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Old 06-11-2017, 03:32 PM   #1
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Default किस्सा तीन बहनों का

किस्सा तीन बहनों का / Kissa Teen Bahno Ka
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद)
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Old 06-11-2017, 03:35 PM   #2
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Default Re: किस्सा तीन बहनों का

किस्सा तीन बहनों का

पुराने जमाने में फारस में खुसरो शाह नाम का शहजादा था। वह रातों को अक्सर भेस बदल कर सिर्फ एक सेवक को अपने साथ रख कर नगर की सैर किया करता था और संसार की विचित्र बातें देख कर अपना ज्ञान बढ़ाया करता था। जब अपने वृद्ध पिता की मृत्यु होने पर वह राजगद्दी का मालिक हुआ तो उसने अपना नाम कैखुसरो रखा। किंतु उसने भेस बदल कर नगर का घूमना तब भी जारी रखा। हाँ, उसके साथ सेवक के बजाय मंत्री होता।

एक दिन इसी तरह नगर भ्रमण करते हुए वह एक गली में जा पड़ा। वहाँ एक मकान के अंदर से स्त्रियों की कुछ ऐसी बातचीत सुनाई दी कि वह कान लगा कर उस दरवाजे पर खड़ा हो गया। दरवाजे की दरारों से झाँक कर देखा तो उसे एक दालान में तीन नवयुवतियाँ बातें करती दिखाई दीं। यह तीनों बहनें थीं। बड़ी बहन ने कहा, मुझे अच्छी रोटियाँ खाने का शौक हैं। अगर मेरा विवाह शाही नानबाई से हो तो मजा आ जाए। मँझली बहन बोली, मैं तो तरह-तरह के खानों की शौकीन हूँ। मैं चाहती हूँ कि मेरा विवाह बादशाह के बावर्ची से हो।
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Old 06-11-2017, 03:38 PM   #3
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Default Re: किस्सा तीन बहनों का

किस्सा तीन बहनों का

छोटी बहन चुप रही। उसकी बहनों ने बहुत पूछा तो उसने कहा, मेरा काम नौकर-चाकरों से नहीं चलेगा, मैं तो स्वयं बादशाह से शादी करना चाहती हूँ। इतना ही नहीं, मैं चाहती हूँ कि बादशाह से मेरे एक बेटा पैदा हो जिसके एक ओर के बाल सोने के हो, दूसरी ओर के चाँदी के। वह बालक जब रोए तो उसकी आँखों से आँसुओं की जगह मोती गिरें और जब वह हँसे तो उसके होंठों में कलियाँ खिली हुई मालूम हों। उसकी बड़ी बहन यह सुन कर हँसने लगी और बोली कि तू हमेशा पागलों जैसी बात करती है।

बादशाह को इस वार्तालाप से बड़ा कौतूहल हुआ। उसने मंत्री को आज्ञा दी कि इस घर को अच्छी तरह पहचान रखो और कल सुबह इन तीनों बहनों को मेरे सामने हाजिर करो। मंत्री ने दूसरे दिन उसकी आज्ञा का पालन किया और तीनों बहनों को बादशाह के समक्ष ला कर पेश कर दिया। बादशाह ने देखा कि छोटी बहन अपनी अन्य बहनों से कहीं अधिक सुंदर है। वह निगाहों से बुद्धिमान भी लगी। बादशाह उसे देख कर मुग्ध हो गया।

फिर बादशाह ने कहा, तुम लोग कल रात को अपने दालान में बैठी क्या बातें कर रही थीं। ठीक-ठीक वही बताना जो तुमने कहा था। खबरदार, एक शब्द का भी अंतर न पड़े। याद रखो कि तुम्हारी बातें कल रात को मैंने खुद अपने कानों से सुनी हैं। गलत बात कहोगी तो मुझे मालूम हो जाएगा। यह सुन कर तीनों बहनें सिर झुकाए बैठी रहीं, लज्जा और भय के कारण उनकी जबान बंद हो गई। पूछने पर उन्होंने कहा कि हमें कुछ याद नहीं कि हमने क्या कहा था।
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Old 06-11-2017, 03:40 PM   #4
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Default Re: किस्सा तीन बहनों का

किस्सा तीन बहनों का

बादशाह ने उन्हें तसल्ली देते हुए कहा, तुम लोग भूली कुछ भी नहीं हो। निडर हो कर बताओ कि कल रात आपस में क्या बातें कर रही थीं। तुम कोईबुरी बात नहीं कर रही थीं। मैं केवल अपने सामने एक बार फिर तुम्हारी बातेंसुनना चाहता हूँ। बादशाह का काम प्रजा की आवश्यकताएँ पूरी करना होता है।मैं भी जहाँ तक हो सकेगा तुम्हारी इच्छाएँ पूरी करूँगा। हाँ, यह ख्याल रहेकि तुम लोग वही कहो जो तुमने कल रात को कहा था। बयान बदला न जाए।

