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Old 03-07-2013, 02:08 PM   #11
VARSHNEY.009
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स्टेमसेलअनुसंधान
अमेरिकी और जापानी शोधकर्ताओं ने वयस्क त्वचा कोशिकाओं को भ्रूण से प्राप्त होने वाली स्टेम सेल कोशिकाओं की तरह कार्य करने के लिए प्रोग्राम करने में सफलता प्राप्त की। यह खोज इस संभावना के लिए रास्ता बनाती है कि भविष्य में वैज्ञानिक किसी भ्रूण की कोशिकाओं को क्षतिग्रस्त किए बिना वयस्क कोशिकाओं का प्रयोग कर बीमारियों का इलाज ढूंढ़ सकेंगे।
सर्वाधिकचमकदारसुपरनोवा
कैलिफोर्निया और टेक्सास में खगोलवेत्ताओं ने ब्रह्मंांड में अब तक देखे गए सबसे चमकदार और सबसे बड़े विस्फोट को दर्ज किया। खगोलविज्ञान में ‘सुपरनोवा’ कहलाने वाली इस प्रक्रिया में हमारे सूरज से लगभग 100 से 200 गुना आकार वाला सितारा ब्लैक होल में तब्दील हो गया। इसके बाद इसमें प्रचंड विस्फोट हुआ और यह घटना हुई पृथ्वी से लगभग 240 मिलियन प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक आकाश गंगा में।
जीनमैपिंग
जीनोम आधारित औषधि के क्षेत्र में कार्य कर रही दो कंपनियों ने लगभग एक साथ ही किसी मानव का पूरा जीनतंत्र पढ़ लेने में सफलता प्राप्त की। जेम्स वॉटसन और जे. क्रेग वेंटर नामक दो व्यक्तियों पर हुए इन स्वतंत्र अध्ययनों में इन्हें वंशानुक्रम में प्राप्त हुए क्रोमोसोम्स तक का सफल अध्ययन कर लिया गया।
प्राकृतिकहार्टवॉल्व
लंदन में शोधकर्ताओं के एक दल ने मानव अस्थि मज्जा से प्राप्त कोशिकाओं को हार्ट वॉल्व के ऊतक के रूप में विकसित करने में सफलता प्राप्त की। यह ऊतक संपूर्ण हार्ट वाल्व के रूप में विकसित हो सकता है और उम्मीद है कि आगामी पाँच वर्र्षो में इस तरह से तैयार प्राकृतिक हार्ट वॉल्व को मनुष्यों में प्रत्यारोपित किया जा सकेगा।
अंटार्कटिकामेंनईप्रजातियाँ
वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि उन्होंने अंटार्कटिका के निकट गहरे पानी में लगभग 700 नई प्रजातियों को खोज लिया है। इनमें जायंट सी स्पाइडर, माँसाहारी स्पंज और दीमक जैसे क्रस्टेशियन्स शामिल हैं। पहले यह क्षेत्र ग्लेशियर की बर्फ से ढका हुआ था।
डायनासोरजैसीबड़ीचिड़िया
फॉसिल्स का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने चीन में एक बड़े माँसाहारी डायनासोर के जीवाश्म प्राप्त किए। इस डायनासोर की भुजाएं पंखों जैसी थीं। इस खोज ने उस पुराने स्थापित तथ्य को खारिज कर दिया कि उड़ान में सक्षम होने के साथ ही माँसाहारी जीवों का आकार छोटा होने लगता है।
प्राचीनतमजीवितजंतु
आइसलैंड के तटवर्ती क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने 405 साल पुराने क्लैम को ढूंढ़ निकाला और दावा किया कि यह विश्व का प्राचीनतम जीवित जंतु है। अफसोस कि इसके कवच पर मौजूद छल्लों के अध्ययन के दौरान इन्हीं वैज्ञानिकों के हाथों उसकी ‘हत्या’ हो गई।
जीवनकीभट्ठियाँ
ब्रिटिश वैज्ञानिकों ने सौरमंडल के बाहर तीन विशालकाय ग्रहों को खोज निकाला। आकार में बृहस्पति ग्रह के बराबर इन ग्रहों का तापमान इतना अधिक है कि वहाँ पर जीवन नहीं हो सकता, लेकिन यह इस बात का इशारा करते हैं कि इनके आसपास मौजूद दूसरे छोटे ग्रहों में जीवन के अनुकूल परिस्थितियाँ मिल सकती हैं।
होमोसेपियंसकानवीनअध्ययन
1952 में दक्षिण अफ्रीका में मिली एक मानव खोपड़ी का अध्ययन इस साल पूरा हो गया। इस जीवाश्म के सुराग यह कहते हैं कि आधुनिक मानव (होमोसेपियंस) का मूलस्थान अफ्रीका का उप-सहारा क्षेत्र था और यहाँ से इसने लगभग 65,000-25,000 वर्ष पूर्व यूरेशिया की तरफ कदम बढ़ाए।
वास्तविकक्रिप्टोनाइट
‘सुपरमैन रिटर्न’ मूवी की कल्पना इस साल हकीकत में तब्दील हो गई जब वैज्ञानिकों ने क्रिप्टोनाइट के समतुल्य रासायनिक समीकरण वाले यौगिक अयस्क को साइबेरिया में ढूंढ़ निकाला। सोडियम लीथियम बोरॉन सिलिकेट हाइड्रोक्साइड फार्मूला वाले इस यौगिक अयस्क को वैज्ञानिकों ने जैडेराइट का नाम दिया। काश यह सुपरमैन की फिल्म की तरह हरे रंग की चमक बिखेरता, तो इसे वही सुपरहिट नाम (क्रिप्टोनाइट) मिल जाता!
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Old 03-07-2013, 02:29 PM   #12
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न्यूटन के गति के नियम के अन्तर्गत तीन भौतिक नियम सम्मिलित हैं जो कि किसी पिंड पर लगाये गये बल तथा पिंड की गति के मध्य सम्बंध स्थापित करते हैं। ये नियम सर आइजैक न्यूटन के द्वारा सर्वप्रथम प्रतिपादित किये गये थे तथा इनका प्रथम प्रकाशन 5 जुलाई, 1687 को हुआ था।
गति का पहला नियम

कोई वस्तु यदि स्थिर है तो स्थिर ही रहेगी या गति में है तो गति में ही रहेगी जब तक कि उस पर बाह्य बल का प्रयोग न किया जायें।
इस नियम से गैलिलियों के जड़ता (inertia) की परिकल्पना को मान्यता मिलती है इसीलिये इस नियम को “जड़ता का नियम” (Law of Inertia) भी कहा जाता है।
गति का दूसरा नियम

किसी वस्तु का द्रव्यमान m, त्वरण (acceleration) a तथा उस पर लगाये गये बल F में निम्न संबंध होता है।

F = ma

यह नियम गति के नियमों में अत्यंत शक्तिशाली नियम है क्योंकि इसके द्वारा गति की परिणात्मक गणना किया जाता है।
गति का तीसरा नियम

प्रत्येक क्रिया की समान एवं विपरीत प्रतिक्रिया होती है।
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Old 03-07-2013, 02:29 PM   #13
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  • तेजाब – तेजाब खट्टे स्वाद वाली क्षयकारी वस्तु है। किसी भी तेजाब का घोल लिटमस पेपर को लाल कर देता है। Acid – Acid is a sour tasting, corrosive substance. Acidic solutions will turn a litmus red.
  • क्षार – क्षार क्षारक (अम्ल के विपरीत) गुणों वाली वस्तु है। Alkali – Alkali is a a substance having basic (as opposed to acidic) properties..
  • अणु – अणु किसी रासायनिक तत्व का सबसे छोटा भाग होता है। अणु के नाभिकीय क्षेत्र में प्रोट्रान तथा न्यूट्रान होते हैं जिसके चारों और इलेक्ट्रान परिक्रमा करते हैं। Atoms – Atoms is the smallest particle that comprises a chemical element. Atoms are made up of protons and neutrons in a central nucleus surrounded by electrons.
  • वायुवेगमापी – वायुवेगमापी (एनेमोमीटर) वायु के वेग को मापने के लिये बनाया गया यंत्र है। Anemometer – Anemometer is a device used to measure the speed of wind.
  • वातावरण – वातावरण वायु की परत होती है जो कि पृथ्वी को घेरे रहती है। Atmosphere – Atmosphere is the layer of air that surrounds the Earth.
  • बैरोमीटर – बैरोमीटर एक यंत्र होता है जिसके द्वारा वातावरण के दबाव को मापा जाता है। वातावरण के दबाव को मापने के लिये बैरोमीटर में पानी, हवा अथवा पारा का प्रयोग किया जाता है। Barometer – Barometer is an instrument used to measure atmospheric pressure. It can measure the pressure exerted by the atmosphere by using water, air, or mercury.
  • क्षारक – क्षारक कसैले स्वाद वाला पदार्थ होता है जो कि तेजाब के विपरीत गुणों वाला होता है। क्षारक का घोल लिटमस पेपर को नीला कर देता है। Base – Base is a bitter tasting substance (and often slimy) – the opposite of a acid substance. Base solutions will turn a litmus blue.
  • बैटरी – बैटरी रासायनिक ऊर्जा को सीधे सीधे विद्युत ऊर्जा में परिवर्तित कर देने वाला यंत्र है। Battery – Battery is a device that converts chemical energy directly to electrical energy.
  • संघरित्र – संघरित्र विद्युत ऊर्जा को विद्युत आवेश के रूप में भंडार करके रखने वाला यंत्र है। Capacitor – Capacitor is a device that stores electric energy in the form of an electric charge.
  • सेल्सियस – सेल्सियस ताप मापने की इकाई है पानी 0ºC (शून्य अंश सेल्सियस) में जम जाता है और 100°C (100 अंश सेल्सियश) में उबलता है। Celsius – Celsius is a unit of measurement for temperature. Water freezes at 0ºC (zero degrees Celsius) and boils at 100°C (100 degrees Celsius).
  • आवेश – आवेश अणु के द्वारा इलेक्ट्रान खोने या प्राप्त करने की अवस्था है। Charge – Charge is the state of an atom that has lost or gained an electron.
  • रासायनिक प्रतिक्रिया – रासायनिक प्रतिक्रिया दो पदार्थों के बीच की प्रतिक्रिया है जिसके परिणामस्वरूप तीसरा पदार्थ बनता है। Chemical Reaction – Chemical Reaction is a process by which one substance is chemically converted to another.
  • चालक – चालक वह वस्तु होती है जो कि उष्मा, विद्युत आदि ऊर्जाओं को संचारित करता है। Conductor – Conductor is a thing that transmits heat, electricity, light, sound or other form of energy.
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Old 03-07-2013, 02:30 PM   #14
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विज्ञान अर्थात् अंग्रेजी का science शब्द की उत्पत्ति हुई है लेटिन के “scientia” शब्द से, जिसका अर्थ है “बोध” (knowledge)। भौतिक संसार कैसे कार्य करता है को अवलोकन योग्य भौतिक तथ्यों के साथ खोजने, समझने या बेहतर रूप में समझने का प्रयास ही विज्ञान है।
विज्ञान की शाखाएँ

