05-08-2013, 07:05 PM | #11 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
"शायद नहीं". वो मेरी तरफ अपलक देखती रही, मुझे लगा वो रो देगी, लेकिन वो बस मुझे देखे जा रही थी...अपलक. कुछ देर तक वो मुझे ऐसे ही टकटकी लगाये देखती रही की मैं कुछ और बोलूं. ना मुझसे कुछ भी कहा गया ना उसने कुछ भी कहा. "जानते हो मुझे तुम्हारी सबसे अच्छी बात क्या लगती है, की तुम कभी झूठा दिलासा नहीं देते हो... ...सुनो..." लेकिन उसने कुछ कहा नहीं, उसकी आँखें ऊपर आसमान की तरफ मुड़ गयीं और ऊपर बादलों को देखते हुए उसने कहा... "सुनो, कोई शेर सुनाओ न मुझे...." "कौन सा शेर सुनोगी?" "वो एक शेर कौन सा था...समथिंग आंचल दुपट्टा टाईप...समथिंग लाईक परचम...टिका...बिंदी..आई डोंट नो...तुम ज्यादा जानते हो".
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05-08-2013, 07:06 PM | #12 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
"अच्छा हाँ...वो..मजाज़ साहब का.." सुनो -
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मत का तारा है / अगर तू साजे बेदारी उठा लेती तो अच्छा था तेरे माथे पे यह आँचल बहुत ही खूब है लेकिन / तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था.. "ओह वाऊ...बहुत अच्छा है...कितना अच्छा शेर है! जब तुमने मुझे भेजा था तो मैं बहुत देर तक इसे मन में पढ़ती रही थी....सुनो, तुम मुझे ये पूरी ग़ज़ल लिख कर भेज देना.." उसने कहा और कुछ देर के लिए उसकी नज़रें नीची हो गयीं... "अच्छा बताओ तो ज़रा...मेरी जब शादी होगी, और होपेफुली............ ...तो मैं कैसी दिखूंगी? सुन्दर? या फिर कार्टून जैसी?" उसने सवाल पूछा और अपने दुपट्टे को सर पर ओढ़ लिया घूंघट की तरह.. "बहुत सुन्दर..." "हाँ सच में? " "बिलकुल".
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05-08-2013, 07:06 PM | #13 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
वो बच्चों सी खुश हो गयी थी.वो मुस्कुराने लगी..उसने अपना दुपट्टा सर से हटाया तो एकाएक मेरी नज़र उसके चेहरे पर जा टिकी...मुझे जाने क्यों उसकी आँखें भींगी हुई सी लगीं....मेरी नज़र उसके चेहरे से होते हुए उसके माथे पर और फिर उसकी मांग पर जाकर अटक गयी....वो मांग जो अभी खाली है.मैं उसकी मांग को देख कर जाने क्या सोचने लगा....कैसा लगेगा जब इस मांग पर सिन्दूर लगेगा...मैं सोचने लगा की वो कैसी दिखेगी...मैं सोचने लगा की ऐसा क्यों होता है की लड़कियों की खूबसूरती सिन्दूर से और बढ़ जाती है.मुझे एक पुरानी बात बिलकुल उसी वक़्त याद आती है...जब भी बचपन में मैं शादियाँ देखता था तो सिन्दूर दान रस्म के समय लड़की के पुरे माथे पर सिन्दूर फ़ैल सा जाता था..मैं उस रस्म को हमेशा बड़ा विस्मित सा होकर देखता था.मुझे उस वक़्त अपना वो सपना भी याद आता है जिसे मैंने कुछ दिन पहले ही देखा था.मैंने सपने में देखा था की उसका विवाह मेरे साथ हो गया है..और वो मेरे कमरे में मेरे साथ बैठी हुई है.मैं खुद से ही प्रश्न पूछता हूँ...क्या उसकी मांग पर जो हाथ सिन्दूर लगायेंगे वो मेरे होंगे? जवाब कुछ भी नहीं आता..मैं सुनी सुनी आँखों से फिर से उसके चेहरे की ओर देखने लगता हूँ.
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05-08-2013, 07:07 PM | #14 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
"ऐसे मुझे क्या देख रहे हो?तुम क्या सोच रहे हो?" उसने पूछा
"कुछ नहीं... ...बस यही की तुम्हारी शादी होगी तो तुम कैसी दिखोगी? तुम्हारे माथे पर जब सिन्दूर लगेगा तो तुम कैसी दिखोगी...बहुत खूबसूरत दिखोगी तुम..." उसकी आँखें अनायास ही मुझपर उठ आई..कुछ देर तक वो आँखें मेरे चेहरे पर स्थिर रहीं फिर धीरे धीरे नीचे गिर गयीं.वो एक गाने के बोल गुनगुनाने लगी थी..."लग जा गले कि फिर ये हसीं 'शाम' हो न हो / शायद फिर इस जनम में मुलाक़ात हो न हो ".उसने गाने के बोल में 'रात' की जगह 'शाम' गाया था और गाने के बीच की पंक्ति में आकर वो ठहर गयी... हमको मिली हैं आज, ये घड़ियाँ नसीब से जी भर के देख लीजिये हमको क़रीब से फिर आपके नसीब में ये बात हो न हो वो बिलकुल चुप हो गयी...उसकी नज़रें फिर से मेरे ऊपर उठ आयीं थी....और मेरी नज़र उसकी बड़ी सी गोल बिंदी पर जाकर ठहर गयीं थी...कुछ देर तक मैं इंतजार करते रहा की वो गाना फिर से शुरू करेगी, लेकिन वो बिलकुल खामोश हो गयी और गाने आगे गाने के बजाये मुझसे ही कहने लगी... "कोई दूसरा शेर सुनाओ न...जाने क्यों आज तुमसे सिर्फ शायरी और कवितायेँ सुनने का दिल कर रहा है...."