मजबूर हो कर तीनों ने एक-एक करके बताया कि पिछली रात क्या कह रहीथीं। बादशाह सुन कर मुस्कुरा उठा। उसने अपने नानबाई और बावर्ची को बुलायाऔर नानबाई को बड़ी तथा बावर्ची को मँझली का हाथ पकड़ा दिया और कहा कि इनलोगों को बढ़िया रोटियाँ और सालन खिलाते रहना। उसने मंत्री को आदेश दिया किइसी समय काजी और गवाहों को बुला कर इनका निकाह पढ़वा दिया जाए। छोटी केलिए कहा, जैसी इसकी इच्छा थी, इसके साथ मैं विवाह करूँगा। यह विवाह पूरीशाही शान-शौकत से होगा, उसी तरह जैसे मैं किसी राजकुमारी को ब्याह रहा हूँ।मेरी शादी की इसी समय से तैयारियाँ शुरू कर दी जाएँ। यह कहने के बाद वह उठकर दरबार को चला गया।

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Old 07-11-2017, 08:38 AM   #5
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Default Re: किस्सा तीन बहनों का

किस्सा तीन बहनों का

बड़ी और मँझली बहन की शादी उसी दिन क्रमशः नानबाई और बावर्ची के साथहो गई। छोटी का विवाह पूरी धूमधाम से बादशाह के साथ कुछ दिन बाद हुआ औरउसे शाही जनानखाने में पहुँचा दिया गया। दोनों बहनों को छोटी के भाग्य सेबड़ी ईर्ष्या हुई। वे सोचतीं और आपस में कहा करतीं कि छोटी को तो एक बातमुँह से निकालने पर ही राजपाट मिल गया और हम लोग उसकी एक तरह से नौकरानियाँहो गईं। एक दिन बड़ी ने मँझली से कहा, यह छोटी ऐसी कौन-सी हूर परी है किइसे बादशाह ने ब्याह लिया। मुझे तो इस बात से बड़ा बुरा लग रहा है। मँझलीबोली, मुझे भी बड़ा बुरा लग रहा है। आखिर बादशाह ने उसमें क्या देखा कि उसेमलिका बना लिया। कही हुई बातों का क्या है, आदमी हर तरह की बातें करता है।मेरी समझ में तो छोटी नहीं बल्कि तुम बादशाह के योग्य थीं। बड़ी ने कहा, मुझे भी यह देख कर आश्चर्य है कि बादशाह की क्या आँखें फूट गई थीं जो उसनेउस चुहिया को पसंद किया, उससे तो तुम हजार दरजे अच्छी थीं।

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Old 07-11-2017, 08:40 AM   #6
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किस्सा तीन बहनों का

फिर दोनों ने सलाह की कि इस तरह कुढ़ने और एक-दूसरे को तसल्ली देनेसे काम नहीं चलेगा। किसी तरह उसे खत्म किया जाए या बादशाह की निगाहों सेगिराया जाए तभी मन को शांति मिलेगी। फिर भी उनकी समझ में न आता कि इसके लिएक्या उपाय किया जा सकता है। यद्यपि यह ठीक बात थी कि जब वे दोनों छोटी बहनसे मिलने जातीं तो वह उनकी हैसियत का ख्याल न करती बल्कि बहनों की तरह हीअपनेपन से उनकी अभ्यर्थना किया करती थी। फिर भी उनकी हैसियत उससे नीची थीही। सभी लोग जानते थे कि वे दोनों नौकरों की स्त्रियाँ हैं और उनकी बहनरानी है। बादशाह भी अपने सेवकों की पत्नियों को क्यों खातिर में लाता।

कुछ महीनों बाद रानी को गर्भ रहा। यह सुन कर बादशाह को बड़ी खुशीहुई। अब उन दोनों ने अपनी छोटी बहन से कहा, हमें इस बात से इतनी प्रसन्नताहै कि बयान नहीं कर सकते। हम दोनों की इच्छा है कि तुम्हारी प्रसूति औरउसके चालीस दिन बाद तक तुम्हारी देखभाल पूरी तरह हमारे ही सुपुर्द हो।मलिका ने कहा, इससे अच्छा क्या हो सकता है। तुम दोनों मेरी माँ जाई हो, तुमसे बढ़ कर कौन देखभाल करेगा। तुम अपने पतियों के द्वारा यह आवेदन बादशाहके सामने करो। आशा है वे इसे स्वीकार कर लेंगे। उन्होंने अपने-अपने पतियोंके द्वारा बादशाह से यह आवेदन किया तो उसने कहा कि मलिका से पूछ कर ही यहअनुमति दूँगा। उसने अपनी मलिका से पूछा तो वह खुशी से तैयार हो गई क्योंकिउसने तो पहले ही बहनों की बात मान ली थी। बादशाह ने कहा, मेरी समझ में भीयही बात ठीक रहेगी। वे कुछ भी हों, हैं तो तुम्हारी बहनें ही। गैर आदमियोंसे तो अधिक अच्छी तरह तुम्हारी देखभाल करेंगी। इस बातचीत के बाद बादशाह नेदोनों बहनों को प्रसूति के समय मलिका की देखभाल करने की अनुमति दे दी। वेदोनों महल के अंदर रहने लगीं।

