My Hindi Forum

Go Back   My Hindi Forum > Art & Literature > Mehfil
Home Rules Facebook Register FAQ Community

Reply
 
Thread Tools Display Modes
Old 11-09-2013, 06:29 PM   #121
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: >< भूली बिसरी यादें ><

बचपन में जाता हूँ तो सबसे पहले गाँव याद आता है . जिसके स्कूल में मैं पहले दो दर्ज़ा पढ़ा . जहाँ मास्टर जी 20 तक पहाड़े, 100 तक गिनती और किताब में लिखी कवितायें रटाया करते थे। और वो आधा कच्चा और आधा पक्का मकान जिसके बाहर नीम का पेड़ खड़ा रहता था .

माँ कहती है कि मैं बचपन में अपने दादा जी के पास सोया करता था . मुझे अपने दादा जी के साथ का सोना तीसरी या चौथी कक्षा से याद है . जब बाद के दिनों में पिताजी हमें अपने साथ शहर ले गए थे . जहाँ पिताजी नौकरी किया करते थे . हम सभी साल में दो बार छुट्टियों में गाँव जाया करते या जब कभी बीच में किसी की शादी हुआ करती। उधर शहर में शहर का आगरा होना मुझे शायद ठीक ठीक कहूं तो पाँचवी से अच्छे से पता चला।

बात उन्हीं दिनों की है जब हम गर्मियों की छुट्टियों में गाँव गए थे . हम कुछ छोटे और कुछ बड़े बच्चे खेतों की ओर गए थे जिसे गाँव में सभी लोग 'हार' बोलते थे। हम सभी खेल रहे थे तभी हम सभी से उम्र में २-३ साल बड़े कुछ बच्चे हमारी ओर आये और कहने लगे "ऐ चमार चलो यहाँ से, यहाँ हम खेलेंगे" उसके बाद हम और उन बच्चों में कहा सुनी और धक्का मुक्की का दौर चला।

उस रात मन में उथल-पुथल का मौसम चलता रहा और चमार शब्द कानों में गूँजता रहा। किन्तु ये शब्द मेरे लिए नया था जिसे हमारी ओर हेय दृष्टि से फैंका गया था . अभी दो दिन भी नहीं बीते होंगे कि जब हम बच्चे खेलकर थक लेने के बाद किसी खेत में लगे ट्यूब वैल के पास पानी पीने गए जहाँ दो बच्चे पहले से अपने हाथों से पानी पी रहे थे और हमें किसी आदमी ने अपने लोटे से पानी ऊपर से नीचे गिराकर पिलाया .

उस दिन प्यास बुझी नहीं थी बल्कि बढ़ गयी थी। वो प्यास बचपन की रातों में कई-कई बार आकर बढती रही। वो कोई बरस 1992 था। बाद के दो तीन वर्षों में गाँव हमसे छूट गया या कहें कि छोड़ दिया गया।

आज सोचता हूँ कि अपनी सुरक्षा, अपनी बेहतरी और अपने सम्मान के लिए न जाने कितने लोगों ने कितने गाँवों को छोड़ा होगा। और न जाने कितने छोड़ने के कगार पर हो ......
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 11-09-2013, 06:52 PM   #122
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: >< भूली बिसरी यादें ><

रात की घाटी में पिछले पहर से ही मुसलसल बारिश हो रही है. आज सूरज नहीं निकला लेकिन शायद ही किसी को शिकायत हो.... हाँ मैं फेरी वालों से भी बात कर आया हूँ. कोई आज काम नहीं करना चाहता है. मैं अपने दोस्त से पूछता हूँ “तेरा, आज का क्या प्रोग्राम है?”

चिकन और चावल का, और तेरा ?

कॉफी पीते हुए कोई कहानी पढ़ने का.

पड़ा रह साले.

किन्तु मेरा मन पढ़ने में भी नहीं लगता... बरामदे में बारिश पूरे मूड में बरस रही है. मैं बाहर निकल जाता हूँ. सड़कों पर भी बुलबुले छुट रहे हैं... सब सपने जैसा लग रहा है. कहीं झपकी गिर रही है तो कहीं मदहोश नींद.. सबको चुन-चुन कर उठा लेने का दिल करता है.