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05-08-2013, 07:08 PM | #15 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
"अच्छा...सुनाता हूँ,...ये सुनो-
कितना अच्छा होता है एक-दूसरे के पास बैठ ख़ुद को टटोलना और अपने ही भीतर दूसरे को पा लेना.. "ओह शानदार...कितनी खूबसूरत बात कही है शायर ने...एक और शेर सुनाओ..." तुम्हारी बातों में कोई मसीहा बसता है हंसी लबों से बरसती शफ़ा में जीते हैं तेरे ख्याल की आबो-हवा में जीते हैं ! "वाह! गज़ब! एक और प्लीज.." वो बड़ा रहीमो-करीम है, मुझे ये सिफ़त भी अता करे, तुझे भूलने की दुआ करूँ, तो मिरी दुआ में असर न हो!!
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05-08-2013, 07:08 PM | #16 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
"शानदार शानदार शानदार!!!! तुम बस कमाल हो....कैसे कैसे शेर तुम्हे याद रहते हैं...एक और सुना दो प्लीज़......उसके बाद जिद नहीं करुँगी."
वो ऐसे भी जिद नहीं कर रही थी, और मुझे उसे शेर सुनना अच्छा लग रहा था...उसने उस शाम बहुत से शेर सुने थे...और फिर अंतिम एक ग़ज़ल के इस पंक्ति पर वो उछल पड़ी थी.. देखूँ तिरे हाथों को तो लगता है तिरे हाथ मन्दिर में फ़क़त दीप जलाने के लिए हैं तुम्हे ये पूरी ग़ज़ल याद है? उसने पूछा..और पूरी ग़ज़ल सुनने के बाद वो बहुत खुश हो गयी... "तुम कहते थे न, आज मैंने महसूस किया है...शायरी और कवितायेँ सच में राहत पहुंचती है..मुझे बहुत अच्छा लगा तुमसे यूँ सुनना कवितायेँ." "तुम्हे और शायरी अगर पढ़नी हो तो चलो अभी मैं तुम्हे एक दो किताबें खरीद देता हूँ... "नहीं, मुझे बस तुमसे सुनना था...तुमसे शायरी सुनने में जो मजा है वो किताबों में पढने में नहीं...मैं बोर हो जाउंगी, लेकिन तुम चाहो तो अपनी पसंद की शेर ग़ज़लें और कवितायेँ मुझे कैसेट पर रिकॉर्ड कर के गिफ्ट कर सकते हो, आई वोंट माईंड." वो हंसने लगी थी, और मुझे उसे इस तरह हँसते हुए देखकर बहुत अच्छा लगा.ऐसा लगा जैसे उसका मन थोड़ा शांत हुआ.
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05-08-2013, 07:09 PM | #17 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
आसमान में काले बादल उमड़ आये थे और ऐसा लग रहा था की जोरों की बारिश आने वाली है.वो फिर से बादलों की तरफ देखने लगी.
"नेचर इज एन अमेजिंग पेंटर...देखो तो लगता है की आसमान पर कोई एब्स्ट्रेक्ट पेंटिंग सी हो आई है"..उसने बादलों को देखकर कहा... "बहुत ज़ोरों की बारिश आने वाली है, बादलों को देखो, शाम पांच बजे ही इतना अँधेरा सा हो गया है...चलो अब चलते हैं, तुम जिस रेस्टोरेन्ट के बारे में बता रहे थे उसी में.....तुम्हारे जन्मदिन की कॉफ़ी और ट्रीट मैं आज ही लुंगी...चलो अब..." "क्यों, आज बारिश में तुम्हे भींगना नहीं है?" मैंने उसे छेड़ने की कोशिश की.. वो बस मेरी तरफ देखकर मुस्कुराने लगी... "नहीं...." कहकर वो उठी, अपना बैग उठाया और धीरे धीरे पार्क की गेट की तरफ बढ़ने लगी.... मैं भी उसके पीछे पीछे चल पड़ा. =x=x=x=x=x=x=
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17-08-2013, 05:50 PM | #18 |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
देरी से इस कथा-सूत्र पर पहुँचने के लिये क्षमा चाहता हूँ और एक बढ़िया कहानी पढ़वाने के लिये आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ, जय जी. कथा का विकास प्रभावित करता है लेकिन कहानी के अंत में आकर हैरत हुई कि जो नायिका नायक के जन्मदिन के अवसर पर by air उससे मिलने आयी थी, आखिर क्यों इतनी बदली-बदली और रिज़र्व लग रही थी?
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17-08-2013, 06:59 PM | #19 | |
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Re: एक शाम .. तुम्हारे नाम
Quote:
दरअसल गीत, ग़ज़ल, कविता और लेखों आदि में रचनाकार के तात्कालिक विचारों का चित्र प्रदर्शित होता है। कई बार हम किसी एक विषय पर लिखने के लिए बैठते हैं और उस लेख, कविता, ग़ज़ल और कथा के उपसंहार तक वह उस विषय से पृथक नज़र आती है। सोचा गया विषय अपने स्थान पर स्थिर बना रहता है .. और फिर अचानक उसी लंबित विषय पर कुछ मिनटों में ही अलौकिक शब्द-चित्र बन जाता है। निश्चित ही इस रचना के अंत को रचनाकार की तात्कालिक अभिव्यक्ति का आईना ही कह सकते हैं और क्या?
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