30-04-2014, 11:23 PM | #30 |
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Re: प्रेम, प्रणय और धोखा
"मुझे आरज़ू -ए -सहर राही,
यूँही रात भर बड़ी देर तक ! न बिखर सका न सिमट सका, यूँही रात भर बड़ी देर तक !! था बहोत अज़ब और अकेले हम, शाब -ए -ग़म भी मेरी तवील तर ! राही ज़िन्दगी भी सराब और, राही आँख तर बड़ी देर तक !! यहाँ हर तरफ है अजब समा, सभी खुद पसंद सभी खुद नुमा ! दिल -ए -बेकरार को न मिल सका, कोई चारा गर बड़ी देर तक !! मुझे ज़िन्दगी है अज़ीज़ तर, इसी वास्ते मेरे हमसफ़र, मुझे क़तरा क़तरा पिला ज़हर, जो करे असर बड़ी देर तक …..........!!!"
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"खैरात में मिली हुई ख़ुशी मुझे अच्छी नहीं लगती,
मैं अपने दुखों में भी रहता हूँ नवाबों की तरह !!" |
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