05-04-2011, 10:42 AM | #31 |
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Re: " कबीर के दोहे "
अब कांहा जंगलका सोस भयो उदास दिलमों ॥
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05-04-2011, 10:43 AM | #32 |
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Re: " कबीर के दोहे "
कहत कबीरा सुनो भाई साधु येही हमारा भेष ।
एकही हमारा वोही अल्ला हम तो भयो निर्दोष ॥
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05-04-2011, 10:44 AM | #33 |
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Re: " कबीर के दोहे "
देख बे देखें यह अलखने पलखमें खलक पैदा किया रचा है चित्र साक नाना ।
आपही गौप है आपही गोपिका नंद और कान्हा ॥
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05-04-2011, 10:44 AM | #34 |
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Re: " कबीर के दोहे "
आपही राम आपही रावण आपही आपको आप मारा ।
आप प्रल्हाद नरसिंह हिरण्यकश्यप आपही आपका उदार फारा ॥
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05-04-2011, 10:46 AM | #35 |
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Re: " कबीर के दोहे "
आपही गत और आपही औगत आप जिता और हारा ।
कहे कबीर यहीच हारबाजीकी चित्रकी बागमें कौन मारा ॥
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05-04-2011, 10:46 AM | #36 |
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Re: " कबीर के दोहे "
बंगला खूप बनायाबे अंदर नारायन सोया ॥
पंचतत्त्वकी भीत बनाई तीन गूनका गारा । रोमकी छान चलाई चैतन करनेहारा ॥
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05-04-2011, 10:46 AM | #37 |
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Re: " कबीर के दोहे "
उस बंगलेकू दस दरबाजे बीच पवनका खंबा ।
आवत जावत किसे न देखो वो ही बडा आचंबा ॥
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05-04-2011, 10:47 AM | #38 |
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Re: " कबीर के दोहे "
पांच पचीसा पात्रा नीचे मनवा ताल बजावे ।
सुरत सुरतका मृदंग बजावे राग छत्तिसा गावे ॥
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05-04-2011, 10:47 AM | #39 |
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Re: " कबीर के दोहे "
अपरंपार भरा है यारो सद् गुरु भेद बताया ।
कहत कबीरा सुन भाई साधु जिन्ने पाया उन्ने छपाया ॥
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