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22-12-2012, 10:02 PM | #1 |
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मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
मुहम्मद रफी
बहू की नजरों में
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दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु |
22-12-2012, 10:04 PM | #2 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
धन्य है वह अनाम फकीर, जिसकी प्रेरणा पाकर हिंदुस्तान ही नहीं, बल्कि समूची कायनात को मुहम्मद रफी के रूप में एक अदद फनकार मिला। साम्प्रदायिकता की आग में झुलसने वाले धर्म-मजहबों से कोसों परे रफी ने भजनों से लेकर कव्वालियों तक कुल 4518 गीतों के जरिए सच्चे संगीतप्रेमियों को सुखद-निश्छल अनुभूति का अहसास कराया। पहले गीत ‘अजी दिल हो बेकाबू...’ से लेकर अंतिम गीत ‘तेरे आने की आस है दोस्त...’ तक संगीतरसिकों को खुशी, ग़म, आंसू, तड़प और विरह सहित अनेक राग-रंगों का अहसास कराने वाले रफी को आज हमसे बिछड़े हुए करीब 32 साल हो गए हैं। बावजूद इसके, आज भी लोग उनके गीतों को शिद्दत से गुनगुनाते हैं। हर दौर में लोगों ने रफी को अपनी-अपनी तरह से याद किया है, पर इस बार उन्हें याद कर रही हैं उनकी बहू यासमीन खालिद रफी। डॉली के नाम से चर्चित यास्मीन ने अपने अब्बा (रफी) की यादों को एक किताब की शक्ल में साझा किया है। हिन्दुस्तान के इस बेनजीर गायक के जन्मदिन पर मैं पेश कर रहा हूं अब्बा को समर्पित यास्मीन लिखित पुस्तक ‘मुहम्मद रफी : हमारे अब्बा-कुछ यादें’ के कुछ अंश।
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22-12-2012, 10:05 PM | #3 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
मुहम्मद रफी : एक नज़र
जन्म 24 दिसम्बर, 1924 कोटला सुल्तान सिंह, अमृतसर, पंजाब अवसान 31 जुलाई, 1980 मुम्बई, महाराष्ट्र
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22-12-2012, 10:06 PM | #4 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
‘तेरे आने की आस है दोस्त...’
थोड़े से वक्त में ही मैंने ये समझ लिया था कि लंदन अब्बा-अम्मा की मनपसंद जगह है। उन्हें यहां वक्त गुजारना अच्छा लगता था। बहुत कम उम्र से ही उनके चारों बेटे और दो बेटियां लंदन आ गए थे। बाद में एक बेटी और छोटा बेटा मुम्बई वापस लौट गए। लंदन में अब्बा पूरी आजादी से बगैर किसी परेशानी के खूब घूमते-फिरते थे। लंदन की यातायात प्रणाली उन्हें बेहद पसंद थी। लंदन में भी लोग देखते ही उन्हें पहचान जाते और मांगने पर वे बड़ी खुशी से उन्हें आॅटोग्राफ भी दे देते, लेकिन बातें करने से बचते थे। यहां का पारम्परिक व्यंजन ‘फिश एंड चिप्स’ खाना उन्हें पसंद था और फलों में यहां के केले बहुत शौक से खाते थे।
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22-12-2012, 10:07 PM | #5 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
वह स्नेहपूर्ण भेंट
अब्बा-अम्मा के साथ मेरा वक्त बहुत अच्छा गुजर रहा था। खालिद, मैं और अब्बा-अम्मा खूब लंदन घूमे और शॉपिंग की। मुझे लंदन आए करीब छह हफ्ते गुजर चुके थे। फिर भी शाम होते ही मुझे घर की याद सताती और मैं उदास हो जाती। एक दिन अब्बा ने कहा चलो, आज डॉली की पसंद की चीज इसे दिलाकर लाऊं। उन्होंने मुझे सोनी का बड़ा सा ट्रांजिस्टर भेंट किया, जो भारत तक के रेडियो स्टेशन पकड़ता था। मेरी तो खुशी का ठिकाना न रहा। मैं घर में रेडियो रखने की जगह तब तक बदलती रहती थी, जब तक कि साफ सिग्नल न मिल जाता। फिर मैं मजे से अपने प्रोग्राम सुनती, खासकर बिनाका गीतमाला।
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22-12-2012, 10:09 PM | #6 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
अब्बा से बिलकुल उलट थीं अम्मा
