14-02-2014, 11:58 PM | #1 |
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Jabalpur, Indore & Mandu (M.P.)
जबलपुरभारत के मध्यप्रदेश राज्य में विंध्य पर्वत श्रृंखला में स्थित नर्मदा नदी के पास बसा हुआ है। जबलपुर मध्यप्रदेश राज्य का एक महत्तपूर्ण संभाग है। जबलपुर को जबालिपुरम भी कहते हैं क्योंकि इसका सम्बन्ध महर्षि जाबालि से जोड़ा जाता है। इसे राज्य की स्कारधानी भी कहा जाता है। मध्य प्रदेश के गठन के बाद यहां पर उच्च न्यायालय तथा राज्य विज्ञान संस्थान की स्थापना की गई है। इसके अलावा जबलपुर थल सेना की छावनी के अलावा भारतीय आयुध निर्माणियों (ordnance factories) का तथा पश्चिम-मध्य रेलवे का मुख्यालय भी है। यहा पश्चिम मध्य रेल्वे का मुख्य कार्यालय भी है। यह शहर भारत के प्रमुख शहरो दिल्ली और मुंबई से हवाई मार्ग से जुड़ा हुआ है। इस शहर में दो विश्वविद्यालय हैं,रानी दुर्गावती विश्वविद्यालय एवं जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय। प्रमुख पर्यटन स्थलों में: रानी दुर्गावती का मदन महल:यह किला राजा मदन शाह ने 1116 में बनवाया था। ज़मीन से लगभग 500 मीटर की ऊँचाई पर बने इस 'मदन महल' की पहाड़ी 150 करोड़ वर्ष पुरानी मानी जाती है। इसी पहाड़ी पर गौंड़ राजा मदन शाह द्वारा एक चौकी बनवायी गई। इस किले की ईमारत को सेना अवलोकन पोस्ट के रूप में भी इस्तमाल किया जाता रहा होगा। इस इमारत की बनावट में अनेक छोटे-छोटे कमरों को देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि यहाँ रहने वाले शासक के साथ सेना भी रहती होगी। शायद इस भवन में दो खण्ड थे। इसमें एक आंगन था और अब आंगन के केवल दो ओर कमरे बचे हैं। छत की छपाई में सुन्दर चित्रकारी है। यह छत फलक युक्त वर्गाकार स्तम्भों पर आश्रित है। माना जाता है ,इस महल में कई गुप्त सुरंगे भी हैं जो जबलपुर के 1000 AD में बने '64 योगिनी 'मंदिर से जोड़ती हैं। यह दसवें गोंड राजा मदन शाह का आराम गृह भी माना जाता है। यह अत्यन्त साधारण भवन है। यह भवन अब भारतीय पुरातत्व संस्थान की देख रेख में है। भेङाघाट:नर्मदा नदी के दोनों तटों पर संगमरमर की सौ फुट तक ऊँची चट्टानें भेड़ाघाट की खासियत हैं। यह पर्यटन स्थल भी जबलपुर से महज 23 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। चांद की रोशनी में भेड़ाघाट की सैर एक अलग तरह का अनुभव रहता है।जबलपुर से भेड़ाघाट के लिए बस,टेम्पो और टैक्सी भी उपलब्ध रहती है। धुआंधार वॉटर फॉलःभेड़ाघाट के पास नर्मदा का पानी एक बड़े झरने के रूप में गिरता है। यह स्पॉट धुआँधार फॉल्स कहलाता है। नर्मदा नदी संगरमर की चट्टानो के बीच से गुजरती। ये दृश्य बहुत ही मन को छू लेने वाला लगता है।
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15-02-2014, 12:05 AM | #2 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
धुआंधार, भेड़ाघाट, जबलपुर का एक मनोरम दृष्य चौंसठ योगिनी मंदिर, जबलपुर **
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15-02-2014, 12:08 AM | #3 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
इन्दौर भ्रमण
