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Old 26-10-2011, 03:30 PM   #1
sanjivkumar
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7 आकस्मिक खोजें जिन्होंने बदला जीवन

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Old 26-10-2011, 03:32 PM   #2
sanjivkumar
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सैकेरीन

सैकेरीन की खोज कंस्टेंटाइन फालबर्ग ने 1879 में की थी। रसायनशाष्त्री फालबर्ग अपनी लैब में कोल तार के नए मिश्रण पर प्रयोग कर रहे थे। एक दिन वे अपना काम खत्म कर घर आए और हाथ धोना भूल गए। उस दिन उन्होनें पाया कि खाने का स्वाद कुछ ज्यादा ही मीठा लग रहा है। उन्होनें पत्नी से इस बाबत पूछा तो जवाब मिला कि खाने में चीनी तो डाली नहीं है। इससे फालबर्ग का ध्यान अपने हाथों की ओर गया। दूसरे दिन वे अपनी प्रयोगशाला में गए और अपनी खोज को चखने लगे। सैकेरीन की खोज अनायास ही हो गई।
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Old 26-10-2011, 03:33 PM   #3
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कोक


अटालांटा के फार्मिस्ट जॉन पेम्बरटन अपने सरदर्द से काफी परेशान रहते थे। उन्होनें कई रसायनों का मिश्रण तैयार किया ताकी उनके सेवन से सरदर्द से छूटकारा पाया जा सके। उनका सरदर्द तो दूर नहीं हुआ परंतु एक ऐसे द्रव्य का आविष्कार जरूर हो गया जिसको सोडा के साथ मिश्रित करने से स्वादिष्ट पेय बनाया जा सकता है। लेकिन पेम्बरटन ने वर्षों तक उस द्रव्य को अपनी दुकान से एक दवाई की तरह ही बेचा। लेकिन भविष्य में वह कोका कोला के रूप में बोतलबंद स्वरूप में बिकने वाला था।
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Old 26-10-2011, 03:34 PM   #4
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कोर्न फ्लेक्स


1894 की बात है जब डॉ. जॉन कैलोग मिशिगन अमरीका के बैटल क्रीक सेनेटेरियम के सुप्रिटेंडेंट थे। वे तथा उनके भाई कीथ कैलोग मरीजों की सेवा करते थे। वहाँ कुछ मरीजों को शाकाहारी भोजन ही दिया जाता था और इसके लिए कीथ उबले हुए गेहूँ का इस्तेमाल करते थे। एक दिन कीथ उबले हुए गेहूँ का इस्तेमाल करना भूल गए और वे एकदम ढीले पड़ गए। कीथ ने उनको फेंका नहीं और एक रोलर के नीचे डाल दिया। उन्हें लगा कि इससे गेहूँ का आटा बन जाएगा, परंतु ऐसा नहीं हुआ। बल्कि इससे छोटे छोटे फ्लेक्स बन गए। कीथ ने उन फ्लेक्स को दूध में मिलाकर मरीजों को खिलाया जो उन्हें काफी पसंद आया। इसके बाद जॉन और कीथ ने कई अन्य धानों के साथ प्रयोग किया. मक्के के दानों के साथ किया गया प्रयोग सबसे सफल रहा और कीथ और जॉन ने अपने कोर्न फ्लेक्स को ग्रेनोस नाम दिया और उसका पेटेंट करा लिया। 1906 में कीथ ने कैलोग्स कम्पनी स्थापित की और कोर्न फ्लेक्स बेचने लगे। जॉन ने उनकी कम्पनी में खुद को शामिल नहीं किया क्योंकि वे इसके वाणिज्यिक इस्तेमाल और इसमें चीनी मिलाए जाने के खिलाफ थे।
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Old 26-10-2011, 03:35 PM   #5
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माइक्रोवेव ओवन


माइक्रोवेव ओवन की खोज पर्सी स्पेंसर ने की थी जो रेथिओन कोर्पोरेशन में काम करते थे। 1945 के किसी दिन वे एक नई वैक्यूम नली के साथ प्रयोग कर रहे थे जिसका नाम मेग्नेट्रोन था। अपने प्रयोग के दौरान स्पेंसर ने पाया कि उनके जेब में रखी कैंडी पिघल रही है। उन्होनें अपने जेब में कुछ पोपकार्न रख लिए। उन्होनें पाया कि पोपकार्न भी फूलने लग गए हैं। स्पेंसर को लगा कि यह तो बड़े काम की चीज बन सकती है। स्पेंसर ने 1947 में पहला माइक्रोवेव ओवन बनाया जिसका नाम रखा राडारैंज। यह 750 पाउंड वजन का और 5 फीट से अधिक ऊँचाई वाला ओवन था और इसकी कीमत भी 5000 डॉलर थी। जाहिर है यह ओवन लोगों के बीच उतना लोकप्रिय नहीं हो पाया। बाद में 1950 में इसका छोटा स्वरूप बाजार में उतारा गया। यह 100 वॉट बिजली से चलता था और इसकी कीमत भी मात्र 497$ थी।
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Old 26-10-2011, 03:36 PM   #6
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आलू के चिप्स



