं सुन अंतस की पुकार तू हिम्मत न हार अर्जन कर सृजन कर अपने कदम आगे बढ़ा कौन बला है उससे टकरा ! राहें कंटीली हैं मुसीबतें हठीली हैं काँटों पर तुम्हे चलना है हंसकर पार उतरना है क्या पढ़ी गीता नहीं है मत फूल -पत्ते शाख देख चिड़िया की तू आँख देख गांडीव उठा, दे टंकार सीना तान , भर हुंकार दूर क्षितिज पर तू देख जरा क्या कहती है वसुंधरा झुक गया कैसे आसमान अपने को तू भी पहचान दुनिया का रिवाज पुराना है पतझड़ को तो जाना है अपनी फौलादी बाहें फैला चुनौतियों को गले लगा मंजिल तेरे कदम चूमेगी धरती तो यूं ही घूमेगी तुम को कर दिखलाना है उपवन ये भी खिल जाएगा जीवन लक्ष्य मिल जाएगा!
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मैं क़तरा होकर भी तूफां से जंग लेता हूं ! मेरा बचना समंदर की जिम्मेदारी है !! दुआ करो कि सलामत रहे मेरी हिम्मत ! यह एक चिराग कई आंधियों पर भारी है !! |
03-01-2013, 02:34 PM | #24 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
हमेशा कंप्लेन न करें, जो है उसका तो बेस्ट यूज करें ऑफ़िस में नया सॉफ्टवेयर इंस्टॉल हुआ, तो दो तरह की प्रतिक्रियाएं आयीं. क्या जरूरत थी इस तरह के सॉफ्टवेयर की, इससे तो काम और भी खराब होगा. कंप्यूटर सपोर्ट नहीं कर रहा है..दूसरी प्रतिक्रिया, काम में तो दिक्कत हो रही है, लेकिन इसमें जितनी फ़ैसिलिटी है, उसके लिहाज से यह काफ़ी काम का साबित होगा..कहने का मतलब यह कि जिन्हें जिंदगी में बहुत कुछ करना है, वे कभी संसाधनों और सिस्टम का रोना नहीं रोते, वे अपना काम करते हैं. देश की व्यवस्था और सिस्टम को कोसनेवाले सारे लोग हैं, जबकि काम करनेवाले वही चंद लोग हैं, जो अपना समय सिस्टम को कोसने में नहीं, बल्कि अपने काम में लगाते हैं. जेसिका कॉक्स के बारे में आपने जरूर सुना होगा. जेसिका बिना हाथों के सिर्फ़ अपने पैरों की सहायता से जहाज उड़ानेवाली पहली शख्स हैं. यह कमाल उन्होंने तब दिखाया, जब वह महज 25 साल की थीं. जेसिका का मानना है कि रचनात्मकता, दृढ़ता और निडरता से दुनिया में सब कुछ हासिल किया जा सकता है. मनोविज्ञान से स्नातक जेसिका न केवल लिख सकती हैं और कंप्यूटर पर काम कर सकती हैं, बल्कि वे खुद अपने बाल भी संवार सकती हैं और मेकअप भी कर सकती हैं. अमेरिका की यह लड़की ताइक्वांडो में ब्लैक बेल्ट है. जेसिका का जन्म 1983 में बिना हाथों के हुआ था. पिता बैंड टीचर थे. माता-पिता ने उसे कई डॉक्टरों के पास दिखाया, लेकिन उन्हें कोई जवाब नहीं मिला. बचपन से ही जो काम बच्चे अपने हाथों से करते हैं, वह काम जेसिका ने अपने पैरों से करना शुरू किया. जेसिका की मां उसे पैरों में खिलौना पकड़ाती थीं. हर कदम पर मां का पूरा सहयोग मिला. उन्होंने हमेशा जेसिका को मोटिवेट किया. जब वह महज दो साल की थी, तो उसे कृत्रिम अंग पहनने को दिये गये. सातवीं ग्रेड में पहुंचने के बाद जेसिका ने उसे लगाना बंद कर दिया. 