16-09-2013, 08:40 PM | #1 |
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कभी चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात ।
आसमाँ का कहीं लाल ,कहीं गुलाबी कहीं नीले ,तो कहीं पीले रंग की चादर ओढ़ लेना अन्दर तक ठण्ड का एहसास जगाती शीतल हवा का मस्ती में आवारा भटकना । बता रहे है इस जागते जहाँ को कि शाम बस चंद पलों की मेह्मान है । इसी शाम की शीतल छांव में परिंदे ,इंसान ,जानवर सब थके हारे लौट पड़े है घर की तरफ । और देखते ही देखते कुछ ही पलों में चाँद आसमां को ही नदी बना हौले -हौले तैरने लगता है । और छा जाता है अँधेरा हर तरफ घुल जाती है इन अंधेरों में खामोशियाँ तो कभी खामोशियों में बाधा डालती हवाओं की सरसराहट । ये चाँद, ये हवाये ,ये खामोशियाँ बता रही हैं की रात आ गयी और सुला गयी इस जागते जहाँ को साथ में कितने सपने ,कितने बातें कितने वादे , कितनी तकरारे कितने दर्द ,कितनी पीड़ा सब को सुला देती है ये रात आजाद कर देती है हमें इनकी जकड़न से । और जगा जाती है मन में कुछ मीठे - प्यारे सपने अनमोल यादों के सुनहरे पल कोई प्यारा देखा -अनदेखा चेहरा और साथ में दे जाती है एहसास एक ऐसी जिन्दगी का जो हम हमेशा से जीना चाहते हैं । कितनी प्यारी, कितनी सुन्दर कितनी अपनी होती है न, ये रात कभी चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात । |
16-09-2013, 09:46 PM | #2 |
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Re: कभी चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात ।
बहुत खूब!
फ़िल्म चोरी चोरी का वो गाना मन में आ गया। ये रात भीगी - भीगी, ये मस्त फ़िज़ाएँ उठा धीरे-धीरे वो चाँद प्यारा प्यारा |
16-09-2013, 10:59 PM | #3 |
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Re: कभी चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात ।
बेहतरीन..................................
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17-09-2013, 05:58 PM | #4 |
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Re: कभी चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात ।
बहुत खूब
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Advo.Ravinder Ravi "Sagar" |
17-09-2013, 10:50 PM | #5 |
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Re: कभी चांदनी तो कभी अँधेरी ये रात ।
बहुत सुन्दर, ओमप्रकाश जी. आपकी उपरोक्त रचना में दिलकश प्रकृति-चित्रण भी है और मानव हृदय की भावनाओं का भी अच्छा चित्रण उभर कर आया है. |
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