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Old 18-01-2011, 10:18 AM   #11
amit_tiwari
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Default Re: जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर

काफी अच्चा सूत्र बनाया है भाई |

मैं बस कुछ बिंदु अपनी तरफ से जोड़ रहा हूँ |


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Originally Posted by Bond007 View Post
बाबर का वंश तैमूर और मंगोल नेता चंगेज खां से संबंधित था अर्थात उसके वंशज तैमूर लंग के खानदान से थे और मातृपक्ष का संबंध चंगेज खां से था।

साथ ही पानीपत के द्वितीय युद्ध में नवघोषित हिन्दू राजा हेमू को पराजित किया था।


गौरतलब है कि मंगोलों ने ही मुस्लिम खलीफा की हत्या की थी | मुग़ल नाम मंगोल शब्द की व्युत्पत्ति है और इसी कारण से मुग़ल अपने काल में मुग़ल शब्द से चिढ़ते थे और कभी भी यह शब्द प्रयोग नहीं किया जाता था | बाद के काल में ही यह शब्द प्रचालन में आया |

हेमू मध्यकाल का इकलौता हिन्दू व्यक्ति था जिसने दिल्ली पर राज किया | रोचक तथ्य यह भी है कि वह हिजड़ा था |

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Originally Posted by Bond007 View Post

अपने आरंभिक शासन काल में अकबर की हिन्दुओं के प्रति सहिष्णुता नहीं थी, किन्तु समय के साथ-साथ उसने अपने आप को बदला और हिन्दुओं सहित अन्य धर्मों में बहुत रुचि दिखायी।


उसने धार्मिक चर्चाओं व वाद-विवाद कार्यक्रमों की अनोखी शृंखला आरंभ की थी, जिसमें मुस्लिम आलिम लोगों की जैन, सिख, हिन्दु, चार्वाक, नास्तिक, यहूदी, पुर्तगाली एवं कैथोलिक ईसाई धर्मशस्त्रियों से चर्चाएं हुआ करती थीं। उसके मन में इन धार्मिक नेताओं के प्रति आदर भाव था, जिसपर उसकी निजि धार्मिक भावनाओं का किंचित भी प्रभाव नहीं पड़ता था। उसने आगे चलकर एक नये धर्म दीन-ए-इलाही की भी स्थापना की, जिसमें विश्व के सभी प्रधान धर्मों की नीतियों व शिक्षाओं का समावेश था। दुर्भाग्यवश ये धर्म अकबर की मृत्यु के साथ ही समाप्त होता चला गया।
एकदम सही है पहला पॉइंट | कई बार लोग अकबर को एक देवदूत दिखने का प्रयास करते हैं किन्तु असल में वह एक प्रबुद्ध व्यक्ति और कुशल राजनीतिग्य था | उसने तात्कालिक परिस्थिति के अनुसार हिन्दू नीति को चलाया और यह उसकी व्यक्तिगत रूचि भी थी कि वह कई धर्मों को सीखना चाहता था इसलिए ना सिर्फ हिन्दू अपितु इसाई धर्म ऐ अपनी संतानों को परिचित करने के लिए पादरी नियुक्त किया था |

धार्मिक चर्चा का प्रारंभ मात्र मुस्लिम धर्म विदों से हुआ था, अकबर प्रत्येक मंगलवार को रात को उन्हें सुनता था और बाद में वहीँ सो जाता था | एक दिन जब सोते हुए अकबर की नींद खुली तो देखा कि दो मुस्लिम धार्मिक विद्वान् आपस में लड़ रहे हैं, एक ने दुसरे के बाल पकडे थे तो दूसरा पहले के कान चबा रहा था | इस हास्यास्पद घटना ने अकबर को झिंझोड़ दिया और उसे लगा कि जब ये विद्वान ही पुरे संयम में नहीं हैं तो ये धर्म की व्याख्या क्या करेंगे! उसके बाद से उसने सभी धर्म के लोगों को आमंत्रित करना शुरू कर दिया | शायद ये आज के फोरम जैसी ही परिकल्पना थी |