3 साल में ही उन्होंने जिमनास्टिक क्लास ज्वाइन कर लिया और जब छह साल की हुईं, तो स्विमिंग और डांस क्लास ज्वाइन कर लिया. आज वह खुद से न केवल खा सकती हैं, बल्कि खाना बना भी बनाती हैं, बर्तन भी धोती हैं. जेसिका ने जो प्लेन उड़ाया उसे एरकूप कहते हैं और यह प्लेन उन चुनिंदा एयरप्लेन में से है, जो बिना पैडल के बना है. बिना रडार पैडल के जेसिका ने अपने पैरों को हाथ की तरह इस्तेमाल कर यह रिकॉर्ड बनाया. जहां साधारण व्यक्ति को लाइटवेट एयरक्राफ्ट लाइसेंस के लिए छह माह लगते हैं, वहीं जेसिका ने इसमें तीन साल लगाये. सिर्फ़ सोच कर देखें कि जेसिका कॉक्स के पास क्या था और उन्होंने क्या-क्या हासिल किये अपनी जिंदगी में और हमारे पास कितना कुछ है और हमने क्या हासिल किया? शिकायत बंद करें, पहले जो है उसका बेस्ट यूज कर लें. - बात पते की * केवल संसाधनों का रोना रोने से हमें कुछ भी हासिल नहीं हो सकता, संसाधन भी नहीं. क्योंकि संसाधन काम करनेवाले को ही मिलता है. * हर छोटी-छोटी बात की शिकायत करना बंद करें. जो संसाधन आपके पास हैं, पहले उसका बेस्ट यूज करें. Last edited by arvind; 03-01-2013 at 02:36 PM. |
03-01-2013, 02:38 PM | #25 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
आत्मविश्वास एक आदत है जिसे हमें डेवलप करना होगा दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मिले, जिसे खुद पर विश्वास होते हुए भी जीवन में सुख और सफ़लता न मिली हो. हां, ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जिनके पास योग्यता और कौशल तो है, बावजूद इसके आत्मविश्वास की कमी के कारण वह कैरियर की दौड़ में पिछड़ जाते हैं. वास्तव में हम सब यह जानते और सुनते आये हैं कि आत्मविश्वास सफ़लता के लिए सबसे जरूरी है, लेकिन यह आत्मविश्वास एक दिन या किसी एक मामले में नहीं आ सकता. यह एक जरूरी आदत है, जो हमें खुद में डेवलप करनी होती है. हमारे हर क्रियाकलाप में, हमारी बातों में, हमारे व्यवहार में और हमारे स्टाइल में आत्मविश्वास झलकना चाहिए.कोलंबस एक समान्य नाविक था. भारत की खोज में निकला. जब वह भारत की खोज में रवाना होने को तैयार हुआ तो कोई नाविक साथ जाना नहीं चाहता था. अनजान की यात्रा में जहां मृत्यु का भय और सफ़लता की आशा बहुत कम थी, भला कौन साथ देता? राजा और रानी के दबाब पर मुश्किल से कुछ लोग तैयार हुए. बेड़ा रवाना हुआ. महीनों बीत गये, कही जमीं का कोई निशान नहीं. उधर उसके साथी नाविक जो उसके पागलपन से खार खाये हुए थे, गुस्से में नाव तक खेना बंद कर दिया और कोलंबस को मार डालने तक की धमकी दे डाली, बोले- यदि तुमने चूं भी की तो हथकड़ी पहना कर कर जहाज की कोठरी में डाल देगे. बहुत समझाने-बुझाने के बाद नाविक कुछ और दिन तक जहाज खेने को तैयार हुए. उस महासागर में जहां चारों ओर भयानक लहरोंवाली अनंत जलराशि और गुस्साए हुए साथी थे. कोलंबस का सहारा उसका सपना और उसका दृढ़ आत्मविश्वास था.कुछ दूर आगे केनराज द्वीप के पश्चिम, ध्रुव यंत्र बिगड़ गया, पर कोलंबस किसी कठिनाई के कारण अपने लक्ष्य से नहीं भटका, निरंतर वह आगे बढ़ता गया. कुछ समय बाद आगे बढ़ने पर उसे झाड़ियों की कुछ लकड़ियां तैरती दिखायी दे गयीं और आगे आकाश में कुछ पक्षी भी उड़ते दिखाई पड़े. उसका सपना सच हो गया. 