07-09-2013, 06:01 PM | #1 |
अति विशिष्ट कवि
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ख़ुद को इस तरह ढालना यारों
चाहे फाँके उबालना यारों ; .ख़्वाब भरपूर पालना यारों . प्रयास अनमने विफल होते ; पूरी क्षमता निकालना यारों . आज कहते हैं जो नाक़ाबिल , कल ; उनको अचरज में डालना यारों . साथ छूटे न उसूलों का कभी ; इनको भरसक संभालना यारों . जिसमें जो - जो दिखें भली बातें ; अपने जीवन में ढालना यारों . कारवाँ जिनके पीछे चलता हो ; उनकी फ़ितरत खँगालना यारों . आत्मा जो - जो कमी बतलाये ; दिन -ब- दिन उनको चालना यारों . रौशनी आँख की नाकाफ़ी है ; दीप ज़ेहनों में बालना यारों . विरोध करना तो हल भी रखना ; ना कि मुद्दे उछालना यारों . विवाद मंज़िलों से भटकाते ; जितना मुमकिन हो टालना यारों . खो गया तो बुढ़ापा आयेगा ; दिल में बचपन संभालना यारों . जिस्म भर ना तराशो ग़ज़लों का ; रूह भी इनमें डालना यारों . रचयिता ~~ डॉ . राकेश श्रीवास्तव , गोमती नगर , लखनऊ .
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07-09-2013, 07:11 PM | #2 |
Member
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Re: ख़ुद को इस तरह ढालना यारों
वाह-वाह बहुत खूब
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07-09-2013, 07:19 PM | #3 | |
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Re: ख़ुद को इस तरह ढालना यारों
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तरुवर फल नहि खात है, नदी न संचय नीर । परमारथ के कारनै, साधुन धरा शरीर ।। विद्या ददाति विनयम, विनयात्यात पात्रताम । पात्रतात धनम आप्नोति, धनात धर्मः, ततः सुखम ।। कभी कभी -->http://kadaachit.blogspot.in/ यहाँ मिलूँगा: https://www.facebook.com/jai.bhardwaj.754 |
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07-09-2013, 07:39 PM | #4 |
Special Member
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Re: ख़ुद को इस तरह ढालना यारों
गजलों में रूह डालना तो कोई आपसे सिखे
सुभानअल्लाह
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घर से निकले थे लौट कर आने को मंजिल तो याद रही, घर का पता भूल गए बिगड़ैल |
07-09-2013, 08:13 PM | #5 |
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Re: ख़ुद को इस तरह ढालना यारों
I don't have enough words to explain, how well it is crafted. really well done.
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08-09-2013, 12:13 AM | #6 |
Administrator
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Re: ख़ुद को इस तरह ढालना यारों
मूड फ्रेश हो गया डॉक्टर साहब की यह ग़ज़ल पढ़कर। बहुत खूब, तहे दिल से दाद कबूल कीजिये।
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