08-12-2010, 10:59 AM | #11 |
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Re: !! गीत सुधियोँ के !!
हे पत्नी के पूज्य पिताजी कैसे तुमको लिखूं नमस्ते
उल्टा सीधा किया आपने मुझको अच्छा उल्लू फाँसा कह सोने चाँदी के बर्तन दे डाला सब पीतल काँसा सिक्के जितने दिए दान में एक-२ सब निकले खोटे रजत थाल फौलादी निकली अलमुनियम के निकले लोटे घडी पुराने आदम युग की दिनभर जो चाभी ही खाती जिसे देखकर बिना बताये लोग समझ जाते खैराती सेकेण्ड हैण्ड टायर के जूते वो भी शत प्रतिशत जापानी तलवे जिनमे अदंर रहते बहार रहती उंगली कानी सडी साईकल झुनझुन करती घंटी बजाये नही बजती दो पुरषों का भार वह महासती सी सहन न करती सिले सिलाये कपड़े ऐसे वो भी लगते महा बेढंगे कुरते बिल्कुल चोली जैसे पतलून ढीली हो लहगें सूखे हुए आम के जैसी ६० साल की गाय पुरानी अजी दूध की बात छोडिये थन से नही निकलता पानी खिड़कीदार मशहरी जिसको नाईट क्लब समझे है मच्छर तकिए को तकिया बोलूँ या चंदन घिसने का पत्थर अधगंजी हो गई खोपडी जिसके ऊपर घिसते-२ ये पत्नी के पूज्य पिताजी कैसे तुमको लिखूं नमस्ते!!
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