अकबर ने धर्म निसंदेह चलाया था किन्तु सौभाग्य से वह कभी इसके लिए दुराग्रही नहीं रहा | उसके दरबार के कई लोगों ने उसे स्वीकार नहीं किया और उसने भी कभी उसके लिए किसी को विवश नहीं किया | यहाँ तक कि उसे स्वीकार करने वाला एकमात्र हिन्दू बीरबल था | तो ऐसे में कोई आश्चर्य नहीं कि वह विलुप्त हो गया | वैसे भी दीं-इ-इलाही एक शरबत कि तरह था उसमें कोई भी अपना यूनीक तत्व नहीं था |

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Originally Posted by Bond007 View Post
उसका शव चुपचाप सिकंदरा के मकबरे में दफना दिया गया।
सिकंदर का मकबरा एकमात्र ऐसा मकबरा है जिसमें कोई गुम्बद नहीं है |

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Originally Posted by Bond007 View Post
नाम

अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन हुआ था इसलिए उनका नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रखा गया था। बद्र का अर्थ होता है पूर्ण चंद्रमा और अकबर उनके नाना शेख अली अकबर जामी के नाम से लिया गया था।

कहा जाता है कि काबुल पर विजय मिलने के बाद उनके पिता हुमायूँ ने बुरी नज़र से बचने के लिए अकबर की जन्म तिथि एवं नाम बदल दिए थे। किवदंती यह भी है कि भारत की जनता ने उनके सफल एवं कुशल शासन के लिए अकबर नाम से सम्मानित किया था|

अरबी भाषा मे अकबर शब्द का अर्थ "महान" या बड़ा होता है।

सामान्यतया जलाल को अकबर का वास्तविक नाम मन जाता है |

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Originally Posted by Bond007 View Post
हुमायुं को पश्तून नेता शेरशाह सूरी के कारण फारस में अज्ञातवास बिताना पड़ रहा था। किन्तु अकबर को वह अपने संग नहीं ले गया वरन रीवां (वर्तमान मध्य प्रदेश) के राज्य के एक ग्राम मुकुंदपुर में छोड़ दिया था।


किंतु अकबर पढ़ लिख नहीं सका वह केवल सैन्य शिक्षा ले सका। उसका काफी समय आखेट, दौड़ व द्वंद्व, कुश्ती आदि में बीता, तथा शिक्षा में उसकी रुचि नहीं रही।
असल में, पढ़ने-लिखने में अकबर की रुचि नहीं थी, उसकी रुचि कबूतर बाजी, घुड़सवारी, और कुत्ते पालने में अधिक थी।

हुमायूँ के विषय में एक लाइन बड़ी प्रसिद्द है ' वह जीवन भर लडखडाता रहा और अंत में लड़खड़ाने से उसकी मृत्यु हो गयी |'

अकबर के विषय में यह प्रमाण मिले हैं कि वह शारीरिक रूप से इतना सक्षम था कि दो लोगों को अपनी कांख में दबा के किले की दीवार पर दौड़ लगा लेता था और तलवार की एक मार से शेर का सर अलग कर देता था |

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Originally Posted by Bond007 View Post
उसे फारसी भाषा में सम्राट के लिये शब्द शहंशाह से पुकारा गया। वयस्क होने तक उसका राज्य बैरम खां के संरक्षण में चला।
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अकबर ने स्वायत्त होने के बाद 'पादशाह' की उपाधि धारण कि जिसे गलती से बादशाह कहा जाता है |
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Old 18-01-2011, 11:08 AM   #12
VIDROHI NAYAK
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Default Re: जलालउद्दीन मोहम्मद अकबर