विज्ञान को निम्न शाखाओं में विभाजित किया जा सकता हैः
  • भौतिक विज्ञान: भौतिक विज्ञान के अन्तर्गत आते हैं -
    • भौतिक शास्त्रः भौतिक शास्त्र के अन्तर्गत पदार्थों तथा ऊर्जाओं जैसे कि उष्मा, प्रकाश, चुम्बकत्व और ध्वनि के विषय में अध्ययन आते हैं।
    • रसायन शास्त्रः रसायन शास्त्र के अन्तर्गत अकार्बनिक तथा कार्बनिक पदार्थों के संयोजन, गुण, क्रियाएँ, संरचना आदि के विषय में अध्ययन आते हैं।
    • खगोल शास्त्रः रसायन शास्त्र के अन्तर्गत पृथ्वी से परे समस्त ब्रह्माण्ड के विषय में अध्ययन आता हैं।
  • भू-विज्ञान भू-विज्ञान के अन्तर्गत आते हैं -
    • भूगर्भ शास्त्रः भूगर्भ शास्त्र के अन्तर्गत पृथ्वी की उत्पत्ति, इतिहास तथा संरचना के विषय में अध्ययन आता हैं।
    • समुद्र शास्त्रः समुद्र शास्त्र के अन्तर्गत समुद्रों के विषय में अन्वेषण तथा अध्ययन आता हैं।
    • जीवन विषयक विज्ञान (जीवविज्ञान) जीवविज्ञान के अन्तर्गत आते हैं -
      • वनस्पति शास्त्रः वनस्पति शास्त्र के अन्तर्गत वनस्पतियों के विषय में अध्ययन आता हैं।
      • प्राणी शास्त्रः प्राणी शास्त्र के अन्तर्गत प्राणियों तथा उनके जीवन के विषय में अध्ययन आता हैं।
      • आनुवांशिक शास्त्रः आनुवांशिक शास्त्र के अन्तर्गत वंशो के विषय में अध्ययन आता हैं।
      • औषधि विज्ञानः औषधि विज्ञान के अन्तर्गत रोगो के निदान, उपचार आदि के विषय में अध्ययन आता हैं।
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Old 04-07-2013, 02:57 PM   #15
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EPIC वेब ब्राउज़र

फ़ायरफ़ॉक्स पर आधारित भारतीय जरूरतों के लिए बना पहला भारतीय ब्राउजर Epic अब अपने नए संस्करण में उपलब्ध है नया Epic 1.9.5

ये एक ऐसा ब्राउजर है जिसमें पहले से थीम और वालपेपर हैं, साइडबार 1500 से भी ज्यादा एप्लीकेशंस हैं और साथ ही इसमें ब्राउजिंग काफी तेज और सुरक्षित भी है ।

इसमें 13 भारतीय भाषाओँ में आसानी से टाइप करने की सुविधा है साथ ही 18 टीवी चैनल को लाइव देखने के सुविधा भी ।
साथ ही फ़ायरफ़ॉक्स के एड ऑन्स भी आप इसमें इंस्टाल कर सकते हैं ।


अब एक ही ब्राउजर में इतनी सारी सुविधाएँ कहीं और नहीं मिलेंगी आपको ।

अगर आपके पास पहले से ये है तो इसे अभी अपडेट कीजिये और अगर नहीं है तो इसे एक बार जरुर आजमा कर देखिये ।

शुरू में आपको थोड़ी दिक्कत होगी पर बाद में अपने सभी ऑनलाइन जरूरतों के लिए आपको ये सबसे बढ़िया विकल्प लगेगा ।
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Old 15-07-2013, 12:17 PM   #16
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डाप्लर प्रभाव तथा लाल विचलन

डाप्लर प्रभाव
डापलर प्रभाव यह किसी तरंग(Wave) की तरंगदैधर्य(wavelength) और आवृत्ती(frequency) मे आया वह परिवर्तन है जिसे उस तरंग के श्रोत के पास आते या दूर जाते हुये निरीक्षक द्वारा महसूस किया जाता है। यह प्रभाव आप किसी आप अपने निकट पहुंचते वाहन की ध्वनी और दूर जाते वाहन की ध्वनी मे आ रहे परिवर्तनो से महसूस कर सकते है।

इसे वैज्ञानिक रूप से देंखे तो होता यह है कि आप से दूर जाते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य(wavelength)बढ जाती है, और पास आते वाहन की ध्वनी तरंगो(Sound waves) का तरंगदैधर्य कम हो जाती है। दूसरे शब्दो मे जब तरंगदैधर्य(wavelength) बढ जाती है तब आवृत्ती कम हो जाती है और जब तरंगदैधर्य(wavelength) कम हो जाती है आवृत्ती बढ जाती है।

एक आसान उदाहरण लेते है, मान लिजीये एक खिलाडी दूसरे खिलाडी की ओर हर सेकंड एक गेंद फेंक रहा है। दूसरा खिलाडी यदि अपनी जगह पर ही खडा हो तो वह हर सेकंड एक गेंद प्राप्त करेगा। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी से दूर जाये तो उसे प्राप्त होने वाली गेंदो के अंतराल मे बढोत्तरी होगी यानी उसे हर सेकंड प्राप्त होने वाली गेंदो मे कमी आयेगी। विज्ञान की भाषा मे गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती (frequency) मे कमी आयेगी। यदि गेंद झेलने वाला खिलाडी फेंकने वाले खिलाडी के पास आये तो गेंद प्राप्त करने की आवृत्ती मे बढोत्तरी होगी। ध्यान दिजिये श्रोत की गेंद फेंकने की आवृत्ती मे कोई बदलाव नही आ रहा है

यही प्रभाव कीसी भी तरंग (ध्वनी/प्रकाश/क्ष किरण/गामा किरण) पर होता है। तरंग श्रोत से दूर जाने पर उसकी आवृत्ती मे कमी आती है अर्थात तरंगदैधर्य मे बढोत्तरी होते है। तरंग श्रोत के पास आने पर उसकी आवृत्ती मे बढोत्तरी होती है अर्थात तरंगदैधर्य मे कमी आती है।

लाल विचलन (Red Shift)

लाल विचलन यह वह प्रक्रिया जिसमे किसी पिंड से उत्सर्जीत प्रकाश वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलीत होता है। वैज्ञानिक तौर से यह उत्सर्जीत प्रकाश किरण की तुलना मे निरिक्षित प्रकाश किरण के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी है। दूसरे शब्दो मे प्रकाश श्रोत से प्रकाश के पहुंचने तक प्रकाश किरणो के तरंग दैधर्य मे हुयी बढोत्तरी या उसकी आवृती मे कमी होती है।
प्रकाश किरणो मे लाल रंग की प्रकाश किरणो का तरंग दैधर्य सबसे ज्यादा होता है, इसलिये किसी भी रंग की किरण का वर्णक्रम मे लाल रंग की ओर विचलन ‘लाल विचलन’ कहलाता है। यह प्रक्रिया अप्रकाशिय किरणो (गामा किरणे, क्ष किरणे, पराबैगनी किरणे) के लिये भी लागु होती है और इसी नाम से जानी जाती है। किरणे जिनका तरंग दैधर्य लाल रंग की किरणो से भी ज्यादा होता है(अवरक्त किरणे(infra red), सुक्षम तरंग तरंगे(Microwave), रेडीयो तरंगे) यह विचलन लाल रंग से दूर होता है।
सामान्यतः लाल विचलन उस समय होता है जब प्रकाश श्रोत प्रकाश निरिक्षक से दूर जाता है, बिलकुल ध्वनी किरणो के डाप्लर सिद्धांत की तरह ! यह सिद्धांत खगोल शास्त्र मे आकाशिय पिंडो की गति और दूरी को मापने के लिये उपयोग मे लाया जाता है।
__________________
Disclamer :- Above Post are Free Available On INTERNET Posted By Somebody Else, I'm Not VIOLATING Any COPYRIGHTED LAW. If Anything Is Against LAW, Please Notify So That It Can Be Removed.
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Old 15-07-2013, 12:18 PM   #17
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महाविस्फोट का सिद्धांत (The Big Bang Theory)

किसी बादलों और चांद रहित रात में यदि आसमान को देखा जाये तब हम पायेंगे कि आसमान में सबसे ज्यादा चमकीले पिंड शुक्र, मंगल, गुरु, और शनि जैसे ग्रह हैं। इसके अलावा आसमान में असंख्य तारे भी दिखाई देते है जो कि हमारे सूर्य जैसे ही है लेकिन हम से काफी दूर हैं। हमारे सबसे नजदीक का सितारा प्राक्सीमा सेंटारी हम से चार प्रकाश वर्ष (१०) दूर है। हमारी आँखों से दिखाई देने वाले अधिकतर तारे कुछ सौ प्रकाश वर्ष की दूरी पर हैं। तुलना के लिये बता दें कि सूर्य हम से केवल आठ प्रकाश मिनट और चांद १४ प्रकाश सेकंड की दूरी पर है। हमे दिखाई देने वाले अधिकतर तारे एक लंबे पट्टे के रूप में दिखाई देते है, जिसे हम आकाशगंगा कहते है। जो कि वास्तविकता में चित्र में दिखाये अनुसार पेचदार (Spiral) है। इस से पता चलता है कि ब्रह्मांड कितना विराट है ! यह ब्रह्मांड अस्तित्व में कैसे आया ?

