14-01-2014, 05:27 PM | #1 |
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‘डेढ़ इश्किया’ से हो जाएगा इश्क
जब प्लॉट खुलता है खालूजान यानी नसीरुद्दीन शाह और बब्बन यानी अरशद वारसी अभी भी अपने बॉस से बचकर अलग-अलग भागते फिर रहे हैं। खालूजान के पास एक प्लान है, वो महबूबाबाद आए हैं और एक नवाबी स्वंयबर में खूबसूरत विधवा बेगम पारा यानी माधुरी दीक्षित का हाथ जीतने की कोशिश करते हैं। बेगम ने हवेली में एक शायरी की प्रतियोगिता रखी है। बेगम के साथ हमेशा रहती है उसकी सहायक मुनिया यानी हुमा कुरैशी और बब्बन उसे देखते ही उसके प्यार में पड़ जाता है। खालूजान खुद बेगम की और आकर्षित हो रहा है। वो बब्बन के साथ मिलकर प्लान बनाता है कि एक बार जब वो बेगम पारा का दिल जीत लेगा तो बब्बन और वो दोनों उसके महल में रहेंगे। पर दिल और दौलत से जुड़ी चीजों को मुश्किल करने के लिए मौजूद हैं जान मोहम्मद यानी विजय राज जो एक गैंगस्टर हैं और जो बेगम से शादी करके नवाब बनकर इज्जत पाना चाहता है। फिल्म का शानदार ह्यूमर और भारद्वाज के बेहतरीन डायलॉग फिल्म की सबसे बड़ी ताकत हैं। मजेदार पंचलाइन से लेकर जोक तक, ‘डेढ़ इश्कियां’ में ऐसी इंस्पायर्ड राइटिंग है जो हाल में ऑनस्क्रीन नहीं देखी होगी। ये फिल्म बेहद खूबसूरती से फिल्माई गई है। क्रिस्प एडिटिंग और शानदार लोकेशन के साथ बनी इस फिल्म का ज्यादातर हिस्सा नवाबी कल्चर और लाइफस्टाइल को पर्दे पर दर्शाता है जो आजकल की फिल्मों में देखने को नहीं मिलता है, इस बैकड्रॉप के साथ, चौबे और उनके राइटर ऐसी कहानी बनाते हैं जिसमें किडनैपिंग से लेकर लव ट्रैंगल और हिंसक शूटआउट सबकुछ है। कहीं-कहीं फिल्म के कुछ हिस्से खींचते हुए लगते हैं जहां उन्हें तेजी से आगे बढ़ना चाहिए था। चाचा भतीजा के रुप में नसीरुद्दीन शाह और अरशद वारसी की केमेस्ट्री देखने लायक है। खासतौर पर अऱशद शानदार लगते हैं जो भोलेपन और चालूपन दोनों को ही आसानी से पर्दे पर उतारते हैं। नाजुक और खूबसूरत विधवा के तौर पर माधुरी दीक्षित दिलों को छू लेंगी। फिर भी जैसे-जैसे फिल्म की लेयर्स खुलती है। आप उनकी हिम्मत की दाद देंगे। उनका साथ देती है गुस्से में भरी हुमा कुरैशी जो मुनिया के किरदार में अपनी तीखी जुबान से खूब सारी एनर्जी भर देती हैं। सबसे यादगार परफॉमेंस देते हैं विजय राज जो कॉमिकल दो लगते हैं, थोड़े लापरवाह और थोड़े कठोर भी लगते हैं। ‘डेढ़ इश्कियां’ यूपी की बुरी छवि को बदलते हुए हमें थोड़ा ह्यूमर देती है और दर्शकों को एक बोल्ड क्लाइमेक्स, जिसे शायद आप कभी पहले ही समझ चुके होंगे। फिर भी वो बहुत बेहतरीन तरीके से दिखाया गया है। ‘मैं डेढ़ इश्कियां’ को 5 में से चार स्टार देता हूं। ये किसी अच्छी वाइन की तरह है जो आपको पूरा नशा देती है।
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17-01-2014, 09:01 PM | #2 |
Special Member
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Re: ‘डेढ़ इश्किया’ से हो जाएगा इश्क
फ़िल्म वाकई खूबसुरत है
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
17-01-2014, 09:14 PM | #3 |
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Re: ‘डेढ़ इश्किया’ से हो जाएगा इश्क
अखबारों में फिल्म अच्छी समीक्षा पढ़ चुका हूँ और अब यहाँ भी अच्छी रेटिंग दी गयी है. एडिटिंग, डायलाग, एक्टिंग, स्टोरी सभी हट कर हैं. सीनियर और नये कलाकारों ने इस फिल्म को यादगार फिल्म बनाने में बहुत सहयोग दिया है.
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आ नो भद्रा: क्रतवो यन्तु विश्वतः (ऋग्वेद) (Let noble thoughts come to us from every side) |
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