12 अक्तूबर, 1492 को उसने एक नयी दुनिया की जमीं पर अपना झंडा गाड़ ही दिया और इस तरह भारत की खोज में निकले कोलंबस ने अमेरिका खोज डाला. अगर शुरुआत में कोलंबस ने हार मान लिया होता, तो क्या वह अमेरिका की खोज कर पाता? यात्रा से निकलने के पहले और यात्रा के दौरान उनके सामने कितनी तरह की समस्याएं आयीं, लेकिन सिर्फ़ अपने आत्मविश्वास के कारण उन्हें यह सफ़लता हासिल हुई. अगर आत्मविश्वास है, तो हर सपने को साकार किया जा सकता है. बात पते की -आत्मविश्वास है, तो हर सपने को साकार किया जा सकता है. -अगर आत्मविश्वास है, तो आपको सफ़ल होने से कोई नहीं रोक सकता. -हमारे व्यवहार में, हमारी बातचीत में, हमारे स्टाइल में और हमारे हर क्रियाकलाप में आत्मविश्वास झलकना चाहिए. |
05-01-2013, 01:59 PM | #26 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
काम के प्रति ईमानदारी ही सफ़लता का पहला मंत्र हममें से कितने लोग अपने काम और अपने संस्थान के प्रति ईमानदार हैं? क्या आप अपने काम को उसी क्षमता और उतने ही ध्यान से पूरा करते हैं, जितनी क्षमता और जितने ध्यान से अपने घर का काम करते हैं? कम लोग होते हैं, जो अपने काम और संस्थान के प्रति ईमानदार होते हैं और यही चंद लोग अपने कैरियर में सफ़ल होते हैं. एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि आपका काम हमेशा प्रबंधन की निगाह में रहता है. बात सीधी है. आप ऑफ़िस में 8 घंटे का समय देते हैं. हो सकता है कि नहीं चाहते हुए भी आपको 8 घंटे का समय देना पड़ता हो. अब जब समय देना ही है, तो उस समय को ऐसे बर्बाद क्यों करना? आप अपने घर-परिवार को छोड़ टाइमपास के लिए ऑफ़िस तो आते नहीं. तो ऑफ़िस में जितनी देर भी रहें, अपने हर पल का उपयोग संस्थान और अपने काम के हित में करें. आठ घंटे का यही काम आपको आपके कैरियर में ऊंचाई पर ले जायेगा. सफ़ल होने का पहला मंत्र यही है कि अपने काम के साथ कभी धोखा न करें. काम के प्रति हमेशा ईमानदार रहें, क्योंकि इसी काम की वजह से आपके जीवन की गाड़ी आराम से चल रही है.जिस घटना के बारे में मैं बताने जा रहा हूं, वह घटना उस समय की है, जब फ्रांस में विद्रोही काफ़ी उत्पात मचा रहे थे. सरकार अपने तरीकों से विद्रोहियों से निपटने में जुटी हुई थी. काफ़ी हद तक सेना ने विद्रोह को कुचल दिया था, फ़िर भी कुछ शहरों में स्थिति खराब थी. इन्हीं में से एक शहर था लिथोस. लिथोस में विद्रोह पूर्णतया दबाया नहीं जा सका था, लिहाजा जनरल कास्तलेन जैसे सख्त अधिकारी को वहां नियंत्रण के लिए भेजा गया. कास्तलेन विद्रोहियों के साथ काफ़ी सख्ती से पेश आते थे. यही वजह थी कि विद्रोहियों के बीच उनका खौफ़ भी था और वे उनसे चिढ़ते भी थे. इन्हीं विद्रोहियों में एक नाई भी था, जो प्राय कहता फ़िरता-जनरल मेरे सामने आ जाये तो मैं उस्तरे से उसका सफ़ाया कर दूं. जब कास्तलेन ने यह बात सुनी तो वह अकेले ही एक दिन उसकी दुकान पर पहुंच गया और उसे अपनी हजामत बनाने के लिए कहा. वह नाई जनरल को पहचानता था. उसे अपनी दुकान पर देखकर वह बुरी तरह घबरा गया और कांपते हाथों से उस्तरा उठा कर जैसे - तैसे उसकी हजामत बनायी. काम हो जाने के बाद जनरल कास्तलेन ने उसे पैसे दिये और कहा- मैंने तुम्हें अपना गला काटने का पूरा मौका दिया. तुम्हारे हाथ में उस्तरा था, मगर तुम उसका फ़ायदा नहीं उठा सके. इस पर नाई ने कहा - ऐसा करके मैं अपने पेशे के साथ धोखा नहीं कर सकता था. मेरा उस्तरा किसी की हजामत बनाने के लिए है, किसी की जान लेने के लिए नहीं. वैसे मैं आपसे निपट लूंगा, जब आप हथियारबंद होंगे, लेकिन अभी आप मेरे ग्राहक हैं. -बात पते की -जिस तन्मयता के साथ आप अपने परिवार का काम करते हैं, उसी तन्मयता के साथ ऑफ़िस का भी काम करें. -काम के साथ धोखा, आपसे जुड़े हर किसी के साथ धोखा है. -ऑफ़िस में समय देना ही है, तो क्यों न उस समय का बेहतर यूज करें. |