महा विस्फोट के बाद ब्रह्मांड का विस्तार

महा विस्फोट का सिद्धांत ब्रह्मांड की उत्पत्ति के संदर्भ में सबसे ज्यादा मान्य है। यह सिद्धांत व्याख्या करता है कि कैसे आज से लगभग १३.७ खरब वर्ष पूर्व एक अत्यंत गर्म और घनी अवस्था से ब्रह्मांड का जन्म हुआ। इसके अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक बिन्दु से हुयी थी।
हब्बल के द्वारा किया गया निरीक्षण और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(२)(Cosmological Principle)महा विस्फोट के सिद्धांत का मूल है।
१९१९ में ह्ब्बल ने लाल विचलन(१) (Red Shift) के सिद्धांत के आधार पर पाया था कि ब्रह्मांड फैल रहा है, ब्रह्मांड की आकाशगंगाये तेजी से एक दूसरे से दूर जा रही है। इस सिद्धांत के अनुसार भूतकाल में आकाशगंगाये एक दूसरे के और पास रही होंगी और, ज्यादा भूतकाल मे जाने पर यह एक दूसरे के अत्यधिक पास रही होंगी। इन निरीक्षण से यह निष्कर्ष निकलता है कि ब्रम्हांड ने एक ऐसी स्थिती से जन्म लिया है जिसमे ब्रह्मांड का सारा पदार्थ और ऊर्जा अत्यंत गर्म तापमान और घनत्व पर एक ही स्थान पर था। इस स्थिती को गुरुत्विय ’सिन्गुलरीटी ‘ (Gravitational Singularity) कहते है। महा-विस्फोट यह शब्द उस समय की ओर संकेत करता है जब निरीक्षित ब्रह्मांड का विस्तार प्रारंभ हुआ था। यह समय गणना करने पर आज से १३.७ खरब वर्ष पूर्व(१.३७ x १०१०) पाया गया है। इस सिद्धांत की सहायता से जार्ज गैमो ने १९४८ में ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB)(३) की भविष्यवाणी की थी ,जिसे १९६० में खोज लीया गया था। इस खोज ने महा-विस्फोट के सिद्धांत को एक ठोस आधार प्रदान किया।

महा-विस्फोट का सिद्धांत अनुमान और निरीक्षण के आधार पर रचा गया है। खगोल शास्त्रियों का निरीक्षण था कि अधिकतर निहारिकायें(nebulae)(४) पृथ्वी से दूर जा रही है। उन्हें इसके खगोल शास्त्र पर प्रभाव और इसके कारण के बारे में ज्ञात नहीं था। उन्हें यह भी ज्ञात नहीं था की ये निहारिकायें हमारी अपनी आकाशगंगा के बाहर है। यह क्यों हो रहा है, कैसे हो रहा है एक रहस्य था।

१९२७ मे जार्जस लेमिट्र ने आईन्साटाइन के सापेक्षता के सिद्धांत(Theory of General Relativity) से आगे जाते हुये फ़्रीडमैन-लेमिट्र-राबर्टसन-वाकर समीकरण (Friedmann-Lemaître-Robertson-Walker equations) बनाये। लेमिट्र के अनुसार ब्रह्मांड की उत्पत्ति एक प्राथमिक परमाणु से हुयी है, इसी प्रतिपादन को आज हम महा-विस्फोट का सिद्धांत कहते हैं। लेकिन उस समय इस विचार को किसी ने गंभीरता से नहीं लिया।

इसके पहले १९२५ मे हब्बल ने पाया था कि ब्रह्मांड में हमारी आकाशगंगा अकेली नहीं है, ऐसी अनेकों आकाशगंगाये है। जिनके बीच में विशालकाय अंतराल है। इसे प्रमाणित करने के लिये उसे इन आकाशगंगाओं के पृथ्वी से दूरी गणना करनी थी। लेकिन ये आकाशगंगाये हमें दिखायी देने वाले तारों की तुलना में काफी दूर थी। इस दूरी की गणना के लिये हब्बल ने अप्रत्यक्ष तरीका प्रयोग में लाया। किसी भी तारे की चमक(brightness) दो कारकों पर निर्भर करती है, वह कितना दीप्ति(luminosity) का प्रकाश उत्सर्जित करता है और कितनी दूरी पर स्थित है। हम पास के तारों की चमक और दूरी की ज्ञात हो तब उनकी दीप्ति की गणना की जा सकती है| उसी तरह तारे की दीप्ति ज्ञात होने पर उसकी चमक का निरीक्षण से प्राप्त मान का प्रयोग कर दूरी ज्ञात की जा सकती है। इस तरह से हब्ब्ल ने नौ विभिन्न आकाशगंगाओं की दूरी का गणना की ।(११)

१९२९ मे हब्बल जब इन्ही आकाशगंगाओं का निरीक्षण कर दूरी की गणना कर रहा था। वह हर तारे से उत्सर्जित प्रकाश का वर्णक्रम और दूरी का एक सूचीपत्र बना रहा था। उस समय तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड मे आकाशगंगाये बिना किसी विशिष्ट क्रम के ऐसे ही अनियमित रूप से विचरण कर रही है। उसका अनुमान था कि इस सूची पत्र में उसे समान मात्रा में लाल विचलन(१) और बैगनी विचलन मिलेगा। लेकिन नतीजे अप्रत्याशित थे। उसे लगभग सभी आकाशगंगाओ से लाल विचलन ही मिला। इसका अर्थ यह था कि सभी आकाशगंगाये हम से दूर जा रही है। सबसे ज्यादा आश्चर्य जनक खोज यह थी कि यह लाल विचलन अनियमित नहीं था ,यह विचलन उस आकाशगंगा की गति के समानुपाती था। इसका अर्थ यह था कि ब्रह्मांड स्थिर नहीं है, आकाशगंगाओं के बिच की दूरी बढ़ते जा रही है। इस प्रयोग ने लेमिट्र के सिद्धांत को निरीक्षण से प्रायोगिक आधार दिया था। यह निरीक्षण आज हब्बल के नियम के रूप मे जाना जाता है।

हब्बल का नियम और ब्रह्मांडीय सिद्धांत(२)ने यह बताया कि ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। यह सिद्धांत आईन्स्टाईन के अनंत और स्थैतिक ब्रह्मांड के विपरीत था।

इस सिद्धांत ने दो विरोधाभाषी संभावनाओ को हवा दी थी। पहली संभावना थी, लेमिट्र का महा-विस्फोट सिद्धांत जिसे जार्ज गैमो ने समर्थन और विस्तार दिया था। दूसरी संभावना थी, फ़्रेड होयेल का स्थायी स्थिती माडल (Fred Hoyle’s steady state model), जिसमे दूर होती आकाशगंगाओं के बिच में हमेशा नये पदार्थों की उत्पत्ति का प्रतिपादन था। दूसरे शब्दों में आकाशगंगाये एक दूसरे से दूर जाने पर जो खाली स्थान बनता है वहां पर नये पदार्थ का निर्माण होता है। इस संभावना के अनुसार मोटे तौर पर ब्रह्मांड हर समय एक जैसा ही रहा है और रहेगा। होयेल ही वह व्यक्ति थे जिन्होने लेमिट्र का महाविस्फोट सिद्धांत का मजाक उड़ाते हुये “बिग बैंग आईडीया” का नाम दिया था।

काफी समय तक इन दोनो माड्लो के बिच मे वैज्ञानिक विभाजित रहे। लेकिन धीरे धीरे वैज्ञानिक प्रयोगो और निरिक्षणो से महाविस्फोट के सिद्धांत को समर्थन बढता गया। १९६५ के बाद ब्रम्हांडिय सुक्षम तरंग विकिरण (Cosmic Microwave Radiation) की खोज के बाद इस सिद्धांत को सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत का दर्जा मिल गया। आज की स्थिती मे खगोल विज्ञान का हर नियम इसी सिद्धांत पर आधारित है और इसी सिद्धांत का विस्तार है।

महा-विस्फोट के बाद शुरुवाती ब्रह्मांड समांगी और सावर्तिक रूप से अत्यधिक घनत्व का और ऊर्जा से भरा हुआ था. उस समय दबाव और तापमान भी अत्यधिक था। यह धीर धीरे फैलता गया और ठंडा होता गया, यह प्रक्रिया कुछ वैसी थी जैसे भाप का धीरे धीरे ठंडा हो कर बर्फ मे बदलना, अंतर इतना ही है कि यह प्रक्रिया मूलभूत कणों(इलेक्ट्रान, प्रोटान, फोटान इत्यादि) से संबंधित है।

प्लैंक काल(५) के १० -३५ सेकंड के बाद एक संक्रमण के द्वारा ब्रह्मांड की काफी तिव्र गति से वृद्धी(exponential growth) हुयी। इस काल को अंतरिक्षीय स्फीति(cosmic inflation) काल कहा जाता है। इस स्फीति के समाप्त होने के पश्चात, ब्रह्मांड का पदार्थ एक क्वार्क-ग्लूवान प्लाज्मा की अवस्था में था, जिसमे सारे कण गति करते रहते हैं। जैसे जैसे ब्रह्मांड का आकार बढ़ने लगा, तापमान कम होने लगा। एक निश्चित तापमान पर जिसे हम बायरोजिनेसीस संक्रमण कहते है, ग्लुकान और क्वार्क ने मिलकर बायरान (प्रोटान और न्युट्रान) बनाये। इस संक्रमण के दौरान किसी अज्ञात कारण से कण और प्रति कण(पदार्थ और प्रति पदार्थ) की संख्या मे अंतर आ गया। तापमान के और कम होने पर भौतिकी के नियम और मूलभूत कण आज के रूप में अस्तित्व में आये। बाद में प्रोटान और न्युट्रान ने मिलकर ड्युटेरीयम और हिलीयम के केंद्रक बनाये, इस प्रक्रिया को महाविस्फोट आणविक संश्लेषण(Big Bang nucleosynthesis.) कहते है। जैसे जैसे ब्रह्मांड ठंडा होता गया, पदार्थ की गति कम होती गयी, और पदार्थ की उर्जा गुरुत्वाकर्षण में तबदील होकर विकिरण की ऊर्जा से अधिक हो गयी। इसके ३००,००० वर्ष पश्चात इलेक्ट्रान और केण्द्रक ने मिलकर परमाणु (अधिकतर हायड्रोजन) बनाये; इस प्रक्रिया में विकिरण पदार्थ से अलग हो गया । यह विकिरण ब्रह्मांड में अभी तक ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण (cosmic microwave radiation)के रूप में बिखरा पड़ा है।