धन्यवाद बोंड जी ! वैसे तो इतिहास में रूचि कम ही है पर आपकी जासूसी को पढ़े बिना नहीं रहा गया !अमित जी के बिन्दुओ ने इसे और रोचक बना दिया है !
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( वैचारिक मतभेद संभव है )
''म्रत्युशैया पर आप यही कहेंगे की वास्तव में जीवन जीने के कोई एक नियम नहीं है''

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Old 18-01-2011, 08:28 PM   #13
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Originally Posted by amit_tiwari View Post
काफी अच्चा सूत्र बनाया है भाई |

मैं बस कुछ बिंदु अपनी तरफ से जोड़ रहा हूँ |
...
...
...
अकबर ने स्वायत्त होने के बाद 'पादशाह' की उपाधि धारण कि जिसे गलती से बादशाह कहा जाता है |
सूत्र भ्रमण के लिए हार्दिक धन्यवाद अमित जी!

आपने सूत्र में नई जानकारी जोड़कर चार-चाँद लगा दिए|
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Old 18-01-2011, 08:31 PM   #14
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Originally Posted by vidrohi nayak View Post
धन्यवाद बोंड जी ! वैसे तो इतिहास में रूचि कम ही है पर आपकी जासूसी को पढ़े बिना नहीं रहा गया !अमित जी के बिन्दुओ ने इसे और रोचक बना दिया है !
विद्रोही जी! आपकी तारीफ़ ने धन्य कर दिया| सूत्र के बारे में अपनी राय रखने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद|
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Old 19-01-2011, 06:22 PM   #15
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Bond सर! एक और बहुत अछा थ्रेड इस फोरम ke lie.

इसके liye आपको बधाई. ऐसे ही लगे रहें.
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Old 30-01-2011, 04:29 AM   #16
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Originally Posted by manish kumar View Post
bond सर! एक और बहुत अछा थ्रेड इस फोरम ke lie.

इसके liye आपको बधाई. ऐसे ही लगे रहें.
धन्यवाद मनीष|
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Old 30-01-2011, 04:38 AM   #17
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राज्य का विस्तार

खोये हुए राज्य को पुनः प्राप्त करने के लिये अकबर के पिता हुमायूँ के अनवरत प्रयत्न अंततः सफल हुए और वह सन्* १५५५ में हिंदुस्तान पहुँच सका किंतु अगले ही वर्ष सन्* १५५६ में राजधानी दिल्ली में उसकी मृत्यु हो गई और गुरदासपुर के कलनौर नामक स्थान पर १४ वर्ष की आयु में अकबर का राजतिलक हुआ। अकबर का संरक्षक बैराम खान को नियुक्त किया गया जिसका प्रभाव उस पर १५६० तक रहा। तत्कालीन मुगल राज्य केवल काबुल से दिल्ली तक ही फैला हुआ था। इसके साथ ही अनेक समस्याएं भी सिर उठाये खड़ी थीं। १५६३ में शम्सुद्दीन अतका खान की हत्या पर उभरा जन आक्रोश, १५६४-६५ के बीच उज़बेक विद्रोह और १५६६-६७ में मिर्ज़ा भाइयों का विद्रोह भी था, किंतु अकबर ने बड़ी कुशलता से इन समस्याओं को हल कर लिया। अपनी कल्पनाशीलता से उसने अपने सामंतों की संख्या बढ़ाई। इसी बीच १५६६ में महाम अंका नामक उसकी धाय के बनवाये मदरसे (वर्तमान पुराने किले परिसर में) से शहर लौटते हुए अकबर पर तीर से एक जानलेवा हमला हुआ, जिसे अकबर ने अपनी फुर्ती से बचा लिया, हालांकि उसकी बांह में गहरा घाव हुआ। इस घटना के बाद अकबर की प्रशसन शैली में कुछ बदलाव आया जिसके तहत उसने शासन की पूर्ण बागडोर अपने हाथ में ले ली। इसके फौरन बाद ही हेमु के नेतृत्व में अफगान सेना पुनः संगठित होकर उसके सम्मुख चुनौती बनकर खड़ी थी। अपने शासन के आरंभिक काल में ही अकबर यह समझ गया कि सूरी वंश को समाप्त किए बिना वह चैन से शासन नहीं कर सकेगा। इसलिए वह सूरी वंश के सबसे शक्तिशाली शासक सिकंदर शाह सूरी पर आक्रमण करने पंजाब चल पड़ा।
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दिल्ली की सत्ता-बदल

