19-07-2015, 12:43 PM | #1 |
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सपनों का देश और उसका यथार्थ
साभार: रवि शर्मा अक्सर मैंने सपनों में एक देश देखा है – आसमानों से परे , चाँद के पास सितारों की छाँव में – एक प्यारा सा देश ! जहाँ जीवन एक अभिशाप नहीं जहाँ भूख से बिलखते बच्चे नहीं जहाँ पीठ तक धंसे पेट नहीं रोटी को तरसते लोग नहीं ठण्ड से कांपते जिस्म नहीं कहीं गहरे तक चुभती निगाहें नहीं जहाँ खारा अश्रुजल – प्यास के लिए नहीं पिया जाता जहाँ जीवन में – बस प्यार ही प्यार है ! लेकिन – इन सपनों से हमेशा जागा हूँ मैं सच देखने की चाह में और देखे हैं – भूख प्यास से बिलखते बच्चे भूखे रोते बच्चों को सुलाने की माँ की असफल कोशिशें रोटी को तरसते लोग और ठण्ड से सिकुड़ते जिस्म ! और हमेशा – सच से आँखे चुराने की चाह में फिर से सो जाता हूँ मैं ! लेकिन फिर वही सपना, वही देश, वही लोग ……. !!
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
21-07-2015, 06:59 PM | #2 |
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Re: सपनों का देश और उसका यथार्थ
very true rajnishji
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सपनों का देश, sapno ka desh |
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