25-01-2011, 11:58 AM | #1 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
"अमृतवाणी"
यह सूत्र उन "अमृतवाणी" के लिए है जो हमारे धर्मों, ग्रंथो, और महान व्यक्तियों द्वारा कही गयी...............
|
25-01-2011, 12:08 PM | #2 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
"तो आइये सबसे पहले धर्म की व्याख्या करें"
|
25-01-2011, 12:10 PM | #3 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
"धर्म" धर्म मुख्यत चार चीजों से मिलकर बना हुआ है - "सत्य, तप,पवित्रता,और दया" इन चारों का योगफल ही धर्म कहलाता है कहा जाता है की जब धर्म इन चारों अंगों पर आधारित था तब सतयुग था ("सत्य, तप,पवित्रता,और दया") जब तीन अंगों पर आधारित रहा तब त्रेता युग आया ("सत्य, तप,पवित्रता) जब दो अंगों पर रहा तब द्वापर युग आया (" सत्य और तप) और अब जब एक अंग पर है तब कलियुग आया (सत्य) |
25-01-2011, 12:22 PM | #4 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
"श्रीमदभागवत गीता" के अनुसार
"सुख ही दुखों का मूल कारण है " क्योंकि मनुष्य हमेशा राजस सुख की कल्पना करता है और चाहता है की उसे हर राजस सुख प्राप्त हो जितनी मात्र मैं सुख की इच्छा है उतना सुख नहीं मिलना या दुसरे व्यक्तियों के पास आपने से ज्यादा सुख होना- इन स्थितियों. मैं क्योंकि सभी मनुष्यों को राजस सुख बराबर नहीं मिल पाता है जिसके कारण घुटन और तनाव की स्थितियां उत्पन्न होती हैं |
25-01-2011, 12:35 PM | #5 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
"मन की निरोगता ही सबसे बढ़ी निरोगता है" जिसका सरीर हष्ट पुष्ट और बलवान है लेकिन मन मैं काम, क्रोध, घृणा, हिंसा, लोभ, कपट, इर्ष्य और स्वार्थ निवास करते हैं वह इंसान कभी भी निरोगी नहीं हो सकता है |
25-01-2011, 12:43 PM | #6 | |
VIP Member
|
Re: "अमृतवाणी"
Quote:
आपका सूत्र बहुत ही सुन्दर मन प्रशन्न हो गया कृप्या गति देती रहेँ
__________________
Disclaimer......! "फोरम पर मेरे द्वारा दी गयी सभी प्रविष्टियों में मेरे निजी विचार नहीं हैं.....! ये सब कॉपी पेस्ट का कमाल है..." click me
|
|
25-01-2011, 12:47 PM | #7 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
जिस प्रकार प्रकाश के प्रभाव से अन्धकार दूर हो जाता है
उसी प्रकार हमारे जीवन मैं व्याप्त अन्धकार को ज्ञान ही दूर कर सकता है.. . |
25-01-2011, 12:49 PM | #8 | |
Diligent Member
|
Re: "अमृतवाणी"
अत्यंत बेहतरीन सूत्र ! बधाई स्वीकार करें भूमि माता !
परन्तु एक पंक्ति से मै सहमत नहीं हो पा रहा हूँ Quote:
__________________
( वैचारिक मतभेद संभव है ) ''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है'' |
|
25-01-2011, 12:59 PM | #9 |
Special Member
Join Date: Jan 2011
Posts: 3,405
Rep Power: 33 |
Re: "अमृतवाणी"
आपका कथन बिलकुल सत्य है
लेकिन मित्र ऐसा नहीं है की कलियुग मैं सत्य नहीं बचा है यहाँ हम एक बात कहना चाहते हैं की अभी कलियुग का पहला चरण है और अभी भी सत्य बचा है. हाँ ये जरुर है की इसकी मात्रा कम है और जिस दिन ये पूर्ण समाप्त हो जाएगा तब तक कलियुग का चौथा चरण आ चुका होगा और फिर सम्पूर्ण मनुष्य जाति का विनाश, और फिर से एक नए युग का प्रारंभ.......... |
Bookmarks |
Tags |
सत्संग, literature |
|
|