05-01-2013, 02:47 PM | #27 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
आलोचना करने और सुनने का भी एक तरीका होता है अगर आपके वरिष्ठ अधिकारी आपसे यह कहते हैं, कि तुमने बहुत अच्छी रिपोर्ट बनायी है. बहुत मेहनत की है. इसमें अगर डेटा अपडेट रहता तो यह रिपोर्ट और भी अच्छी हो जाती.. तो ऐसी आलोचना सकारात्मक श्रेणी में आती है, क्योंकि यहां पर असली मुद्दे की बात की गयी है और आपको सौम्यतापूर्वक बताया गया है कि आप रिपोर्ट को बेहतर बनाने के लिए क्या कर सकते थे. दूसरी तरफ़, नकारात्मक आलोचना का उद्देश्य किसी व्यक्ति के स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना होता है. इसमें मुद्दे की बात गायब होती है. अगर वरिष्ठ अधिकारी अपने कर्मचारी से कहे, कि तुमने ऐसी मूर्खतापूर्ण गलती कैसे की? पता नहीं, कैसे-कैसे लोग नौकरी पा जाते हैं..तो इस आलोचना में कर्मचारी के सुधार की भावना की जगह वरिष्ठ अधिकारी का क्रोध ही दिखाई पड़ता है. ऐसी आलोचना से कर्मचारी सुधरेगा नहीं, हताश होगा. दूसरी बात, अगर आपकी आलोचना होती है, तो आप उसे किस रूप में लेते हैं. यह परोक्ष रूप में आपकी छवि का निर्धारण करता है. विवाह के बाद ससुराल गयी अमृता ने जब पहली बार खीर बनायी, तो जेठानी ने मुंह बनाते हुए कहा, यह भी कोई खीर है? इससे अच्छा स्वाद तो दूध में चावल को मिला देने भर से आ जाता है. इस आलोचना पर अमृता दो तरह की प्रतिक्रियाएं दे सकती थी. पहली यह कि वह जेठानी को पलट कर करारा जवाब देती और हमेशा के लिए उसकी दुश्मन बन जाती, लेकिन समझदार अमृता ने मस्तिष्क को शांत रखते हुए जवाब दिया, दीदी, यह मेरी पहली कोशिश थी. आपके साथ रह कर जल्दी ही सब कुछ सीख जाऊंगी. सिखायेंगी न!अक्सर हममें से अधिसंख्य अमृता की तरह सहज बुद्धि और शांत स्वभाव के नहीं होते और किसी के द्वारा आलोचना किये जाने पर पहली प्रतिक्रिया यह होती है कि ईंट का जवाब पत्थर से दिया जाये. क्या यह सही है? दरअसल, आलोचना किए जाने के बाद हम सोचते हैं कि इसका अर्थ यह है कि आलोचक हमें बुरा, मूर्ख और अयोग्य मानता है. इसीलिए हम आलोचना के मूलभाव को समझने और इसके अनुसार सुधार की कोशिश नहीं करते हैं और तुरंत आवेश में आ जाते हैं. हो सकता है कि आपकी गलती बिल्कुल नहीं हो और सामनेवाला जान-बूझकर ऐसा कर रहा हो. अगर ऐसा है, तो आलोचना को लेकर कुछ भी सोचने या करने की कोई जरूरत ही नहीं है. हालांकि इसका यह मतलब भी नहीं कि समझ के दूसरे दरवाजे बंद कर लें. गलती करना मनुष्य का स्वभाव है और आप उससे अलग नहीं हैं. जब भी कोई आपकी कार्यप्रणाली या व्यवस्था या व्यक्तित्व के किसी भी पक्ष को लेकर कुछ कहे तो उसे सुनें जरूर, फ़िर आत्मनिरीक्षण करें. आलोचना सही है या गलत इसका जवाब आपको खुद ही मिल जायेगा. सही है तो सुधारें और गलत है, तो इग्नोर करें, लेकिन त्वरित प्रतिक्रिया देने से हमेशा बचें. -बात पते की- -आलोचना सुनने के बाद आत्मनिरीक्षण करें. आलोचना सही है, तो सुधारें खुद को और गलत है तो इग्नोर करें. -नकारात्मक आलोचना का उद्देश्य स्वाभिमान को ठेस पहुंचाना है. -सकारात्मक आलोचना कर्मचारियों को बेहतर करने के लिए प्रेरित करता है. |