आलेख: सुभाष सिंघल अभी तक आप पढ़ चुके हैं कि बैंक के कार्य से इन्दौर जाने का कार्यक्रम बना तो उस दौरान खाली समय में घुमक्कड़ी करने का संकल्प लेकर मैं किस प्रकार सहारनपुर स्टेशन पर अमृतसर से इन्दौर जाने वाली एक्सप्रेस ट्रेन तक पहुंचा।मोहन जोदड़ो की खुदाई में निकले अपने टू-टीयर वातानुकूलित डब्बे में अपनी सहयात्रियों को घुमक्कड़ डॉट कॉम के लेखकवृंद से परिचय कराते – कराते इन्दौर जा पहुंचा। इंदौर स्टेशन से गंगवाल बस अड्डे और फिर तीन घंटे तक टैक्सी को कर्फ्यूग्रस्त धार में घुसाने का असफल प्रयत्न करके अन्ततः वापिस इन्दौर आया, होटल में कमरा लिया! नहा-धोकरराजा-बेटाबन कर बैंक जा पहुंचा।अब आगे ! ये आर.एन.टी. – आर.एन.टी. क्या है? जब से मुझे पता चला था कि प्रेज़ीडेंट होटल, जिसमें मुझे अपने प्रवास के दौरान रुकना है, आर एन टी मार्ग पर है, मन में उत्सुकता हो रही थी कि भला आरएन टीसे इन्दौर के किस राजा का नाम हो सकता है? मल्हार राव, तुकोजी राव, अहिल्याबाई जैसे नाम ही बार-बार सुनने में आ रहे थे मगर इनमें से कोई भी नाम फिट नहीं बैठ रहा था।कई लोगों से पूछा पर सब ने यही कहा कि हर कोई आर एनटी ही कहता है।अन्ततः एक समझदार सा इंसान खोज कर उससे पूछा कि “भाईसाहब, ये आर.एन.टी. क्या है” तो उत्तर सुन कर मैं सन्न रह गया क्योंकि उत्तर मिला, रवीन्द्र नाथ टैगोर ! ये तो बगल में छोरा, नगर में ढिंढोरा वाला मामला हो गया था।खैर।
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15-02-2014, 12:09 AM | #4 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
आर.एन.टी. मार्ग से जावरा कंपाउंड इलाके की दूरी आधा किमी भी नहीं है अतः पैदल चलना बहुत आनन्ददायक अनुभव हो रहा था।फरवरी का मौसम वैसे भी कस्टम-मेड लग रहा था। हमारी बैंक शाखा सियागंज से जावरा कंपाउंड में अभी हाल ही में स्थानान्तरित हुई थी और मेरी देखी हुई नहीं थी।पूरी बारीकी से शाखा का निरीक्षण परीक्षण किया गया।सारे स्टाफ से भी परिचय हुआ।दोपहर को जब भूख लगने लगी तो बैंक से एक अधिकारी मुझे एक हलवाई की दुकान पर ले गये और चाट खिलाई!मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इंदौर वासी खाना खाने के समय भी खाना नहीं खाते, बल्कि चाट खाते हैं।शाम को सारे स्टाफ को होटल में आने का आदेश देकर तक मैं चार बजे वापिस होटल में आ गया। बैंक में बढ़ई काम कर रहे थे, लगातार ठक-ठक से मेरा जी घबराने लगा था।शाम को छः बजे से साढ़े सात बजे तक स्टाफ की मीटिंग ली गई और फिर उनको विदा करने के बाद सोचा कि अब क्या किया जाये।कहां जायें?
सैंट्रल मॉल गूगलदेव से प्राप्त जानकारी के अनुसार सैंट्रल मॉल आर.एन.टी. मार्ग पर ही था।खाना मॉल में ही खा लूंगा, यह सोच कर मैं होटल से बाहर सड़क पर निकल आया। हल्की – हल्की बूंदाबांदी हो रही थी। तभी मुकेश भालसे का फोन आ गया और उन्होंने बताया कि उनका बाहर जाने का कार्यक्रम आगे सरक गया है और अब वह रविवार को मेरा साथ दे सकते हैं।इससे पहले दो बार पहले भी मुकेश से मेरी बातचीत सहारनपुर में रहते हुए फोन से हुई थी।व्यक्तिगत परिचय कुछ नहीं था पर यह घुमक्कड़ डॉट कॉम का प्रताप ही कहना चाहिये कि हम दोनों ही एक दूसरे से मिलने के लिये व्याकुल थे। मैं सड़क पर चलते हुए फोन पर बात करते-करते एक विशालकाय मॉल तक आगया जो कि सैंट्रल मॉल ही सिद्ध हुई!कमाल है भई! इसका मतलब गूगलदेव की बात सही थी।मॉल के प्रवेश द्वार पर खड़े – खड़े हीमैने मुकेश को बताया कि कल शनिवार को 2 बजे तक का बैंक होगा, उसके बाद मैं पूरी तरह से उनके निर्देशानुसार ही चलूंगा।यही तय पाया गया कि मैं अगले दिन इन्दौर से अधिकतम तीन बजे धार वाली बस पकड़ कर घाटाबिलोद के लिये चल पड़ूंगा। हमारी धार शाखा का एक स्टाफ अधिकारी शनिवार को इंदौर शाखा में उपस्थित था और उसे तीन बजे इंदौर से धार स्थित अपने घर के लिये निकलना था। वह और मैं साथ-साथ इंदौर से घाटाबिलोद तक जायेंगे, यह कार्यक्रम मैने अगले दिन सुबह बैंक में पहुंचते ही निश्चित कर लिया था। पर खैर, फिलहाल तो सैंट्रल मॉल की बात करें। >>>