मैं बहुत हैरान होती कि अम्मा को न तो किसी किस्म के संगीत में दिलचस्पी थी और न ही वे कभी गाने सुनती थीं। मुझे उन्होंने कई बार टोका और कहा, क्या तुम बगैर गाने सुने जिंदा रह सकती हो! मैं कहती, बिल्कुल नहीं। जिस मुहम्मद रफी के गानों की दुनिया दीवानी थी, मेरे खयाल से अम्मा के लिए वह ‘घर की मुर्गी दाल बराबर’ वाली बात थी। मेरे मन में एक बात थी, जो मैं कई दिनों से अब्बा से कहना चाहती थी, लेकिन समझ में नहीं आ रहा था कि कैसे कहूं! एक दिन मुझे खालिद की मौजूदगी में मौका मिला और मैंने हिम्मत करके कह दिया, अब्बा मैं कई सालों से बिनाका गीतमाला सुन रही हूं। एक-दो साल से प्रोग्राम में आपके गाने कम होते जा रहे हैं। अब्बा और खालिद दोनों हंसने लगे। फिर खालिद बोले, अब्बा, एक कहावत है, व्हैन द कैट इज अवे, द माइस विल प्ले। डॉली ने कितना सही नमूना पेश किया है। वैसे ये बात सही है, आप भारत से बहुत वक्त बाहर रहने लगे हैं। फिलहाल तो ये ठीक नहीं है। हां, जब आप रिटायरमेंट ले लेंगे, तब की बात और है। खामोशी से सारी बातें सुनने के बाद अब्बा बोले, मुझे इस बात की फिक्र नहीं है। गानों की तादाद तो मैं इतनी दे चुका हूं कि मुझे भी याद नहीं। बस मेरे गाए गानों की क्वालिटी खराब न हो। अल्लाह की मुझ पर खास मेहरबानी रही है, बस यही दुआ किया करो कि ये इसी तरह बनी रहे। अचानक बगैर सोचे-समझे मेरे मुंह से निकल गया, अब्बा आपके जैसा तो कभी कोई गा ही नहीं सकता। उन्होंने मेरी तरफ देखकर कहा, अरे ऐसा नहीं कहते। अल्लाह को बड़े बोल बुरे लगते हैं।
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23-12-2012, 03:33 PM | #7 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
aaj bhi mere mobile mein rafi saahab ke hi sabse jyada gaane.. alaick ji aapki taraf se rafi fans ke liye yeh ek amulya bhet hai
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अब माई हिंदी फोरम, फेसबुक पर भी है. https://www.facebook.com/hindiforum |
25-12-2012, 12:27 PM | #8 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
मैं भी रफ़ी साहब और साथ में लता जी का बहुत बड़ा प्रसंशक हूँ. आज भी मेरे मोबाईल और लैपटॉप में इस दोनों महान गायकों के सबसे ज्यादा गीत मौजूद हैं. मगर दुःख इस बात का हमेशा रहा हैं की इस दोनों महान गायकों ने साथ साथ गाने बहुत कम गाये. इन दोनों गायकों के बिच रॉयल्टी को लेकर काफी विवाद हुए, जो इन दोनों के बिच में एक दरार उत्पन्न कर दिया. और शायद यही सबसे बड़ी वजह रही इसके बाद आने वाली समय में साथ साथ ना गाने की.
उस समय फ़िल्म निर्माता कुछ बड़े संगीतकारों को उनकी फ़ीस के अलावा संगीत की रॉयल्टी का पाँच प्रतिशत हिस्सा भी दिया करते थे। लता जी की मांग थी कि इस पाँच प्रतिशत में से आधा हिस्सा पार्श्वगायक को मिलना चाहिए। उस समय पुरुष पार्श्वगायकों मे रफ़ी साहब अग्रणी थे –इसलिए लता जी ने रॉयल्टी के मुद्दे पर उनसे समर्थन की मांग की। रफ़ी साहब का कहना था कि गीत गाने के लिए उनकी फ़ीस मिल जाना ही उनके लिए काफ़ी था –वे रॉयल्टी में हिस्सा नहीं चाहते थे। रफ़ी साहब से समर्थन का नही मिलना लता जी को अच्छा नहीं लगा। फ़िल्म माया के गीत “तस्वीर तेरी दिल में जिस दिन से उतारी है” की रिकॉर्डिंग के दौरान लता जी और रफ़ी साहब के बीच गीत के बोलों को लेकर बहस हो गई और रॉयल्टी के मुद्दे के कारण पहले से ही आहत लता जी ने रफ़ी साहब के साथ गीत गाने से मना कर दिया। इस पर रफ़ी साहब ने भी कह दिया कि लता के साथ गाने की उनकी इच्छा केवल उतनी ही है जितनी लता के मन में उनके साथ गाने की इच्छा है। परिणामस्वरूप इन दोनों महान कलाकारों ने कई वर्ष तक कोई गीत साथ में नहीं गाया। आखिरकार दोनों के बीच 1967 में सुलह हुई और दोनों ने मिलकर फ़िल्म ज्यूल थीफ़ का गीत “दिल पुकारे आ रे आ रे” गाया। |
30-12-2012, 06:11 PM | #9 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
अनमोल सूत्र
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
12-08-2013, 01:22 PM | #10 |
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Re: मुहम्मद रफी : बहू की नजरों में
बेहद खुबसूरत सूत्र............................................. ...............
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