कालांतर में थोड़े अधिक घनत्व वाले क्षेत्र गुरुत्वाकर्षण के द्वारा और ज्यादा घनत्व वाले क्षेत्र मे बदल गये। महा-विस्फोट से पदार्थ एक दूसरे से दूर जा रहा था वही गुरुत्वाकर्षण इन्हें पास खिंच रहा था। जहां पर पदार्थ का घनत्व ज्यादा था वहां पर गुरुत्वाकर्षण बल ब्रह्मांड के प्रसार के लिये कारणीभूत बल से ज्यादा हो गया। गुरुत्वाकर्षण बल की अधिकता से पदार्थ एक जगह इकठ्ठा होकर विभिन्न खगोलीय पिंडों का निर्माण करने लगा। इस तरह गैसो के बादल, तारों, आकाशगंगाओं और अन्य खगोलीय पिंडों का जन्म हुआ ,जिन्हें आज हम देख सकते है।

आकाशीय पिंडों के जन्म की इस प्रक्रिया की और विस्तृत जानकारी पदार्थ की मात्रा और प्रकार पर निर्भर करती है। पदार्थ के तीन संभव प्रकार है शीतल श्याम पदार्थ (cold dark matter)(६), तप्त श्याम पदार्थ(hot dark matter) तथा बायरोनिक पदार्थ। खगोलीय गणना के अनुसार शीतल श्याम पदार्थ की मात्रा सबसे ज्यादा(लगभग ८०%) है। मानव द्वारा निरीक्षित लगभग सभी आकाशीय पिंड बायरोनिक पदार्थ(८)से बने है।

श्याम पदार्थ की तरह आज का ब्रह्मांड एक रहस्यमय प्रकार की ऊर्जा ,श्याम ऊर्जा (dark energy)(६) के वर्चस्व में है। लगभग ब्रह्मांड की कुल ऊर्जा का ७०% भाग इसी ऊर्जा का है। यही ऊर्जा ब्रह्मांड के विस्तार की गति को एक सरल रैखिक गति-अंतर समीकरण से विचलित कर रही है, यह गति अपेक्षित गति से कहीं ज्यादा है। श्याम ऊर्जा अपने सरल रूप में आईन्स्टाईन के समीकरणों में एक ब्रह्मांडीय स्थिरांक (cosmological constant) है । लेकिन इसके बारे में हम जितना जानते है उससे कहीं ज्यादा नहीं जानते है। दूसरे शब्दों में भौतिकी में मानव को जितने बल(९) ज्ञात है वे सारे बल और भौतिकी के नियम ब्रह्मांड के विस्तार की गति की व्याख्या नहीं कर पा रहे है। इसे व्याख्या करने क एक काल्पनिक बल का सहारा लिया गया है जिसे श्याम ऊर्जा कहा जाता है।

यह सभी निरीक्षण लैम्डा सी डी एम माडेल के अंतर्गत आते है, जो महा विस्फोट के सिद्धांत की गणीतिय रूप से छह पैमानों पर व्याख्या करता है। रहस्य उस समय गहरा जाता है जब हम शुरू वात की अवस्था की ओर देखते है, इस समय पदार्थ के कण अत्यधिक ऊर्जा के साथ थे, इस अवस्था को किसी भी प्रयोगशाला में प्राप्त नहीं किया जा सकता है। ब्रह्मांड के पहले १० -३३ सेकंड की व्याख्या करने के लिये हमारे पास कोई भी गणितिय या भौतिकिय माडेल नहीं है, जिस अवस्था का अनुमान ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत(Grand Unification Theory)(७)करता है। पहली नजर से आईन्स्टाईन का गुरुत्वाकर्षण का सिद्धांत एकगुरुत्विय बिन्दु (gravitational singularity) का अनुमान करता है जिसका घनत्व अपरिमित (infinite) है।. इस रहस्य को सुलझाने के लिये क्वांटम गुरुत्व के सिद्धांत की आवश्यकता है। इस काल (ब्रह्मांड के पहले १० -३३ सेकंड) को समझ पाना विश्व के सबसे महान अनसुलझे भौतिकिय रहस्यों में से एक है।

मुझे लग रहा है इस लेख ने महा विस्फोट के सिद्धांत की गुत्थी को कुछ और उलझा दिया है, इस गुत्थी को हम धीरे धीरे आगे के लेखों में विस्तार से चर्चा कर सुलझाने का प्रयास करेंगे। अगला लेख श्याम पदार्थ (Dark Matter) और श्याम उर्जा(dark energy) पर होगा।

सागर जी क्या ख्याल है, आपके प्रश्नों की सूची कम हुयी या और बढ़ गयी?

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(१) लाल विचलन (Red Shift) के बारे मे यहां देखे.

(२)ब्रह्मांडीय सिद्धांत (Cosmological Principle) : यह एक सिद्धांत नहीं एक मान्यता है। इसके अनुसार ब्रह्मांड समांगी(homogeneous) और सावर्तिक(isotrpic) है| एक बड़े पैमाने पर किसी भी जगह से निरीक्षण करने पर ब्रह्मांड हर दिशा में एक ही जैसा प्रतीत होता है।

(३)ब्रह्मांडीय सूक्ष्म तरंग विकिरण(cosmic microwave background radiation-CMB): यह ब्रह्मांड के उत्पत्ति के समय से लेकर आज तक सम्पूर्ण ब्रह्मांड मे फैला हुआ है। इस विकिरण को आज भी महसूस किया जा सकता है।

(४)निहारिका (Nebula) : ब्रह्मांड में स्थित धूल और गैस के बादल।

(५) प्लैंक काल: मैक्स प्लैंक के नाम पर , ब्रह्मांड के इतिहास मे ० से लेकर १०-४३ (एक प्लैंक ईकाइ समय), जब सभी चारों मूलभूत बल(गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल) एक संयुक्त थे और मूलभूत कणों का अस्तित्व नहीं था।

(६) श्याम पदार्थ (Dark Matter) और श्याम ऊर्जा(dark energy) इस पर पूरा एक लेख लिखना है।

(७)ब्रहृत एकीकृत सिद्धांत(Grand Unification Theory) : यह सिद्धांत अभी अपूर्ण है, इस सिद्धांत से अपेक्षा है कि यह सभी रहस्य को सुलझा कर ब्रह्मांड उत्पत्ति और उसके नियमों की एक सर्वमान्य गणितिय और भौतिकिय व्याख्या देगा।

(८) बायरान : प्रोटान और न्युट्रान को बायरान भी कहा जाता है। विस्तृत जानकारी पदार्थ के मूलभूत कण लेख में।

(९) भौतिकी के मूलभूत बल :गुरुत्व बल, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर आणविक आकर्षण बल और मजबूत आणविक आकर्षण बल

(१०) : एक प्रकाश वर्ष : प्रकाश द्वारा एक वर्ष में तय की गयी दूरी। लगभग ९,५००,०००,०००,००० किलो मीटर। अंतरिक्ष में दूरी मापने के लिये इस इकाई का प्रयोग किया जाता है।

(११)आज हम जानते है कि अत्याधुनिक दूरबीन से खरबों आकाशगंगाये देखी जा सकती है, जिसमे से हमारी आकाशगंगा एक है और एक आकाशगंगा में भी खरबों तारे होते है। हमारी आकाशगंगा एक पेचदार आकाशगंगा है जिसकी चौड़ाई लगभग हजार प्रकाश वर्ष है और यह धीमे धीमे घूम रही है। इसकी पेचदार बाँहों के तारे १,०००,००० वर्ष में केन्द्र की एक परिक्रमा करते है। हमारा सूर्य एक साधारण औसत आकार का पिला तारा है, जो कि एक पेचदार भुजा के अंदर के किनारे पर स्थित है।
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ब्रह्मांड की उत्पत्ती

सृष्टि से पहले सत नहीं था, असत भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं, आकाश भी नहीं था
छिपा था क्या कहाँ, किसने देखा था
उस पल तो अगम, अटल जल भी कहाँ था
ऋग्वेद(१०:१२९) से सृष्टि सृजन की यह श्रुती
लगभग पांच हजार वर्ष पुरानी यह श्रुति आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी इसे रचित करते समय थी। सृष्टि की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है। सृष्टि के पहले क्या था ? इसकी रचना किसने, कब और क्यों की ? ऐसा क्या हुआ जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ ?

अनेकों अनसुलझे प्रश्न है जिनका एक निश्चित उत्तर किसी के पास नहीं है। कुछ सिद्धांत है जो कुछ प्रश्नों का उत्तर देते है और कुछ नये प्रश्न खड़े करते है। सभी प्रश्नों के उत्तर देने वाला सिद्धांत अभी तक सामने नहीं आया है।

सबसे ज्यादा मान्यता प्राप्त सिद्धांत है महाविस्फोट सिद्धांत (The Bing Bang Theory)।


महाविस्फोट सिद्धांत(The Bing Bang Theory)
१९२९ में एडवीन हब्बल ने एक आश्चर्य जनक खोज की, उन्होने पाया की अंतरिक्ष में आप किसी भी दिशा में देखे आकाशगंगाये और अन्य आकाशीय पिंड तेजी से एक दूसरे से दूर हो रहे है। दूसरे शब्दों मे ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। इसका मतलब यह है कि इतिहास में ब्रह्मांड के सभी पदार्थ आज की तुलना में एक दूसरे से और भी पास रहे होंगे। और एक समय ऐसा रहा होगा जब सभी आकाशीय पिंड एक ही स्थान पर रहे होंगे, लेकिन क्या आप इस पर विश्वास करेंगे ?
तब से लेकर अब तक खगोल शास्त्रियों ने उन परिस्थितियों का विश्लेषण करने का प्रयास किया है कि कैसे ब्रह्मांडीय पदार्थ एक दूसरे से एकदम पास होने की स्थिती से एकदम दूर होते जा रहे है।

इतिहास में किसी समय , शायद १० से २० खरब साल पूर्व , ब्रह्मांड के सभी कण एक दूसरे से एकदम पास पास थे। वे इतने पास पास थे कि वे सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिन्दु की शक्ल में था। यह बिन्दु अत्यधिक घनत्व(infinite density) का, अत्यंत छोटा बिन्दु(infinitesimally small ) था। ब्रह्मांड का यह बिन्दु रूप अपने अत्यधिक घनत्व के कारण अत्यंत गर्म(infinitely hot) रहा होगा। इस स्थिती में भौतिकी, गणित या विज्ञान का कोई भी नियम काम नहीं करता है। यह वह स्थिती है जब मनुष्य किसी भी प्रकार अनुमान या विश्लेषण करने में असमर्थ है। काल या समय भी इस स्थिती में रुक जाता है, दूसरे शब्दों में काल और समय के कोई मायने नहीं रहते है।*