पेड़ों के तने पके हुए से लग रहे हैं... झुलसी पत्तियां हरे होकर खिल गए हैं. वे आँखें फाड़-फाड़ कर देखती हुई प्रतीत होती है. पत्तियों ने अपने शरीर फुल लेंथ की लम्बाई में तान दिए हैं मानो किसी तरुणी से बारिश रूपी आशिक प्यार कर रहा हो और उस भीगी सी जवान युवती ने मस्ती में अपने टांगें खोल दी हो.

ढका हुआ दिन एक खुमार बन कर छाया है. मौसम नशा दे रही है... ऐसे दिनों में मंटो की लिखी घाटन की कहानी याद आती है और सिगरेट और कॉफी की तलब-बार-बार लगती है. प्रकृति पर रीझते हुए, एक जोरदार कश खींचकर अपने अंदर रोकना फिर नाक से धुंआ निकालना आराम देता है. आखिर माज़रा क्या है, जुस्तजू क्या है ?

कुछ दूरी पर घुटने भर पानी में बच्चे फुटबाल खेल रहे हैं, सबने सिर्फ जींस पहने हैं. वे पानी से सराबोर हैं... उनको कोई फ़िक्र नहीं... वे कितने आज़ाद हैं और उनके जीवन में कैसी रवानगी है ! आँखों से आगे से बचपन ब्रीफकेस लिए निकलता है. ब्लैक एंड ह्वाइट में यह शेड ज़ेहन में अटक जाता है.

सड़कों पर लगे पानी से बच कर निकलने की कोशिश नहीं करता. चाहता हूँ, कोई गाडीवाला गुजरे तो मुझे और भिगोता हुआ निकल जाए. स्कूल में छुट्टियाँ हो गई हैं. बसों में बैठे बच्चे बड़ी हसरत से मुझे देख कर आंहें भर रहे हैं... कृष्णा निकेतन के लड़कियों के दिल में भी यही ख्याल आये होंगे पर ...

आकाश में सफ़ेद बादल हैं ... बारिश की बूंदें तीन मंजिले मकान के ऊंचाई जितनी दिखती है, उससे ऊपर नहीं नज़र नहीं आती. सारे गमलों में पानी भर गया है... गुलमोहर का फूल हर बूँद को अपने दामन में रोकना तो चाहता है पर सफल नहीं हो रहा है... हर पत्ता इतना ताज़ा है बस तोड़ कर पान के जैसे मुंह में रखे को जी चाहता है.

बीच –बीच में तेज हवाओं से पेड़ों की डालियाँ बेतरह एक दूसरे में उलझ गई हैं. यह दो भिन्न-जातियों का मिलन सा लगता है. कोई गुफ्तगू चल रही है.

प्रकृति और नारी ईश्वर की बनायी गई दो सबसे खूबसूरत और अनमोल चीजें हैं. मुझे सुमित्रानन्दन पन्त की कविताओं की भूख लगने लगती है.

... और ऐसे में जिस बालकनी में आपकी महबूबा, हाँ वो जो सूरज बन वहाँ चमकती थी, जुल्फें खोल रात का पर्दा डालती थी, आपको नाउम्मीदी भरा खत लिखा करती थी फिर भी तोहफे में चंदन की छोटी-छोटी डालियाँ भेजा करती, आपको उसकी महक उनके बदन सी लगती, उसी गली में आप उम्मीद की झोंके की तरह आते थे. उनकी बहनें और सहेलियां एक-दूसरे को कोहनी मार ताना कसती थी, लेकिन वो आपको मुहब्बत का फरिश्ता बताते हुए मुस्कुराती थी.

... वो जो नाव बीच में डूब गई थी और इसका दर्द जब भी आपको सालता है आप दीवानगी के आलम में मेरी तरह निकल पड़ते हैं... ऐसे में अपनी महबूबा की गली से गुज़ारना हो जाए जिनसे तो सिर में मीठा सा दर्द तो उभरना लाज़मी हो ही जाता है.