07-01-2013, 04:37 PM | #28 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
मन को आपने जीत लिया तो दुनिया जीत सकते हैं अक्सर कई लोगों को इस बात का दुख होता है कि उनके साथ के लोग काफ़ी आगे बढ़ गये, लेकिन वे पीछे रह गये. साथ तैयारी की, समय भी एक-सा ही दिया, फ़िर क्या वजह रही कि कोई बहुत आगे निकल गया और कोई पीछे रह गया. असल में इन स्थितियों में जीत मन की होती है. सफ़ल होनेवाला हर शख्स अचानक सफ़ल नहीं हो जाता, पहले मन से मान लेता है कि वह सफ़ल होगा. यह मानना ही उसे ताकत देता है, हौसला देता है. कल्पनाओं के धरातल पर देखा गया हर सपना पूरा होता है बशर्ते सबसे पहले आप इसके लिए तैयार हों. अगर आपने अपने टारगेट में किंतु..परंतु..जैसे शब्दों का यूज किया, तो समझ लें कि सफ़लता निश्चित नहीं है. कुछ भी करने के पहले यह मान लें कि आपको करना है, कैसे भी करना है. विकल्प न रखें, जहां विकल्प होगा, वहां प्रयास पूरा नहीं हो सकता. कहते हैं न, मन के जीते जीत है, मन के हारे हार. इस कहावत को अपनी जिंदगी में पूरी तरह उतार लें. एक दूध विक्रेता गांव से दूध ले जाकर शहर में बेचता था. एक दिन गांव के एक शरारती बच्चे ने दूध के दो डिब्बों में एक-एक मेढक डाल दिया. दूधवाला इन डिब्बों को लेकर शहर चल दिया. मेढक ने दूध के डिब्बे से बाहर निकलने की सोची. डिब्बे का भारी ढक्कन खोलना उसकी सामथ्र्य के बाहर था. डिब्बे में छेद कर बाहर निकलना भी असंभव था. थोड़ा-बहुत हाथ-पैर मार कर वह निराश हो गया. उसके मन में यह बात बैठ गयी कि अब वह नहीं बच सकता. परिणामस्वरूप शहर जाकर जब डिब्बा खोला गया, तो दूधवाले को उसमें एक मरा हुआ मेढक मिला. दूसरे डिब्बेवाले मेढक ने भी बाहर निकलने की संभावना सोची. डिब्बे का ढक्कन खोलना या उसमें छेद करना संभव नहीं था. मेढक इधर से उधर तथा नीचे-ऊपर तेजी से तैरता रहा. उसने मन में सोचा- जब तक बच न जाऊं, तब तक तैरता रहूंगा. वह दूध में जोर-जोर से हाथ-पैर मार कर जी जान से संघर्ष करने लगा. थकने और सांस फ़ूलने पर भी वह नहीं रुका. कुछ समय बाद अचानक उसने देखा कि दूध में से एक चिकना ठोस पदार्थ अलग हो कर तैर रहा है. बचने की आस देख उसने प्रयत्न और तेज कर दिये, तब मक्खन का एक गोला-सा बन गया. वह उस पर बैठ गया. शहर आने पर दूधवाले ने जैसे ही डिब्बे का ढक्कन खोला, मेढक उछल कर बाहर कूद कर भाग गया. पहले और दूसरे दोनों मेढक के पास समान परिस्थितियां थीं, समान समय था, फ़िर भी पहला मेढक अपनी जान नहीं बचा सका, जबकि दूसरे मेढक ने हिम्मत नहीं हारी, उसने सोच लिया था कि सफ़लता मिले न मिले प्रयास नहीं छोड़ना है. हम सभी को अपनी जिंदगी में यह तय कर लेना होगा कि हमने जो टारगेट तय किया है, उस ओर हमें लगातार प्रयास जारी रखने चाहिए. - बात पते की * हमने जो टारगेट तय किया है, उस ओर हमें लगातार प्रयास जारी रखने चाहिए, यह मानते हुए कि सफ़लता मिलनी ही है. * मन में सफ़लता को लेकर कोई असमंजस न रखें. * जहां विकल्प होगा, वहां प्रयास पूरा नहीं हो सकता. |