इस स्थिती में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार होना शुरू हुआ। एक महा विस्फोट के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और ब्रह्मांड में पदार्थ ने एक दूसरे से दूर जाना शुरू कर दिया।

महा विस्फोट के १०-४३ सेकंड के बाद, अत्यधिक ऊर्जा(फोटान कणों के रूप में) का ही अस्तित्व था। इसी समय क्वार्क , इलेक्ट्रान, एन्टी इलेक्ट्रान जैसे मूलभूत कणों का निर्माण हुआ। इन कणों के बारे हम अगले अंको मे जानेंगे।

१०-३४ सेकंड के पश्चात, क्वार्क और एन्टी क्वार्क जैसे कणो का मूलभूत कणों के अत्याधिक उर्जा के मध्य टकराव के कारण ज्यादा मात्रा मे निर्माण हुआ। इस समय कण और उनके प्रति-कण (१) दोनों का निर्माण हो रहा था , इसमें से कुछ एक कण और उनके प्रति-कण(2) दूसरे से टकरा कर खत्म भी हो रहे थे। इस समय ब्रम्हांड का आकार एक संतरे के आकार का था।

१०-१० सेकंड के पश्चात, एन्टी क्वार्क क्वार्क से टकरा कर पूर्ण रूप से खत्म हो चुके थे, इस टकराव से फोटान का निर्माण हो रहा था। साथ में इसी समय प्रोटान और न्युट्रान का भी निर्माण हुआ।

१ सेकंड के पश्चात, जब तापमान १० खरब डिग्री सेल्सीयस था, ब्रह्मांड ने आकार लेना शुरू किया। उस समय ब्रह्मांड में ज्यादातर फोटान, इलेक्ट्रान , न्युट्रीनो (३) और उनके प्रती कणो के साथ मे कुछ मात्रा मे प्रोटान तथा न्युट्रान थे।

प्रोटान और न्युट्रान ने एक दूसरे के साथ मिल कर तत्वों(elements) का केन्द्र (nuclei) बनाना शुरू किया जिसे आज हम हाइड्रोजन, हीलीयम, लिथियम और ड्युटेरीयम के नाम से जानते है।

जब महा विस्फोट के बाद तीन मिनट बीत चुके थे, तापमान गिरकर १ खरब डिग्री सेल्सीयस हो चुका था, तत्व और ब्रह्मांडीय विकिरण(cosmic radiation) का निर्माण हो चुका था। यह विकिरण आज भी मौजूद है और इसे महसूस किया जा सकता है।

आगे बढ़ने पर ३००,००० वर्ष के पश्चात, विस्तार करता हुआ ब्रह्मांड अभी भी आज के ब्रह्मांड से मेल नहीं खाता था। तत्व और विकिरण एक दूसरे से अलग होना शुरू हो चुके थे। इसी समय इलेक्ट्रान , केन्द्रक के साथ में मिल कर परमाणु का निर्माण कर रहे थे। परमाणु मिलकर अणु बना रहे थे।

इस के १ खरब वर्ष पश्चात, ब्रह्मांड का एक निश्चित सा आकार बनना शुरू हुआ था। इसी समय क्वासर, प्रोटोगैलेक्सी(आकाशगंगा का प्रारंभिक रूप), तारों का जन्म होने लगा था। तारे हायड्रोजन जलाकर भारी तत्वों का निर्माण कर रहे थे।

आज महा विस्फोट के लगभग १५ खरब साल पश्चात की स्थिती देखे ! तारों के साथ उनका सौर मंडल बन चुका है। परमाणु मिलकर कठिन अणु बना चुके है। जिसमे कुछ कठिन अणु जीवन( उदा: Amino Acid) के मूलभूत कण है। यही नहीं काफी सारे तारे मर कर श्याम विवर(black hole) बन चुके है।

ब्रह्मांड का अभी भी विस्तार हो रहा है, और विस्तार की गति बढ़ती जा रही है। विस्तार होते हुये ब्रह्मांड की तुलना आप एक गुब्बारे से कर सकते है, जिस तरह गुब्बारे को फुलाने पर उसकी सतह पर स्थित बिन्दु एक दूसरे से दूर होते जाते है उसी तरह आकाशगंगाये एक दूसरे से दूर जा रही है। यह विस्तार कुछ इस तरह से हो रहा है जिसका कोई केन्द्र नहीं है, हर आकाश गंगा दूसरी आकाशगंगा से दूर जा रही है।

वैकल्पिक सिद्धांत(The Alternative Theory)


इस सिद्धांत के अनुसार काल और अंतरिक्ष एक साथ महा विस्फोट के साथ प्रारंभ नहीं हुये थे। इसकी मान्यता है कि काल अनादि है, इसका ना तो आदि है ना अंत। आये इस सिद्धांत को जाने।

आकाशगंगाओ(Galaxy) और आकाशीय पिंडों का समुह अंतरिक्ष में एक में एक दूसरे से दूर जाते रहता है। महा विस्फोट के सिद्धांत के अनुसार आकाशीय पिण्डो की एक दूसरे से दूर जाने की गति महा विस्फोट के बाद के समय और आज के समय की तुलना में कम है। इसे आगे बढाते हुये यह सिद्धांत कहता है कि भविष्य मे आकाशीय पिंडों का गुरुत्वाकर्षण इस विस्तार की गति पर रोक लगाने मे सक्षम हो जायेगा। इसी समय विपरीत प्रक्रिया का प्रारंभ होगा अर्थात संकुचन का। सभी आकाशीय पिंड एक दूसरे के नजदीक और नजदीक आते जायेंगे और अंत में एक बिन्दु के रुप में संकुचित हो जायेंगे। इसी पल एक और महा विस्फोट होगा और एक नया ब्रह्मांड बनेगा, विस्तार की प्रक्रिया एक बार और प्रारंभ होगी।

यह प्रक्रिया अनादि काल से चल रही है, हमारा विश्व इस विस्तार और संकुचन की प्रक्रिया में बने अनेकों विश्व में से एक है। इसके पहले भी अनेकों विश्व बने है और भविष्य में भी बनते रहेंगे। ब्रह्मांड के संकुचित होकर एक बिन्दु में बन जाने की प्रक्रिया को महा संकुचन(The Big Crunch) के नाम से जाना जाता है। हमारा विश्व भी एक ऐसे ही महा संकुचन में नष्ट हो जायेगा, जो एक महा विस्फोट के द्वारा नये ब्रह्मांड को जन्म देगा। यदि यह सिद्धांत सही है तब यह संकुचन की प्रक्रिया आज से १ खरब ५० अरब वर्ष पश्चात प्रारंभ होगी।

यथास्थिति सिद्धांत (The Quite State Theory)

महा विस्फोट का सिद्धांत सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत है लेकिन सभी वैज्ञानिक इससे सहमत नहीं हैं । वे मानते है कि ब्रह्मांड अनादि है, इसका ना तो आदि है ना अंत। उनके अनुसार ब्रह्मांड का महा विस्फोट से प्रारंभ नहीं हुआ था ना इसका अंत महा संकुचन से होगा।

यह सिद्धांत मानता है कि ब्रह्मांड का आज जैसा है वैसा ये हमेशा से था और हमेशा ऐसा ही रहेगा। लेकिन सच्चाई इसके विपरीत है।

इस अंक में ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में हमने चर्चा की, अगले अंक में हम महा विस्फोट और भौतिकी में मूलभूत सिद्धांतो की विस्तार से चर्चा करेंगे।

__________________________________________________ ____
(*) इस विषय पर पूरा एक लेख लिखना है।

(१)कण और प्रति-कण: पदार्थ के हर मूलभूत कण का प्रतिकण भी होता है। जैसे इलेक्ट्रान के लिये एन्टी इलेक्ट्रान(पाजीट्रान), प्रोटान-एन्टी प्रोटान , न्युट्रान -एन्टीन्युट्रान इत्यादि. जब एक कण और उसका प्रतिकण टकराते है दोनों ऊर्जा(फोटान) में बदल जाते है। यदि आपको कभी आपका एन्टी मनुष्य मिले तब आप उससे हाथ मिलाने की गलती ना करें। आप दोनों एक धमाके के रूप में ऊर्जा में बदल जायेंगे।

(२)ये भी एक रहस्य है कि ब्रह्मांड के निर्माण के समय कण और प्रतिकण दोनों बने, लेकिन कणों की मात्रा इतनी ज्यादा क्यों है ? क्या प्रति ब्रह्मांड (Anti Universe) का भी अस्तित्व है ?

(३) न्युट्रीनो का मतलब न्युट्रान नहीं है, ये इलेक्ट्रान के समान द्रव्यमान रखते है लेकिन इन पर आवेश(+/-) नहीं होता है।
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श्याम पदार्थ(Dark Matter)

भौतिकी में श्याम पदार्थ उस पदार्थ को कहते है जो विद्युत चुंबकीय विकिरण (प्रकाश, क्ष किरण) का उत्सर्जन या परावर्तन पर्याप्त मात्रा में नहीं करता जिससे उसे महसूस किया जा सके किंतु उसकी उपस्थिति साधारण पदार्थ पर उसके गुरुत्व प्रभाव से महसूस की जा सकती है। श्याम पदार्थ की उपस्थिति के लिये किये गये निरीक्षणों में प्रमुख है, आकाशगंगाओं की घूर्णन गति, किसी आकाशगंगाओं के समुह में आकाशगंगा की कक्षा मे गति और आकाशगंगा या आकाशगंगा के समुह में गर्म गैसो में तापमान का वितरण है। श्याम पदार्थ की ब्रह्मांड के आकार ग्रहण प्रक्रिया(१) तथा महा विस्फोट केन्द्रीय संश्लेषण(Big Bang Ncleosynthesis)(२)प्रमुख भूमिका रही है। श्याम पदार्थ का प्रभाव ब्रह्मांडीय विकिरण के फैलाव और वितरण में भी रहा है। यह सभी सबूत यह बताते है कि आकाशगंगाये, आकाशगंगा समुह(Cluster) और ब्रह्मांड में पदार्थ की मात्रा निरीक्षित मात्रा से कही ज्यादा है, जो कि मुख्यतः श्याम पदार्थ है जिसे देखा नहीं जा सकता।
श्याम पदार्थ का संयोजन(३) अभी तक अज्ञात है लेकिन यह नये मूलभूत कणों जैसे विम्प (WIMP)(४) और एक्सीआन(Axions)(५), साधारण और भारी न्युट्रीनो , वामन तारो और ग्रहो(MACHO)(६) तथा गैसो के बादल से बना हो सकता है। हालिया सबूतों के अनुसार श्याम पदार्थ की संरचना नये मूलभूत कणों जिसे नानबायरोनिक श्याम पदार्थ(nonbaryonic dark matter) कहते है से होना चाहिये।
श्याम पदार्थ की मात्रा