अंततः पैर में पत्थर बांधे दबी जुबान से जगजीत सिंह की कोई गज़ल गाते हुए आप आगे बढ़ सकते हैं अलबत्ता यह स्केच भी रुक गया होगा.
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 11-09-2013, 11:56 PM   #123
Advo. Ravinder Ravi Sagar'
Member
 
Join Date: Jul 2013
Posts: 192
Rep Power: 17
Advo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to all
Default Re: >< भूली बिसरी यादें ><

बहुत खूब.
Advo. Ravinder Ravi Sagar' is offline   Reply With Quote
Old 12-09-2013, 12:07 AM   #124
Advo. Ravinder Ravi Sagar'
Member
 
Join Date: Jul 2013
Posts: 192
Rep Power: 17
Advo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to allAdvo. Ravinder Ravi Sagar' is a name known to all
Default Re: >< भूली बिसरी यादें ><

?????????
Advo. Ravinder Ravi Sagar' is offline   Reply With Quote
Old 12-09-2013, 06:44 PM   #125
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: >< भूली बिसरी यादें ><

कोई बात थी पुरानी जो स्मृतियों में उलझ गयी थी। जैसे पुराने रिकार्ड पर कोई अटका हुआ स्वर । वो स्वर जिसके बाद के स्वर हम पकड़ना चाहते हों . किन्तु उस चाहना के लिए हमें उस उलझे हुए रिकार्ड को दुरुस्त करना होता .

फिर एकाएक मन उस अटकी हुई आवाज़ को वहीँ छोड़कर दूर चला जाता . और वह पुरानी बात स्मृतियों में कहीं दबकर रह जाती . जैसे अभी अभी कहीं से पदचाप के स्वर गूँजे हों किन्तु वे स्वर वहीं कहीं पैरों तले दबकर रह गए हों। जैसे कोई भूली हुई याद। जिसे भुलाने के लिए भूला जाता है . किन्तु वह वहीं कहीं रहती है स्मृतियों में उलझी हुई .

उस उदास गर्म शाम में गर्मजोशी के नाम पर कुछ भी नहीं था कि किसी पुरानी चाहना को याद कर लिया जाता और मन एकाएक प्रसन्न हो उठता कि अरे उस बुझती हुई शाम को जब जाना था कहीं तो क्यों हम उस पुरानी हो आयो याद को कन्धों पर लादे उस मोड़ तक गए थे जहाँ से उस याद में बसे शख्स वहाँ से मुड़ गए थे .
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 12-09-2013, 06:48 PM   #126
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: >< भूली बिसरी यादें ><

-तुम मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते ।

-बिल्कुल भी नहीं ?

-ह्म्म्मम्म .....बिल्कुल भी नहीं ।

-इत्ता सा भी नहीं ?

-अरे कहा ना बिल्कुल भी नहीं फिर इत्ता सा कैसे कर सकती हूँ ।

-"मैं सोच रहा था कि इत्ता सा तो करती होगी ।" कहते हुए मैं मुस्कुरा जाता हूँ ।

वो उठकर चल देती है । मैं सिगरेट फैंक देता हूँ और उसके पीछे चलने लगता हूँ ।

-अच्छा बाबा मान लिया कि तुम इत्ता सा भी प्यार नहीं करती । अब ठीक ....खुश

वो आगे बढ़ते हुए पत्थर उठाकर नदी में फैंकते हुए कहती है "तुम सिगरेट पीते हुए बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते । "

-बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता क्या ?

-नहीं, बिल्कुल भी नहीं

-अच्छा तो ठीक है, कल से बीड़ी पीना शुरू करता हूँ ।

-ओह हो...तुम ना...करो जो करना है मुझे क्या ?

मैं मुस्कुरा जाता हूँ ।

-हाँ, तुम्हें क्या ? देखना कोई मुझे जल्द ही ब्याह के ले जायेगी और तुम बस देखती रहना ।

वो खिलखिला कर हँस पड़ती है ।

-जाओ जाओ बड़े आये ब्याह करने वाले । कौन करेगा तुम से शादी ?

-क्यों तुम नहीं करोगी ?

-मैं तो नहीं करने वाली ।

-क्यों ?

-क्यों, तुमने कभी कहा है कि तुम मुझसे शादी करना चाहते हो ।

मैं मुस्कुराते हुए कहता हूँ -

-क्यों, कभी नहीं कहा ?