पोटेटो चिप्स... आज ना जाने कितने देसी विदेशी ब्रांड के आलू चिप्स बाजार में उपलब्ध है। आलू चिप्स होते बहुत ही सामान्य हैं परंतु इनकी खोज भी आकस्मिक ही थी। ज्योर्ज क्रम मूनस लैक हाउस में शेफ थे। उनका एक ग्राहक रोज तले हुए आलू ले जाता था परंतु उसकी एक आदत थी। वह हमेशा कोई ना कोई कमी निकाल कर, जैसे कि आलू ढीले हैं - कुरकुरे नहीं है, उन्हें लौटा दिया करता था। ज्योर्ज उस ग्राहक से बेहद परेशान थे। उन्होनें विशेष रूप से उस ग्राहक के लिए आलू के पतले से पतले टुकड़े छीले और उसे ग्रीस में तला और नमक और मसाले लगाए। इस बार ग्राहक को यह नई चीज पसंद आ गई और ज्योर्ज ने इसे साराटोगा चिप्स नाम दिया। आलू के चिप्स धीरे धीरे पूरे ब्रिटेन में और बाद में पूरी दुनिया में लोकप्रिय हो गए।
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Old 26-10-2011, 03:38 PM   #7
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वायग्रा


आज वायग्रा दुनिया में सबसे अधिक बिकने वाली दवाईयों में से एक है और कई लोगों के लिए यह दवाई नहीं बल्कि आवश्यकता है। वायग्रा के जैसी कई देशी दवाईयाँ भी आज बाजार में उपलब्ध है। वास्तव में वायग्रा का इस्तेमाल कभी शिश्नोत्थान ना होने की बिमारी से ग्रसित लोगों का इलाज करने के लिए किया जाता था। इसका परीक्षण इस बिमारी की रोकथाम के लिए किया जा रहा था और इसी बीच यह दवाई चर्चा में आ गई। और बस उसके बाद इसके वाणिज्यिक उत्पादन ने धूम मचा दी।
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Old 26-10-2011, 03:41 PM   #8
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आतिशबाजी



आतिशबाजी की खोज करीब 2000 वर्ष पहले चीन में की गई थी. इसकी खोज किसने की इस विषय में कोई पुख्ता जानकारी उपलब्ध नहीं है परंतु ऐसी मान्यता है कि इसकी खोज एक रसोइए ने की थी। चीन में रसोईघरों में चारकोल, सल्फर और नमक आदि इस्तेमाल किए जाते थे। इस रसोइए ने एक दिन इन सभी का मिश्रण बनाया तो देखा कि उनमें आग लग गई और रंगबिरंगी रोशनी निकली. इसके बाद उसने बांस के खोल में इन मिश्रणों को भरा तो देखा कि एक धमाके के साथ यह मिश्रण फट गया और रोशनी प्रगट हुई। इस तरह से आतिशबाजी की खोज हुई।
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Old 26-10-2011, 03:42 PM   #9
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अच्छी जानकारी है, लेकिन सात ही क्यों ? सात यानी सात पोस्ट में सूत्र का समापन ! बन्धु ! संसार में जिस चीज़ की खोज हुई, उसी ने मानवीय जीवन में कुछ बदलाब किया ! मसलन, जब मानव ने कुछ उगाना नहीं सीखा था, तब वह मांस-भक्षण अथवा वृक्षों पर स्वयं उगे फल, वनस्पति और कंद-मूल खाकर ही गुज़ारा करता था ! स्वयं उगी चीजों पर भी उसे बहुत बाद में विश्वास हुआ, क्योंकि उसे पता नहीं था कि इनमें से क्या जहरीला है और क्या नहीं, अतः वह पशुओं को जो खाते देखता, उसका भक्षण शुरू कर देता था ! ज़रा सोचिए, इस लिहाज से अन्न उगाने की विधि जिसने खोजी, वह कितना महान आविष्कारक था ! अतः समस्त बड़ी खोजों को आप इस सूत्र में स्थान दे सकते हैं ! धन्यवाद !
__________________
दूसरों से ऐसा व्यवहार कतई मत करो, जैसा तुम स्वयं से किया जाना पसंद नहीं करोगे ! - प्रभु यीशु
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Old 26-10-2011, 03:52 PM   #10
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Originally Posted by dark saint alaick View Post
अच्छी जानकारी है, लेकिन सात ही क्यों ? सात यानी सात पोस्ट में सूत्र का समापन ! बन्धु ! संसार में जिस चीज़ की खोज हुई, उसी ने मानवीय जीवन में कुछ बदलाब किया ! मसलन, जब मानव ने कुछ उगाना नहीं सीखा था, तब वह मांस-भक्षण अथवा वृक्षों पर स्वयं उगे फल, वनस्पति और कंद-मूल खाकर ही गुज़ारा करता था ! स्वयं उगी चीजों पर भी उसे बहुत बाद में विश्वास हुआ, क्योंकि उसे पता नहीं था कि इनमें से क्या जहरीला है और क्या नहीं, अतः वह पशुओं को जो खाते देखता, उसका भक्षण शुरू कर देता था ! ज़रा सोचिए, इस लिहाज से अन्न उगाने की विधि जिसने खोजी, वह कितना महान आविष्कारक था ! अतः समस्त बड़ी खोजों को आप इस सूत्र में स्थान दे सकते हैं ! धन्यवाद !

उत्साहवर्धन के लिए शुक्रिया मित्र, और कुछ नयी जानकारी मिलेगी तो जरुर यहाँ देने की कोशिश करूंगा.
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