श्याम पदार्थ की मात्रा और द्रव्यमान साधारण दिखायी देने ब्रह्मांड से कही ज्यादा है। अभी तक की खोजों में ब्रह्मांड मे बायरान और विकिरण का घनत्व लगभग १ हायड्रोजन परमाणु प्रति घन मीटर है। इसका लगभग ४% ऊर्जा घनत्व देखा जा सकता है। लगभग २२% भाग श्याम पदार्थ का है, बचा ७४% भाग श्याम ऊर्जा का है। कुछ मुश्किल से जाँच किये जा सकने वाले बायरानीक पदार्थ भी श्याम पदार्थ बनाते है लेकिन इसकी मात्रा काफी कम है। इस लापता द्रव्यमान की खोज भौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान के सबसे बड़े अनसुलझे रहस्यों में से एक है।
सबसे पहले श्याम पदार्थ के बारे में सबूत देने वाले कैलीफोर्निया ईन्स्टीट्युट आफ टेक्नालाजी के एक स्वीस विज्ञानी फ्रीटज झ्वीस्की थे। उन्होने कोमा आकाशगंगा समुह पर वाइरियल प्रमेय(७) का उपयोग किया और उन्हें लापता द्र्व्यमान का ज्ञान हुआ। झ्वीस्की ने कोमा आकाशगंगा समुह के किनारे की आकाशगंगाओ की गति के आधार पर कोमा आकाशगंगा समुह के द्रव्यमान की गणना की। जब उन्होने इस द्रव्यमान की तुलना आकाशगंगाओं और उनकी आकाश गंगा समुह (Cluster) की कुल प्रकाश दीप्ति के आधार पर ज्ञात द्रव्यमान से की तो उन्हें पता चला कि वहां पर अपेक्षा से ४०० गुना ज्यादा द्रव्यमान है। इस आकाशगंगा समुह में दिखायी देने वाली आकाशगंगाओं का गुरुत्व इतनी तेज कक्षा के कारण काफी कम होना चाहिये, इन आकाशगंगाओं के पास अपने संतुलन के लिये कुछ और द्रव्यमान होना चाहिये। इसे लापता द्रव्यमान रहस्य(Missisng Mass Problem) कहा जाता है। झ्वीस्की ने इन अनुमानों के आधार पर कहा कि वहां पर कुछ अदृश्य पदार्थ होना चाहीये जो इस आकाशगंगा समुह को उचित द्रव्यमान और गुरुत्व प्रदान कर रहा है जिससे यह आकाशगंगा समुह का विखण्डन नही हो रहा है।
आकाशगंगा का घूर्णन

श्याम पदार्थ के बारे में और सबूत आकाशगंगाओं की गति के अध्ययन से प्राप्त हुये। इनमें से काफी आकाशगंगा एकसार है, इन पर वाइरियल प्रमेय लगाने पर इनकी कुल गतिज ऊर्जा(Kinetic Energy) इनके कुल गुरुत्व ऊर्जा का आधा होना चाहीये। प्रायोगिक नतीजों के अनुसार गतिज ऊर्जा इससे कहीं ज्यादा पायी गयी। आकाशगंगा के दृश्य द्रव्यमान के गुरुत्व को ही लेने पर , आकाशगंगा के केन्द्र से दूर तारों की गति वाइरियल्ल प्रमेय द्वारा गणित गति से कहीं ज्यादा पायी गयी। गैलेटीक घूर्णन वक्र कक्षा (८) जो घूर्णन गति और आकाशगंगा केन्द्र की व्याख्या करती है, इसे दृश्य द्रव्यमान से समझाया नहीं जा सकता। दृश्य पदार्थ आकाशगंगा समुह का एक छोटा सा ही हिस्सा है मान लेने पर इसकी व्याख्या की जा सकती है। आकाशगंगाये एक लगभग गोलाकार श्याम पदार्थ से बनी प्रतीत होती है जिनके मध्य में एक तश्तरी नुमा दृश्य पदार्थ है। कम चमकदार सतह वाली वामन आकाशगंगाये श्याम पदार्थ के अध्ययन के लिये जरूरी सूचना का महत्वपूर्ण श्रोत है क्योंकि इनमें असाधारण रूप से साधारण पदार्थ और श्याम पदार्थ का अनुपात कम है और इनके केन्द्र में कुछ ऐसे चमकीले तारे है जो बाहरी छोर पर स्थित तारों की कक्षा को विकृत कर देते है।
अगस्त २००६ में प्रकाशित परिणामों के आधार पर श्याम पदार्थ , साधारण पदार्थ से अलग पाया गया है। यह परिणाम दो अलग अलग आकाशगंगा समुह की १५०० लाख वर्ष पहले हुयी भिड़ंत से बने बुलेट आकाशगंगा समुह (Bullet Cluster) के अध्ययन से मिले है। आकाशगंगा की घूर्णन वक्र कक्षा झ्वीस्की के निरीक्षण के ४० वर्षों बाद तक ऐसा कोई निरीक्षण नही मिला जिसमे प्रकाश और द्रव्यमान का अनुपात इकाई से अलग हो। अधिक प्रकाश और द्रव्यमान का अनुपात श्याम पदार्थ की उपस्थिति दर्शाता है। १९७० के दशक की शुरूवात मे कार्नेगी इन्सीट्युट आफ वाशिण्गटन की एक विज्ञानी वेरा रूबीन ने एक नये ज्यादा संवेदनशील स्पेक्ट्रोग्राफ (जो कुंडली नुमा आकाशगंगा के सिरे की गति कक्षा को ज्यादा सही तरीके से माप सकता था) की मदद से कुछ नये परिणाम प्राप्त किये। इस विस्मयकारी परिणाम के अनुसार किसी कुंडली नुमा आकाशगंगा के अधिकतर तारे एक जैसी गति से आकाशगंगा के केन्द्र की परिक्रमा करते है। इसका अर्थ यह था कि द्रव्यमान घनत्व अधिकतर तारो(आकाशगंगा केन्द्र) से दूर भी एकसार था। इसका एक अर्थ यह भी था कि या तो न्युटन का गुरुत्व नियम हर अवस्था में लागू नहीं किया जा सकता या इन आकाशगंगा का ५०% से अधिक द्रव्यमान श्याम पदार्थ से बना है। इस परिणाम की पहले खिल्ली उडायी गयी लेकिन बाद में ये मान लिया गया कि आकाशगंगा का अधिकतर भाग श्याम पदार्थ से बना है।
बाद में इसी तरह के परिणाम इलीप्स के आकार की आकाशगंगाओं मे भी पाये गये। रूबीन के द्वारा ५०% प्रतिशत द्रव्यमान की गणना अब बढ़कर ९५% हो गयी है। कुछ ऐसे भी आकाशगंगा समुह है जो श्याम ऊर्जा की उपस्थिति नकारते है। ग्लोबुलर आकाशगंगा समुह एक ऐसा ही आकाशगंगा समुह है। हाल ही मे कार्डीफ विद्यापिठ के वैज्ञानिकों ने एक श्याम ऊर्जा की बनी हुयी आकाशगंगा की खोज की है। यह कन्या आकाशगंगा समुह (Virgo Cluster) से ५० प्रकाश वर्ष दूर है, इस आकाशगंगा का नाम VIRGOHI21 है। इस आकाशगंगा में तारे नहीं है। इसकी खोज हायड्रोजन की रेडियो तरंगों के निरीक्षण से हुयी है। इसके घूर्णन कक्षा के अध्ययन से वैज्ञानिकों का अनुमान है कि इसमें हायडोजन के द्रव्यमान से १००० गुना ज्यादा श्याम पदार्थ है। इसका कुल द्रव्यमान हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी के द्रव्यमान का दसवाँ भाग है। हमारी आकाशगंगा मंदाकिनी में भी दृश्य पदार्थ के द्रव्यमान से १० गुना ज्यादा श्याम पदार्थ मौजूद है।
एबेल आकाशगंगा समूह

