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Old 05-08-2013, 06:56 PM   #1
jai_bhardwaj
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Default कचनार की कली

सत्रह की उम्र जैसे पगडण्डी पर लुढकती कोसको की गेंद... कबड्डी-कबड्डी की आवाज़ लगाती बिना टूटन की साँस... हर चौकोर खाने में चपटा सा टुकड़ा रख कर कित-कित खेलती साक्षी जब आईने में शुरू से खुद को देखती तो लगता दुनिया यों उतनी बुरी भी नहीं है जैसाकि बाबूजी कहते फिरते हैं...

सूना सा गला सादगी के प्रतीक थे... और नाक-कान में नारियल के झाड़ू की सींक... दो चोटी कस कर बांधना... फिर एक सिरे से पलक खोलती तो एक ही चीज़ की कमी लगती- बिंदी की .... तो ये लगाई बिंदी और हो गयी तैयार साक्षी.. अब देखो इतने में कैसी खिल उठी है. अब ज़रा सी देर में धूप भंसा घर के खपरैल के नीचे सरकेगी और वो होगी खेल के मैदान में सबकी छुट्टी करने.
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर ।
परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।।
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Old 05-08-2013, 06:56 PM   #2
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Default Re: कचनार की कली

लेकिन श्रीकांत का क्या ? उसके बारे में क्या सोचा है उसने ? जिसने खेलने के बहाने इनारे पर बुलाया है...

पर मेरा मन तो खेलने का है पर श्रीकांत जो दूसरे गांव से मिलने आया है वो भी स्कूल के ब्लैक बोर्ड पर इशारे से लिखकर उसने पहले ही बता दिया था और मैंने आने की हामी भी शरमाकर भरी थी, उसका क्या ? बड़े उम्मीद से विनती की थी उसने!

साक्षी के आँखों में श्रीकांत का चेहरा घूम जाता है...
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Old 05-08-2013, 06:56 PM   #3
jai_bhardwaj
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Default Re: कचनार की कली

प्यार में बड़े समझौते करने पड़ते हैं दीदी भी यही कहती है... तो साक्षी आज इनारे पर ही जायेगी.

तुम हमेशा यहीं क्यों मिलने बुलाते हो श्रीकांत, साक्षी एक अनजाना सा सवाल करती है.

क्योंकि अपने गांव में कोई और यादगार जगह नहीं है. श्रीकांत को जैसे सब पता है.

क्या यादगार है यहाँ ? ज़रा मैं भी तो जांनू...

क्या नहीं है, हर दुल्हन हल्दी लगने के बाद पहला स्नान यहीं करती है. यह इनार गवाह है कई ....

अच्छा तो तुम वहाँ तक पहुँच गए ... श्रीकांत बताता ही होता है कि बात काटकर साक्षी उसे रोक देती है.
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Old 05-08-2013, 06:56 PM   #4
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Default Re: कचनार की कली

तुम लड़कियां कोई अच्छी बात पूरा क्यों नहीं करने देती ? अबकी श्रीकांत सवाल करता है

क्योंकि हम उसके बाद उसमें बंध जाते हैं श्रीकांत

तो क्या तुम्हें बंधना पसंद नहीं ? श्रीकांत की बेसब्री बढ़ जाती है

है ना ! अच्छा चलो पानी में दोनों एक साथ अपनी परछाई देखते हैं....

श्रीकांत ने हामी भरी... दोनों ने पानी में एक साथ झाँका, कुएं का पानी बड़ा साफ़ था. अभावों के दिन थे पर एक ही फ्रेम में दोनों आ गए... परछाई में दोनों ने एक एक-दूसरे को देखा... साक्षी ने अपने तरीके से श्रीकांत को माँगा और श्रीकांत ने अपने जहां का कोना-कोना साक्षी को दे डाला... और इसी पल की तस्वीर दोनों के मन में सदा-सदा के लिए खिंच गए. कचनार की कली जैसे अमलतास के फूलों के संग बिंध गयी हो।
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Old 17-08-2013, 05:05 PM   #5
rajnish manga
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Default Re: कचनार की कली



किशोर वय के प्यार की छोटी सी कहानी जिसमे दुनियादारी की बातें भी हैं, मनुहार भी है, कसमे-वादे भी हैं और मन ही मन एक दूसरे में समा जाने की अभिलाषा भी है. काश! कहानी गुड्डे-गुड़ियों की इस पृष्ठभूमि से बाहर आ कर पात्रों के भविष्य में भी झांक सकती. खैर, जो हुआ अच्छा हुआ और उम्मीद है कि आगे भी सुखद ही होगा. कथा में प्यार का एक नया आयाम प्रस्तुत करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, जय जी.
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Old 17-08-2013, 07:02 PM   #6
jai_bhardwaj
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किशोर वय के प्यार की छोटी सी कहानी जिसमे दुनियादारी की बातें भी हैं, मनुहार भी है, कसमे-वादे भी हैं और मन ही मन एक दूसरे में समा जाने की अभिलाषा भी है. काश! कहानी गुड्डे-गुड़ियों की इस पृष्ठभूमि से बाहर आ कर पात्रों के भविष्य में भी झांक सकती. खैर, जो हुआ अच्छा हुआ और उम्मीद है कि आगे भी सुखद ही होगा. कथा में प्यार का एक नया आयाम प्रस्तुत करने के लिये आपका बहुत बहुत धन्यवाद, जय जी.
कथा-अवलोकन एवं कथानक सार प्रस्तुत करने के लिए हार्दिक अभिनन्दन है बन्धु रजनीश। आभार।
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