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27-10-2013, 10:21 PM | #1 |
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वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
क्या वाकई बड़े बुजुर्ग किसी काम के नहीं होते ?.................
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28-10-2013, 11:43 AM | #2 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
क्या वाकई घर में या समाज में बड़े बुजुर्ग किसी काम के नहीं होते ?....... एक बार एक देश में यह निर्णय लिया गया कि वृद्ध किसी काम के नहीं होते, अकसर बीमार रहते हैं, और वे अपनी उम्र जी चुके होते हैं अतः उन्हें मृत्यु दे दी जानी चाहिए। देश का राजा भी जवान था तो उसने यह आदेश देने में देरी नहीं की कि पचास वर्ष से ऊपर के उम्र के लोगों को खत्म कर दिया जाए। और इस तरह से सभी अनुभवी, बुद्धिमान बड़े बूढ़ों से वह देश खाली हो गया. उनमें एक जवान व्यक्ति था जो अपने पिता से बेहद प्रेम करता था। उसने अपने पिता को अपने घर के एक अंधेरे कोने में छुपा लिया और उसे बचा लिया। कुछ साल के बाद उस देश में भीषण अकाल पड़ा और जनता दाने दाने को मोहताज हो गई। बर्फ के पिघलने का समय आ गया था, परंतु देश में बुआई के लिए एक दाना भी नहीं था. सभी परेशान थे। अपने बच्चे की परेशानी देख कर उस वृद्ध ने, जिसे बचा लिया गया था, अपने बच्चे से कहा कि वो सड़क के किनारे किनारे दोनों तरफ जहाँ तक बन पड़े हल चला ले। उस युवक ने बहुतों को इस काम के लिए कहा, परंतु किसी ने सुना, किसी ने नहीं. उसने स्वयं जितना बन पड़ा, सड़क के दोनों ओर हल चला दिए। थोड़े ही दिनों में बर्फ पिघली और सड़क के किनारे किनारे जहाँ जहाँ हल चलाया गया था, अनाज के पौधे उग आए। लोगों में यह बात चर्चा का विषय बन गई, बात राजा तक पहुँची. राजा ने उस युवक को बुलाया और पूछा कि ये आइडिया उसे आखिर आया कहाँ से? युवक ने सच्ची बात बता दी। राजा ने उस वृद्ध को तलब किया कि उसे यह कैसे विचार आया कि सड़क के किनारे हल चलाने से अनाज के पौधे उग आएंगे। उस वृद्ध ने जवाब दिया कि जब लोग अपने खेतों से अनाज घर को ले जाते हैं तो बहुत सारे बीच सड़कों के किनारे गिर जाते हैं. उन्हीं का अंकुरण हुआ है। राजा प्रभावित हुआ और उसे अपने किए पर पछतावा हुआ. राजा ने अब आदेश जारी किया कि आगे से वृद्धों को ससम्मान देश में पनाह दी जाती रहेगी....................
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16-10-2014, 11:13 PM | #3 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
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बहुत बहुत धन्यवाद डॉ श्री विजय कुमार जी ,...आपकी इस कहानी को पढ़कर मै कुछ लिखना चाहूंगी ... बहुत ही सही बात , और आज के समय की मांग है की इस विषय पर लिखा जाय और इसपर सोचा जाय ...इस कहानी का भावार्थ इस बात की अनुभूति कराती है की समाज में बुजुर्गो की अवहेलना आज समाज की एक बड़ी समस्या कही जा सकती है . आजकल कई जगह देखने मिला है खासकरके बड़े शहरो में और विदेशमे, विदेशी हिन्दुस्तानी याने की n र i में की जब भी किसी वर कन्या के विवाह की बात होती है, तब एक पक्ष ये पहले पूछते हैं की घर में कितने पुराने फर्नीचर हैं ... पुराने फर्नीचर कहा जाता है बुजुर्गो को... बहुत गलत है समाज का ये विचार क्यूंकि जिन्होंने बच्चों को पालपोसकर बड़ा किया है उन्हें फर्नीचर कहना और आज कई vridhdhashram कई एइसी दुखद कहानियो से भरे पड़े हैं की आँखे भर आती हैं . और लोग बूढ़े माँ बाप को वृध्धाश्रम में फेंक देते है कचरे के सामान की तरह, तब दिल रो उठता है क्यों आज के बच्चे ये भूल जाते हैं, की वो भी कभी तो बूढ़े होंगे ही और उनके साथ भी जब एइसा कुछ हुआ तो ? क्या बीतेगी उनपर. क्यूँ खुद को अपने माता पिता के स्थान पर नही रख के देख्तेकी दिल में कितना दर्द होता हैजब खुद की संतान ये कहे की आपके लिए हमारे घर में जगह नही ... |
02-11-2013, 07:07 PM | #4 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
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02-11-2013, 08:56 PM | #5 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
बहुत सुन्दर, मित्र. अपने बुजुर्गों की अवहेलना कर के कोई समाज तरक्की नहीं कर सकता.