श्याम पदार्थ आकाशगंगा समुह पर भी प्रभाव डालता है। एबेल २०२९ आकाशगंगा समुह जो की हज़ारों आकाशगंगाओं से बना है, इसके आसपास चारों ओर गरम गैसो और श्याम पदार्थ का आवरण फैला हुआ है। इस श्याम पदार्थ का द्रव्यमान १०१४ सूर्यों के द्रव्यमान के बराबर है। इस आकाशगंगा समुह के केन्द्र में एक इलीप्स के आकार की आकाशगंगा (जो कुछ आकाशगंगाओं के मिलन से बनी है) है। इस आकाशगंगा समुह की कक्षा की गति श्याम ऊर्जा निरीक्षणों के अनुरूप है।
श्याम ऊर्जा के निरीक्षण के लिये दूसरा साधन गुरुत्विय वक्रता (gravitational lensing)(९) है। यह प्रक्रिया सापेक्षता वाद के सिद्धांत के द्रव्यमान गणना पर आधारित है जो गतिज ऊर्जा पर निर्भर नहीं करती है। यह पूरी तरह श्याम ऊर्जा के द्रव्यमान की गणना के लिये स्वतंत्र सिद्धांत है। एबेल १६८९ के आसपास प्रबल गुरुत्विय वक्रता पायी गयी है। इस वक्रता को माप कर उस आकाशगंगा समुह का द्रव्यमान ज्ञात किया जा सकता है। द्रव्यमान और प्रकाश के अनुपात से श्याम पदार्थ की उपस्थिति जांची जा सकती है।
श्याम पदार्थ की संरचना
अगस्त २००६ मे श्याम पदार्थ को प्रकाशीय पद्धति से जांच लिया गया है लेकिन अभी भी यह अटकलों के घेरे में है। आकाशगंगा घूर्णन वक्र कक्षा, गुरुत्विय वक्रता, ब्रह्मांडीय पदार्थ का विभिन्न आकार बनाना(Structure Formation), आकाश गंगा समुह मे बायरान की अल्प उपस्थिति जैसे सबूत यह बताते है कि ८५-९०% पदार्थ विद्युत चुंबकीय बल से प्रतिक्रिया नहीं करता है। यह श्याम पदार्थ अपने गुरुत्विय बल से अपनी मौजूदगी दर्शाता है। इस श्याम पदार्थ की निम्नलिखित श्रेणियाँ हो सकती है।
  • बायरानीक श्याम पदार्थ
  • अबायरानीक श्याम पदार्थ (यह तीन तरह का हो सकता है)
    • अत्याधिक गर्म श्याम पदार्थ
    • गर्म श्याम पदार्थ
    • तल श्याम पदार्थ
अत्यधिक गर्म श्याम पदार्थ में कण सापेक्ष गति(relativistic velocities)(१०)) से गतिमान रहते है। न्युट्रीनो इस तरह का कण है। इस कण का द्रव्यमान कम होता है और इस पर विद्युत चुंबकीय बल और प्रबल आणविक बल का प्रभाव नहीं पड़ता है। इसकी जांच एक दुष्कर कार्य है। यह भी श्याम ऊर्जा के जैसा है। लेकिन प्रयोग यह बताते है कि न्युट्रीनो श्याम पदार्थ का एक बहुत ही छोटा हिस्सा है। गर्म श्याम पदार्थ महा विस्फोट के सिद्धांत पर खरे नहीं उतरते है लेकिन इनका अस्तित्व है।
शीतल श्याम पदार्थ जिसके कण सापेक्ष गति नहीं करते है। बडे द्रव्यमान वाले पिंड जैसे आकाशगंगा के आकार के श्याम विवर को गुरूतविय वक्रता के आधार पर अलग कर सकते है। संभव उम्मीदवारों मे सामान्य बायरोनिक पदार्थ वाले पिंड जैसे भूरे वामन या माचो (MACHO भारी तत्वों के अत्यंत घनत्व वाले पिंड) भी है। लेकिन महाविस्फोट के आणविक संयुग्मन (big bang nucleosynthesis ) प्रक्रिया ने विज्ञानीयो को यह विश्वास दिला दिया है कि MACHO जैसे बायरानिक पदार्थ कुल श्याम पदार्थ के द्रव्यमान का एक बहुत ही छोटा हिस्सा हो सकते है।
आज की स्थिती मे श्याम पदार्थ की संरचना अबायरानिक कणो, इलेक्ट्रान, प्रोटान, न्युट्रान, न्युट्रीनो जैसे कणों के अलावा, एक्सीआन, WIMP(Weakly Interacting Massive Particles कमजोर प्रतिक्रिया वाले भारी कण जिसमे न्युट्रलिनो भी शामील है), अचर न्युट्रीनो (sterile neutrinos)(१०) से बनी हुयी मानी जाती है। इनमें से कोई भी कण साधारण भौतिकी की आधारभूत संरचना का कण नहीं है। श्याम पदार्थ की संरचना के उम्मीदवार कणों की खोज के लिये प्रयोग जारी है।
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(१)आकार ग्रहण प्रक्रिया(Structure Formation)- यह ब्रह्मांड निर्माण भौतिकी का एक मूलभूत अन सुलझा रहस्य है। ब्रह्मांड जैसा की हम ब्रह्मांडीय विकिरण(Cosmic Microvave Background Radiation) के अध्ययन से जानते है, एक अत्यंत घने , अत्यंत गर्म बिन्दु के महा विस्फोट से बना है। लेकिन आज की स्थिती में हर आकार के आकाशीय पिंड मौजूद है, ग्रह से लेकर आकाशगंगाओं से आकार से गैसो के बादल (Cluster) के दानवाकार तक के है। एक शुरूवाती दौर के समांगी ब्रह्मांड से आज का ब्रह्मांड कैसे बना ?
(२) महा विस्फोट केन्द्रीय संश्लेषण(Big Bang Ncleosynthesis) : हायड्रोजन(H1) को छोड़कर अन्य तत्वों के परमाणु केन्द्रक निर्माण की प्रक्रिया।
(३) साधारण पदार्थ(Byaronic Matter) मुख्यतः इलेक्ट्रान, न्युट्रान और प्रोटान से बना होता है। इलेक्ट्रान, न्युट्रान और प्रोटान को बायरान भी कहते है।
(४) विम्प(WIMP:weakly interacting massive particles): अभी तक ये काल्पनिक कण है। ये कण कमजोर आणविक बल और गुरुत्वाकर्षण बल से ही प्रतिक्रिया करते है। इनका द्रव्यमान साधारण कणों(बायरान) की तुलना में काफी अधिक होता है। ये साधारण पदार्थ से प्रतिक्रिया नहीं करते जिससे इन्हें देखा और महसूस नहीं किया जा सकता।
(५)एक्सीआन(Axions): यह भी एक काल्पनिक मूलभूत कण है, इन पर कोई विद्युत आवेश नहीं होता है और इनका द्रव्यमान काफी कम १०-६ से १०-२ eV/c2 के बीच होना चाहिये। मजबूत चुंबकीय बलों की उपस्थिति में इन्हें फोटान में बदल जाना चाहिये।
(६) माचो(अत्यंत विशाल सघन प्रकाशित पिंड)(MACHO: Massive compact halo object): ये उन पिंडों के लिये दिया गया नाम है जो श्याम पदार्थ की उपस्थिति को समझने में मदद कर सकते है। ये श्याम विवर (Black Hole) , न्युट्रान तारे, सफेद वामन तारे या लाल वामन तारे भी हो सकते है।
(७)वाइरियल प्रमेय अधिक जानकारी के लिये देखे : http://en.wikipedia.org/wiki/Virial_theorem
(८) देखे http://en.wikipedia.org/wiki/Galactic_rotation_curve
(९)गुरुत्विय वक्र (gravitational lensing) :प्रकाश किरणों के में उस समय आई वक्रता होती है जब ये किसी गुरुत्विय लेंस से गुज़रती है। ये गुरुत्विय लेंस श्याम विवर भी हो सकता है।
(१०)अचर न्युट्रीनो (sterile neutrinos): जिन न्युट्रीनो पर किसी भी मूलभूत बलों का प्रभाव नहीं होता है।
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श्याम उर्जा (Dark Energy)

यह विषय एक विज्ञान फैटंसी फिल्म की कहानी के जैसा है। श्याम ऊर्जा(Dark Energy), एक रहस्यमय बल जिसे कोई समझ नहीं पाया है, लेकिन इस बल के प्रभाव से ब्रह्मांड के पिंड एक दूसरे से दूर और दूर होते जा रहे है।

यह वह काल्पनिक बल है जिसका दबाव ऋणात्मक है और सारे ब्रह्मांड में फैला हुआ है। सापेक्षता वाद के सिद्धांत के अनुसार , इस ऋणात्मक दबाव का प्रभाव गुरुत्वाकर्षण के विपरीत प्रभाव के समान है।

श्याम ऊर्जा १९९८ मे उस वक्त प्रकाश में आयी , जब अंतरिक्ष वैज्ञानिकों के २ समुहों ने विभिन्न आकाशगंगाओं में विस्फोट की प्रक्रिया से गुजर रहे सितारों(सुपरनोवा)(१) पर एक सर्वे किया। उन्होने पाया की ये सुपरनोवा की प्रकाश दीप्ति अपेक्षित प्रकाश दीप्ति से कम है, इसका मतलब यह कि उन्हें जितने पास होना चाहिये थी , वे उससे ज्यादा दूर है। इसका एक ही मतलब हो सकता था कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति कुछ काल पहले की तुलना में बढ़ गयी है!(लाल विचलन भी देखे)

इसके पहले तक यह माना जाता था कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति धीरे धीरे गुरुत्वाकर्षण बल के कारण कम होते जा रही है। लेकिन सुपरनोवा के विश्लेषण से ज्ञात हुआ कि कोई रहस्यमय बल गुरुत्वाकर्षण बल ले विपरीत कार्य कर ब्रह्मांड के विस्तार को गति दे रहा है। यह एक आश्चर्यजनक , विस्मयकारी खोज थी।

पहले तो वैज्ञानिकों को इस प्रयोग के परिणामों की विश्वसनीयता पर ही शक हुआ। उन्हें लगा की सुपरनोवा की प्रकाश दीप्ति किसी गैस या धूल के बादल के कारण कम हो सकती है या यह भी हो सकता है कि सुपरनोवा की प्रकाश दीप्ति के बारे में वैज्ञानिकों का अनुमान ही गलत हो। लेकिन उपलब्ध आँकड़ों को सावधानी पूर्वक जांचने के बाद पता चला कि कोई रहस्यमय बल का अस्तित्व जरूर है जिसे आज हम श्याम ऊर्जा (Dark Energy) कहते है।

वैसे यह विचार एकदम नया नहीं है। आईंस्टाईन ने अपने सापेक्षता वाद के सिद्धांत(Theory of Relativity) मे एक प्रति गुरुत्वाकर्षण प्रभाव को दर्शाने वाला बल ब्रह्मांडीय स्थिरांक (Cosmological Constant) का समावेश किया है। लेकिन आईन्स्टाईन खुद और बाद में अन्य विज्ञानी भी मानते थे कि यह ब्रह्मांडीय स्थिरांक(Cosmological Constant) एक गणितिय सरलता के लिये ही है जिसका वास्तविकता से काफी कम रिश्ता है। १९९० तक किसी ने भी नहीं सोचा था कि यह ब्रह्मांडीय स्थिरांक एक सच्चाई भी हो सकता है।

