02-09-2013, 09:47 AM | #1 |
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अंधेर नगरी चौपट राजा
अंधेर नगरी चौपट राजा बहुत दिन पहले की बात है। कोशी नदी के किनारे एक संत अपने शिष्य के साथ कुटिया बनाकर रहते थे। दोनों का ज्यादातर समय भजन-कीर्तन एवं ईश्वर की आराधना में व्यतीत होता था। एक बार दोनों ने देश भ्रमण का निश्चय किया। गुरु-शिष्य घूमते-घूमते एक अजनबी देश में जा पहुंचे। वहां एक बगीचे में कुटिया बनाकर उन्होंने अपना डेरा डाला। गुरु ने शिष्य को एक रुपया देकर बाजार से कोई अच्छी सी सब्जी लाने को कहा। शिष्य गंगाधर जब सब्जी मंडी पहुंचा तब उसने सब्जियों का मोल भाव पूछना शुरू किया। उसे यह देखकर काफी आश्चर्य हुआ कि वहां प्राय: सभी वस्तुएं एक रुपये सेर के भाव से बिक रही थी।सब्जी क्या, दूध-दही एवं मिष्ठान वगैरह का एक ही भाव था.... रुपये सेर। उसने सोचा कि सब्जी-रोटी तो रोज ग्रहण करते ही हैं, क्यों न आज एक सेर मिठाई ही खरीदी जाए। सो उसने सब्जियों के बदले एक सेर इच्छी सी मिठाई खरीद ली। मिठाई लेकर वह खुशी-खुशी अपनी कुटिया पहुंचा। उसने गुरु जी को सारी बातें बतलाईं। गुरुजी ध्यानमग् होकर बोले। बेटा गंगाधर जितना शीघ्र हो हमें यह स्थान त्याग देना चाहिए। यह अंधेर नगरी है... यहां का राजा महा चौपट और मूर्खाधिराज है। कभी भी हमारे प्राणों पर संकट आ सकता है। परन्तु शिष्य को यह सुझाव बिल्कुल नहीं पसंद आया। वह गुरु जी से बोला, गुरुजी मुझे तो यह स्थान बहुत भा गया है। यदि आपका आदेश हो तो कुछ दिन रह लूं। गुरुजी को उसकी बातपर हंसी आ गई। बोले ठीक है बेटा टके सेर की मिठाई खाकर थोड़ा सेहत बना ले। यदि कोई संकट आए तो मुझे याद कर लेना। यह कहकर उन्होंने वह स्थान त्याग दिया। गंगाधर रोज प्रात: नगर में भिक्षाटन को निकलता और जो एक दो रुपया प्राप्त होता उसकी अच्छी-अच्छी मिठाई खरीदकर उसका सेवन करता। इस प्रकार कई माह गुजर गए। खा-पीकर वह काफी मोटा-तगड़ा हो गया। |
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