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Old 09-11-2017, 06:28 PM   #7
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किस्सा तीन बहनों का

अब उन्हें अपनी दुष्टता को कार्यान्वित करने का अवसर मिल गया। जब मलिका की प्रसूति का समय आया तो उन्होंने समस्त दासियों को वहाँ से हटा दिया। मलिका ने एक अत्यंत सुंदर पुत्र को जन्म दिया। इससे उन दोनों की डाह और बढ़ी। उन्होंने चुपचाप उस बच्चे को महल के बाहर पहुँचा दिया और एक मरा हुआ पिल्ला ला कर रख दिया। बच्चे को उन्होंने एक कंबल में लपेट कर एक पिटारी में रखा और एक नहर में बहा दिया और महल में आ कर दासियों को दिखाया कि मलिका ने मरा पिल्ला जना है। सब लोगों को इस पर बड़ा आश्चर्य हुआ किंतु बादशाह को जब यह मालूम हुआ तो उसका क्रोध से बुरा हाल हो गया। वह कहने लगा, ऐसा मरा पिल्ला जननेवाली रानी का मैं क्या करूँगा, मैं उसे मरवा दूँगा। संयोग से मंत्री भी वहाँ मौजूद था। उसने समझा-बुझा कर बादशाह का क्रोध शांत कर दिया।

जिस नहर में ईर्ष्यालु बहनों ने बच्चेवाली टोकरी बहाई थी वह शाही बागों के अंदर से जाती थी। सारे शाही बागों के व्यवस्थापक यानी बागों के दारोगा का स्थान उसी नहर के किनारे था। उसने नहर में टोकरी बहते देखा तो एक माली से कह कर उसे निकलवाया क्योंकि नहर में इधर-उधर की चीजें नहीं आनी चाहिए। देखा तो उसमें एक अत्यंत सुंदर बालक था। दारोगा को देख कर आश्चर्य हुआ कि टोकरी में रखा बच्चा नहर में कैसे आ गया। लेकिन उसने अधिक सोच-विचार नहीं किया। वह निपूता था। बच्चे को उठा कर वह पत्नी के पास ले गया और कहा, भगवान ने यह बच्चा हमें दिया है। उसकी पत्नी भी बड़ी प्रसन्न हुई और बच्चे का पुत्रवत लालन-पालन करने लगी।

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किस्सा तीन बहनों का

दूसरे वर्ष मलिका के फिर एक पुत्र पैदा हुआ। इस बार भी उसकी बहनों ने वैसी ही दुष्टता की। बच्चे को बाहर जा कर नहर में बहा दिया और मलिका के नीचे एक मरा बिल्ली का बच्चा ला कर रख दिया। महल में फिर मातम सा छा गया और बादशाह का क्रोध फिर आसमान छूने लगा और उसने मलिका का वध कराने की बात फिर कही। इस बार भी दयालु मंत्री ने समझा-बुझा कर उसे मलिका को मरवाने से रोका। मलिका पहले से अधिक अपमान की स्थिति में रहने लगी। इधर जिस टोकरी में बच्चा रखा था वह फिर बागों के दरोगा के हाथ लगी। वह इस बच्चे को भी पहले की भाँति पालने लगा।

कुछ दिनों बाद मलिका को फिर गर्भ रहा। बादशाह को आशा थी कि इस बार की संतान ठीक-ठीक होगी। लेकिन दोनों दुष्ट बहनें अब भी वहाँ मौजूद थीं और उनके मुँह खून लग चुका था। इस बार मलिका के बेटी हुई। मलिका की बहनों ने उसे भी नहर में बहा दिया। उस टोकरी को भी बागों के दारोगा ने निकलवा लिया और ईश्वरीय देन समझ कर इसका पालन-पोषण करने लगा। उधर दुष्ट बहनों ने मशहू्र किया कि मलिका ने छछुंदर जना है।

इस बार बादशाह अपना क्रोध बिल्कुल नहीं सँभाल पाया। उसने कहा कि ऐसी जीव-जंतु पैदा करनेवाली रानी से बदनामी ही होगी
, इसे जरूर मरवा देना होगा। दयालु मंत्री ने उसके पैरों पर गिर कर कहा, पृथ्वीपाल, आप कुछ न्याय-अन्याय का विचार करें। इसमें रानी का क्या अपराध है? आप की बदनामीवाली बात ठीक है। तो इसके लिए यह करें कि मलिका के पास जाना छोड़ दें।