दक्षिण केलीफोर्निया विश्व विद्यालय की वर्जीनिया ट्रीम्बल कहती है
“श्याम ऊर्जा को प्रति गुरुत्वाकर्षण कहना सही नहीं है। यह बल गुरुत्वाकर्षण के विपरीत कार्य नहीं करता है। यह ठीक वैसे ही व्यवहार करता है जैसे सापेक्षता वाद के सिद्धांत के उसे अनुसार उसे करना चाहिये। सापेक्षता के सिद्धांत के अनुसार इस बल का दबाव ऋणात्मक है।”
उनके अनुसार
“ मान लिजिये ब्रह्मांड एक बड़ा सा गुब्बारा है। जब यह गुब्बारा फैलता है, तब विस्तार से इस श्याम ऊर्जा का घनत्व कम होता है और गुब्बारा थोड़ा और फैलता है। ऐसा इस लिये कि श्याम ऊर्जा से ऋणात्मक दबाव(२) उत्पन्न होता है। जबकि गुब्बारे के अंदर यह गुब्बारे को खींचने की कोशिश कर रहा है, घनत्व जितना कम होगा यह गुब्बारे को अंदर की ओर कम खिंच पायेगा जिससे विस्तार और ज्यादा होगा। यही प्रक्रिया ब्रह्मांड के विस्तार में हो रही है।”
सुपरनोवा का उदाहरण यह बताता है कि ब्रह्मांड के विस्तार का त्वरण(acceleration) ५ खरब वर्ष पहले शुरू हुआ था। उस समय आकाशगंगाये इतनी दूरी पर जा चुकी थी कि गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव से श्याम ऊर्जा का प्रभाव ज्यादा हो चुका था।(ध्यान रहे गुरुत्वाकर्षण बल विभिन्न पिण्डो अपनी तरफ खिंचता है, श्याम ऊर्जा वही उन्हे एक दूसरे से दूर ले जाती है।) उस समय के पश्चात श्याम ऊर्जा के प्रभाव से ब्रह्मांड के विस्तार की गति बढ़ते जा रही है। अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि यह गति अनिश्चित काल के लिये बढ़ते जायेगी। इसका मतलब यह है कि आज की तुलना में खरबों वर्षों बाद हर आकाशीय पिंड एक दूसरे तेज और तेज दूर होते जायेगा और हम अकेले रह जायेंगे।

श्याम ऊर्जा के इस नये सिद्धांत ने वैज्ञानिकों को थोड़ा निराश किया है, उन्हें एक अप्रत्याशित और एकदम नये ब्रह्मांड की अवधारणा को स्वीकारना पड़ा है। वे पहले ही एक श्याम पदार्थ(Dark Matter) की अवधारणा को मान चुके है। आज की गणना के अनुसार यह श्याम पदार्थ , वास्तविक पदार्थ से कहीं ज्यादा है। यह एक ऐसा पदार्थ है जिसे आज तक किसी प्रयोगशाला में महसूस नहीं किया गया है लेकिन इसके होने के सबूत पाये गये है। अब श्याम ऊर्जा का आगमन जख्म पर नमक छिड़कने के समान है।

अंतरिक्ष विज्ञानीयो के अनुसार ब्रह्मांड तीन चीजों से बना है साधारण पदार्थ , श्याम पदार्थ और श्याम ऊर्जा। हम सिर्फ साधारण पदार्थ के बारे में जानते है। ब्रह्मांड का ९०-९५% भाग ऐसे दो पदार्थों से बना है जिसके बारे में कोई नहीं जानता , यह सुन कर आप कैसा महसूस करते है ?

क्वांटम भौतिकी को समझने के लिये दो पीढ़ीया लग गयी। यह समय उस विज्ञान के बारे में था जिसे हम प्रयोगशाला में प्रयोग कर के सिद्ध कर सकते थे। एक ऐसे पदार्थ और ऊर्जा को समझना जिसे देखा नहीं जा सकता, प्रयोगशाला में बनाया नहीं जा सकता कितना कठिन है ?

लेकिन श्याम ऊर्जा ने एक ऐसे रहस्य को सुलझा दिया है जो ब्रह्मांडीय विकिरण ने उत्पन्न किया था। ब्रह्मांडीय विकिरण की तीव्रता के विचलन पर हाल ही के प्रयोगों से प्राप्त आंकडे ब्रह्मांड के अनंत विस्तार के सिद्धांत का प्रतिपादन करते हैं। लेकिन वैज्ञानिकों के लिये इस विस्तार के पीछे कारणीभूत बल एक पहेली था, श्याम ऊर्जा शायद इसी का हल है।

श्याम ऊर्जा का अस्तित्व चाहे किसी भी रूप मे गणना की गयी ब्रह्मांड की ज्यामिती और ब्रह्मांड के कुल पदार्थ की मात्रा के संतुलन के लिये जरूरी है। ब्रह्मांडीय विकिरण (cosmic microwave background (CMB)), की गणना यह संकेत देती है की ब्रह्मांड लगभग सपाट(Flat) है। ब्रह्मांड के इस आकार के लिये , द्रव्यमान और ऊर्जा का अनुपात एक निश्चित क्रान्तिक घनत्व(Critical Density) के बराबर होना चाहिये। ब्रह्मांड के कुल पदार्थ की मात्रा (बायरान और श्याम पदार्थ को मिला कर), ब्रह्मांडीय विकिरण की गणना के अनुसार क्रान्तिक घनत्व का सिर्फ ३०% ही है। इसका मतलब यह है कि श्याम ऊर्जा ब्रह्मांड के कुल द्रव्यमान का ७०% होना चाहीये।

हाल के अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि ब्रह्मांड का निर्माण ७४% प्रतिशत श्याम ऊर्जा से, २२% श्याम पदार्थ से और सिर्फ ४% साधारण पदार्थ से हुआ है। और हम इसी ४% साधारण पदार्थ के बारे में जानते है।

श्याम ऊर्जा की प्रकृति एक सोच का विषय है। यह समांगी, कम घनत्व का बल है जो गुरुत्वाकर्षण के अलावा किसी और मूलभूत बलों(३) से कोई प्रतिक्रिया नहीं करता है। इसका घनत्व काफी कम है लगभग १०-२९ g/cm3।इसकी प्रयोगशाला में जांच लगभग असंभव ही है।

श्याम ऊर्जा को समझने के लिये सबसे ज्यादा मान्य सिद्धांत है ब्रह्मांडीय स्थिरांक सिद्धांत:

यह आईन्स्टाईन द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत है। यह एक दम सरल है, इसके अनुसार अंतराल मे (Volume of Space)मे एक अंतस्थ मूलभूत ऊर्जा होती है। यह एक ब्रह्मांडीय स्थिरांक है जिसे लैम्डा कहते है। द्रव्यमान और ऊर्जा का ये आईन्सटाईन के समीकरण e=mc2 के द्वारा संबंधित है, इससे यह साबित होता है कि ब्रह्मांडीय स्थिरांक पर गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव होना चाहिये। इसे कभी कभी निर्वात ऊर्जा (Vacuum Energy) भी कहते है क्योंकि यह निर्वात की ऊर्जा का घनत्व है। वैज्ञानिकों की गणना के अनुसार ब्रह्मांडीय स्थिरांक का मूल्य १०-२९ g/cm3 है।

ब्रह्मांडीय स्थिरांक एक ऋणात्मक दबाव वाला बल है जो अपने ऊर्जा घनत्व के बराबर होता है, इसी वजह से यह ब्रह्मांड के विस्तार को त्वरण देता है।

श्याम ऊर्जा का ब्रह्मांड के भविष्य पर प्रभाव


जैसा कि हम पहले देख चुके है सुपरनोवा का उदाहरण यह बताता है कि ब्रह्मांड के विस्तार का त्वरण(acceleration) ५ खरब वर्ष पहले शुरु हुआ था। इसके पहले यह सोचा जाता था कि ब्रह्मांड के विस्तार की गति बायरानीक और श्याम पदार्थ के गुरुत्वाकर्षण के फलस्वरूप कम हो रही है। विस्तारित होते ब्रह्मांड में श्याम पदार्थ का घनत्व का श्याम ऊर्जा की तुलना में ज्यादा तीव्रता से ह्रास होता है। जिससे श्याम ऊर्जा का पलड़ा भारी रहता है। जब ब्रह्मांड का आकार दुगुना हो जाता है श्याम पदार्थ का घनत्व आधा हो जाता है जबकि श्याम ऊर्जा का घनत्व ज्यों का त्यों रहता है। सापेक्षता वाद के सिद्धांत के अनुसार तो यह ब्रह्मांडीय स्थिरांक(Cosmological Constant) है।

यदि विस्तार की गति इस तरह से बढ़ती रही तो आकाशगंगाये ब्रह्मांडीय क्षितिज के पार चली जायेंगी और दिखायी देना बंद हो जायेंगी। ऐसा इस लिये होगा कि उनकी गति प्रकाश की गति से ज्यादा हो जायेगी। यह सापेक्षता वाद के नियम का उल्लंघन नहीं है। पृथ्वी, अपनी आकाशगंगा मंदाकिनी को कोई असर नहीं पड़ेगा लेकिन बाकी का सारा ब्रह्मांड दूर चला जायेगा।

ब्रह्मांड के अंत के बारे कुछ कल्पनायें है जिसमे से एक है कि श्याम ऊर्जा का प्रभाव बढ़ते जायेगा, और एक समय यह केन्द्रीय बलों और अन्य मूलभूत बलों से भी ज्यादा हो जायेगा। इस स्थिती में श्याम ऊर्जा सौर मंडल, आकाशगंगा, कोई भी पिंड से लेकर अणु परमाणु सभी को विखंडित कर देगी। यह स्थिती महा विच्छेद (Big Rip)की होगी।

दूसरी कल्पना महा संकुचन(Big Crunch)की है, इसमें श्याम ऊर्जा का प्रभाव एक सीमा के बाद खत्म हो जायेगा और गुरुत्वाकर्षण उस पर हावी हो जायेगा। यह एक संकुचन की प्रक्रिया को जन्म देगा। अंत मे एक महा संकुचन से सारा ब्रह्मांड एक बिंदु में तबदील हो जायेगा| यह बिंदु एक महा विस्फोट से एक नये ब्रह्मांड को जन्म देगा।

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(१)सुपरनोवा- कुछ तारों के जीवन काल के अंत में जब उनके पास का सारा इंधन (हायड्रोजन) जला चुका होता है, उनमें एक विस्फोट होता है। यह विस्फोट उन्हें एक बेहद चमकदार तारे में बदल देता है जिसे सुपरनोवा या नोवा कहते है।

(२)ऋणात्मक दबाव - वह दबाव आसपास के द्रव (जैसे वायु) के दबाव से कम होता है।

(३) मूलभूत बल : गुरुत्वाकर्षण, विद्युत चुंबकीय बल, कमजोर केन्द्रीय बल, मजबूत केन्द्रीय बल
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