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02-11-2013, 09:32 PM | #6 | |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
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शतप्रतिशत सही बात कही आपने........
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12-11-2013, 05:38 PM | #7 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
सूरज की पहली किरण......... प्राचीन काल मे प्रथा थी की जब कोई व्यक्ति साठ वर्ष का हो जाता था तो उसे राज्य से बाहर जंगल में भेज दिया जाता था ताकि समाज में केवल स्वस्थ्य और युवा लोग ही जीवित रहें। एक व्यक्ति शीघ्र ही साठ वर्ष का होने वाला था। उसका एक जवान बेटा था जो अपने पिता से बहुत प्रेम करता था। बेटा नहीं चाहता था की उसके पिता को भी अन्य वृद्धों की भांति जंगल में भेज दिए जाएं इसलिए उसने अपने पिता को घर के तहखाने में छुपा दिया और उनकी हर सुविधा का ध्यान रखा। लड़के ने एक बार अपने पड़ोसी से इस बात की शर्त लगाई कि सुबह होने पर सूरज की पहली किरण कौन देखेगा? उसने अपने पिता को शर्त लगाने के बारे में बताया। उसके पिता ने उसे सलाह दी, ‘ध्यान से सुनो- जिस जगह पर तुम सूरज की किरण दिखने के लिए इंतजार करो वहां सभी लोग पूरब की तरफ ही देखेंगे लेकिन तुम उसके विपरीत पश्चिम की ओर देखना। पश्चिम दिशा में तुम सुदूर पहाडों की चोटियों पर नजर रखोगे तो तुम शर्त जीत जाओगे।’ लडके ने वैसा ही किया जैसा उसके पिता ने उसे कहा था और उसने ही सबसे पहले सूरज की किरण देखी। जब लोगों ने उससे पूछा कि उसे ऐसा करने की सलाह किसने दी तो उसने सबको बता दिया कि उसने अपने पिता को सुरक्षित तहखाने में रखा हुआ था और पिता उसे हमेशा उपयोगी सलाह देते है। यह सुनकर सब लोग इस बात को समझ गए कि बुजुर्ग अधिक परिपक्व और अनुभवी होते हैं और उनका सम्मान करना चाहिए। इसके बाद से राज्य से वृद्ध व्यक्तियों को जंगल में भेजना बंद कर दिया गया.........
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26-11-2013, 05:12 PM | #8 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
वृद्धावस्था का मूल्य :......... संकलन: त्रिलोक चंद्र जैन, अगस्त 5, 2008 नवभारत टाइम्स में प्रकाशित, एक राजकुमार को वृद्धों से घृणा थी। वह कहा करता था, ‘बूढ़ों की बुद्धि कुंठित हो जाती है। वे सदा बेतुकी बातें किया करते हैं। वे किसी काम के नहीं होते।’ उसके दरबारी भी उसकी हां में हां मिलाते रहते थे। एक बार राजकुमार अपने कुछ सैनिकों के साथ शिकार खेलने गया। युवराज का स्पष्ट निर्देश था कि किसी बुजुर्ग व्यक्ति को साथ न ले जाया जाए। राजकुमार ने जंगल में एक जगह पड़ाव डाला। सभी लोग शिविर में ठहरे। उन्हें आशा थी कि पास में ही कहीं पानी मिलेगा लेकिन बहुत ढूंढने पर भी कहीं पानी नहीं मिला। राजकुमार प्यास से व्याकुल हो गया। सैनिकों का भी गला सूख रहा था। समस्या का कोई हल न निकलता देख एक सैनिक ने कहा, ‘काश, कोई वृद्ध अभी हमारे साथ होता। वह जरूर कोई न कोई रास्ता निकालता।’ राजकुमार ने भी महसूस किया कि इससे कोई लाभ हो सकता है। उसने किसी बुजुर्ग को खोज लाने का आदेश दिया। तभी एक शिविर से एक युवक अपने वृद्ध पिता को लेकर सामने आया और बोला, ‘युवराज, घर पर मेरे पिता की सेवा करने वाला कोई नहीं था। इसलिए पितृभक्ति ने मुझे विवश किया कि मैं इन्हें अपने साथ लेकर चलूं। वैसे तो यह आपके आदेश का उल्लंघन था पर क्या करता और कोई रास्ता न था।’ यह कहकर उस युवक ने अपने पिता से निवेदन किया, ‘पिताजी कृपया हमारी समस्या का हल सुझाएं।’ वृद्ध ने कहा, ‘चरते हुए गधे जिस भूमि को सूंघें वहां थोड़ी ही गहराई पर पानी अवश्य मिलेगा।’ सैनिकों ने खोज की। जंगल में घास चरते हुए गधों को जहां की भूमि सूंघते हुए देखा, वहां की खुदाई की गई। खोदते ही जल निकला। लोगों की खुशी का ठिकाना न रहा। सब पानी पीकर तृप्त हुए। उस वृद्ध ने राजकुमार से कहा, ‘युवराज, क्षमा करें। हर आयु के व्यक्ति की अपनी भूमिका है। हर उम्र के लोग एक-दूसरे के लिए उपयोगी हैं। किसी के महत्व को नकारा नहीं जा सकता।’ राजकुमार लज्जित हो गया.........