07-01-2013, 04:40 PM | #29 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
नफ़रत के लिए नहीं, खुद के विकास में लगायें ऊर्जा कई बार कोई हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ता, फ़िर भी उसके प्रति हम मन में नफ़रत का भाव रखते हैं. उसकी तरक्की, उसका विकास हमें अच्छा नहीं लगता. कई बार ऐसा भी होता है कि किसी शख्स से हम दिल से जुड़ जाते हैं और उसकी गलत बात भी सही लगने लगती है. स्थितियां दोनों ही अच्छी नहीं हैं, क्योंकि नुकसान दोनों में है. कभी-कभी ऐसा भी होता है कि अगर किसी ने हमारा अहित किया हो, तो दिन-रात हम यही योजना बनाते रहते हैं कि कैसे इसका नुकसान किया जाये, कैसे इसे नीचा दिखाया जाये. यह एक गलत सोच है. सबसे बड़ी बात यह कि इससे नुकसान सिर्फ़ और सिर्फ़ नफ़रत पालनेवाले का होता है. सोचिए, किसी से नफ़रत करने के कारण आपको क्या-क्या अतिरिक्त प्रयास करने होते हैं. समय देना होता है, योजना बनानी पड़ती है, मन में नफ़रत की आग जलती रहती है और मानसिक रूप से आप परेशान रहते हैं, जिसका असर न केवल आपके प्रोफ़ेशनल लाइफ़ में, बल्कि पर्सनल लाइफ़ पर भी पड़ता है. दूसरी ओर अगर यही समय, यही योजना को मानसिक शांति के साथ खुद के विकास पर खर्च किया जाये, तो आपका विकास होगा. क्या यह समझदारी है कि जिस ऊर्जा का उपयोग हम खुद के विकास पर कर सकते हैं, उसी ऊर्जा का उपयोग हम खुद के नुकसान के लिए करते हैं.एक बार प्रख्यात दार्शनिक सुकरात अपने प्रशंसकों से घिरे बैठे थे. तभी उनका एक पुराना अनुयायी सूदन वहां आया और पीछे की ओर चुपचाप बैठ गया. सुकरात की नजर उस पर पड़ी तो वह आश्चर्यचकित होकर बोले-अरे सूदन तुम इतने कमजोर और सुस्त क्यों दिख रहे हो? सूदन थोड़ा आवेश में बोला-गुरुदेव मेरा प्रतिद्वंद्वी हर क्षेत्र में प्रगति कर रहा है. वह हर स्तर पर मुझसे आगे निकला जा रहा है. मैं इसे बर्दाश्त नहीं कर पा रहा. उसके प्रति नफ़रत की आग मुझे झुलसा रही है. आप ही बतायें मैं क्या करूं?सुकरात उसके सिर पर हाथ फ़ेरते हुए बोले - प्रिय बंधु, अपने प्रतिद्वंद्वी के प्रति नफ़रत पालने में तुम जितनी शक्ति और समय नष्ट कर रहे हो, वह किसी और को नहीं तुम्हें ही पतन की ओर ले जा रहा है. जरा बताओ नफ़रत की इस आग में तुम क्या और निखर गये हो या आगे बढ़ गये हो? याद रखो, नफ़रत की आग नफ़रत करनेवाले को ही सबसे पहले जलाती है और नफ़रत करनेवाला खुद ही कमजोर और हारा हुआ नजर आता है, जैसा कि तुम नजर आ रहे हो. क्या तुमने पहले ही अपने प्रतिद्वंद्वी से हार मान ली है? इससे तो अच्छा होता कि तुम भी उससे आगे निकलने के लिए प्रयास करते. तुमने गंभीरता से प्रयास किया होता तो अब तक तुम कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल कर चुके होते. सूदन को अपनी गलती का अहसास हो गया. उसने अपने मन से घृणा का भाव निकाल फ़ेंकने का वचन दिया. -बात पते की- -नफ़रत की आग सबसे पहले नफ़रत करनेवाले को जलाती है और वह कमजोर तथा हारा हुआ नजर आता है. -जिस ऊर्जा का उपयोग आप किसी से नफ़रत करने में करते हैं, उसका उपयोग आप खुद के विकास में कर सकते हैं. |