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15-02-2014, 12:11 AM | #5 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
परमप्रिय मित्रों,
आज इन्दौर प्रवास का मेरा अंतिम दिन था। 14 फरवरी को सहारनपुर से प्रस्थान किया था और आज 19 फरवरी हो चुकी थी ।इस बीच में बैंक की ड्यूटी निभाने के बावजूद बहुत कुछ देख डाला था और बहुत कुछ देखना बाकी था।खास तौर पर उज्जैन, महेश्वर आदि तीर्थों के दर्शनयह सोच कर टाल दिये थे कि अगली बार सपरिवार आऊंगा तो ज्योतिर्लिंगों के दर्शन का पूरा पुण्य मिल सकेगा।सुबह नहा-धोकर तैयार हुआ, होटल के रिसेप्शन काउंटर पर आया और वहां पर खड़ी हुई स्वागतोत्सुक बालिका से कहा कि आज चेक आउट करना है।वह बोली, इतनी जल्दी? अभी चार – पांच दिन पहले तो आप आये ही हैं, और कुछ दिन रुकिये ना?“ मैने कहा, “फटाफट बिल बनाओ, टाइम नहीं है!” ठीक है, मैं आपका बिल बनाती हूंपर तब तक प्लीज़ आप ब्रेकफास्ट तो ले लीजिये।उसने अन्दर डायनिंग हॉल की ओर इशारा किया तो मुझे लगा कि बेकार में तीन-चार सौ रुपये का ब्रेकफास्ट का बिल और जोड़ देगी ।पर वह पीछे ही पड़ गई कि नाश्ता तो आप करके ही जायें ।उसका यह आग्रह करना मुझे अच्छा तो नहीं लगा पर बिना कुछ कहे मैं डायनिंग हॉल में चला गया।वहां पर नाश्ते के सामान का लंबा चौड़ा काउंटर लगा हुआ था और सेल्फ – सर्विस थी।मैने प्लेट उठाई और जो-जो कुछ अच्छा लगा, प्रेमभाव से खाता रहा।एक बेयरा आया और मुझसे कमरा नंबर पूछा तो मैने बता दिया।अब मेरे ज्ञानचक्षु खुले ।इस होटल में ठहरे हुए सभी अतिथियों के लिये सुबहका नाश्ता complimentary है और बहुत स्वादपूर्ण भी । इसके बाद देखा कि कॉफी बनाने का भी जुगाड़ रखा हुआ है, फटाफट काफी भी बनाई और सुड़क ली ! अब मुझे यह अफसोस हुआ कि मैने 15 तारीख से यहां नाश्ता क्यों नहीं किया।पर चलो, जो हुआ सो हुआ, अबआगे के लिये सीख मिल गई। मैने नाश्ते के लिये धन्यवाद दिया और बिल का भुगतान करने के बाद उस बालिका से कहा कि मेरी अटैची और बैग यहीं कहीं रख लें क्योंकि दोपहर में मेरी ट्रेन है।उन्होंने मेरे नाम का टैग लगाकर मेरा सामान रिसेप्शन के पास ही रख लिया।अब मैं कैमरे का बैग कंधे पर लटका कर बैंक की ओर चल पड़ा।जब ऑटोबैंक पर पहुंचा तो देखा कि अभी तो नौ ही बज रहे हैं और बैंक खुला नहीं है।गूगल नक्शे के आधार पर मुझे यह आभास था कि हमारी बैंक शाखा आगरा-मुंबई हाइवे के बहुत ही नज़दीक है।मैने आटो से कहा कि इस कालोनी में से हाइवे के लिये रास्ता निकल आयेगा क्या? वह बोला, बिल्कुल निकलेगा, बताइये कहां जायेंगे ? मैने कहा कि म्यूज़ियम आस-पास ही है, वहीं छोड़ दो !जब तक बैंक खुले, म्यूज़ियम में ही सही ।मेरी इच्छानुसार मुझे इन्दौर के केन्द्रीय संग्रहालय के बाहर छोड़ दिया गया।
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15-02-2014, 12:13 AM | #6 |
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Re: Jabalpur & Indore (M.P.)