अकबर के समय मुग़ल साम्राज्यदिल्ली का शासन उसने मुग़ल सेनापति तारदी बैग खान को सौंप दिया। सिकंदर शाह सूरी अकबर के लिए बहुत बड़ा प्रतिरोध साबित नही हुआ। कुछ प्रदेशो मे तो अकबर के पहुंचने से पहले ही उसकी सेना पीछे हट जाती थी। अकबर की अनुपस्थिति मे हेमू विक्रमादित्य ने दिल्ली और आगरा पर आक्रमण कर विजय प्राप्त की। ६ अक्तूबर १५५६ को हेमु ने स्वयं को भारत का महाराजा घोषित कर दिया। इसी के साथ दिल्ली मे हिंदू राज्य की पुनः स्थापना हुई।

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सत्ता की वापसी
दिल्ली की पराजय का समाचार जब अकबर को मिला तो उसने तुरन्त ही बैरम खान से परामर्श कर के दिल्ली की तरफ़ कूच करने का इरादा बना लिया। अकबर के सलाहकारो ने उसे काबुल की शरण में जाने की सलाह दी। अकबर और हेमु की सेना के बीच पानीपत मे युद्ध हुआ। यह युद्ध पानीपत का द्वितीय युद्ध के नाम से प्रसिद्ध है। संख्या में कम होते हुए भी अकबर ने इस युद्ध मे विजय प्राप्त की। इस विजय से अकबर को १५०० हाथी मिले जो मनकोट के हमले में सिकंदर शाह सूरी के विरुद्ध काम आए। सिकंदर शाह सूरी ने आत्मसमर्पण कर दिया और अकबर ने उसे प्राणदान दे दिया।

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चहुँओर विस्तार

दिल्ली पर पुनः अधिकार जमाने के बाद अकबर ने अपने राज्य का विस्तार करना शुरू किया और मालवा को १५६२ में, गुजरात को १५७२ में, बंगाल को १५७४ में, काबुल को १५८१ में, कश्मीर को १५८६ में, और खानदेश को १६०१ में मुग़ल साम्राज्य के अधीन कर लिया। अकबर ने इन राज्यों में एक एक राज्यपाल नियुक्त किया। अकबर यह नही चाहता था की मुग़ल साम्राज्य का केन्द्र दिल्ली जैसे दूरस्थ शहर में हो; इसलिए उसने यह निर्णय लिया की मुग़ल राजधानी को फतेहपुर सीकरी ले जाया जाए जो साम्राज्य के मध्य में थी। कुछ ही समय के बाद अकबर को राजधानी फतेहपुर सीकरी से हटानी पड़ी। कहा जाता है कि पानी की कमी इसका प्रमुख कारण था। फतेहपुर सीकरी के बाद अकबर ने एक चलित दरबार बनाया जो कि साम्राज्य भर में घूमता रहता था इस प्रकार साम्राज्य के सभी कोनो पर उचित ध्यान देना सम्भव हुआ। सन १५८५ में उत्तर पश्चिमी राज्य के सुचारू राज पालन के लिए अकबर ने लाहौर को राजधानी बनाया। अपनी मृत्यु के पूर्व अकबर ने सन १५९९ में वापस आगरा को राजधानी बनाया और अंत तक यहीं से शासन संभाला।

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अकबर, मुगल साम्राज्य, akbar


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