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किस्सा तीन बहनों का

बादशाह ने कहा, तुम इतना कहते हो तो उसे जान से नहीं मरवाऊँगा। लेकिन मैं सजा जरूर दूँगा और सजा भी ऐसी दूँगा जो मृत्युदंड से भी बढ़ कर कष्टकारक हो। और इस सजा के बारे में मैं तुम्हारी कोई बात नहीं सुनूँगा।

यह कह कर उसने शाही इमारतों के निर्माता को बुला कर कहा
, जामा मसजिद के ठीक सामने एक कैदखाना बनाओ। उसका द्वार खुला रहे और मलिका को एक लकड़ी के पिंजरे में वहाँ बंद कर दिया जाय। वहाँ एक शाही फरमान लगाया जाए कि जो भी नमाज पढ़ने आए मसजिद में जाने के पहले मलिका के मुँह पर थूक कर जाए। जो आदमी ऐसा न करे उसे भी वही सजा दी जाए जो मलिका को दी जा रही है। मंत्री यह सुन कर चुप हो रहा लेकिन सोचने लगा कि मलिका को जो सजा दी जा रही है उसके योग्य तो उसकी बहनें हैं।

खैर
, बादशाह ने जिस तरह कहा था उसी तरह का कैदखाना और पिंजड़ा तैयार किया गया और मलिका को उसमें रखा गया। दिन भर सैकड़ों नगर निवासी मसजिद में नमाज के लिए जाते और नमाज से पहले मलिका के मुख पर थूका करते। उन्हें इस बात का बड़ा दुख होता कि वे निर्दोष मलिका को दंडित कर रहे हैं लेकिन क्या करते, बादशाही आदेश था और दंड का भय भी। बेचारी मलिका भी ईश्वरीय इच्छा समझ कर सब कुछ सह लेती।

उसके पुत्रों और पुत्री को
, जिनके जन्म से भी वह अनभिज्ञ थी, बागों का दारोगा और उसकी पत्नी बड़े प्यार और सावधानी से पाल-पोस रहे थे। तीनों बच्चों को खेलता देख कर उन दोनों को अपार हर्ष होता था। वे कुछ बड़े हुए तो दारोगा ने बड़े लड़के का नाम बहमन, छोटे लड़के का परवेज और लड़की का परीजाद रखा। जब वे लोग कुछ और बड़े हुए तो बागों के दारोगा ने उनकी शिक्षा-दीक्षा के लिए विद्वानों और विभिन्न कलाओं के विशेषज्ञों को नियुक्त किया। तीनों की शिक्षा एक साथ होती और परीजाद भी जो बुद्धि में अपने भाइयों से कम नहीं थी, विभिन्न विषयों में उन्हीं की भाँति पारंगत हो गई। तीनों ने काव्य, इतिहास, गणित आदि सभी प्रचलित विद्याएँ सीखीं।

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Default Re: किस्सा तीन बहनों का

किस्सा तीन बहनों का

तीनों की बुद्धि इतनी तीक्ष्ण थी कि उनके अध्यापक कहने लगे कि यह लोग तो कुछ दिनों में हम से भी बढ़ कर विद्वान हो जाएँगे, इन्हें तो कोई बात सीखने में देर ही नहीं लगती।

लिखने-पढ़ने के अलावा तीनों ने घुड़सवारी
, धनुर्विद्या, शस्त्र-संचालन आदि की शिक्षा भी ली और जल्द ही इनमें भी प्रवीण हो गए। इसके अलावा परीजाद ने गाना और वाद्य वादन भी सीखा। दारोगा को ख्याल तो पहले भी था कि यह लोग शाही महल के जन्मे होंगे, अब विश्वास भी हो गया। उसे अपना छोटा-सा घर उनके निवास के उपयुक्त न लगा। उसने शहर के बाहर जंगल के समीप उनके लिए विशाल भवन बनवाना शुरू किया।

दारोगा ने अपनी देखरेख में वह भवन बनवाया। वह तैयार हो गया तो उसकी दीवारों पर प्रख्यात कलाकारों द्वारा बड़े सुंदर चित्र बनवाए और महल को हर प्रकार की सुंदर और मूल्यवान सामग्री से सजाया। उसके पास ही उसने बड़ी मनोरम पुष्प वाटिका बनवाई जहाँ वे लोग मन बहलाया करें। इसके अतिरिक्त एक बड़ा भूमिक्षेत्र घिरवा कर उसमें बहुत-से जंगली जानवर रखवाए ताकि वे लोग घर के समीप ही शिकार खेल सकें क्योंकि स्वस्थ रहने के लिए शिकार अच्छी कसरत है।

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