-चक्क (अपनी जीभ से आवाज़ निकलते हुए वो बोली)

-कल, परसों या उससे पहले कभी तो कहा होगा (मुस्कुराते हुए)


वो नाराज़ होकर चल देती है ।

-"अच्छा ठीक है । नहीं कहा तो अब कह देता हूँ ।" (मैं उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहता हूँ )

मैं उस बड़े से पत्थर पर चढ़ जाता हूँ और कहता हूँ

-सुनो ए हवाओं, ए घटाओं, ए नदी, पंक्षियों और हाँ पत्थरों । मैं अपनी होने वाली बीवी से जो मुझे इत्ता सा भी प्यार नहीं करती और जिसे मैं इत्ता सा भी अच्छा नहीं लगता, बहुत प्यार करता हूँ । मैं उससे और सिर्फ उसी से शादी करना चाहता हूँ । (कंधे ऊपर करते हुए मैं उसको देखकर मुस्कुराता हूँ !)

-होने वाली बीवी ? (वो बोली )

-हाँ (मुस्कुराते हुए )

-तुम ना 'टू-मच' हो..... कहते हुए वो मुस्कुरा जाती है ।

वो चल देती है । मैं पीछे चलते हुए सिगरेट जला लेता हूँ । वो पीछे मुड़कर देखती है और पास आकर सिगरेट छीनकर फैंक देती है । प्यार से "आई हेट यू" जैसा कुछ बोलती है ।
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Old 17-09-2013, 07:22 PM   #127
jai_bhardwaj
Exclusive Member
 
jai_bhardwaj's Avatar
 
Join Date: Oct 2010
Location: ययावर
Posts: 8,512
Rep Power: 99
jai_bhardwaj has disabled reputation
Default Re: >< भूली बिसरी यादें ><

कोई किसी जाहिल को इतना याद कर सकता है???
जबकि पता हो कि तुम होते भी तो इस वक़्त तक सो गये होते,
इस बात से बेपरवाह कि मैं करवटें बदलती हूं रात सारी...
तुम्हें जगाना चाह कर भी जगा नहीं पाती, हालांकि मालूम है मुझे कि;
"फिक्र की खुराक इश्क का ज़ायका खराब किये दे रही है..."

कोई किसी जाहिल को इतना याद कर सकता है???
जबकि पता हो कि तुम होते भी तो इस वक़्त तक सो गये होते
तब तुम्हारी उस बेपरवाह नींद को मैं सारी रात खुली आंखों से निहारती,
चाहती उठ जाना और टहलना यूं ही इस सूने, बिना आंगन वाले घर में...
किसी किताब से अपनी मनपसंद पंक्तियां पढ लेने की शदीद इच्छा को दबा देती कि;
कहीं तुम जाग ना जाओ...

कोई किसी जाहिल को इतना याद कर सकता है???
जबकि पता हो कि तुम होते भी तो इस वक़्त तक सो गये होते ...
चिढती, खांसती- खखारती मगर ऐसे कि;
कोई खलल ना पडे तुम्हारी नींद में...
और सोचती कि तुम्हारा होना- ना होना बराबर सा ही है...

मगर जब बिस्तर में तुम्हारी जगह एक निरा निश्चल तकिया भर पडा देखती हूं तो मालूम होता है कि तुम्हारा नींद में करवट भर बदल लेना भी एक सुकून है..
कभी यूं ही कच्ची नींद मे पूछ लेना कि "सोयी नहीं अब तक" और मेरे जवाब का इंतज़ार किये बिना ही फिर करवट बदल कर सो जाना भी एक सुख है...

जब तक खो ना जाये, तब तक निरा अनजाना ही रहता है बहुत कुछ
__________________
तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम ।
पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।।

कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/
यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754
jai_bhardwaj is offline   Reply With Quote
Reply

Bookmarks


Posting Rules
You may not post new threads
You may not post replies
You may not post attachments
You may not edit your posts

BB code is On
Smilies are On
[IMG] code is On
HTML code is Off



All times are GMT +5. The time now is 03:52 AM.


Powered by: vBulletin
Copyright ©2000 - 2024, Jelsoft Enterprises Ltd.
MyHindiForum.com is not responsible for the views and opinion of the posters. The posters and only posters shall be liable for any copyright infringement.