इन्दौर केन्द्रीय संग्रहालय
संग्रहालय के मुख्य द्वार से अन्दर घुसा तो देखा कि टिकट खिड़की बन्द है।मुख्य भवन के बाहर भी नाना प्रकार की सैंकड़ों मूर्तियां वहां पर सुसज्जित देख कर मैने कैमरा निकाला और बकौल नन्दन झा, न्रीक्षण-प्रीक्षण शुरु हो गया। एक सज्जन मेरे पास आकर बोले, कैमरे का टिकट ले लीजियेगा, अपना भी। अभी थोड़ी ही देर में टिकट काउंटर खुल जायेगा। मैने पूछा कि तब तक मैं क्या करूं? इंतज़ार करना पड़ेगा? वह बोला, “नहीं, नहीं, आराम से देखिये, जहां भी चाहें, फोटो खींचिये।मेन बिल्डिंग में भी बहुत कुछ है।रास्ता इधर से है।” धन्यवाद कह कर मैं बेधड़क इधर-उधर घूमता फिरता रहा और एक डेढ़ घंटे में पूरा संग्रहालय उलट-पुलट कर देख डाला। इस संग्रहालय में वैसे तो छः वीथिकायें हैं पर मुझे हिंगलाज़गढ़ की परमार कालीन प्रतिमाओं वाली वीथिका सबसे अच्छी लगी।उससे भी बढ़ कर, आठ दस प्रतिमायें इटैलियन थींजो इन्दौर के राज परिवार की ओर से इस संग्रहालय को भेंट मिली हैं।इन इटैलियन और भारतीय कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्तियों में मूल अन्तर ये है कि भारतीय कलाकारों द्वारा निर्मित मूर्तियों में शरीर रचना लगभग एक जैसी सी लगती है।चेहरे में भी बहुत अन्तर नहीं आता।अलंकरण से पता चलता है कि यह किस देवी – देवता – यक्ष – यक्षिणी की प्रतिमा है।नारी व पुरुष के अंग – प्रत्यंग की संरचना बहुत कलात्मक तो है पर काफी कुछ एक जैसी अनुभव होने लगती है। इनको देखते देखते जब थक जाओ और अचानक ग्रीक या इटैलियन प्रतिमाएं सामने आ जायें तो ताज़ा हवा का झोंका आ गया प्रतीत होता है। अर्वाचीन युग के अत्यन्त कलात्मक द्वार ऐसे के ऐसे उठा कर यहां प्रदर्शन हेतु रखे गये हैंजो इस संग्रहालय का बहुमूल्य हिस्सा हैं। दर्शकों एवं पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए प्लास्टर कास्ट (plaster cast) की प्रतिकृतियां भी यहां तैयार की जाती हैं और विक्रय हेतु उपलब्ध हैं। उसके अलावा मध्यप्रदेश में हुए उत्खनन से मिली वस्तुएं वहां प्रदर्शित हैं।एक वीथिका (gallery) सिक्कों की भी थी, उसे देख कर भी अच्छा लगा। साढ़े दस बजे के करीब टिकट काउंटर वाले महोदय आये, मुझे टिकट दिये और चूंकि मैं उस समय तक लगभग पूरा संग्रहालय देख चुका था, मैने वहां से प्रस्थान किया। चिड़ियाघर बाहर निकल कर मैंबैंक की ओर वापिस जाने के लिये सड़क के उस पार जाना चाहता था पर road divider पर कट कुछ दूर था।पैदल ही आगे बढ़ना शुरु किया तो अपनी ही साइड में zoo का बोर्ड लगा मिला।सोचा, इसे भी क्यों नाराज़ किया जाये – चलो अन्दर चलते हैं।टिकट लेकर भीतर प्रवेश किया तो लगा कि यहां तो कितने भी घंटे घूमता रह सकता हूं। शेर, चीते, भेड़िये, नील गाय, मगरमच्छ, हाथी, हिरण, बारहसिंघे, मोर की अनेक प्रजातियां, नाना प्रकार की बतखें और उनकी प्रजाति के अन्य पक्षी वहां काफी अच्छे ढंग से रखेगये हैं। खास बात यह है कि उनको घूमने फिरने के लिये पर्याप्त स्थान उपलब्ध कराया गया है – बिल्कुल पिंजरे में बन्द तोते जैसी स्थिति नहीं है। **
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15-02-2014, 12:21 AM | #7 |
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होल्कर राजाओं का दो सौ वर्ष पुराना "रजवाड़ा"
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15-02-2014, 12:37 AM | #8 |
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जहाज महल, मांडू (इन्दोर के निकटवर्ती दर्शनीय स्थल)
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15-02-2014, 12:40 AM | #9 |
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15-02-2014, 12:42 AM | #10 |
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