07-01-2013, 04:47 PM | #30 |
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Re: सफलता की सीढ़ी।
मदद करना है, तो करें पर एक्सपेक्टेशन न रखें करीब चार साल पहले की बात है. मैं ऑफ़िस में काम कर रहा था. मेरा कलीग रजनीश मेरे पास आकर बैठा. आज वह थोड़ा उदास था. मैंने इसका कारण पूछा, तो कहा, कि क्या बताऊं, मैंने अपने साथी के लिए कितना कुछ किया. हमेशा बॉस के सामने उसकी तारीफ़ की. कभी काम में फ़ंसा तो उसका सहयोग किया. कल जब बॉस ने मुझे अर्जेट काम दिया और मैंने उससे सहयोग के लिए कहा, तो उसने साफ़ मना कर दिया. मुझे बहुत बुरा लगा. एक मैं हूं, जो हमेशा उसके सहयोग के लिए तैयार रहता हूं और एक वह है, जो जरूरत पड़ने पर भी सहयोग तो नहीं ही करता है, उल्टे काम बिगाड़ने में लगा रहता है. मैं समझ गया था कि मामला एक्सपेक्टेशन का है. असल में जब हम किसी के लिए अच्छा करते हैं, तो हमेशा उससे अच्छे की ही उम्मीद करते हैं, किसी की मदद करते हैं, तो हमेशा उससे मदद की उम्मीद करते हैं. जब कोई हमारे साथ बुरा करता है, तो हम उससे नफ़रत करना शुरू कर देते हैं. ऐसा नहीं होना चाहिए. हमारी जो आदत है, उसे हम बदल नहीं सकते. अगर अच्छा करने की आदत है, तो अच्छा ही करेंगे, लेकिन जहां उम्मीद करने लगेंगे, वहां निराशा के सिवा कुछ भी हाथ नहीं लगेगा. एक बार दो मित्र साथ-साथ एक रेगिस्तान में चले जा रहे थे. रास्ते में दोनों में कुछ तू-तू, मैं-मैं हो गयी. बहसबाजी में बात इतनी बढ़ गयी कि उनमें से एक मित्र ने दूसरे के गाल पर जोर से थप्पड़ मार दिया. जिस मित्र को थप्पड़ पड़ा, उसे दुख तो बहुत हुआ, लेकिन उसने कुछ नहीं कहा. वह झुका और उसने वहां पड़े बालू पर लिख दिया, आज मेरे सबसे निकटतम मित्र ने मुझे थप्पड़ मारा. दोनों मित्र आगे चलते रहे और उन्हें एक छोटा-सा पानी का तालाब दिखा और उन दोनों ने पानी में उतर कर नहाने का निर्णय कर लिया. जिस मित्र को थप्पड़ पड़ा था, वह दलदल में फ़ंस गया और डूबने लगा, लेकिन उसके मित्र ने उसे बचा लिया. जब वह बच गया तो बाहर आकर उसने एक पत्थर पर लिखा, आज मेरे निकटतम मित्र ने मेरी जान बचायी. जिस मित्र ने उसे थप्पड़ मारा था और फ़िर उसकी जान बचायी थी, उससे रहा नहीं गया और उसने पूछा, जब मैंने तुम्हें मारा था, तो तुमने बालू में लिखा और जब मैंने तुम्हारी जान बचाई तो तुमने पत्थर पर लिखा, ऐसा क्यों? इस पर दूसरे मित्र ने जवाब दिया, जब कोई हमारा दिल दुखाये, तो हमें उस अनुभव के बारे में बालू में लिखना चाहिए, क्योकि उस चीज को भुला देना ही अच्छा है. क्षमा रूपी वायु शीघ्र ही उसे मिटा देगी, लेकिन जब कोई हमारे साथ कुछ अच्छा करे, हम पर उपकार करे, तो हमें उस अनुभव को पत्थर पर लिख देना चाहिए, ताकि कोई भी जल्दी उसको मिटा न सके. - बात पते की * कोई हमारे साथ अच्छा करे, तो हमें उस अनुभव को कभी नहीं भूलना चाहिए और जब बुरा करे, तो उसे भुला देना ही अच्छा है. * अगर अच्छा करने की आदत है, अपनी अच्छाई बनाये रखें. * एक्सपेक्टेशन निराशा की जड़ है, जहां यह होगा, वहां दु:ख होगा. |
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