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15-12-2013, 08:41 PM | #9 |
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Re: वृद्ध किसी काम के नहीं होते ?.................
वृद्धों को कभी कम ना समझें :......... शहर के सबसे बडे बैंक में एक बार एक वृद्धा आई । उसने मैनेजर से कहा - "मुझे इस बैंक मे कुछ रुपये जमा करने हैं" । मैनेजर ने पूछा - कितने हैं, वृद्धा बोली - होंगे कोई दस लाख । मैनेजर बोला - वाह क्या बात है, आपके पास तो काफ़ी पैसा है, आप करती क्या हैं ? वृद्धा बोली - कुछ खास नहीं, बस शर्तें लगाती हूँ । मैनेजर बोला - शर्त लगा-लगा कर आपने इतना सारा पैसा कमाया है ? कमाल है... वृद्धा बोली - कमाल कुछ नहीं है बेटा, मैं अभी एक लाख रुपये की शर्त लगा सकती हूँ कि तुमने अपने सिर पर विग लगा रखा है । मैनेजर हँसते हुए बोला - नहीं माताजी मैं तो अभी जवान हूँ, और विग नहीं लगाता । वृद्धा बोली - तो शर्त क्यों नहीं लगाते ? मैनेजर ने सोचा यह पागल बुढिया खामख्वाह ही एक लाख रुपये गँवाने पर तुली है, तो क्यों न मैं इसका फ़ायदा उठाऊँ... मुझे तो मालूम ही है कि मैं विग नहीं लगाता । मैनेजर एक लाख की शर्त लगाने को तैयार हो गया । वृद्धा बोली - चूँकि मामला एक लाख रुपये का है इसलिये मैं कल सुबह ठीक दस बजे अपने वकील के साथ आऊँगी और उसी के सामने शर्त का फ़ैसला होगा । मैनेजर ने कहा - ठीक है बात पक्की... मैनेजर को रात भर नींद नहीं आई.. वह एक लाख रुपये और वृद्धा के बारे में सोचता रहा ! अगली सुबह ठीक दस बजे वह वृद्धा अपने वकील के साथ मैनेजर के केबिन में पहुँची और कहा, क्या आप तैयार हैं ? मैनेजर ने कहा - बिलकुल, क्यों नहीं ? वृद्धा बोली- लेकिन चूँकि वकील साहब भी यहाँ मौजूद हैं और बात एक लाख की है अतः मैं तसल्ली करना चाहती हूँ कि सचमुच आप विग नहीं लगाते, इसलिये मैं अपने हाथों से आपके बाल नोचकर देखूँगी ! मैनेजर ने पल भर सोचा और हाँ कर दी, आखिर मामला एक लाख का था । वृद्धा मैनेजर के नजदीक आई और धीर-धीरे आराम से मैनेजर के बाल नोचने लगी । उसी वक्त अचानक पता नहीं क्या हुआ, वकील साहब अपना माथा दीवार पर ठोंकने लगे । मैनेजर ने कहा - अरे.. अरे.. वकील साहब को क्या हुआ ? वृद्धा बोली - कुछ नहीं, इन्हें सदमा लगा है, मैंने इनसे पाँच लाख रुपये की शर्त लगाई थी कि आज सुबह दस बजे मैं शहर से सबसे बडे बैंक के मैनेजर के बाल दोस्ताना माहौल में नोचकर दिखाऊँगी । इसलिये वृद्धों को कभी कम ना समझें.........
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19-12-2013, 04:57 PM | #10 |
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: दो वृद्ध पुरुष : : तोल्सतोय : : अनुवाद - प्रेमचंद :
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