15-04-2016, 11:35 PM | #1 |
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हम तो
अपनी नादानियों को सोच मुस्कुरा दिए हम तो नासूरे ज़ख्म को सहलाया नहीं जाता ये भूल गए हम तो हर बार भूल जाते हैं कर बैठते हैं खता हम तो रखते हैं अपनेपन की ख्वाहिशे गैरों से क्यूँ हम तो जिस ज़माने में अपने भी गैर बने फिरते हैं तो परायों से फिर भी अपनेपन की उम्मीदें आखिर क्यूँ हमको पग पग ठोकरे मिलती गईं फिर भी एक आश लिए दरबदर इस ज़माने में भटकते रहे हम तो .. काश होती दुनिया में सिर्फ खुशियां ही खुशियाँ तो यूँ अश्को के दरिया में न डूबा करते हम तो |
16-04-2016, 08:16 AM | #2 |
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Re: हम तो
दुनिया से मिलने वाली चोटों और तथाकथित अपनों से प्राप्त होने वाली उदासीनता का बड़ा भाव पूर्ण चित्रण किया गया है इस कविता में. निम्नलिखित पंक्तियाँ उक्त संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं:
"रखते हैं अपनेपन की ख्वाहिशे गैरों से क्यूँ हम तो जिस ज़माने में अपने भी गैर बने फिरते हैं तो परायों से फिर भी अपनेपन की उम्मीदें आखिर क्यूँ हमको" एक बहुत अच्छी कविता हमसे शेयर करने के लिये धन्यवाद, बहन पुष्पा जी.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
16-04-2016, 03:48 PM | #3 |
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Re: हम तो
[QUOTE=rajnish manga;558048][size=3]दुनिया से मिलने वाली चोटों और तथाकथित अपनों से प्राप्त होने वाली उदासीनता का बड़ा भाव पूर्ण चित्रण किया गया है इस कविता में. निम्नलिखित पंक्तियाँ उक्त संदर्भ में महत्वपूर्ण हैं:
"रखते हैं अपनेपन की ख्वाहिशे गैरों से क्यूँ हम तो जिस ज़माने में अपने भी गैर बने फिरते हैं तो परायों से फिर भी अपनेपन की उम्मीदें आखिर क्यूँ हमको" एक बहुत अच्छी कविता हमसे शेयर करने के लिये धन्यवाद, बहन पुष्पा जी. मानव जीवन के हर पहलू को उजागर करते रहती हूँ भाई क्यूंकि इंसान का जीवन कई तरह की घटनाओं और भावनाओं से भरा रहता है ... बहुत बहुत धन्यवाद भाई कविता को पसंद करने के लिए |
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